🤯Unlock the Secrets of Al Hajj: 55 बातें जो आपको पहले से पता होनी चाहिए

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Al Hajj हज के महीने में हज Hajj से पहले जान ले ये जरुरी बाते जो हर मोमिन को जानना जरुरी हैं दीनी इस्लाह मालूमात के लिए। ( 1 ) अश्हुरे हज : हज Al ..

🤯Unlock the Secrets of Al Hajj: 55 बातें जो आपको पहले से पता होनी चाहिए

    Al Hajj हज के महीने में हज Hajj से पहले जान ले ये जरुरी बाते जो हर मोमिन को जानना जरुरी हैं दीनी इस्लाह मालूमात के लिए। 


    ( 1 ) अश्हुरे हज : हज Al Hajj के महीने या'नी शव्वालुल मुकर्रम व जुल का'दह दोनों मुकम्मल और जुल हिज्जह के इब्तिदाई दस दिन । 

    ( 2 ) एहराम : जब हज या उम्रह hajj and umrah या दोनों की निय्यत कर के तल्बिया पढ़ते हैं तो बा'ज़ हलाल चीजें भी हराम हो जाती हैं , इस को “ एहराम " कहते हैं और मजाजन उन बिगैर सिली चादरों को भी एहराम Ihram कहा जाता है जिन्हें मोहरिम इस्ति'माल करता है । 

    ( 3 ) तल्बिया : यानि "लब्बैक अल्लाहुम्मा लब्बैक" पढ़ना । 

    ( 4 ) इज्तिबा : एहराम Ihram की ऊपर वाली चादर को सीधी बगल से निकाल कर इस तरह उलटे कन्धे पर डालना कि सीधा कन्धा खुला रहे । 

    ( 5 ) रमल : अकड़ कर शाने ( कन्धे ) हिलाते हुए छोटे छोटे कदम उठाते हुए क़दरे ( या'नी थोड़ा ) तेज़ी से चलना । 

    ( 6 ) तवाफ़ : ख़ानए का'बा Kaaba के गिर्द सात चक्कर लगाना , एक चक्कर को " शौत " कहते हैं , जम्अ " अश्वात " । 

    ( 7 ) मताफ़ : जिस जगह में तवाफ़ किया जाता है 

    ( 8 ) तवाफ़े कुदूम : मक्कए मुअज्जमा  में दाखिल होने पर किया जाने वाला वोह पहला तवाफ़ जो कि " इफ्राद " या " किरान " की निय्यत से हज Al Hajj करने वालों के लिये सुन्नते मुअक्कदा है 

    ( 9 ) तवाफ़े ज़ियारत : इसे तवाफ़े इफ़ाज़ा भी कहते हैं , येह हज Al Hajj का रुक्न है , इस का वक़्त 10 जुल हिज्जतिल हराम की सुब्हे सादिक़ से 12 जुल हिज्जतिल हराम के गुरूबे आफ्ताब तक है मगर 10 जुल हिज्जतिल हराम को करना अफ़ज़ल है । 

    ( 10 ) तवाफ़े वदाअ : इसे “ तवाफ़े रुख्सत " और " तवाफ़े सद्र " भी कहते हैं । येह हज Al Hajj के बाद मक्कए मुकर्रमा से रुख्सत होते वक्त हर आफ़ाक़ी हाजी पर वाजिब है । 


    ( 11 ) तवाफे उममह : येह उमरह करने वालों पर फ़र्ज़ है । 

    ( 12 ) इस्तिलाम : ह - जरे अस्वद को बोसा देना या हाथ या लकड़ी से छू कर हाथ या लकड़ी को चूम लेना या हाथों से उस की तरफ़ इशारा कर के उन्हें चूम लेना । 

    ( 13 ) सय : “ सफ़र " और " मर्वह " के माबैन ( या'नी दरमियान ) सात फेरे लगाना ( सफ़ा से मर्वह तक एक फेरा होता है यूं मर्वह पर सात चक्कर पूरे होंगे )

    ( 14 ) रम्य : जमरात ( या'नी शैतानों ) पर कंकरियां मारना । 

    ( 15 ) हल्क :  एहराम Ihram  से बाहर होने के लिये हुदूदे हरम ही में पूरा सर मुंडवाना । 

    ( 16 ) क़स : चौथाई ( 1/4 ) सर का हर बाल कम अज़ कम उंगली के एक पोरे के बराबर कतरवाना । 

    ( 17 ) मस्जिदुल हराम : मक्कए मुकर्रमा की वोह मस्जिद जिस में का'बए मुशर्रफ़ा वाकेअ है । 

    ( 18 ) बाबुस्सलाम : मस्जिदुल हराम Masjid al-Haram का वोह दरवाज़ए मुबा - रका जिस से पहली बार दाखिल होना अफ़ज़ल है और येह जानिबे मशरिक वाकेअ है । ( अब येह उमूमन बन्द रहता है ) 

    ( 19 ) का'बा : इसे “ बैतुल्लाह " भी कहते हैं या'नी अल्लाह - का घर । येह पूरी दुन्या के वस्त ( या'नी बीच ) में वाकेअ है और सारी दुन्या के लोग इसी की तरफ रुख कर के नमाज़ अदा करते हैं और मुसल्मान परवाना वार इस का तवाफ़ करते हैं । का'बए मुशर्रफ़ा के चार कोनों के नाम : 

    ( 20 ) रुक्ने अस्वद : जुनूब व मशरिक़ ( SOUTH - EAST ) के कोने में वाकेअ है , इसी में जन्नती पथ्थर " ह - जरे अस्वद " नस्ब है । 


    ( 21 ) रुक्ने इराक़ी : येह इराक की सम्त शिमाल मशरिकी ( NORTH EASTERN ) कोना है । 

    ( 22 ) रुक्ने शामी : येह मुल्के शाम की सम्त शिमाल मगरिबी ( NORTH - WESTERN ) कोना है ।

    ( 23 ) रुक्ने यमानी : येह यमन की जानिब मगरिबी ( WESTERN ) कोना है । 

    ( 24 ) बाबुल का'बा : रुक्ने अस्वद और रुक्ने इराकी के बीच की मशरिकी दीवार में जमीन से काफ़ी बुलन्द सोने का दरवाज़ा है । 

    ( 25 ) मुल्तज़म : रुक्ने अस्वद और बाबुल का'बा Kaaba की दरमियानी दीवार । 

    ( 26 ) मुस्तजार : रुक्ने यमानी और शामी के बीच में मगरिबी दीवार का वोह हिस्सा जो " मुल्तज़म " के मुक़ाबिल या'नी ऐन पीछे की सीध में वाकेअ है । 

    ( 27 ) मुस्तजाब : रुक्ने यमानी और रुक्ने अस्वद के बीच की जुनूबी दीवार यहां सत्तर हज़ार फ़िरिश्ते दुआ पर आमीन कहने के लिये मुकर्रर हैं । इसी लिये सय्यिदी आ'ला हज़रत मौलाना शाह इमाम अहमद रज़ा खान ने इस 66/364 नाम " मुस्तजाब " ( या'नी दुआ की मबूलिय्यत की जग 

    ( 28 ) हतीम : का'बए मुअज्जमा की शिमाली दीवार के पास निस्फ़ ( या'नी आधे ) दाएरे ( HALF CIRCLE ) की शक्ल में फ़सील ( या'नी बाउन्ड्री ) के अन्दर का हिस्सा । “ हतीम " का'बा शरीफ़ का ही हिस्सा है और उस में दाखिल होना ऐन का'बतुल्लाह शरीफ़ में दाखिल होना है । 

    ( 29 ) मीज़ाबे रहमत : सोने का परनाला येह रुक्ने इराकी व शामी की शिमाली दीवार की छत पर नस्ब है इस से बारिश का पानी “ हतीम " में निछावर होता है । 

    ( 30 ) मक़ामे इब्राहीम : दरवाज़ए का'बा Kaaba के सामने एक कुब्बे ( या'नी गुम्बद ) में वोह जन्नती पथ्थर जिस पर खड़े हो कर हज़रते सय्यिदुना इब्राहीम ख़लीलुल्लाह : ने का'बा Kaaba शरीफ़ की इमारत ता'मीर की और येह हज़रते सय्यिदुना इब्राहीम खलीलुल्लाह : का जिन्दा मो'जिज़ा है कि आज भी इस मुबारक पथ्थर पर आप - के क - दमैने शरीफैन के नक्श मौजूद हैं । 


    ( 31 ) बीरे ज़मज़म : मक्कए मुअज्जमा  का वोह मुक़द्दस कूआं जो हज़रते सय्यिदुना इस्माईल  के आलमे तुफूलिय्यत ( या'नी बचपन शरीफ़ ) में आप के नन्हे नन्हे मुबारक क़दमों की रगड़ से जारी हुवा था । ( तफ्सीरे नईमी , जि . 1 , स . 694 ) इस का पानी देखना , पीना और बदन पर डालना सवाब और बीमारियों के लिये शिफ़ा है । येह मुबारक कुंआं मकामे इब्राहीम से जुनूब में वाकेअ है । ( अब • एं की जियारत नहीं हो सकती )

    ( 32 ) बाबुस्सफा : मस्जिदुल हराम Masjid al-Haram के जुनूबी दरवाज़ों में से एक दरवाज़ा है जिस के नज़दीक " कोहे सफ़ा " है । 

    ( 33 ) कोहे सफा : का'बए मुअज्जमा के जुनूब में वाकेअ है । 

    ( 34 ) कोहे मर्वह : कोहे सफ़ा के सामने वाकेअ है ।

    ( 35 ) मीलने अख़्ज़रैन : या'नी " दो सब्ज़ निशान " । सफ़ा से जानिबे मर्वह कुछ दूर चलने के बाद थोड़े थोड़े फ़ासिले पर दोनों तरफ़ की दीवारों और छत में सब्ज़ लाइटें लगी हुई हैं । इन दोनों सब्ज़ निशानों के दरमियान दौराने सय मर्दो को दौड़ना होता है । 

    ( 36 ) मस्आ : मीलने अख्नरैन का दरमियानी फ़ासिला जहां दौराने सय मर्द को दौड़ना सुन्नत है । 

    ( 37 ) मीक़ात : उस जगह को कहते हैं कि मक्कए मुअज्जमा , जाने वाले आफ़ाक़ी को बिगैर एहराम Ihram वहां से आगे जाना जाइज़ नहीं , चाहे तिजारत या किसी भी गरज से जाता हो , यहां तक कि मक्कए मुकर्रमा के रहने वाले भी अगर मीकात की हुदूद से बाहर ( म - सलन ताइफ़ या मदीनए मुनव्वरह ) जाएं तो उन्हें भी अब बिगैर एहराम मक्कए पाक , आना ना जाइज़ है । मीक़ात पांच हैं 

    ( 38 ) जुल हुलैफ़ा : मदीना शरीफ़ से मक्कए पाक की तरफ़ तकरीबन 10 किलो मीटर पर है जो मदीनए मुनव्वरह की तरफ़ से आने वालों के लिये " मीकात " है । अब इस जगह का नाम " अब्यारे अली " है । 

    ( 39 ) ज़ाते इर्क : इराक की जानिब से आने वालों के लिये मीक़ात है । 

    ( 40 ) यलम - लम : येह अहले यमन की मीक़ात है और पाक व हिन्द वालों के लिये मीकात यलम - लम की महाजात है । 


    ( 41 ) जुहूफ़ा : मुल्के शाम की तरफ से आने वालों के लिये मीकात है हुदूद पर 

    ( 42 ) कर्नुल मनाज़िल : नज्द ( मौजूदा रियाज़ ) की तरफ़ से आने वालों के लिये मीकात है । येह जगह ताइफ़ के करीब है । 

    ( 43 ) हरम : मक्कए मुअज्जमा के चारों तरफ़ मीलों तक इस की हुदूद हैं और येह ज़मीन हुरमत व तक़द्दुस की वजह से " हरम " कहलाती है । हर जानिब इस की निशान लगे हैं । हरम Haram के जंगल का शिकार करना नीज़ खुदरौ दरख्त और तर घास काटना , हाजी , गैरे हाजी सब के लिये हराम है । जो शख़्स हुदूदे हरम Haram में रहता हो उसे " ह - रमी " या " अहले हरम " कहते हैं । 

    ( 44 ) हिल : हुदूदे हरम के बाहर से मीकात तक की ज़मीन को " हिल " कहते हैं । इस जगह वोह चीजें हलाल हैं जो हरम की वजह से हुदूदे हरम Haram में हराम हैं । ज़मीने हिल का रहने वाला " हिल्ली " कहलाता है । 

    ( 45 ) आफ़ाक़ी : वोह शख्स जो " मीकात " की हुदूद से बाहर रहता हो । 

    ( 46 ) तन्ईम : हुदूदे हरम Haram से ख़ारिज वोह जगह जहां से मक्कए मुकर्रमा में कियाम के दौरान उम्रे के लिये एहराम बांधते हैं और येह मकाम मस्जिदुल हराम Masjid al-Haram से तकरीबन 7 किलो मीटर जानिबे मदीनए मुनव्वरह है , अब यहां मस्जिदे आइशा बनी हुई है । इस जगह को अवाम " छोटा उमह " कहते हैं । 

    ( 47 ) जिइर्राना : हुदूदे हरम से खारिज मक्कए मुकर्रमा , से तकरीबन 26 किलो मीटर दूर ताइफ़ के रास्ते पर वाकेअ है । यहां से भी दौराने क़ियामे मक्का शरीफ़ उमेरे का एहराम Ihram बांधा जाता है । इस मकाम को अवाम " बड़ा उपह " कहते हैं । 

    ( 48 ) मिना : मस्जिदुल हराम Masjid al-Haram से पांच किलो मीटर पर वोह वादी जहां हाजी साहिबान अय्यामे हज Al Hajj में कियाम करते हैं । " मिना " हरम में शामिल है । 

    ( 49 ) जमरात : मिना में वाकेअ तीन मकामात जहां कंकरियां मारी जाती हैं । पहले का नाम जमतुल उखा या जमतुल अ - कबह है । इसे बड़ा शैतान भी बोलते हैं । दूसरे को जमतुल वुस्ता ( मंझला शैतान ) और तीसरे को जमतुल ऊला ( छोटा शैतान ) कहते हैं ।

    ( 50 ) अ - रफ़ात : मिना से तकरीबन ग्यारह किलो मीटर दूर मैदान जहां 9 जुल हिज्जह को तमाम हाजी साहिबान जम्अ होते हैं । अ - रफ़ात शरीफ़ Arfat Sharif  हुदूदे हरम Haram से ख़ारिज है । 


    ( 51 ) ज - बले रहमत : अ - रफ़ात शरीफ़ Arfat Sharif का वोह मुक़द्दस पहाड़ जिस के करीब वुकूफ़ करना अफ़ज़ल है ।

    ( 52 ) मुदलिफ़ा : " मिना " से अ - रफ़ात Arfat Sharif की तरफ़ तकरीबन 5 किलो मीटर पर वाकेअ मैदान जहां अ - रफ़ात से वापसी पर रात बसर करना सुन्नते मुअक्कदा और सुब्हे सादिक़ और तुलूए आफ़्ताब के दरमियान कम अज़ कम एक लम्हा वुकूफ़ वाजिब है । 

    ( 53 ) मुहस्सिर : मुदलिफ़ा से मिला हुवा मैदान , यहीं अस्हाबे फ़ील पर अज़ाब नाज़िल हुवा था । लिहाजा यहां से गुज़रते वक़्त तेज़ी से गुज़रना और अज़ाब से पनाह मांगनी चाहिये । 

    ( 54 ) बत्ने उ - रनह : अ - रफ़ात Arfat Sharif के करीब एक जंगल जहां हाजी का वुकूफ़ दुरुस्त नहीं । 

    ( 55 ) मद्आ : मस्जिदे हराम और मक्कए मुकर्रमा के कब्रिस्तान " जन्नतुल मझूला " के माबैन ( की दरमियानी ) जगह जहां दुआ मांगना मुस्तहब है ।


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