इमाम अबू हनीफा imam e azam abu hanifa के ज़िन्दगी के बारे में खास मालूमात और उनकी फज़ीलते और उनका मक़ाम-मर्तबा
फैजाने इमाम अबू हनीफा Imam E Azam Abu Hanifa स्टोरी In Hindi
नाम व नसब कुन्यत व लकब Imam Abu Hanifa
अब आप (Abu Hanifa) का मुख़्तसर तआरुफ़ और हयाते | मुबारका के चन्द गोशों के मुतअल्लिक़ सुनते हैं । आप का नामे वालिदे गिरामी का नाम साबित और कुन्यत अबू हनीफ़ा ( और | लकब इमामे आ ज़म है ) । आप सिने 80 हिजरी में ( कूफ़ा ) में पैदा हुवे और | 70 साल की उम्र पा कर ( 2 शा'बानुल मुअज्जम ) सिने 150 हिजरी में वफ़ात | पाई ।
और आज भी बग़दाद शरीफ़ के | कब्रिस्तान खीज़रान में आप का मज़ारे फ़ाइजुल अन्वार मरजए खलाइक है । अइम्मए अरबआ या'नी चारों इमाम ( इमाम अबू हनीफ़ा , | इमाम शाफ़ेई , इमाम मालिक और इमाम अहमद बिन हम्बल | बरहक़ हैं और इन चारों के खुश अक़ीदा मुकल्लिदीन आपस में भाई भाई हैं । |
सय्यिदुना इमामे आ'ज़म अबू हनीफ़ा Imam Abu Hanifa चारों इमामों में बुलन्द मर्तबा हैं , इस की एक वजह येह भी है कि इन चारों में सिर्फ आप ताबेई हैं । और ' ताबेई ' उस को कहते हैं जिस ने ईमान की हालत में किसी सहाबी से मुलाकात की हो और ईमान पर उस का ख़ातिमा हुवा हो ।
सय्यिदुना इमामे आ'ज़म ने मुख़्तलिफ़ रिवायात के तहत | चन्द सहाबए किराम से मुलाकात का शरफ़ हासिल किया है और बा'ज़ सहाबए किराम से बराहे रास्त , सरवरे काइनात के इरशादात भी सुने हैं ।
इमाम अबू हनीफा Imam Abu Hanifa की कुछ खास बाते (अवसाफ़े इमामे आ'जम) !
हज़रते सय्यिदुना अबू नुऐम फ़रमाते हैं : इमामे आ'ज़म | अबू हनीफ़ा की हैअत व हालत , चेहरा , लिबास और जूते अच्छे होते थे और अपने पास आने वाले हर शख्स की मदद फ़रमाते ।
आप (Imam E Azam Abu Hanifa) का कद दरमियाना था , तमाम लोगों से ज़ियादा अहसन अन्दाज़ में कलाम फ़रमाते और कसरत से खुश्बू इस्ति'माल फ़रमाते , जब बाहर तशरीफ़ लाते तो अच्छी खुश्बू से पहचाने जाते ।
हज़रते सय्यिदुना इमामे आ ज़म दिन भर इल्मे दीन की इशाअत के साथ साथ , कुरआने पाक की तिलावत और सारी रात इबादत व रियाज़त में बसर करते थे । हज़रते मिस्अर बिन किदाम फ़रमाते हैं : " मैं इमामे आ'ज़म अबू हनीफ़ा Imam Abu Hanifa की मस्जिद में हाज़िर हुवा , देखा कि नमाजे फ़ज्र अदा करने के बाद आप (Abu Hanifa) लोगों को सारा दिन इल्मे दीन पढ़ाते रहते , इस दौरान सिर्फ नमाज़ों के वक्फ़े हुवे । बाद नमाजे इशा आप अपने दौलत सरा ( या'नी मकाने आलीशान ) पर तशरीफ़ ले गए ।
थोड़ी ही देर के बा'द सादा लिबास में मल्बूस खूब इत्र लगा कर फ़ज़ाएं महकाते , अपना नूरानी चेहरा चमकाते हुवे फिर आ कर मस्जिद के कोने में नवाफ़िल में मश्गूल हो गए , यहां तक कि सुब्हे सादिक़ हो गई , अब दरे दौलत ( या'नी मकाने आलीशान ) पर तशरीफ़ ले गए और लिबास तब्दील कर के वापस आए और नमाजे फज्र बा जमाअत अदा करने के बाद गुज़श्ता कल की तरह इशा तक सिलसिलए दर्स व तदरीस जारी रहा । मैं ने सोचा आप बहुत थक गए होंगे , आज रात तो ज़रूर आराम फरमाएंगे , मगर दूसरी रात भी वोही मा'मूल रहा ।
फिर तीसरा दिन और रात भी इसी तरह गुज़रा । मैं बे हद मुतअस्सिर हुवा और मैं ने फैसला कर लिया कि उम्र भर इन की खिदमत में रहूंगा । चुनान्चे , मैं ने इन की मस्जिद ही में मुस्तकिल कियाम इख़्तियार कर लिया । मैं ने अपनी मुद्दते कियाम में , इमामे आज़म Imam e Azam Abu Hanifa को दिन में कभी बे रोज़ा और रात को कभी इबादत व नवाफ़िल से गाफ़िल नहीं देखा । अलबत्ता जोहर से कब्ल आप थोड़ा सा आराम फ़रमा लिया करते थे ।
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इमामे आजम Imam e Azam Abu Hanifa का तक्वा व परहेजगारी !
मुसलमानों को धोका देना बहुत ही बुरी आदत है । याद रखिये ! अगर हम ने झूटी कसमें खा कर ऐबदार चीज़ बताए बिगैर बेची तो हम ने खरीदार की हक़ तलफ़ी की , जिस का बदला रोजे क़ियामत हमें देना होगा । लिहाज़ा महशर की रुस्वाई से बचने के लिये बन्दों के जो हुकूक हम पर आते हैं , उन की अदाएगी में ताख़ीर न की जाए और माजी में जिन के हुकूक तलफ़ किये , उन से भी फ़ौरन मुआफ़ी मांग लीजिये और आयिन्दा इस मुआमले में हद दरजा एहतियात से काम लीजिये , इस मुआमले में बिल खुसूस अपनी ज़बान को काबू में रखना बहुत ज़रूरी है ।
क्यूंकि ज़बान ही एक ऐसी चीज़ है जो ज़ियादा गुनाह करवाती है , येह ज़बान किसी को तल्ख जुम्ले बुलवा कर , या किसी की गीबत में मुब्तला करवा कर कियामत में हमें रुस्वा करवा सकती है । येही वजह है कि हज़रते सय्यिदुना इमामे आ'जम अपनी ज़बान की हिफ़ाज़त फ़रमाते थे और बहुत ही कम गुफ़्त्गू फ़रमाते ।
हज़रते शरीक फ़रमाते हैं : हज़रते सय्यिदुना इमामे आ'ज़म अक्सर ख़ामोश रहने वाले , इन्तिहाई ज़हीन और बहुत बड़े फ़क़ीह होने के बा वुजूद लोगों से बहूसो मुबाहसा से बचने वाले थे । हज़रते इब्ने मुबारक फ़रमाते हैं : मैं ने एक मरतबा हज़रते सय्यिदुना सुप्यान सौरी की बारगाह में अर्ज की : इमामे आ ज़म अबू हनीफ़ा ग़ीबत से इतने दूर रहते | हैं कि मैं ने कभी उन को दुश्मन की ग़ीबत करते हुवे भी नहीं सुना ।
तो आप (Imam E Azam Abu Hanifa) ने इरशाद फ़रमाया : ' अल्लाह की कसम ! आप इस | मुआमले में बहुत समझदार हैं कि किसी ऐसी चीज़ को अपनी नेकियों पर | मुसल्लत करें जो इन्हें ( दूसरे के नामए आ'माल में ) मुन्तकिल कर दे । "
हज़रते जुमैरा फ़रमाते हैं कि इस बात में लोगों का कोई | इख़्तिलाफ़ नहीं कि सय्यिदुना इमामे आज़म Imam e Azam Abu Hanifa सच बोलने वाले थे , कभी किसी का तजकिरा बुराई से न करते । एक बार आप (Imam E Azam Abu Hanifa) से | कहा गया कि लोग तो आप के बारे में बद कलामी करते हैं , लेकिन आप | : किसी को कुछ नहीं कहते ? तो आप ने इरशाद | फ़रमाया : ( लोगों की यावह गोई पर मेरा सब्र करना ) येह अल्लाह का फ़ज़्ल है , वोह जिसे चाहता है अता फ़रमाता है ।
हज़रते बुकैर बिन मा'रूफ़ , फ़रमाते हैं कि मैं ने उम्मते नबवी में हज़रते इमामे आ'जम अबू हनीफ़ा Imam Abu Hanifa से ज़ियादा हुस्ने अख़्लाक़ वाला किसी को नहीं देखा ।
( वसाइले बख्शिश , स . 574 )
हज़रते सय्यदुना दाता गंज बख़्श अली हजवेरी हनफ़ी हज़रते सय्यिदुना इमामे आ'ज़म अबू हनीफ़ा Imam Abu Hanifa नो'मान बिन साबित से ख़ास अकीदत रखते थे आप फ़रमाते हैं : " मैं एक रोज़ | सफ़र करता हुवा , मुल्के शाम में मुअज्जिने रसूल हज़रते सय्यिदुना बिलाल के रौज़ए मुबारक पर हाज़िर हुवा , वहां मेरी आंख लग गई और मैं ने अपने आप को मक्कए मुअज्जमा में पाया ।
क्या देखता हूं कि सरकारे दो आलम कबीलए बनी शैबा के दरवाजे पर मौजूद हैं और एक उम्र रसीदा शख्स को किसी छोटे बच्चे की तरह उठाए हुवे | हैं , मैं फ़र्ते महब्बत से बे करार हो कर आप की तरफ बढ़ा और आप sallallahu alaihi wasallamके मुबारक क़दमों को बोसा दिया , दिल ही दिल में इस बात पर बड़ा हैरान भी था कि येह ज़ईफ़ शख्स कौन है ?
इतने में अल्लाह के महबूब , दानाए गुयूब sallallahu alaihi wasallam कुव्वते बातिनी और इल्मे गैब के जरीए मेरी हैरत व इस्ति'जाब ( तअज्जुब ) की कैफ़िय्यत जान गए और मुझे मुखातब कर के फ़रमाया : “ येह अबू हनीफ़ा हैं और तुम्हारे इमाम हैं । "
हज़रते सय्यिदुना दाता गंज बख़्श अपना येह ख्वाब बयान करने के बा'द फ़रमाते हैं कि इस से मुझे मालूम हो गया कि हज़रते सय्यिदुना इमामे आज़म का शुमार उन लोगों में से है जिन के अवसाफ़ शरीअत के काइम रहने वाले अहकाम की तरह काइमो दाइम हैं , येही वजह है कि हुस्ने अख़्लाक़ के पैकर , महबूबे रब्बे अक्बर इन से इस | क़दर महब्बत फ़रमाते हैं
और आप sallallahu alaihi wasallam को इमामे आ'ज़म से जो महब्बत है , इस से येह नतीजा निकलता है कि जिस तरह Abu Hanifa से ख़ता मुमकिन नहीं , इसी तरह अल्लाह और रसूलुल्लाह के करम से हज़रते सय्यिदुना इमामे आ'जम अबू हनीफ़ा Imam Abu Hanifa भी ख़ता से महफूज़ ।
इस हिकायत से जहां हमें इमामे आ'जम | की अज़मतो शान मालूम हुई , वहीं येह भी मालूम हुवा कि हमारे प्यारे आका , sallallahu alaihi wasallam अल्लाह की अता से दिलों के हालात से भी बा खबर हैं , जभी तो ख्वाब में सय्यिदुना दाता | गंज बख़्श के दिल में पैदा होने वाले सुवाल का जवाब देते हुवे |
इरशाद फ़रमाया : " येह अबू हनीफ़ा हैं और येह तुम्हारे इमाम हैं । " येह तो | ख्वाब था , आप sallallahu alaihi wasallam ने तो अताए खुदावन्दी से अपनी हयाते | ज़ाहिरी में भी कई गैब की ख़बरें इरशाद फ़रमाई । चुनान्चे ,
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सरकार की नजर में इमामे आजम Imam e Azam Abu Hanifa का इल्मी मकाम !
आप sallallahu alaihi wasallam ने एक गैब की ख़बर देते हुवे येह इरशाद फ़रमाया : इल्म अगर सुरय्या पर | मुअल्लक होता तो अवलादे फ़ारस से कुछ लोग इसे वहां से भी ले आते ।
हज़रते सय्यिदुना इमाम इब्ने हजर मक्की इरशाद फ़रमाते हैं : इस हदीसे पाक से इमामे आ'जम अबू हनीफ़ा Imam Abu Hanifa ( की ज़ाते बा | बरकत ) मुराद है । इस में अस्लन शक नहीं है , क्यूंकि आप के | ज़माने में अहले फ़ारस में से कोई शख़्स इल्म में इन के रुत्बे को न पहुंचा , बल्कि इन के शागिर्दो के ( इल्मी ) मर्तबे तक भी रसाई न हुई और इस में |
सरवरे आलम sallallahu alaihi wasallam का खुला मो'जिज़ा ( भी ) है कि (Abu Hanifa) | ने गैब की खबर दी , जो होने वाला है बता दिया ।
येह बात सूरज से ज़ियादा रोशन और रोजे गुज़श्ता से ज़ियादा काबिले यकीन ) | हो गई कि हमारे प्यारे आका , मक्की मदनी मुस्तफ़ा को अताए इलाही से इल्मे गैब है , जभी तो आप صلى الله عليه وسلم ने हज़रते सय्यिदुना इमामे आ'जम -की आमद से पहले ही आप | की जबरदस्त इल्मी काबिलिय्यत व सलाहिय्यत की खबर दी । | अब जैसा आप صلى الله عليه وسلم ने फ़रमाया वैसा ही जुहूर भी हुवा । इमामे आ'जम इस दुन्या में तशरीफ़ लाए और चहार सू आप की इल्मी शोहरत के डंके बजने लगे , हर तरफ़ इल्म की रोशनी फैल गई । आप (Abu Hanifa) के नामे नामी , इस्मे गिरामी ' नो'मान ' के लुग्वी मा'ना को देखें तो | | आप वाकेई इस्मे बा मुसम्मा नज़र आते हैं ।
शैखुल इस्लाम शहाबुद्दीन इमाम अहमद इब्ने हजर हैतमी मक्की शाफेई फ़रमाते है : उलमा का इस बात पर इत्तिफ़ाक़ है कि आप (Abu Hanifa) का नाम | ' नो'मान ' ही है । आप के नाम में भी एक लतीफ़ बात मौजूद है । वोह येह कि नो'मान की अस्ल ऐसा खून है जिस से इन्सानी जिस्म ( का | ढांचा ) काइम होता है । तो ( इस तरह ) सय्यिदुना इमामे आ'ज़म को नो'मान कहने की वजह येह है कि आप (Imam E Azam Abu Hanifa) ही फ़िक़हे इस्लामी | की बुन्याद हैं ।
कसरते कलाम की तबाह कारियां !
हमारे इमामे आ'जम | अबू हनीफ़ा (Abu Hanifa) ज़बान की आफ़त से बचने के लिये अक्सर ख़ामोशी इख़्तियार फ़रमाते और बिला ज़रूरत बोलने से परहेज़ फ़रमाते । यक़ीनन | ज़ियादा बोलना और सोचे समझे बोल पड़ना , बेहद ख़तरनाक नताइज का हामिल और अल्लाह की हमेशा हमेशा की नाराज़ी का बाइस बन सकता है । यकीनन ज़बान का कुफ़्ले मदीना लगाने या'नी अपने आप को गैर ज़रूरी बातों से बचाने ही में आफ़िय्यत है ।
ख़ामोशी की आदत डालने के | लिये कुछ न कुछ गुफ़्त्गू लिख कर या इशारे से कर लेना बेहद मुफीद है | क्यूंकि जो ज़ियादा बोलता है उमूमन खताएं भी ज़ियादा करता है , राज़ भी फ़ाश कर डालता है । गीबत व चुगली और ऐब जूई जैसे गुनाहों से बचना भी | ऐसे शख्स के लिये बहुत दुश्वार होता है बल्कि बक बक का आदी बा'ज़ | अवकात कुफ़िय्यात भी बक डालता है । अल्लाहु रहमान हम पर रहूम फ़रमाए और हमें ज़बान का कुफ़्ले मदीना नसीब करे ।
आज कल | अच्छी सोहबतें कमयाब हैं । कई ' अच्छे नज़र ' आने वाले भी बद किस्मती से | भलाई की बातें बताने के बजाए फुजूल बातें सुनाने में मश्गूल नज़र आते हैं । | काश ! हम सिर्फ रब्बे काइनात ही की खातिर लोगों से मुलाकात करें | | और हमारा मिलना मिलाना सिर्फ ज़रूरत की हद तक हो ।
नबिय्ये करीम صلى الله عليه وسلم का फ़रमाने आफ़िय्यत निशान है : " आदमी के इस्लाम की अच्छाई में से येह है कि लाया'नी या'नी फुजूल चीज़ छोड़ दे । "
सदरुश्शरीआ , बदरुत्तरीका हज़रते अल्लामा मौलाना मुफ्ती मुहम्मद अमजद अली आ'ज़मी येह हदीसे पाक नक्ल करने के बाद | फ़रमाते हैं : जो चीज़ कार आमद न हो उस में न पड़े , ज़बान व दिल व | जवारेह ( या'नी आ'ज़ा ) को बेकार बातों की तरफ़ मुतवज्जेह न करे ।
( बहारे शरीअत , जि . 3 , स . 520 )
इमामे आजम Imam e Azam Abu Hanifa की वसिय्यतें
हज़रते सय्यिदुना इमामे आ'ज़म की हिक्मत भरी नसीहतों | से मदनी फूल हासिल करने के लिये मक्तबतुल मदीना का मतबूआ 46 | सफ़हात पर मुश्तमिल रिसाला ' इमामे आज़म Imam e Azam Abu Hanifa की वसिय्यते ' हदिय्यतन | हासिल फ़रमा कर मुतालआ कर लीजिये । इमामे आज़म ने | | वक्तन फ़ वक्तन अपने शागिर्दो को जो इन्तिहाई मुफीद नसीहतें फ़रमाई वोह |
मुख़्तलिफ़ कुतुब में बिखरी हुई थीं । मजलिसे अल मदीनतुल | इल्मिय्या ने अनथक कोशिशों से इन नसीहतों को यक्जा कर के इन का उर्दू तर्जमा पेश करने की सआदत हासिल की है । येह रिसाला ऐसी नसीहतों पर | मुश्तमिल है जो इन्सान की ज़ाहिरी व बातिनी दुरुस्ती के लिये इन्तिहाई मुफीद है । इस में इस्लाह के बे शुमार मदनी फूल मौजूद हैं ।
मसलन अल्लाह | से डरते रहना , अवाम व खवास की अमानतें अदा करना , उन्हें नसीहत करना , | ज़ियादा हंसने से बचना , तिलावते कुरआने पाक की पाबन्दी करना और अपने | | पड़ोसी की पर्दापोशी करना वगैरा । दा'वते इस्लामी की वेब साइट | से इस रिसाले को रीड ( या'नी पढ़ा ) भी जा | सकता है , डाऊन लोड भी किया जा सकता है और प्रिन्ट आऊट भी किया जा | सकता है ।
बीनाई लौट आई !
हज़रते सय्यिदतुना उनैसा फ़रमाती हैं : मुझे मेरे वालिदे मोहतरम ने बताया : मैं बीमार हुवा तो सरकारे आली वकार sallallahu alaihi wasallam
मेरी इयादत के लिये तशरीफ़ लाए और देख कर फ़रमाया ! तुम्हें इस बीमारी से कोई हरज नहीं होगा , लेकिन तुम्हारी उस वक्त क्या हालत होगी जब तुम मेरे विसाल के बाद तवील उम्र गुज़ार कर नाबीना हो जाओगे ? येह सुन कर मैं ने अर्ज की : या रसूलल्लाह मैं उस वक्त हुसूले सवाब की ख़ातिर सब्र करूंगा । फ़रमाया : अगर तुम ऐसा करोगे तो बिगैर हिसाब के जन्नत में दाखिल हो जाओगे । चुनान्चे , साहिबे शीरीं मकाल , शहनशाहे खुश.
इमामे आजम Imam e Azam Abu Hanifa का अन्दाजे तिजारत !
इमामे आ ज़म अबू हनीफ़ा ने दर्स व तदरीस और इबादते रब्बे जुल जलाल के साथ साथ हुसूले रिज्के हलाल के लिये तिजारत का पेशा भी इख़्तियार फ़रमाया । आप (Imam E Azam Abu Hanifa) तिजारत में भी लोगों से भलाई , खैर ख़्वाही और शरई उसूलों की न सिर्फ खुद | पासदारी फ़रमाते , बल्कि अपने साथ काम करने वालों को भी इस की ताकीद | फ़रमाते ।
चुनान्चे , हज़रते सय्यिदुना हफ्स बिन अब्दुर्रहमान हज़रते सय्यिदुना | इमामे आ ज़म अबू हनीफ़ा के साथ तिजारत करते थे और उन्हें माले तिजारत भेजा करते । एक बार उन के पास कुछ सामान भेजते हुवे | | फ़रमाया : ऐ हफ़्स ! फुलां कपड़े में कुछ ऐब है । जब तुम उसे फ़रोख्त करो | तो ऐब बयान कर देना । हज़रते सय्यिदुना हफ्स ने माले तिजारत फरोख्त कर दिया और बेचते हुवे ऐब बताना भूल गए और येह भी याद न रहा कि किस को बेचा है । जब इमामे आ'ज़म को इल्म हुवा तो आप | ने तमाम कपड़ों की कीमत सदक़ा कर दी ।
देखा आप ने इमामे आ'ज़म अबू हनीफ़ा | Imam Abu Hanifa के शरीके तिजारत ने भूले से ऐबदार चीज़ बेच दी , तो आप (Abu Hanifa) उस की कीमत अपने इस्ति'माल में नहीं लाए बल्कि सदका | फ़रमा दी । मगर अफ्सोस ! सद अफ्सोस ! हमारे मुआशरे में भूले से नहीं | | बल्कि जान बूझ कर , झूटी कसमें खा कर , ऐब छुपा कर चीजें फरोख्त की जाती हैं ।
हमारी अख़्लाक़ी हालत तो इस कदर गिर चुकी है कि अगर हमारा बच्चा झूट बोल कर या धोका दे कर किसी को लूटने में कामयाब हो जाए , तो | हम इसे एक शानदार कारनामा समझते हैं , इस पर बच्चे को शाबाश देते हैं , | उस की पीठ थप थपाते हैं और दादे तहसीन देते हुवे इस किस्म के जुम्ले | कहते हैं कि बेटा अब तुम भी सीख गए हो , तुम्हें कारोबार करना आ गया है ,
तुम समझदार हो गए हो वगैरा वगैरा । हांलाकि ऐसे मौक़अ पर तो हमें अपने बच्चे की मदनी तर्बिय्यत करनी चाहिये कि बेटा झूट बोल कर और धोका दे कर कारोबार नहीं करना चाहिये , वरना इस के वबाल से हमारे कारोबार व | माल में ज़वाल आ जाएगा और हम तबाहो बरबाद हो जाएंगे और आख़िरत में भी ज़लीलो रुस्वा हो कर कहीं अज़ाबे इलाही के हकदार न हो जाएं । धोका देने वाले को इस हदीसे पाक पर भी गौर करना चाहिये कि मोहसिने काइनात , फ़ख्ने मौजूदात صلى الله عليه وسلم ने फ़रमाया : या'नी तुम में से कोई उस वक्त तक कामिल मोमिन नहीं हो सकता , जब तक अपने भाई के लिये वोह चीज़ पसन्द न करे जो अपने लिये पसन्द करता है ।
तो भला वोह कौन शख्स होगा जो अपने लिये येह पसन्द करेगा कि मुझे मिलावट वाला माल मिले , मुझे धोका दे कर या झूट बोल कर माल दिया जाए , मुझ से सूद लिया जाए , मुझ से रिश्वत ली जाए , मेरे भोले पन का फ़ाइदा उठा कर मेरी जेब खाली कर दी जाए ? यक़ीनन कोई शख्स अपने लिये येह बातें पसन्द नहीं करेगा , तो फिर अपने मुसलमान भाइयों के लिये ऐसा क्यूं सोचा जाता है ..... ?
इमाम अबू हनीफा के बारे में मुक्तसर सी बात जो आप लोगो के सामने इस ब्लॉग के जरिये रखे हैं वैसे इमाम अबू हनीफा Imam Abu Hanifa के बारे में हम कुछ कहे ऐसा हमारी कुदरत में कहा अल्लाह इसके सदके हमारे और तमाम उम्मते मोहमदिया की मगफिरत फरमाए.....आमीन
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