Hazrat Maula Ali Shere Khuda history in hindi : की ज़िन्दगी , हज़रात अली शेरे खुदा history in hindi wiki, who is sher e khuda, विलादते बा - सआदत, शजरा -
Hazrat Maula Ali Shere Khuda की ज़िन्दगी History In Hindi
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विलादते बा - सआदत - Hazrat Maula Ali Shere Khuda
हज़रते अली Hazrat Maula Ali Shere Khuda की विलादत Birthday 13 रजबुज मुरज्जब बरोज़ जुमा एलाने नुबूव्वत से दस साल पहले खाना - ए - काबा में हुई । आपका नामे नामी " अली " लकब “ असदुल्लाह " और " मुर्तज़ा ' ' है । कुन्नीयत " अबुल हसन " और " अबू तुराब ' है ।
शजरा - ए - नसब - Hazrat Maula Ali Shere Khuda
अली इब्ने अबी तालिब बिन अब्दुल मुत्तलिब ( असल नाम शैबा ) बिन हाशिम ( असल नाम अम्र ) बिन अब्दे मुनाफ ( असल नाम मुगीरह ) बिन कुसै ( असल नाम ज़ैद ) बिन किलाब बिन नज़र बिन किनाना बिन खुज़ैमा बिन अदनान ।
( सीरते इब्ने हिशाम जि .1 , पेज .31 )
हज़रते अली Hazrat Maula Ali Shere Khuda की वालिदा मुहतरमा का नाम फातिमा बिन्ते असद बिन हाशिम बिन अब्दे मुनाफ है । बचपन में ही मुशर्रफ ब - इस्लाम हो गये थे ।
आपका निकाह रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की साहिबज़ादी लख्ते जिगर हज़रत फातिमा रदियल्लाहु तआला अन्हा से हुआ था । हुजूरे अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का ये इरशादे गिरामी " कुरआन अली के साथ है और अली कुरआन के साथ हैं "
हज़रते अली Maula Ali कर्रमल्लाहु वजहहुल करीम की शराफत व करामत और उलू ए मर्तबत पर ऐसा जामेअ और मानेअ और फसीह व बलीग़ जुमला है
जिस पर पूरी कायनात रश्क करती है इसमें वाज़ेह इशारा है कि हज़रते अली Mushkil Kusha मुर्तज़ा को कुरआन फहमी में जो कमाल हासिल हुआ वह दूसरों को न मिला , और ऐसा इस लिए कि जिस ज़माने में कुरआन नाज़िल हो रहा था
आप उस वक़्त से पैग़म्बरे दो जहाँ सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की सोहबते बाबरकत में हाज़िर थे और बचपन ही से आका सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की तरबियत व किफालत और ज़ेरे साया अपनी ज़िन्दगी गुज़ार रहे थे ।
जैसा कि हज़रते अब्दुल्लाह बिन मसऊद रदियल्लाहु अन्हू से मरवी है ।
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तर्जमाः बेशक कुरआने पाक सात किरअतों में नाज़िल हुआ और कोई हर्फ ऐसा नहीं है जिसका एक ज़ाहिर और एक बातिन न हो और हर हर्फ के ज़ाहिर व बातिन का इल्म हज़रते अली Maula Ali के पास है ।
( हुलियतुल औलिया जि .1 पेज .68 )
और इस बात की तस्दीक खुद आपके कौल से भी होती है , चुनांचे जाबजा ( जगह जगह पर ) आप ये फरमाया करते कि अगर मेरे ऊंट की रस्सी गुम हो जाये तो मैं उसे कुरआन में तलाश कर लूंगा । ये आपके कमाले इल्मी और कुरआन फेहमी का नतीजा है वरना रस्सी की गुमशुदगी का कुरआन से क्या तअल्लुक ?
शाने अली कुरआन Shane Ali Quran की रोशनी में
यूं तो बेशुमार आयाते कुरआनिया के मिस्दाक हज़रते अली Mushkil Kusha हैं जिनमें से कुछ आयात पर हज़रते अली के सिवा किसी को अमल का मौका नसीब नहीं हुआ लेकिन मैं यहाँ अपने उनवान के पेशे नज़र 15 आयाते कुरआनिया पेश करता हूँ ।
शाने अली Shane Ali रदियल्लाहु अन्हु
इस दुनिया में कोई हुकूमत व सलतनत में मशहूर हुआ तो कोई सनअत व हिरफत में , कोई जाह व जलाल में उरूजे कमाल को पहुंचा तो कोई जूदो नवाल में ,
किसी ने जुरअत व बहादुरी की सरहदों को उबूर किया तो कोई हिम्मत व जवांमर्दी के मैदान में खेमाज़न , कोई इल्मो फज़ल में यकताऐ रोज़गार हुआ तो कोई तकवा व परहेज़गारी का शादिर हुआ ,
इसी फेहरिस्त में एक ऐसी अज़ीमुल मर्तबत शख्सीयत है जो असदुल्लाह और मुर्तजा जैसे बेहतरीन लकब से मुलकब हुऐ जिन पर इल्म व हिल्म , सब्रो कनाअत , हिम्मत व शुजाअत , दिलेरी व बहादुरी जैसी खूबियाँ नाज़ करती हैं
यानी इमामुल औलिया , सनदुल असफिया , जीनतुल अतकिया , शेरे खुदा , दामादे मुस्तफा हज़रते अली कर्रमल्लाहु वजहहुल Hazrat Ali Karmullah Wajahul Kareem करीम की ज़ाते सतूदा है । आपकी ज़ात जामिउस्सिफात और बहरुल ख़साइल थी ।
आप जी - फहम आलिम , साहिबुरीय फकीह और साहिबे बसीरत रहनुमा थे , जिनके क़ज़ाया और फैसलों का एहतराम खुद हज़रते उमर फारूके आज़म रदियल्लाहु अन्हु किया करते थे और अहम मामलात में उनकी राय के बगैर कोई फैसला सादिर नहीं फरमाते थे
जैसा कि खुद मौलाऐ कायनात रदियल्लाहु अन्हु का बयान है : " मैं खिलाफते सि की व फारूकी में इन दोनों का मुआविन व मुशीर रहा और ता - हीने हयात उनकी हिमायत करता रहा । '
मौलाऐ कायनात हज़रते अली Maula Ali कर्रमल्लाहु वजहहुल करीम की ज़ाते बाबरकात में बेशुमार , अनगिनत औसाफे हमीदा और खसाइले महमूदा पाये जाते हैं , लेकिन इश्के रसूल और कुर्बते मुस्तफा के हवाले से आपने खुसूसी मुकाम पाया जहाँ तक किसी की भी रसाई न हो सकी । इस मुकाम पर 11
सैयदुना अली शेरे खुदा के उस कौल का ज़ि करना भी ज़रूरी है जिसमें आपने हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की जियारत की लज्जत आफरीं कैफियत को बयान करके इस बात को साबित कर दिया कि मुहब्बते रसूल का परचम सर बुलन्द करना और इताअते मुस्तफा का चिराग़ दिल में रोशन रखना ही ईमान की बुनियाद है ।
हज़रत काजी अयाज़ मालिकी रहमतुल्लाहि तआला अलैह फरमाते हैं कि :
सैयदुना अली मुर्तजा कर्रमल्लाहु वजहहुल करीम से दरया त किया गया कि आपको पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से किस क़द्र मुहब्बत थी , सैयदुना अली रदियल्लाहु अन्हु ने फरमायाः
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तर्जमाः अल्लाह की कसम हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम हमें अपने अमवाल , औलाद , आबा ( वालिदैन ) , अजदाद ( दादा , दादी वगैरह ) और उम्महात ( माँ ) से भी ज़्यादा महबूब थे और किसी प्यासे को ठण्डे पानी से जो मुहब्बत होती है हमें आका सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से उससे बढ़ कर मुहब्बत थी ।
" ( अश्शिफा जि .2 , पेज -568 )
इस वार तगी - ए - इश्के रसूल का आला मैयार मकामे सहबा में भी देखने को मिलता है कि सैयदुना अली “ अक्ल कुर्बान कुन ब - पेशे मुस्तफा ' ' का मज़हर बनते हुऐ अपनी नमाजे अस्र को महबूबे खुदा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के आराम पर कुर्बान कर दिया
जिसके सिले में उस महबूब ने अपने आशिके सादिक को ऐसी नमाजे असर अदा करवाई जिस पर रहती दुनिया तक मुसल्लीन , साजिदीन व आबिदीन फख्व 4 करते रहेंगे ,
हज़रते अली Hazrat Ali रदियल्लाहु अन्हु में पाई जाने वाली तमाम खुसूसियात हुजूर अकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से कुर्बत व मइयत ( साथ ) का नतीजा है कि बचपन में आका सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की किफालत में रहे.
आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की वफात तक जुदा नहीं हुऐ । जैसा कि खुदा मौलाऐ कायनात का इरशाद है :
" करीबी रिश्तेदारी और खास मर्तबा के बाइस ( वजह ) जनाबे रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के नदीक मेरा जो मुकाम है उसको तुम खूब जानते हो मैं अभी छोटा ही था कि आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने मुझे गोद में लिया ,
मुझे अपने सीने से लगाते , आपका बिस्तरे मुबारक मुझे ढांपता , आपका जिस्मे अकदस मुझ से मस होता आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम मुझे अपना पसीना - ए - मुबारक सुंघाते ।
( अल्लिमु औलादकुम मुहब्बता आले बैतिन्नबी पेज .146 )
हज़रते अली Mushkil Kusha कर्रमल्लाहु वजहहुल करीम की शान व मलित का अन्दाज़ा इस हदीस से भी होता है जिसको उम्मे अतिया ने रिवायत किया है :
" हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने एक लश्कर भेजा उसमे हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु भी थे , मैंने हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को देखा कि आप हाथ उठाकर दुआ कर रहे थे कि या अल्लाह ! मुझे उस वक्त मौत न देना जब तक मैं अली को बखैर व आफियत देख न लूं । "
( तिर्मिज़ी शरीफ पेज .643 )
मजकूरा बाला सुतूर में इस बात का ज़ि है कि बचपन ही से हज़रते अली Hazrat Ali को मई यत ( साथ ) व सोहबत मुस्तफा सल्लल्लाहु तआला " अलैहि वसल्लम की दौलते ला ज़वाल मयस्सर थी
और ता - वक्ते विसाल आप इस नेअमत से मुस्तफीद हुऐ ( फायदा हासिल किया ) इस सोहबत का असर ये हुआ है कि आपने बचपन ही में नुजूले कुरआन के मनाज़िर का मुशाहिदा किया , मुकामे नुजूल और शाने नुजूल भी आप की निगाहों में रहा बल्कि उन अफराद व अशखास को भी आप जानते थे
जिनके बारे में आयात का नुजूल हो रहा था यही वजह है कि तफसीरे कुरआन और नुजूल के अस्बाब के इल्म में आपने वह कमाल हासिल किया जो औरों का मुक र न बन सका ।
जैसा कि हज़रत अल्लामा जलालु ीन सुयूती अलैहिर्रहमा ने इब्ने सअद के हवाले से तहरीर फरमाया है :
" हज़रते अली ने फरमाया Hazrat Ali Ne Fharmaya कि बा - खुदा जितनी आयाते कुरआनी नाज़िल हुई हैं उन सबका मुझे इल्म है । मैं यह भी जानता हूं कि वह किस के लिए और कहाँ और किस तरह नाज़िल हुई ।
अल्लाह तआला का लाख लाख एहसान है कि उसने मुझे कल्बे सलीम , अकल व शऊर और ज़बाने गोया इनायत की है । "
( तारीखुल खुलफा पेज .187 )
कुरआन फसाहत व बलाग़त का इमाम है कि दुनिया के सारे बड़े बड़े फसीह व बलीग कुरआन की फसाहत व बलागत के आगे हैरान नज़र आते हैं ,
मगर कुदरत ने हज़रते अली Hazrat Ali को इस कुरआने पाक का हक़ीकी इरफान अता किया था । जिसकी बदौलत आपने उलूम व फुनून में वह हैरत अंगेज़ करनामे अन्जाम दिये जो तारीख के सफहात पर हमेशा हमेश के लिए मरकूम रहेंगे ।
आपके इल्मो फज़ल , तकवा व तहारत और तफक्कोह फिद् दीन ( दीन के फिक़्ही मसाईल को समझना ) से कोई शख्स इन्कार नहीं कर सकता ।
दीनी अहकाम के इस्तिम्बात में आपको कमाल हासिल था और इस बात में भी कोई शक व शुब्हा की गुंजाइश नहीं कि मौलाऐ कायनात बहुत ही साहिबे शुजाअत शख्सीयत के हामिल थे , जिसकी सैंकड़ों मिसाले देखने को मिलती हैं ।
याद रखें कि मेरा मक़सद सिर्फ हज़रते अली Hazrat Maula Ali Shere Khuda की शान को कुरआन व अहादीस की रोशनी में पेश करना है न कि सवानहे अली को मुकम्मल तहरीर करना हाँ चन्द बातें ज़िमनन पेश की जायेंगी ।
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