क़ुरबानी के रूल्स Qurbani Rules in hindi नज़रिये से और क़ुरबनी की मालूमात हिंदी में और , qurbani rules for husband and wife, qurbani rules hanafi, rul
कुर्बानी करने के पूरे रूल्स Qurbani Rules In Hind
इस्लामिक वाज़िब/फ़र्ज़ क़ुरबानी के रूल्स क़ुरान से और हस्बैंड वाइफ, बच्चे के लिए रूल्स साथ ही क़ुरबानी किस पर जरुरी हैं / Wazib/Farz qurbani rules mentioned in quran for husband and wife islamqa, child and who is qurbani compulsory on, how many qurbani per family.
सुवाल : घर में दो कमाने वाले हैं जो तकरीबन 20 हज़ार तक कमाते हैं क्या उन पर कुरबानी वाजिब होगी ?
जवाब : 20 , 30 हज़ार कमाने का मस्अला नहीं है इस तरह तो लोग एक लाख भी कमाते होंगे और पूरी की पूरी रकम खर्च हो जाती होगी । कोई 10 हज़ार में गुज़ारा कर लेता होगा और किसी का दस लाख में भी गुज़ारा मुश्किल से होता होगा ,
किसी के पास आज का खाना होगा तो कल का नहीं होगा , कल का होगा तो परसों का नहीं होगा लिहाज़ा कितना कमाता है येह बुन्याद नहीं है बल्कि बुन्याद येह है कि,
10 जुल हिज्जतिल हराम की सुब्हे सादिक़ ( से ले कर 12 जुल हिज्जतिल हराम के गुरूबे आफ़ताब तक ) के वक़्त में जो ग़नी हो या'नी ज़रूरिय्यात के इलावा उस के पास निसाब'1 ) के बराबर रकम वगैरा मौजूद हो और कर्ज में घिरा हुवा भी न हो तो कुरबानी वाजिब Qurbani Wajib Rules होगी ।
{ कुरबानी का निसाब येह है कि साढ़े सात तोला सोना या साढ़े 52 तोला चांदी हो या साढ़े 52 तोला चांदी के बराबर रकम हो या बेचने का इतना सामान हो जो साढ़े 52 तोला चांदी की रकम को पहुंच जाए या घर में ज़रूरत के इलावा इतना सामान रखा है जो साढ़े 52 तोला चांदी की रकम को पहुंच जाता है या येह सब मिला कर साढ़े 52 तोला चांदी की रकम को पहुंच जाएं तो इस सूरत में कुरबानी वाजिब Qurbani Wajib हो जाएगी । ( 292 , बहारे शरीअत , 3/333 , हिस्सा : 15 )}
इज्तिमाई ( हिस्सों वाली ) कुरबानी की एहतियातें
सुवाल : इज्तिमाई ( हिस्सों वाली ) कुरबानी करने वालों पर क्या क्या शई ज़िम्मेदारियां बनती हैं ?
जवाब : इज्तिमाई ( हिस्सों वाली ) कुरबानी के मसाइल Qurbani ke Masail बहुत पेचीदा और मुश्किल हैं लिहाज़ा इज्तिमाई ( हिस्सों वाली ) कुरबानी करने वालों के लिये लाज़िम है कि वोह इस से मुतअल्लिका ज़रूरी मसाइल सीखें या फिर उलमाए किराम की मुकम्मल रहनुमाई में ही कुरबानी करें ।
बद किस्मती से लोगों ने इज्तिमाई ( हिस्सों वाली ) कुरबानी को एक कारोबार बना लिया है , बा'ज़ इदारे भी उलमाए किराम की राहनुमाई लिये बिगैर इज्तिमाई कुरबानी करते हैं और खुल्लम खुल्ला गलतियां कर के लोगों की कुरबानियां जाएअ कर बैठते होंगे । हर एक को अज़ाबे आख़िरत से डरना चाहिये और शई तकाजे पूरे होने की सूरत में ही इज्तिमाई ( हिस्सों वाली ) कुरबानी Qurbani में हाथ डालना चाहिये ।
उधार ले कर कुरबानी करना कैसा ?
सुवाल : अगर किसी के पास पैसे न हों तो क्या वोह उधार ले कर कुरबानी कर सकता है ?
जवाब : अगर कुरबानी वाजिब Qurbani wajib है और पैसे छुट्टे नहीं हैं कारोबार में लगे हुए हैं या कोई माल ख़रीदा हुवा है जिसे बेचना नहीं चाहते तो अब अगर किसी से पैसे उधार ले कर कुरबानी कर ली तो हरज नहीं है । अलबत्ता अगर कुरबानी वाजिब नहीं है तो ज़ाहिर है उधार ले कर कुरबानी करना ज़रूरी नहीं है
लेकिन अगर कुरबानी की तो सवाब मिलेगा मगर ऐसा करना बड़ा रिस्क है कि फिर कर्जा उतरेगा नहीं और यूं लड़ाई झगड़ों के मसाइल भी हो सकते हैं लिहाज़ा मेरा मश्वरा येह है कि अगर कुरबानी वाजिब Qurbani Wajib न हो तो सिर्फ कुरबानी करने के लिये कर्जा न लिया जाए ।
क़ुरबानी के रूल्स हनफ़ी Qurbani Rules In Hindi ज़रिये से और क़ुरबनी की मालूमात हिंदी में
मुहर्रमुल हराम में कुरबानी का गोश्त खा सकते हैं ?
सुवाल : क्या कुरबानी का गोश्त Qurbani Ka Gosht ईदुल अज़्हा Eid Ul Adha गुज़रने के बाद भी खाया जा सकता है ? नीज़ बा'ज़ लोग कहते हैं कि मुहर्रमुल हराम का चांद नज़र आ जाए तो घर में गोश्त नहीं पकाना चाहिये और कुरबानी का गोश्त Qurbani ka Gosht भी यकुम मुहर्रमुल हराम से पहले पहले ख़त्म कर लेना चाहिये । आप इस हवाले से हमारी राहनुमाई फ़रमा दीजिये ।
जवाब : कुरबानी का गोश्त Qurbani Ka Gosht अगर कोई साल भर तक खाना चाहे तो खा सकता है येह जाइज़ है । मुहर्रमुल हराम में भी कुरबानी का गोश्त Qurbani Ka Gosht और इस के इलावा जानवर जब्ह कर के उस का गोश्त भी खाया जा सकता है ।
कुरबानी के जानवर के गोश्त के तीन हिस्से करना
सुवाल : कुरबानी के जानवर के गोश्त के तीन हिस्से किये जाते हैं , क्या शरीअत में इस की कोई दलील है ?
जवाब : बहारे शरीअत के पन्दरहवें हिस्से में कुरबानी के मसाइल Qurbani ke Masail लिखे हुए हैं , इस में कुरबानी के जानवर के गोश्त के तीन हिस्से करने को मुस्तहब लिखा है मसलन बकरा है तो उस के तीन हिस्से कर लिये जाएं ,
एक हिस्सा कुरबानी करने वाला अपने इस्ति'माल में रखे , एक हिस्सा रिश्तेदारों में तक़सीम कर दे और एक हिस्सा गरीबों में बांट दे तो येह मुस्तहब है ।
( बहारे शरीअत , 3/344 , हिस्सा : 15 , 300 / 5-55 )
अगर पूरा बकरा खुद रख लिया या पूरा बांट दिया या पूरा बकरा एक साथ किसी को उठा कर दे दिया तो येह सब सूरतें भी जाइज़ हैं ।
कुरबानी के जानवर की कीमत बताना मुनासिब है या ख़ामोशी इख़्तियार करना ?
सुवाल : जब हम कुरबानी के लिये कोई जानवर मसलन भैंस या बकरा खरीद कर लाते हैं तो अक्सर लोग बार बार येह सुवाल पूछते हैं कि कितने का लाए हो ? ऐसी सूरत में कीमत बताना मुनासिब है या ख़ामोशी इख्तियार करना क्यूं कि कीमत बताने में अपनी बड़ाई का पहलू भी निकलता है कि मैं तो पछत्तर हज़ार ( 75000 ) का लाया या मैं तो दो लाख ( 200000 ) का लाया वगैरा ?
जवाब : ज़ाहिर है कि अगर कोई जानवर की कीमत पूछेगा और आप उसे कहेंगे कि मैं नहीं बताता तो उस का दिल टूटेगा और उसे बुरा लगेगा इस लिये कोई पूछे तो कीमत बता दीजिये । आप को भी तो जानवर ले कर घूमने का शौक़ है , जब आप अपना शौक पूरा कर रहे हैं ,
जानवर को ला कर अपने दरवाजे के आगे बांध रहे हैं , उसे फूलों के गजरे और हार डाल रहे हैं और उसे सजा कर रख रहे हैं तो जब इतनी नुमाइश आप खुद करवा ही रहे हैं तो फिर लोग पूछेगे ही कि कितने का लिया है ?
अगर आप जानवर की नुमाइश न करें और उसे छुपा कर रखें तो इतने लोगों को पता नहीं चलेगा और फिर कम लोग पूछेगे या फिर येह पूछेगे कि आप ने कुरबानी के लिये जानवर Qurbani ke Liye Janwar लिया है या नहीं ? अगर आप हां बोलेंगे तो पूछेगे : कितने में आया ?
और अगर बोलेंगे : अभी तक नहीं लिया , तो पूछेगे : कितने तक लेने का इरादा है ? बहर हाल अवाम ने पूछना ही है । अब येह पूछना बा'ज़ अवकात फुजूल होता है और बा'ज़ अवकात फुजूल नहीं भी होता जैसा कि कोई इस लिये पूछ रहा है
ताकि उसे येह पता चल जाए कि आज कल जानवर का क्या भाव चल रहा है और इस तरह का जानवर कितने का मिलता है ? क्यूं कि उस ने भी जानवर लेने के लिये मन्डी जाना है तो येह अच्छी निय्यत से पूछना है और अगर वैसे ही पूछता है जैसा कि लोग तजस्सुस के तौर पर पूछते हैं
तो येह फुजूल पूछना हुवा और फुजूल बातों से बचना अच्छा है लेकिन येह पूछना अब भी गुनाह नहीं है लिहाज़ा अगर किसी ने आप से जानवर का भाव पूछ लिया तो आप उस का दिल खुश करने की निय्यत से उसे सहीह सहीह बता दीजिये उस का दिल खुश हो जाएगा ,
नहीं बताएंगे तो उस का दिल टूटेगा अलबत्ता पूछने वालों को भी चाहिये कि वोह बिला ज़रूरत न पूछे ।
{ येह ज़रूर नहीं कि दसवीं ही को कुरबानी कर डाले , इस के लिये गुन्जाइश है कि पूरे वक्त में जब चाहे करे लिहाजा अगर इब्तिदाए वक्त में ( 10 जुल हिज्जा की सुब्ह ) इस का अल न था वुजूब के शराइत नहीं पाए जाते थे और आख़िर वक्त में ( या'नी 12 जुल हिज्जा को गुरूबे आफ्ताब से पहले ) अह्ल हो गया या'नी वुजूब के शराइत पाए गए तो उस पर वाजिब हो गई और अगर इब्तिदाए वक्त में वाजिब थी और अभी ( कुरबानी ) की नहीं और आख़िर वक्त में शराइत जाते रहे तो ( कुरबानी ) वाजिब Qurbani Wajib न रही । ( बहारे शरीअत , 3/334 , हिस्सा : 15 )}
किस जानवर की कुरबानी बाइसे फजीलत है ? Qurbani Ki Fazilat
सुवाल : मैं ने दो दुम्बे पाले थे और मेरी निय्यत येह थी कि मैं इन को बेच कर बड़ा जानवर ख़रीदूंगा लेकिन अब मेरा दिल येह कर रहा है कि मैं इन को ही ज़ब्ह कर दूं आप मेरी राहनुमाई कीजिये कि इन दोनों में से कौन सी चीज़ मेरे लिये बेहतर है ? ( एक इस्लामी भाई का सुवाल )
जवाब : कुरबानी के जानवर Qurbani ke Janwar की निय्यत Niyat के ( कुछ ) मसाइल ( या'नी शर्छ अहकाम ) हैं , गरीब के लिये अलग मस्अला है और मालदार के लिये अलग । अगर उन जानवरों की कुरबानी की निय्यत Qurbani ki Niyat नहीं की थी तो उन्हे बेचने में हरज नहीं ,
आप की मरज़ी है उन को बेच कर बड़ा जानवर लें या न लें । हां ! इस में बेहतर क्या है तो इस हवाले से अर्ज़ है कि बन्दा जो जानवर खुद पालता है उस से उन्सिय्यत होती है बल्कि बा'ज़ अवक़ात जानवर से औलाद की तरह प्यार हो जाता है , उसे ज़ब्ह करना नफ्स पर गिरां गुज़रता है
और दिल पर एक सदमे की कैफ़िय्यत होती है यूं उसी पालतू जानवर को ज़ब्ह करने में ज़ियादा फ़ज़ीलत नज़र आ रही है । अगर उसे बेच दिया जाएगा तो येह कैफ़िय्यत नहीं होगी कि नज़रों से ओझल हो गया अब कटे या कुछ भी हो इतना महसूस नहीं होगा ।
नीज़ उस को बेच कर दूसरा जानवर लिया जाए तो उस से ज़ियादा उन्सिय्यत और प्यार नहीं होगा और उस को काटने से नफ्स पर इतना बोझ भी नहीं होगा लिहाज़ा जो जानवर खुद पाला है उसी को ज़ब्ह करे ।
फ़ौत शुदा वालिदैन के नाम की कुरबानी करने का हुक्म
सुवाल : अगर वालिदैन का इन्तिकाल हो चुका हो और उन्हों ने ज़िन्दगी में कभी भी कुरबानी न की हो तो क्या औलाद उन के नाम की कुरबानी कर सकती है ?
जवाब : जी हां ! ईसाले सवाब के लिये कुरबानी हो सकती है इस में कोई हरज नहीं नीज़ वालिदैन की तरफ़ से कुरबानी करनी चाहिये येह अच्छी बात है ।
वालिदैन ज़िन्दगी में कुरबानी करते थे या नहीं या 100 , 100 बकरे ज़िन्दगी में ज़ब्ह करते थे तब भी ईसाले सवाब के लिये कुरबानी करने में हरज नहीं । नीज़ ज़िन्दा के ईसाले सवाब के लिये भी कुरबानी हो सकती है ।
क्या कुरबानी के जानवर Qurbani ka Janwar को नहलाया जा सकता है ?
सुवाल : क्या कुरबानी के जानवर को नहलाया जा सकता है ?
जवाब : जी हां ! कुरबानी के जानवर Qurbani ka Janwar को नहलाया जा सकता है जब कि ज़रूरत हो ।
क्या कुरबानी की भी क़ज़ा होती है ?
Rules of Qurbani Mentioned in Quran In Hindi
सुवाल : एक साल की कुरबानी रह जाए तो क्या येह कुरबानी दूसरे साल कर सकते हैं ? जैसे इस मरतबा मेरे पास पैसे नहीं हैं तो कुरबानी मेरे लिये मुआफ़ है या करना होगी ?
जवाब : कुरबानी के दिन गुज़र गए और ( वाजिब होने की सूरत में ) कुरबानी नहीं की न जानवर और उस की कीमत सदका की यहां तक कि दूसरी बक़रह ईद आ गई और अब येह चाहता है
कि गुज़श्ता साल की कुरबानी की क़ज़ा इस साल कर ले तो येह नहीं हो सकता बल्कि अब भी वोही हुक्म है कि जानवर या उस की कीमत सदक़ा करे ।
कुरबानी वाजिब हो मगर रकम न हो तो क्या करे ? क़ुरबानी रूल्स How Many Qurbani Per Family
सुवाल : अगर कुरबानी की शराइत पाई जाएं लेकिन पैसे न हों या कुरबानी वाजिब Qurbani wajib ही न हो तो क्या फिर भी कुरबानी का हुक्म होगा ? ( रुक्ने शूरा का सुवाल )
जवाब : अगर कुरबानी वाजिब Qurbani wajib हो मगर पैसे न हों तो उधार ले कर भी कुरबानी कर सकता है या फिर कोई ऐसी चीज़ बेच कर रकम हासिल कर ले जिस से जानवर खरीद सके । याद रखिये ! कुरबानी के लिये ज़रूरी नहीं कि ढाई लाख वाला जानवर ही लाया जाए बल्कि हिस्सा भी डाला जा सकता है
कि वोह ज़ियादा महंगा नहीं होता । बहर हाल कुरबानी वाजिब Qurbani wajib हो तो करना ज़रूरी है अगर जान बूझ कर न की तो बन्दा गुनाहगार होगा । हां ! अगर कुरबानी वाजिब Qurbani wajib ही नहीं थी और इस के वुजूब की शराइत भी नहीं पाई गई थीं इस वज्ह से कुरबानी न की तो येह कोई गुनाह का काम नहीं है क्यूं कि कुरबानी वाजिब ही नहीं थी ।
कुरबानी के जानवर के गले में घन्टी और पाउं में डुंगरू बांधने का हुक्म
सुवाल : कुरबानी के जानवर के गले में घन्टी और पाउं में चुंगरू बांधना कैसा है ?
जवाब : कुरबानी का जानवर हो या बिगैर कुरबानी का , उस के गले में घन्टी और पाउं में धुंगरू बांधना अगर बिगैर किसी ज़रूरत के हो तो मरूहे तन्जीही या'नी ना पसन्दीदा है । जानवर के गले में घन्टी या पाउं में धुंगरू बांधने से मुतअल्लिक दारुल इफ़्ता अहले सुन्नत का बड़ा प्यारा
और तहक़ीकी फ़तवा येह है कि " जानवरों की गरदन में घन्टी या पाउं में चुंगरू बांधने से अगर कोई मन्फ़अत या'नी फ़ाएदा है तो दारुल इस्लाम में बिला कराहत जाइज़ और अगर कोई मन्फ़अत नहीं तो मरूहे तन्जीही या'नी ना पसन्दीदा है मगर जाइज़ अब भी है ।
" याद रहे ! कुरबानियों की रौनकें दारुल इस्लाम में होती हैं तो येह मस्अला भी दारुल इस्लाम के मुतअल्लिक है जब कि दारुल हर्ब की अलग सूरतें हैं । बे शुमार ममालिक दारुल इस्लाम हैं अगर्चे उन में भारी ता'दाद गैर मुस्लिमों की होती है मगर वोह दारुल इस्लाम की तारीफ़ में आते हैं ।
बहर हाल हमारे यहां जानवरों के गले में जो घन्टी बांधी जाती है वोह जाइज़ है और मन्फ़अत की निय्यत न होने की सूरत में मक्रूहे तन्जीही और अगर मन्फ़अत की निय्यत है तो मरूहे तन्जीही भी नहीं है मसलन इस निय्यत से जानवर के गले में घन्टी बांधी कि सफ़र में घन्टी की आवाज़ जानवर की चुस्ती बढ़ाएगी
और वोह जल्दी भागेगा तो इस फ़ाएदे को हासिल करने के लिये घन्टी बांधना मरूह नहीं है । इसी तरह अगर इस लिये जानवरों के गले में घन्टी बांधी कि भेड़िया वगैरा जो जानवर हुम्ला करने आएगा वोह घन्टी की आवाज़ से भागेगा और यूं जानवरों की हिफ़ाज़त होगी तो येह भी एक दुरुस्त निय्यत है ।
यूं ही अगर इस लिये घन्टी बांधी कि येह नींद दूर करती है और इस से सफ़र में जानवर की नींद भी दूर होगी और जो उस पर सुवार है उस की भी नींद दूर होगी तो इस निय्यत से भी घन्टी बांधी जा सकती है ।
जानवरों के गले में घन्टी और पाउंमें डुंगरू बांधने के फ़वाइद
जानवरों के गले में घन्टी या पाउं में चुंगरू बांध कर दीगर फ़वाइद भी हासिल किये जा सकते हैं मसलन जानवर गुम हो गया या रस्सी तोड़ कर भागा तो पता चल जाएगा कि जानवर भागा है और कहां पहुंचा है ?
या फिर चोरों का ख़ौफ़ है कि जानवर को चोर ले जाएगा तो जानवर के चलने से घन्टी की आवाज़ आएगी जिस के बाइस सोए हुए अफ़्ाद जाग कर चोर को पकड़ लेंगे और अपने जानवर को बचा सकेंगे तो इन सब फ़वाइद को पाने के लिये जानवर के गले में घन्टी और पाउं में चुंगरू बांधना जाइज़ है ।
कम उम्र फ़र्बा जानवर की कुरबानी का हुक, क़ुरबानी रूल्स हनफ़ी Qurbani Rules For Child In Hindi
सुवाल : अगर बड़ा जानवर डेढ़ साल का हो मगर दूर से देखने में दो साल का लगे तो क्या उस की कुरबानी हो जाएगी ?
जवाब : बड़े जानवर ( भैंस वगैरा ) की उम्र दो साल होना ज़रूरी है अगर दो साल में एक दिन भी कम होगा तो कुरबानी नहीं होगी । अलबत्ता दुम्बा दुम्बी या भेड़ जिस को अंग्रेज़ी में बोलते हैं येह अगर छे महीने का बच्चा है और दूर से देखने में साल भर का मालूम होता है तो उस की कुरबानी जाइज़ है ,
मगर बकरे और बकरी में ऐसा नहीं होगा येह रिआयत सिर्फ में है और येह भी सिर्फ उस वक्त है जब छे , सात या आठ माह का बच्चा इतना फ़र्बा और जानदार हो कि साल भर का लगे वरना उस की भी कुरबानी नहीं होगी या'नी अब चाहे छे , सात या आठ माह का हो मगर कमज़ोर हो और बच्चा ही लगता हो
उस की कुरबानी नहीं होगी अलबत्ता पूरे साल भर का होने के बाद भी बच्चा लगता हो तो कोई हरज नहीं कुरबानी हो जाएगी बशर्ते कि उस में कोई और नक्स न हो ।
जितने अफराद पर कुरबानी वाजिब हो उन सब को कुरबानी करना होगी, क़ुरबानी रूल्स Qurbani / Who is qurbani Rules Compulsory On In Hindi
सुवाल : घर में छे अपाद हैं जिन पर कुरबानी वाजिब है अगर उन सब की तरफ़ से दो या तीन कुरबानियां कर दी जाएं तो क्या काफ़ी होंगी या छे कुरबानियां ही करना होंगी ?
जवाब : छे कुरबानियां करना होंगी । बा'ज़ लोग पूरे घर की तरफ़ से सिर्फ एक बकरा कुरबान कर देते हैं इस तरह किसी की भी कुरबानी नहीं होती । एक बकरे में एक से ज़ियादा हिस्से नहीं हो सकते । ऐसे मौक़अ पर बड़ा जानवर ले लिया जाए तो वोह सात अपराद की तरफ़ से कुरबान किया जा सकता है ।
क़ुरबानी के रूल्स हनफ़ी नज़रिये से और क़ुरबनी की मालूमात हिंदी में आप को कैसी लगी इसे शेयर करे और ढेर साडी निकेया कमाए और नमाज़ कायम करे दरूद सलाम पढ़ते रहे और हमें बताए की क़ुरबानी रूल्स हनफ़ी Qurbani Rules In Hindi में और क्या क्या जानना हैं
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