हज-उमरे Hajj-Umrah के जरुरी मालूमात और हज उमरे का सवाब क़ुरान हदीस से हज Hajj ये इस्लाम में पांच फर्ज़ो में से एक फ़र्ज़ हैं और इस्लाम में फ़र्ज़ को......
हज उमरा Hajj-Umrah की पूरी मालूमात हज का तरीका क़ुरान हदीस से
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Hajj-Umrah |
हज Hajj ये इस्लाम में पांच फर्ज़ो में से एक फ़र्ज़ हैं और इस्लाम में फ़र्ज़ को अदा करना पत्थर की लकीर मन जाता हैं और ना करने पर अल्लाह नाराज़ होता हैं। और उमरा Umrah ये नफिल हैं
हज Hajj ऐसा फ़र्ज़ हैं जो मालो दौलत में बड़ा हो और हज करने की हैसीयत रखता हो वो इसे कर सकता हैं कोई गरीब मोमिन पर जरुरी नहीं। और उमरे Umrah पर भी ये शराइत हैं
हज-उमरे Hajj-Umrah के जरुरी मालूमात और हज उमरे का सवाब क़ुरान हदीस से
१ ) हज्जतुल वदाअ को मुख्तलिफ नामों से जाना जाता है : हज्जतुल वदाअ , हज्जतुत तमाम , हज्जतुल बलाग़ और हज्जतुल इस्लामा (Islam) इन अय्याम में मुख़्तलिफ़ मकामात पर सरकार नबीये करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जो ख़िताबात फ़रमाए हैं उन में साफ़ साफ़ बता दिया कि इस मकाम पर मेरी तुम से यह आखिरी मुलाकात है । इन खुत्बों में सरकार सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी उम्मत को अल्विदाअ कहा है इस लिये इस हज को हज्जतुल वदाअ कहा जाता है । ( ज़ियाउन्नबी , जिः ४ )
२ ) हज्जतुल वदाअ में कुरबानी (Qurbani) से फ़ारिग होने के बाद नबीये करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सर मुंडाने के लिये हज्जाम को तलब किया जिस का नाम मुअम्मर बिन अब्दुल्लाह बिन नज़लह और कुत्रियत अबू तल्हा थी । ( जियाउन्नबी , जिः ४ )
३ ) अवाम में जो यह मशहूर है कि जो हज (Hajj) जुम्ए वाले दिन आए वह हज्जे अकबर होता है , यह बे अस्ल है । ( अहसनुल बयान )
४ ) सरकार नबीये करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम (Sallallaho Walay Wasallam) ने इरशाद फ़रमाया कि जो माले हराम (Haram) लेकर हज को जाता है और जब लब्बैक कहता है तो हातिफे गैबी उसे जवाब देता है : न तेरी लब्बैक कुबूल न ख़िदमत पज़ीर और तेरा हज तेरे मुंह पर मर्दूद है यहां तक कि तू माले हराम जो कि तेरे कब्जे में है उस के मुस्तहिकीन को वापस कर दे । ( फतावए रज़विया , जि : १० )
५ ) हज (Hajj) हमेशा से कअबे का ही हुआ । बैतुल मदिस का हज कभी नहीं हुआ । ( तफसीरे नईमी )
६ ) रजब सन ६ हिजरी में ग़ज़वए तबूक पेश आया , उसी साल हज फ़र्ज़ (Farz) हुआ । मुसलमानों का पहला तीन सौ हाजियों का काफिला (Hazrat) हज़रत सिद्दीके अकबर रज़ियल्लाहु अन्हु की अमारत में रवाना हुआ । इस हज के बाद काफिरों को आइन्दा हरम में दाखिल होने की मुमानित सादिर हो गई । यही आख़िरी हज था जिस में मुसलमानों के साथ हज में काफ़िर भी शरीक थे । ( तफसीरे नईमी )
७ ) एहराम (Ihram) की हालत में औरत से हमबिस्तरी हराम है मगर निकाह हराम (Haram) नहीं । हुजूरे अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने (Hazrat) हज़रत मैमूना रज़ियल्लाहु अन्हा से एहराम की हालत में निकाह फ़रमाया था । ( तफसीरे नईमी )
8) सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम (Sallallaho Walay Wasallam) मुदलिफा से मिना में आए और जमरए अकबा में कंकरियाँ फेंक कर अपने मकान पर तशरीफ लाए फिर आप ने हज्जाम को क्या आप जानते हैं ? हज्जतुल वदाअ सन दस हिजरी में वाकेअ हुआ । ( बुख़ारी शरीफ )
९ ) हज़रत अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि रसूलुल्लाह बुलाया और सरे मुबारक के दाएं तरफ से बाल मुंडवाए और (Hazrat) हज़रत अबू तल्हा अन्सारी रज़ियल्लाहु अन्हु को अता फरमाए । इस के बाद सरकार सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बाएं तरफ के बाल मुंडवा कर अबू तल्हा अन्सारी रज़ियल्लाहु अन्हा को अता फरमाए और इरशाद फरमायाः यह तमाम लोगों में तकसीम कर दो । ( तफ़सीरे नईमी )
१० ) अगर कोई हाजी मुर्तद होकर दोबारा ईमान लाए तो उस पर हज दोबारा करना फर्ज (Farz) है । ( तफसीरे नईमी )
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What is Hajj (Hajj) and why is it important?
हज क्या है और यह क्यों महत्वपूर्ण है?
११ ) हुजूरे अनवर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उमरए कज़ा के मौके पर तवाफ में रमल किया यानी तीन चक्करों में अकड़ कर चले ताकि उस वक्त के काफ़िर मोमिनों को कमज़ोर न समझ लें । लेकिन सरकार सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की यह अदा कियामत तक हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सारी उम्मत के लिये सुन्नत हो गई । ( तफसीरे नईमी )
१२ ) एहराम (Ihram) की हालत में सिर्फ खुश्की के जानवरों का शिकार हराम (Haram) है । दरियाई शिकार जाइज़ है । शर्त यह कि हाथ या नेजे से न किया जाए । ( तफ़सीरे नईमी )
१३ ) एहराम (Ihram) या हरम वाले मुसलमान का शिकार और ज़िव्ह किया हुआ जानवर कुछ इमामों के नदीक मुर्दार से भी बदतर है । ( तफ़सीरे नईमी )
१४ ) (Hazrat) हज़रत अनस रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं हुजूरे अकदस सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तमाम उम्र में चार उमरे किये हैं और सब ज़िल कअदा के महीने में । अव्वल , ज़िल कअदा में हुदैबिया के साल हज (Hajj) के हमराह उमरे (Umrah) की नियत की थी , दूसरे साल ज़िल कअदा के महीने में , तीसरे एक उमरा जिअराना से जहाँ हुनैन की गनीमतें तकसीम की गई थीं । यह भी ज़िल कअदा ही का महीना था । चौथे हज्जे वदाअ के साथ । ( तफसीरे नईमी )
१५ ) (Hazrat) हज़रत इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाः जो शख़्स हज के वास्ते आया और फिर उस ने मेरी जियारत की तो उस ने मुझ को गोया हयात में देख लिया । ( बुख़ारी शरीफ )
१६ ) एहराम (Ihram) की हालत में मछली का शिकार किया जा सकता है । ( बुख़ारी शरीफ )
१७ ) एहराम (Ihram) की हालत में मूज़ी जानवरों जैसे कि चील , कौआ , दीवाना कुत्ता , शेर , भेड़िया वगैरा का शिकार किया जा सकता है । ( बुख़ारी )
१८ ) हरम की सीमाएं जिन में शिकार करना हराम (Haram) है यह हैं : मक्कए मुअज्जमा से पूरब की तरफ छ : मील , मगरिब की तरफ बारह मील , दक्षिण की तरफ अट्ठारह मील और उत्तर की तरफ चौबीस मीला ( तफसीरे रूहुल बयान )
१९ ) हज (Hajj) के लफ़्ज़ी मानी हैं इरादा करना या किसी के पास आना जाना । शरीअत में ख़ास अरकान का नाम हज है क्योंकि इस में बैतुल्लाह का इरादा भी है और वहाँ बार बार हाज़िरी भी और उस के गिर्द बार बार चक्कर भी । कुछ लोगों ने कहा है कि हज के मानी हैं मुंडना । चूंकि इस में सर मुंडाया जाता है या हाजी के गुनाह ऐसे गिर जाते हैं जैसे हजामत से बाल , इस लिये इसे हज कहते हैं । ( तफसीरे कबीर )
२० ) ज़मानए जाहिलियत में हज के ज़माने में उमरा करना सख्त गुनाह समझते थे और कहते थे कि जब ऊँटों के ज़ख़्म अच्छे हो जाएं और माहे सफ़र आ जाए तब उमरा हलाल है । इस्लाम (Islam) ने यह अकीदा तोड़ा और उमरे Umrah को हज में दाखिल फरमाया । ( तफसीरे दुरे मन्सूर )
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Why is Hajj a special day?
हज (Hajj) एक विशेष दिन क्यों है?
२१ ) हज व उमरे के चार तरीके हैं : एक इफराद बिल हजा दो , इफ़राद बिल उमरा , तीसरा , किरान और चौथा तमत्तु । इफ़राद बिलं हज यह है कि सिर्फ हज का एहराम बांध कर वही अदा करे , उस के साथ उमरा न करे । इस का एहराम दसवीं जिलहज्जा को तवाफे ज़ियारत से खुलेगा चाहे कभी बांधा हो । इफराद बिल उमरा यह है कि सिर्फ उमरे Umrah का एहराम . बांधे और उमरा (Umrah)ही करे या तो उस साल हज करे ही नहीं या घर लौट आए और फिर नए सफर से हज करे । इस वापसी का नाम इत्माम है ।
अगर उसी सफर में उसी साल हज कर लिया तो तमत्तुअं हो गया । इस का एहराम मक्कए मुअज्जमा पहुंच कर उमरे के अरकान यानी तवाफ और सई करते ही खुल जाता है । किरान यह है कि हज और उमरा (Umrah)दोनों को एक ही एहराम (Ihram) में जमा कर ले यानी दोनों का एहराम बांध कर मक्कए मुअज्जमा पहुंच कर पहले तवाफ और सई उमरा के लिये करे फिर हज का तवाफे कुदूम और सई करे फिर एहराम पर ही कायम रह कर आठवीं ज़िलहज्जा से दसवीं ज़िलज्जा तक अरकाने हज यानी कियामे मिना और वकूफे अरफात व मुज़दलिफ और दोबारा मिना में हाज़िर होकर शैतान को कंकरियाँ मार कर कुरबानी (Qurbani) करे और सर मुंडवाए और फिर तवाफे ज़ियारत करके एहराम खोल दे ।
तमत्तुअ की दो सूरतें हैं । एक कुरबानी वाला दूसरा बिना कुरबानी का । कुरबानी (Qurbani) वाले तमत्तुअ का तरीका यह है कि पहले सिर्फ उमरे Umrah का एहराम बांथे और हज के महीनों आप जानत हा ) में उमरा (Umrah)करके बिना एहराम खोले मक्के में रहे और आठवीं ज़िलहज्जा को उस एहराम पर हज का एहराम (Ihram) भी बांध कर हज भी अदा करे । बिना कुरबानी का तमत्तुअ यह है कि पहले सिर्फ उमरे का एहराम बांधे और मक्कए मुअज्जमा पहुंच कर उमरा करके एहराम (Ihram) खोल दे फिर आज़ादी से रहे और आठ तारीख़ को हज (Hajj) का एहराम बांध कर हज करे । ( तफसीरे नईमी )
२२ ) मक्के वालों बल्कि मीकात वालों के लिये न तमत्तुअ है न किरान क्योंकि उन्हें ज़मानए हज में उमरा (Umrah) करना ही मना है । अगर वह लोग तमत्तुअ या किरान कर भी लें तो उन पर कफ्फारे की कुरबानी वाजिब होगी न कि शुक्र की क्योंकि उन्हों ने यह जुर्म कर लिया , लिहाजा वह इस कुरबानी से खुद कुछ भी नहीं खा सकते । ( तफसीरे सहुल बयान )
२३ ) ज़बीहे की दो किस्में हैं : ज़बीहए आदत और ज़बीहए इबादता ज़बीहए आदत तो वह है जो हम दिन रात खाने के लिये जानवरों को ज़िव्ह करते हैं । उन पर न अज़ाब है न सवाब । ज़बीहए इबादत वह है कि जो रब को राज़ी करने के लिये किया जाए । इस ज़बीहे की दो किस्में हैं : ज़बीहए जियानत और ज़बीहए शुक्र । ज़बीहए जियानत तो हज और उमरे Umrah में होता है जब कोई वाजिब छूट जाए , इस ज़बीहे की न तारीख मुकर्रर है न इस में से खुद खा सकता है । शुक्र का ज़बीहा तीन तरह का है : बच्चे का अकीका , बकर ईद की कुरबानी और तमत्तुअ या किरान का ज़बीहा । इस ज़बीहे की तारीख़ भी मुकर्रर है और ज़बीहा करने वाला खुद भी खा सकता है । ( तफसीरे नईमी ) दुसअत
२४ ) (Hazrat) हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के ज़माने में हज तवाफ और अरफात में ठहरने का नाम था । फिर ज़मानए इब्राहीमी से इस में रमी , कुरबानी (Qurbani) , सफा और मरवा की सई का इज़ाफा हुआ । हमारे हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ज़माने में तवाफ़े कुदूम , तवाफे वदाअ और अकड़ कर चलने का इज़ाफा हुआ । ( तफसीरे नईमी )
२५ ) रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम (Sallallaho Walay Wasallam) ने फरमायाः जिस को और वह कुरबानी न करे वह चाहे यहूदी हो कर मरे चाहे नसरानी हो कर । ( तफसीरे नईमी )
२६ ) मशअरे हराम (Haram), मुज्दलिफा में एक पहाड़ का नाम है , इसी को कज़ह और मीकदह भी कहते हैं । ज़मानए जाहिलियत में लोग अरफात से वापस आकर तमाम रात इस पर आग जलाते थे । इस्लाम (Islam) ने हुक्म दिया कि यह बेहूदा बात है , यहाँ आकर अल्लाह (Allah) का ज़िक्र करो । ( तफसीरे नईमी )
२७ ) आठवीं ज़िलहज्जा को यौमुत तरविया , नवीं को यौमे अरफा और दसवीं को यौमुन नहर कहते हैं । ( तफसीरे नईगी )
२८ ) जब (Hazrat) हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को बैतुल्लाह बनाने का हुक्म दिया गया तो आठवीं ज़िलहज्जा को आप ने गौर किया और रब से अर्ज़ किया कि मुझे इस की क्या उजरत मिलेगी ? हुक्मे इलाही हुआ कि इस के अव्वल तवाफ तुम्हारी सारी ख़ताएं माफ हो जाएंगी ।
अर्ज़ कियाः मौला कुछ और दे । फरमायाः तुम्हारी औलाद में भी जो तवाफ़ करेगा उस के गुनाह बश दिये जाएंगे ।
अर्ज़ कियाः इलाही कुछ और दे । हुक्म हुआ कि हाजी तवाफ़ करते वक़्त जिस के लिये भी दुआ करेगा उस की भी मगफिरत कर दी जाएगी । अर्ज़ कियाः बस बस मुझे यही काफी है । चूंकि इस तारीख़ को आदम अलैहिस्सलाम ने गौर व फिक्र किया था इस लिये इस दिन का नाम यौमुत तरविया हुआ । दूसरे यह कि (Hazrat) हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने आठवीं ज़िलहज्जा को ख़्वाब देखा था जिस में बेटे की कुरबानी (Qurbani) का हुक्म था दिन भर गौर किया कि यह सच्चा ख़्वाब है या फकत मेरा वहमा यह दिन गौर में गुज़रा ।
नवीं रात को फिर यही ख्वाब देखा तो पहचान लिया कि यह सच्चा ख्वाब है । इस लिये आठवीं ज़िलहज्जा का नाम यौमुत तरविया यानी गौर करने का दिन और नवीं ज़िलहजा का यौमे अरफा यानी पहचानने का दिन रखा गया । तीसरे यह कि मक्के वाले आठवीं ज़िलहज्जा को मिना में दुआएं सोचा करते थे कि कल अरफ़ात में रब से क्या क्या मांगेंगे । लिहाज़ा इस का नाम यौमुत तरविया यानी दुआएं सोचने का दिन पड़ा ।
चौथे यह कि मक्के वाले आठवीं ज़िलहज्जा को अपने जानवरों को भी पानी पिलाया करते थे और अरफ़ात में अपने पीने के लिये जमा कर लेते थे इस लिये इस का नाम यौमुत तरविया यानी पानी पिलाने का दिन रखा गया । ( तफसीरे कबीर )
२९ ) यौमे अरफा के दस नाम हैं : अरफा , यौमे अयास , यौमे अकमाल , यौमे इत्माम , यौमे रिज़वान , यौमे हज्जे अकबर , शफअ , वित्र , शाहिद , मशहूद । यह सब नाम कुरआने मजीद में आए हैं । ( तफसीरे कबीर ) तवाफ के दौरान रुक्ने यमानी और हजरे असवद के बीच रब्बना आतिना ( आखिर तक ) दुआ ज़रूर मांगे । हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम (Sallallaho Walay Wasallam) फरमाते हैं : रुक्ने असवद पर उसी दिन से एक फ़रिश्ता बैठा हुआ है जब से आसमान और ज़मीन बने हैं और आमीन आमीन कह रहा है । दूसरी रिवायत
३० ) हज (Hajj) में हैं कि रुक्ने यमानी पर ७० फरिश्ते आमीन कहते रहते हैं । ( तफसीरे नईमी ) ३१ ) (Hazrat) हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा कहते हैं कि मिना ( क्या आप जानते हैं ? को मिना इय लिये कहते हैं कि जब आदम अलैहिस्सलाम तीबा कुबूल होने के बाद अरफ़ात से यहाँ पहुंचे तो हज़रत जिबईल अलैहिस्सलाम ने फरमायाः कुछ तमन्ना करो । आप ने जन्नत की आरजू की । लिहाज़ा इस का नाम मिना हुआ यानी ख्वाहिश की जगह । ( तफसीरे नईमी )
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Where is Hajj located?
हज कहाँ स्थित है?
३२ ) हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि जिस ने हज किया और मेरी ज़ियारत न की उस ने मुझ पर जुल्म किया । ( तफसीरे नईमी )
३३ ) सय्यिदुना मौला अली कर्रमल्लाहु वजहहुल करीम फरमाते हैं : क़ियामत के दिन हजरे असवद के आँखें और मुंह होगा और यह हाजियों की शफाअत करेगा । ( तफसीरे नईमी )
३४ ) कुरबानी (Qurbani) की सुन्नते इब्राहीमी को एहतिमाम और पाबन्दी के साथ ज़िन्दा करने की बुनियाद सन दो हिजरी में मदीनए मुनव्वरा में पड़ी । ( नुव्हतुल कारी )
३५ ) हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हमेशा दो अबलक मेंढे कुरबान फ़रमाया करते थे , एक अपनी तरफ से और दूसरा अपने उम्मतियों की तरफ से जिन को नादारी या फरामोशी की वजह से कुरबानी (Qurbani) की तौफीक हासिल नहीं हुई । ( बुख़ारी शरीफ़ )
३६ ) मुज्दलिफा का दूसरा नाम जमअ भी है । इस का सबब एक तो यही है कि लोग दुनिया के कोने कोने से आकर यहाँ जमा होते हैं । दूसरी वजह यह है कि (Hazrat) हज़रत आदम अलैहिस्सलाम और हज़रत हव्वा रज़ियल्लाहु अन्हा ने यहाँ इकटे रात गुज़ारी थी । ( नुन्हतुल कारी )
३७ ) (Hazrat) हज़रत अली इब्ने अबी तालिब रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं : जब हज की आयत नाज़िल हुई और हुजूरे अनवर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सहाबए किराम से फ़रमाया कि हज करना फर्ज (Farz) है तो हज़रत अकरअ बिन हाबिस रज़ियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ कियाः या रसूलल्लाह ! क्या हर साल फर्ज (Farz) है ? हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ख़ामोश रहे । उन्हों ने फिर यही पूछा , हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फिर ख़ामोश रहे । उन्हों ने फिर यही सवाल किया तब फरमायाः अगर हम अभी हाँ कह देते तो हर साल फ़र्ज़ हो जाता । हज (Hajj) उम्र में एक बार फ़र्ज़ है । ( तफसीरे ख़ाज़िन )
३८ ) जिइरानह एक औरत रीतह बिन्ते सअद का लकब था । यह वही औरत थी जो दिन भर सूत कात कर रात को तोड़ देती थी । यहाँ से ही हुजूरे अनवर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जंगे हुनैन के बाद उमरा किया । यहाँ से सत्तर नबियों ने उमरा (Umrah) किया है जिसे आज बड़ा उमरा कहा जाता है । ( तफसीरे सहुल बयान ) की
३९ ) जब सन ९ हिजरी में हज़रत अबू बक्र सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु सरकर्दगी में सूरए बराअत का एलान किया गया और फरमाया गया कि अगले साल से कोई मुश्रिक हज न करेगा और न कोई नंगे होकर कअबे का तवाफ करेगा , तो अरब के मुश्रिकों ने मक्के के मुसलमानों से कहाः तुम ने हमें हज से तो रोक दिया , इस का अंजाम भी देख लेना । हज में तिजारत का सामान हम ही बाहर से लाते हैं , तुम्हारी आमदनी हमारे ही ज़रिये होती है , अगर हम ने आना छोड़ दिया तो तुम भूखे मर जाओगे ।
इस पर कुछ मक्के वाले परेशान हुए तब सूरए तौबा की यह आयत नाज़िल हुई : रिज्क देने वाला अल्लाह (Allah) है उसी पर तवक्कुल करो , वह तुम्हें पहले से ज्यादा रोज़ी अता फरमाएगा । ( तफ़सीरे कबीर , ख़ाज़िन , रूहुल मआनी )
४० ) माहे ज़िलहज्जा का पहला अशरा बहुत ही अजमतों वाला है । इमाम नीशापूरी रहमतुल्लाहि अलैहि फरमाते हैं कि इसी अशरे में मूसा अलैहिस्सलाम ने रब से पहला कलाम किया , इसी अशरे में हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की तौबा कुबूल हुई , इसी अशरे में हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम का ज़िब्ह और फिदिये का वाकिआ पेश आया , इसी अशरे में हज़रत हूद अलैहिस्सलाम ने अपनी कौम से और हज़रत नूह अलैहिस्सलाम ने तूफान से नजात पाई । इसी अशरे में बैअते रिज़वान , सुलहे हुदैबिया , फहे खैबर की बशारत हुई । ( जुब्दतुल वाइज़ीन )
What are the 7 Stages of Hajj?
हज (Hajj) के 7 चरण क्या हैं?
४१ ) हज़रत इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम (Sallallaho Walay Wasallam) ने फरमायाः वह दिन जिस में अल्लाह तआला (Allah) ने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की ख़ता माफ़ की थी , वह ज़िलहज्जा का पहला दिन था ।
इस दिन रोज़ा रखने वाले के तमाम गुनाह माफ हो जाते हैं ।
दूसरें दिन हज़रत यूनुस अलैहिस्सलाम की दुआ कुबूल हुई और अल्लाह तआला ने उन्हें मछली के पेट से निकाला । इस दिन रोज़ा रखने वाले को उस शख़्स का सवाब मिलता है जिस ने साल भर की इबादत में एक पल खुदा की नाफरमानी न की हो ।
तीसरे दिन हज़रत जकरिया अलैहिस्सलाम की दुआ कुबूल हुई । इस दिन रोज़ा रखने वाले की तमाम दुआएं कुबूल होती हैं ।
चौथे दिन हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम पैदा हुए । इस दिन रोज़ा रखने वाले को ख़ौफ और फक्र से निजात मिलती है और कियामत के दिन नेकों की राह नसीब होती है ।
पांचवें दिन हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम पैदा हुए । इस दिन रोज़ा रखने वाला निफाक से आज़ाद और कब्र के अज़ाब से मेहफूज रहता है ।
छटे दिन अल्लाह तआला (Allah) ने अपने नबी के लिये खैर के दरवाजे खोले । इस दिन रोज़ा रखने वाले की तरफ अल्लाह तआला रहमत की नज़र से देखता है और फिर कभी अज़ाब नहीं करता ।
सातवें दिन दोज़ख़ के दरवाजे बन्द होते हैं । इस दिन रोज़ा रखने वाले पर मुश्किलों के तीस दरवाजे बन्द होते हैं और आसानियों के तीस दरवाजे खुल जाते हैं ।
आठवाँ तरविया का दिन है । इस दिन रोज़ा रखने वाले को इतना सवाब मिलता है कि उस का अन्दाज़ा अल्लाह तआला के सिवा कोई नहीं कर सकता । नवाँ दिन अरफे का है । जो शख़्स इस दिन रोज़ा रखेगा एक पिछले साल और एक अगले साल के गुनाहों का कफ्फारा हो जाएगा । दसवां दिन कुरबानी (Qurbani) का है । इस दिन जो शख़्स कुरबानी करता है , खून की पहली बूंद के साथ उस के और उस के घर वालों के तमाम गुनाह अल्लाह तआला (Allah) माफ कर देता है । और जो इस दिन मोमिन को खाना खिला दे या खैरात करे , कियामत के दिन अम्न के साथ उठेगा और मीज़ान कोहे उहद से भारी हो जाएगी । ( नुन्हतुल मजालिस )
४२ ) सय्यिदुना उबादा रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम (Sallallaho Walay Wasallam) ने फरमायाः बक्र ईद के अशरे में हर रोजे का सवाब एक माह के बराबर होता है और आठवीं ज़िलहज्जा का रोज़ा एक साल के बराबर और नवीं ज़िलहज्जा का रोज़ा दो साल के बराबर । ( तफसीरे नईमी )
४३ ) हज़रत अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाः आठवीं ज़िलहज्जा का रोज़ा रखने वाले को रब तआला सब्रे अय्यूब का सवाब अता करता है और नवीं ज़िलहज्जा का रोज़ा रखने वाले को हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम का सवाब अता करता है । ( तफसीरे कबीर )
४४ ) इमाम नहरानी रहमतुल्लाहि अलैहि ने फरमाया कि एक तन्नूर वाले ने एक ऊँट की रस्सी को तन्नूर में जलाना चाहा मगर वह न जली । बहुत कोशिश करने पर भी वह कामयाब न हुआ । गैब से आवाज़ आई कि यह उस ऊँट की रस्सी है जिस पर दस बार हज (Hajj) किया गया इसे आग कैसे जलाएगी । ( तफसीरे रूहुल बयान )
४५ ) कहा गया है कि एक हज्जे मकबूल बीस जिहादों से अफ़ज़ल है । ( तफसीरे नईमी )
४६ ) उलमाए किराम फरमाते है कि जिस ऊँट पर सात हज (Hajj-Umrah) कर लिये जाएं अल्लाह तआला (Allah) उसे जन्नत के बागों में चरने की इजाज़त देता है । ( तफसीरे नईमी )
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