हज उमराह की नियत की दुआ Hajj Umrah Ki Niyat ki Dua और ऐसी 56 नियते हज और उमराह के दौरान जरुरी और इस्लाही दुआए
Hajj Umrah Ki Niyat ki Dua हज उमराह की 56 नियत
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उमराह की नियत / Niyyah for Umrah
لَبَّيْكَ اللَّهُمَّ عُمْرَةً
लब्बैक अल्लाहुम्मा उमरा/ Labbayk Allahumma Umrah.
O अल्लाह, मैंने उमराह करने के लिए मौजूद हु
اللَّهُمَّ إِنِّيْ أُرِيْدُ الْعُمْرَةَ
अल्लाहुम्मा इन्नी उरिदुल उमरा. / Allahumma Innee Ureedul Umrah.
O अल्लाह, मैं उमराह करने का इरादा रखता हूं।
اللَّهُمَّ إِنِّيْ أُرِيْدُ الْعُمْرَةَ فَيَسِّرْهَا لِيْ وَتَقَبَّلْهَا مِنِّيْ
अल्लाहुम्मा इन्नी उरिदुल उमरता फा-यस्सीरहा ली व तक़ब्बल-हां मिन्नी।
O अल्लाह, मैं उमराह करने का इरादा रखता हूं, इसलिए इसे मुझसे क़ुबूल करो और मेरे लिए इसे आसान बना दो।
हज के लिए नियत / Niyyah for Hajj
لَبَّيْكَ اللَّهُمَّ حَجًّا
लब्बैक अल्लाहुम्मा हज. / Labbayk Allahumma Hajj.
O या अल्लाह, मैं यहाँ हज करने के लिए हूँ।
اللَّهُمَّ إِنِّيْ أُرِيْدُ الْحَجَّ
अल्लाहुम्मा इन्नी उरिदुल हज. / Allahumma Innee Ureedul Hajj.
O अल्लाह, मैं हज करने का इरादा रखता हूं।
اللَّهُمَّ إِنِّيْ أُرِيْدُ الْحَجَّ فَيَسِّرْهُ لِيْ وَتَقَبَّلْهُ مِنِّيْ
अल्लाहुम्मा इन्नी उरिदुल हज्जा फा यासिर-हु ली व तक़ब्बल-हु मिन्नी.
O अल्लाह, मेरा इरादा हज करने का है, इसलिए मेरे लिए इसे आसान बना दो और इसे मुझसे क़ुबूल करो।
नियत हज - उमराह के लिए / Niyyah for Umrah and Hajj
अगर आप हज और उमराह एक साथ कर रहे हो तो। हज और उमराह की नियत
لَبَّيْكَ اللَّهُمَّ عُمْرَةً وَ حَجًّا
लब्बैक अल्लाहुम्मा उमरताँ व हज / Labbayk Allahumma Umratan wa Hajj.
O अल्लाह, यहाँ मैं उमराह और हज करने के लिए हूँ।
اللَّهُمَّ إِنِّيْ أُرِيْدُ الْعُمْرَةَ وَ الْحَجَّ
अल्लाहुम्मा इन्नी उरिदुल उम्रतव-व हज. / Allahumma Innee Ureedul Umrataw-wa Hajj.
O अल्लाह, मैं उमराह और हज करने का इरादा रखता हूं।
اللَّهُمَّ إِنِّيْ أُرِيْدُ الْعُمْرَةَ وَ الْحَجَّ فَيَسِّرْهُمَا لِيْ وَتَقَبَّلْهُمَا مِنِّيْ
अल्लाहुम्मा इन्नी उरिदुल हज्जा फा यस्सिर-हु ली व तक़ब्बल-हु मिन्नी।
ऐ अल्लाह, मेरा इरादा उमराह और हज्ज करने का है, इसलिए उन्हें मेरे लिए आसान कर दो और उन्हें मुझसे क़ुबूल करो।
हज और उमरा वालो के लिए 56 इस्लाही नियति Hajj Umrah Ki Niyat ki Dua
( 1 ) सिर्फ रिज़ाए इलाही पाने के लिये हज करूंगा । ( कबूलिय्यत के लिये इख्लास शर्त है और इख्लास हासिल करने में येह बात बहुत मुआविन है कि रियाकारी और शोहरत के तमाम अस्बाब तर्क कर दिये जाएं ।
फ़रमाने मुस्तफा है : लोगों पर ऐसा ज़माना आएगा कि मेरी उम्मत के अग्निया ( या'नी मालदार ) सैरो तफ़ीह के लिये और दरमियाने द - रजे के लोग तिजारत के लिये और कुर्रा ( या'नी कारी ) दिखाने और सुनाने के लिये और फु - करा मांगने के लिये हज करेंगे ।
( 2 ) इस आयते मुबा - रका पर अमल करूंगा
तर - ज - मए कन्जुल ईमान : हज और उमरह अल्लाह के लिये पूरा करो ।
( 3 ) ( येह निय्यत सिर्फ़ फ़र्ज हज करने वाला करे ) अल्लाह की इताअत की निय्यत से इस हुक्मे कुरआनी
तर - ज - मए कन्जुल ईमान : और अल्लाह के लिये लोगों पर इस घर का हज करना है जो इस तक चल सके । पर अमल करने की सआदत हासिल करूंगा
( 4 ) हुजूरे अकरम صلى الله عليه وسلم की पैरवी में हज Hajj करूंगा ई
5 ) मां बाप की रिज़ा मन्दी ले लूंगा । ( बीवी शोहर को रिज़ा मन्द करे , मक्ज़ जो अभी कर्ज अदा नहीं कर सकता तो उस ( कर्ज ख्वाह ) से भी इजाजत ले , अगर हज़ फ़र्ज़ Hajj Farz हो चुका है तो इजाज़त न भी हो तब भी जाना होगा , ( मुलख्खस अज़ बहारे शरीअत , जि . 1 , स . 1051 )
हां उमह या नफ्ली हज Nafil Hajj के लिये वालिदैन से इजाज़त लिये बिगैर सफ़र न करे । येह बात गलत मशहूर है कि जब तक वालिदैन ने हज नहीं किया औलाद भी हज नहीं कर सकती )
6 ) माले हलाल से हज करूंगा । ( वरना हज क़बूल Hajj Qabul होने की उम्मीद नहीं अगचें फ़र्ज़ उतर जाएगा । अगर अपने माल में कुछ शुबा हो तो कर्ज ले कर हज को जाए और वोह कर्ज अपने ( उसी मश्कूक ) माल से अदा कर दे । ( ऐज़न ) हृदीस शरीफ़ में है : जो माले हराम ले कर हज को जाता है जब लब्बैक कहता है ,
हातिफ़ गैब से जवाब देता है : न तेरी लब्बैक क़बूल , न खिदमत पज़ीर ( या'नी मन्जूर ) और तेरा हज तेरे मुंह पर मरदूद है , यहां तक कि तू येह माले हराम कि तेरे कब्जे में है उस के मुस्तहिकों को वापस दे । ( फतावा र - ज़विय्या , जि . 23 , स . 541 ) )
( 7 ) सफ़रे हज Safre Hajj की ख़रीदारियों में भाव कम करवाने से बचूंगा । ( मेरे आका आ'ला हज़रत , इमाम अहमद रज़ा ख़ान फ़रमाते हैं : भाव ( में कमी ) के लिये हुज्जत ( या'नी बहसो तकरार ) करना बेहतर है बल्कि सुन्नत , सिवा उस चीज़ के जो सफ़रे हज Hajj के लिये खरीदी जाए , इस ( या'नी सफ़रे हज की खरीदारियों ) में बेहतर येह है कि जो मांगे दे दे । ( फ़तावा र - ज़विय्या , जि . 17 , स . 128 ) )
( 8 ) चलते वक्त घर वालों , रिश्तेदारों और दोस्तों से कुसूर मुआफ़ करवाऊंगा , इन से दुआ करवाऊंगा । ( दूसरों से दुआ करवाने से ब - र - कत हासिल होती है , अपने हक़ में दूसरे की दुआ कबूल होने की ज़ियादा उम्मीद होती है ।
हज़रते मूसा को खिताब हुवा : ऐ मूसा ! मुझ से उस मुंह के साथ दुआ मांग जिस से तू ने । गुनाह न किया । अर्ज़ की : इलाही ! वोह मुंह कहां से लाऊं ? ( यहां अम्बिया की तवाज़ोअ है वरना वोह यकीनन हर गुनाह से मा'सूम हैं ) फ़रमाया : औरों से दुआ करा कि उन के मुंह से तू ने गुनाह न किया ।
( 9 ) हाजत से ज़ाइद तोशा ( अख़ाजात ) रख कर रु - फ़का पर खर्च और फु - करा पर तसद्दुक ( या'नी खैरात ) कर के सवाब कमाऊंगा । ( ऐसा करना हज्जे मबरूर की निशानी है , ) मबरूर उस हज और उमे को कहते हैं कि जिस में खैर और भलाई हो , कोई गुनाह न हो , दिखावा , सुनाना न हो , लोगों के साथ एहसान करना , खाना खिलाना, नर्म कलाम करना , सलाम फैलाना , खुश खुल्की से पेश आना , येह सब चीजें हैं जो हज Hajj को मबरूर बनाती हैं ।
जब कि खाना खिलाना भी हज्जे मबरूर hajje Mabrur में दाखिल है तो हाजत से ज़ियादा तोशा साथ लो ताकि रफ़ीकों की मदद और फ़कीरों पर तसद्दुक भी करते चलो । अस्ल में मबरूर " बिर " से बना है जिस के मा'ना उस इताअत और एहसान के हैं जिस से खुदा का तकब हासिल किया जाता है
10) जबान और आंख वगैरा की हिफ़ाज़त करूंगा । ( " नसीहतों के म - दनी फूल " सफ़हा 29 और 30 पर है :
Hajj Umrah Ki Niyat ki Dua
( 1 ) ( हदीसे पाक है : अल्लाह फ़रमाता है ) ऐ इब्ने आदम ! तेरा दीन उस वक़्त । रफ़ीकुल ह - रमन 1-14 14 तक दुरुस्त नहीं हो सकता जब तक तेरी ज़बान सीधी न हो और तेरी ज़बान तब तक सीधी नहीं हो सकती जब तक तू अपने रब से हया न करे ।
( 2 ) जिस ने मेरी हराम कर्दा चीज़ों से अपनी आंखों को झुका लिया ( या'नी उन्हें देखने से बचा ) मैं उसे जहन्नम से अमान ( या'नी पनाह ) अता कर दूंगा )
( 11 ) दौराने सफ़र ज़िक्रो दुरूद से दिल बहलाऊंगा । ( इस से फ़िरिश्ता साथ रहेगा गाने बाजे और लग्विय्यात का सिल्सिला रखा तो शैतान साथ रहेगा )
( 12 ) अपने लिये और तमाम मुसल्मानों के लिये दुआ करता रहूंगा । ( मुसाफ़िर की दुआ कबूल होती है । नीज़ " फ़ज़ाइले दुआ " सफ़हा 220 पर है : मुसल्मान , कि मुसल्मान के लिये उस की गैबत ( या'नी गैर मौजू - दगी ) में ( जो ) दुआ मांगे ( वोह कबूल होती है )
हदीस शरीफ़ में है : येह ( या'नी गैर मौजू - दगी वाली ) दुआ निहायत जल्द क़बूल होती है । फ़िरिश्ते कहते हैं : उस के हक़ में तेरी दुआ कबूल और तुझे भी इसी तरह की ने'मत हुसूल )
13 ) सब के साथ अच्छी गुफ्त - गू करूंगा और हस्बे हैसिय्यत मुसल्मानों को खाना खिलाऊंगा । ( फ़रमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم : मबरूर हज Hajj का बदला जन्नत है । अर्ज की गई : या रसुलल्लाह صلى الله عليه وسلم ! हज की मबरूरिय्यत किस चीज़ के साथ है ? फ़रमाया : अच्छी गुफ़्त - गू और खाना खिलाना ।
( 14 ) परेशानियां आएंगी तो सब्र करूंगा । ( हुज्जतुल इस्लाम हज़रते सय्यिदुना इमाम अबू हामिद मुहम्मद बिन मुहम्मद बिन मुहम्मद गज़ाली फ़रमाते हैं : माल या बदन में कोई नुक्सान या मुसीबत पहुंचे तो उसे खुशदिली से कबूल करे क्यूं कि येह इस के हज्जे मबरूर की अलामत है ।
15 ) अपने रु - फ़का के साथ हुस्ने अख़्लाक़ का मुज़ा - हरा करते हुए उन के आराम वगैरा का ख़याल रखूगा , गुस्से से बचूंगा , बेकार बातों में नहीं पडूंगा , लोगों की ( ना खुश गवार ) बातें बरदाश्त करूंगा
16 ) तमाम खुश अक़ीदा मुसल्मान अ - रबों से ( वोह चाहे कितनी ही सख्ती करें , मैं ) नरमी के साथ पेश आऊंगा । ( बहारे शरीअत जिल्द 1 हिस्सा 6 सफ़हा 1060 पर है : बद्दूओं और सब अ - रबिय्यों से बहुत नरमी के साथ पेश आए , अगर वोह सख़्ती करें ( भी तो ) अदब से तहम्मुल ( या'नी बरदाश्त ) करे इस पर शफाअत नसीब होने का वादा फ़रमाया है । खुसूसन अहले ह - रमैन , खुसूसन अहले मदीना । अहले अरब के अफ्आल पर ए'तिराज़ न करे , न दिल में कदूरत ( या'नी मैल ) लाए , इस में दोनों जहां की सआदत है )
( 17 ) भीड़ के मौक़अ पर भी लोगों को अज़िय्यत न पहुंचे इस का ख़याल रखूगा और अगर खुद को किसी से तक्लीफ़ पहुंची तो सब्र करते हुए मुआफ़ करूंगा । ( हदीसे पाक में है : जो शख्स अपने गुस्से को रोकेगा अल्लाह कियामत के रोज़ उस से अपना अज़ाब रोक देगा ।
( 18 ) मुसल्मानों पर इन्फ़िरादी कोशिश करते " नेकी की दावत " दे कर सवाब कमाऊंगा
( 19 ) सफ़र की सुन्नतों और आदाब का हत्तल इम्कान ख़याल रखंगा
( 20 ) एहराम में लब्बैक की खूब कसरत करूंगा । ( इस्लामी भाई बुलन्द आवाज़ से कहे और इस्लामी बहन पस्त आवाज़ से ) रफ़ीकुल ह - रमन
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( 21 ) मस्जिदैने करीमैन ( बल्कि हर जगह हर मस्जिद ) में दाखिल होते वक्त पहले सीधा पाउं अन्दर रखूगा और मस्जिद में दाखिले की दुआ पढूंगा । इसी तरह निकलते वक्त उलटा पाउं पहले निकालूंगा और बाहर निकलने की दुआ पढूंगा
( 22 ) जब जब किसी मस्जिद खुसूसन मस्जिदैने करीमैन में दाखिला नसीब हुवा , नफ़्ली ए'तिकाफ़ की निय्यत कर के सवाब कमाऊंगा । ( याद रहे ! मस्जिद में खाना पीना , आबे ज़मज़म पीना , स - हरी व इफ्तार करना और सोना जाइज़ नहीं , ए'तिकाफ़ की निय्यत की होगी तो ज़िम्नन येह सब काम जाइज़ हो जाएंगे )
( 23 ) का'बए मुशर्रफ़ा पर पहली नज़र पड़ते ही दुरूदे पाक पढ़ कर दुआ मांगूंगा
( 24 ) दौराने तवाफ़ " मुस्तजाब " पर ( जहां सत्तर हज़ार फ़िरिश्ते दुआ पर आमीन कहने के लिये मुकर्रर हैं वहां ) अपनी और सारी उम्मत की मरिफ़रत के लिये दुआ करूंगा
( 25 ) जब जब आबे ज़मज़म पियूँगा , अदाए सुन्नत की निय्यत से क़िब्ला रू , खड़े हो कर , बिस्मिल्लाह पढ़ कर , चूस चूस कर तीन सांस में , पेट भर कर पियूँगा , फिर दुआ मांगूंगा कि वक्ते कबूल ( फ़रमाने मुस्तफा : हम में और मुनाफ़िकों में येह फ़र्क है कि वोह ज़मज़म कूख ( या'नी पेट ) भर नहीं पीते ।
( 26 ) मुल्तज़म से लिपटते वक्त येह निय्यत कीजिये कि महब्बत व शौक के साथ का'बा और रब्बे का'बा का कुर्ब हासिल कर रहा हूं और इस के तअल्लुक से ब - र - कत पा रहा हूं । ( उस वक़्त येह उम्मीद रखिये कि बदन का हर वोह हिस्सा जो का'बए मुशर्रफ़ा मस । हुवा है जहन्नम से आजाद होगा )
( 27 ) गिलाफ़े का'बा से चिमटते वक्त येह निय्यत कीजिये कि मरिफ़रत व आफ़िय्यत के सुवाल में इस्रार कर रहा हूं , जैसे कोई ख़ताकार उस शख्स के कपड़ों से लिपट कर गिड़ - गिड़ाता है जिस का वोह मुजरिम है और खूब आजिज़ी करता है कि जब तक अपने जुर्म की मुआफ़ी और आयन्दा के अम्न व सलामती की जमानत नहीं मिलेगी दामन नहीं छोडूंगा । ( गिलाफ़े का'बा वगैरा पर लोग काफी खुश्बू लगाते हैं लिहाज़ा एहराम की हालत में एहतियात कीजिये )
( 28 ) रम्ये जमरात में हज़रते सय्यिदुना इब्राहीम ख़लीलुल्लाह की मुशा - बहत ( या'नी मुवा - फ़क़त ) और सरकारे मदीना - की सुन्नत पर अमल , शैतान को रुस्वा कर के मार भगाने और ख्वाहिशाते नफ़्सानी को रज्म ( या'नी संगसार ) करने की निय्यत कीजिये । ( हिकायत : हज़रते सय्यिदुना जुनैदे बगदादी ने एक हाजी से पूछा कि तूने रम्य के वक्त नफ़्सानी ख्वाहिशात को कंकरियां मारी या नहीं ? उस ने जवाब दिया : नहीं । फ़रमाया : तो फिर तूने रम्य ही नहीं की । ( या'नी रम्य का पूरा हक़ अदा नहीं किया )
29 ) सरकारे मदीना - बिल खुसूस छ मकामात या'नी सफ़ा , मर्वह , अ - रफ़ात , मुदलिफ़ा , जमए ऊला , जरए वुस्ता पर दुआ के लिये ठहरे , मैं भी अदाए मुस्तफा की अदा की निय्यत से इन जगहों में जहां जहां मुम्किन हुवा वहां रुक कर दुआ मांगूंगा
( 30 ) तवाफ़ व सय में लोगों को धक्के देने से बचता रहूंगा । ( जान बूझ कर किसी को इस तरह धक्के भी कराना । रफीकुल ह - रमैन देना कि ईजा पहुंचे बन्दे की हक़ त - लफ़ी और गुनाह है , तौबा भी करनी होगी और जिस को ईजा पहुंचाई उस से मुआफ़ होगा । बुजुर्गों से मन्कूल है : एक दांग की ( या'नी मामूली सी ) मिक्दार अल्लाह तआला के किसी ना पसन्दीदा फेल को तर्क कर देना मुझे पांच सो नफ़्ली हज Nafil Hajj करने से ज़ियादा पसन्दीदा है
( 31 ) उ - लमा व मशाइखे अहले सुन्नत की ज़ियारत व सोहबत से ब - र - कत हासिल करूंगा , इन से अपने लिये बे हिसाब मरिफ़रत की दुआ करवाऊंगा
( 32 ) इबादात की कसरत करूंगा बिल खुसूस नमाजे पन्जगाना पाबन्दी से अदा करूंगा
( 33 ) गुनाहों से हमेशा के लिये तौबा करता हूं और सिर्फ अच्छी सोहबत में रहा करूंगा । ( एहयाउल उलूम में है : हज Hajj की मबरूरिय्यत की एक अलामत येह है कि जो गुनाह करता था उन्हें छोड़ दे , बुरे दोस्तों से कनारा कश हो कर नेक बन्दों से दोस्ती करे , गफ्लत भरी बैठकों को तर्क कर के ज़िक्र और बेदारी की मजालिस इख्तियार करे । इमाम गज़ाली एक और जगह फ़रमाते हैं : हज्जे मबरूर की अलामत येह है कि दुन्या से बे रग्बत और आख़िरत की जानिब मु - तवज्जेह हो और बैतुल्लाह शरीफ़ की मुलाकात के बाद अपने रब्बे काएनात | की मुलाक़ात के लिये तय्यारी करे ।
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( 34 ) वापसी के बाद गुनाहों के करीब भी न जाऊंगा , नेकियों में खूब इज़ाफ़ा करूंगा और सुन्नतों पर मजीद अमल बढ़ाऊंगा ( आ'ला हज़रत फ़रमाते हैं : ( हज से पहले के हुकूकुल्लाह और हुकूकुल इबाद जिस के जिम्मे थे ) अगर बा'दे हज Hajj बा वस्फे कुदरत उन खेलकूद और रफीकुलह - रमैन उमूर ( म - सलन क़ज़ा नमाज व रोज़ा , बाक़ी मांदा ज़कात वगैरा और तलफ़ कर्दा बकिय्या हुकूकुल इबाद की अदाएगी ) में कासिर रहा तो येह सब गुनाह अज़ सरे नौ उस के सर होंगे कि हुकूक तो खुद बाक़ी ही थे उन की अदा में फिर ताखीर व तक्सीर से गुनाह ताज़ा हुए और वोह हज उन के इज़ाले को काफ़ी न होगा कि हज Hajj गुज़रे ( या'नी पिछले ) गुनाहों को धोता है आयन्दा के लिये परवानए बे कैदी ( या'नी गुनाह करने का इजाज़त नामा ) नहीं होता बल्कि हज्जे मबरूर की निशानी ही येह है कि पहले से अच्छा हो कर पलटे । ( फ़तावा र - जूविय्या , जि . 24 , स . 466 ) )
( 35 ) मक्कए मुकर्रमा और मदीनए मुनव्वरह के यादगार मुबारक मकामात की जियारत करूंगा ( 36 ) सआदत समझते हुए ब निय्यते सवाब मदीनए मुनव्वरह की ज़ियारत करूंगा
( 37 ) सरकारे मदीना - के दरबारे गुहर बार की पहली हाज़िरी से क़ब्ल गुस्ल करूंगा , नया सफेद लिबास , सर पर नया सरबन्द नई टोपी और उस पर नया इमामा शरीफ़ बांधूंगा , सुरमा और उम्दा खुश्बू लगाऊंगा
( 38 ) अल्लाह के इस फ़रमाने आलीशान :
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( तर - ज - मए कन्जुल ईमान : और अगर जब वोह अपनी जानों पर जुल्म करें तो ऐ महबूब ! तुम्हारे हुजूर हाज़िर हों और फिर अल्लाह से मुआफ़ी चाहें और रसूल उन की शफाअत फ़रमाए । तो रफ़ीकुल ह - रमैन ज़रूर अल्लाह को बहुत तौबा कबूल करने वाला मेहरबान पाएं ) पर अमल करते हुए मदीने के शहन्शाह , की बारगाहे बेकस पनाह में हाज़िरी दूंगा
( 39 ) अगर बस में हुवा तो अपने मोहसिन व गम गुसार आका की बारगाहे बेकस पनाह में इस तरह हाज़िर होउंगा जिस तरह एक भागा हुवा गुलाम अपने आका की बारगाह में लरज़ता कांपता , आंसू बहाता हाज़िर होता है । ( हिकायत : सय्यिदुना इमामे मालिक जब सय्यदे आलम का जिक्र करते रंग उन का बदल जाता और झुक जाते ।
हिकायत : हज़रते सय्यिदुना इमामे मालिक से किसी ने हज़रते सय्यदुना अय्यूब सख्तियानी के बारे में पूछा तो फ़रमाया : मैं जिन हज़रात से रिवायत करता हूं वोह उन सब में अफ्ज़ल हैं , मैं ने उन्हें दो मर्तबा सफर हज Hajj में देखा कि जब उन के सामने नबिय्ये करीम , रऊफुहीम का ज़िक्रे अन्वर होता तो वोह इतना रोते कि मुझे उन पर रहूम आने लगता । मैं ने उन में जब ता जीमे मुस्तफा व इश्के हबीब खुदा का येह आलम देखा तो मु - तअस्सिर हो कर उन से अहादीसे मुबा - रका रिवायत करनी शुरू की ।
Hajj Umrah Ki Niyat ki Dua
( 40 ) सरकारे नामदार के शाही दरबार में अ - दबो एहतिराम और जौको शौक़ के साथ दर्द भरी मो'तदिल ( या'नी दरमियानी ) आवाज़ में सलाम अर्ज करूंगा
( 41 ) हुक्मे कुरआनी : को पस्त अपनी आवाज़
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( 44 ) हाज़िरी के वक़्त इधर उधर देखने और सुनहरी जालियों के अन्दर झांकने से बचूंगा ई 45 ) जिन लोगों ने सलाम पेश करने का कहा था उन का सलाम बारगाहे शाहे अनाम में अर्ज करूंगा ई
( 46 ) सुनहरी जालियों की तरफ़ पीठ नहीं करूंगा ई
( 47 ) जन्नतुल बक़ीअ के मदफूनीन की ख़िदमतों में सलाम अर्ज करूंगा ई
( 48 ) हज़रते सय्यिदुना हम्जा और शु - हदाए उहुद के मजारात की जियारत करूंगा , दुआ व ईसाले सवाब करूंगा , ज - बले उहुद का दीदार करूंगा ) मस्जिदे कुबा शरीफ़ में हाज़िरी दूंगा
( 50 ) मदीनए मुनव्वरह के दरो दीवार , बर्गो बार , गुलो ख़ार और पथ्थर व गुबार और वहां की हर शै का खूब अ - दबो एहतिराम करूंगा । ( हिकायत : हज़रते सय्यिदुना इमामे मालिक रफ़ीकुल ह - रमैन ने ता'जीमे ख़ाके मदीना की ख़ातिर मदीनए तय्यिबा में कभी भी कजाए हाजत नहीं की बल्कि हमेशा हरम से बाहर तशरीफ़ ले जाते थे , अलबत्ता हालते मरज़ में मजबूरी की वजह से मा'जूर थे ।
( 51 ) मदीनए मुनव्वरह की किसी भी शै पर ऐब नहीं लगाऊंगा । ( हिकायत : मदीनए मुनव्वरह - में एक शख्स हर वक्त रोता और मुआफ़ी मांगता रहता था , जब इस का सबब पूछा गया तो बोला : मैं ने एक दिन मदीनए मुनव्वरह की दही शरीफ़ को खट्टा और ख़राब कह दिया , येह कहते ही मेरी निस्बत सल्ब हो गई और मुझ पर इताब हुवा ( या'नी डांट पड़ी ) कि " ओ दियारे महबूब की दही को खराब कहने वाले ! निगाहे महब्बत से देख ! महबूब की गली की हर हर शै उम्दा है । " ( माखूज़ अज़ बहारे मस्नवी , स . 128 ) हिकायत : हज़रते सय्यिदुना इमामे मालिक के सामने किसी ने येह कह दिया कि " मदीने की मिट्टी खराब है " येह सुन कर आप .) ने फ़तवा दिया कि इस गुस्ताख़ को तीस दुर्रे लगाए जाएं और कैद में डाल दिया जाए ।
( 52 ) अजीजों और इस्लामी भाइयों को तोहफ़ा देने के लिये आबे ज़मज़म , मदीनए मुनव्वरह की खजूरे और सादा तस्बीहेंवगैरा लाऊंगा । ( बारगाहे आ'ला हज़रत , में सुवाल हुवा : तस्बीह किस चीज़ की होनी चाहिये ? आया लकड़ी की या पथ्थर वगैरा की ? अल जवाब : तस्बीह लकड़ी की हो या पथ्थर की मगर बेश कीमत ( या'नी कीमती ) होना मरूह है और सोने चांदी की हराम । ( फ़्तावा र - जूविय्या , जि . 23 , स . 597 ) )
( 53 ) जब तक मदीनए मुनव्वरह में रहूंगा दुरूदो सलाम Darudo Salam की कसरत करूंगा
( 54 ) मदीनए मुनव्वरह में कियाम के दौरान जब जब सब्ज़ गुम्बद की तरफ़ गुज़र होगा , फ़ौरन उस तरफ रुख कर के खड़े खड़े हाथ बांध कर सलाम अर्ज करूंगा । ( हिकायत : मदीनए मुनव्वरह में सय्यिदुना अबू हाज़िम , की ख़िदमत में हाज़िर हो कर एक साहिब ने बताया : मुझे ख्वाब में जनाबे रिसालत मआब की ज़ियारत हुई , फ़रमाया : अबू हाज़िम से कह दो , “ तुम मेरे पास से यूं ही गुज़र जाते हो , रुक कर सलाम भी नहीं करते ! " इस के बाद सय्यिदुना अबू हाज़िम , ने अपना मा'मूल बना लिया कि जब भी रौज़ए अन्वर की तरफ़ गुज़र होता , अ - दबो एहतिराम के साथ खड़े हो कर सलाम अर्ज करते , फिर आगे बढ़ते ।
( 55 ) अगर जन्नतुल बक़ीअ में मदफ़न नसीब न हुवा , और मदीनए मुनव्वरह से रुख्सत की जां सोज़ घड़ी आ गई तो बारगाहे रिसालत में अल वदाई हाज़िरी दूंगा और गिड़गिड़ा कर बल्कि मुम्किन हुवा तो रो रो कर बार बार हाज़िरी की इल्तिजा करूंगा
Hajj Umrah Ki Niyat ki Dua
( 56 ) अगर बस में हुवा तो मां की मामता भरी गोद से जुदा होने वाले बच्चे की तरह बिलक बिलक कर रोते हुए दरबारे रसूल को बार बार हसरत भरी निगाहों से देखते हुए रुख्सत होउंगा ।
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