Shaban Ki Fazilat In Hindi शाबान महीने की फ़ज़ीलत हिंदी irfani

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Shaban Ki Fazilat In Hindi : 'शाबान' लफ्ज 'शाब' से बना है जिस का मानना है, बिखरना, अलग अलग होना। अरब में आम तौर पर इस माह में रिज़्क़ की तलाश में और तिजारत के लिए लोग अलग-अलग मक़ामत पर सफ़र करते थे
Shaban Ki Fazilat में ये कहा जाता हैं की 'जब माह ए शाबान आ जाए तो अपने जिस्म को पाकीजा रखो और इस महिने में अपनी नियातें अच्छी रखो और उन्हे हसीन बनाओ।'
इस बरकत व रहमत और Fazilat वाले महिने में शब ए बारात है।15 vi Shaban की मुबारक रात में अल्लाह तआला की रहमत का खास जहूर होता है और अल्लाह ताला बंदो को रिज़्क़ और आफ़ियत और मग़फिरत अता फरमाता है।

Shaban Ki Fazilat शाबान  की फ़ज़ीलत In Hindi

चांद देखना वाजिब है के ऐ आशिकाने रसूल ! शाबान इस्लामी साल का ' आठवां महीना " है जो रजबुल मुरज्जब और रमज़ानुल मुबारक दरमियान में है । यह उन पांच महीनों में से पहला महीना है जिन का चांद देखना वाजिबे किफ़ाया है , पांच महीने येह हैं : 

( 1 ) शा'बानुल मुअज्जम : 

( 2 ) रमज़ानुल मुबारक 

( 3 ) शव्वालुल मुकर्रम 

( 4 ) जुल का'दतिल हराम और 

( 5 ) जुल हिज्जतिल हराम । 

    Shaban महीने की बेशुमार Fazilate

    हज़रते अबू मा'मर फ़रमाते हैं : माहे शा'बान ने बारगाहे इलाही में अर्ज़ की : ऐ मेरे रब ! तू ने मुझे दो अज़मत वाले महीनों ( रजब और रमज़ानुल मुबारक ) के दरमियान रखा है तो तू ने मेरी क्या फ़ज़ीलत रखी ? 

    अल्लाह पाक ने इर्शाद फ़रमाया : मैं ने तुझ में कुरआने पाक की तिलावत रख दी । 

    शा ' बानुल मुअज्जम में खूब नेकियां कीजिये , खूब ज़िक्रो अज़्कार , दुरूदे पाक और तिलावते कुरआने करीम कर के इस अज़मत वाले महीने की खूब ता जीम करें । 

    इस अज़मत वाले महीने की अहम्मिय्यत के लिये इतना ही काफ़ी है कि इस के बारे में हमारे प्यारे आका  ने इर्शाद फ़रमाया या'नी माहे शा'बान मेरा महीना  है । 

    अल्लाह पाक  के आख़िरी नबी , मक्की मदनी , मुहम्मदे अरबी जैसे रमज़ान के रोज़ों की तय्यारी फ़रमाते ऐसे ही Shaban ke Roze की भी तय्यारी फ़रमाते । 

    नीज़ आप  ने ता ' जीमे रमज़ान के लिये शा'बान के रोज़ों को सब से अफ़्ज़ल रोजे करार दिया , जैसा कि 

    जन्नती सहाबी हज़रते अनस से रिवायत है कि रसूलुल्लाह से सब से अफ़्ज़ल रोज़ों के बारे में पूछा गया तो आप  ने इर्शाद फ़रमाया : रमज़ान की ता'ज़ीम के लिये शा'बान के रोजे ।  

    Shaban महीने के नाम की हिक्मतें 

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    ( 1 ) शा'बान , शि'बुन से बना है जिस के मा'ना हैं घाटी । चूंकि इस महीने में खैरो बरकत का उमूमी नुजूल होता है , इस लिये इसे शा'बान कहा जाता है , 

    जिस तरह घाटी पहाड़ का रास्ता होती है इसी तरह येह महीना खैरो बरकत का रास्ता है ।  

    ( 2 ) रसूलुल्लाह ने इर्शाद फ़रमाया , या'नी इस महीने को " शा'बान " इस लिये कहा जाता है कि इस में रोज़ा रखने वाले के लिये बहुत सी भलाइयां ( शाखों की तरह ) फूटती हैं , यहां तक कि वोह जन्नत में जा पहुंचता है । 

    हज़रते इमाम राफेई फ़रमाते हैं : इस हदीसे पाक का मतलब येह है कि माहे शा'बान में मुसल्मान ज़िक्रो अज्कार , नेकियों और कुरआने पाक की तिलावत की तरफ़ माइल हो जाते हैं 

    और रमज़ानुल मुबारक के लिये तय्यारी करते हैं ।  और शा ' बानुल मुअज्जम में रमज़ानुल मुबारक के रोज़ों की फ़र्जिय्यत का हुक्म नाज़िल हुवा ।

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    शा'बान का महीना चूंकि रमज़ान से पहले आता है लिहाज़ा जिस तरह माहे रमज़ान में रोज़े और तिलावते कुरआन का हुक्म है 

    इसी तरह माहे शा'बान में भी इस की बड़ी अहम्मिय्यत है कि रोजे रखे जाएं और तिलावते कुरआन की जाए ताकि इस्तिक्बाले Ramzan की तय्यारी हो जाए और नफ़्स को इबादात की आदत हो जाए । 

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    जन्नती सहाबी हज़रते अनस फ़रमाते हैं : शा'बान का महीना आता तो मुसल्मान कुरआने करीम की तिलावत में मश्गूल हो जाते , अपने मालों की ज़कात अदा कर देते ताकि कमज़ोरों और मिस्कीनों को भी रमज़ान के रोज़ों की ताक़त मिले । 

    Shaban महीने में तिलावते कुरआन Ki Fazilat

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    अज़ीम ताबेई बुजुर्ग हज़रते सलमा बिन कुहैल , फ़रमाते हैं : माहे शा'बान को तिलावते कुरआन करने वालों का महीना कहा जाता था । 

    हज़रते हबीब बिन अबू साबित शा'बान के आने पर फ़रमाते : येह कारियों का महीना है । हज़रते अम्र बिन कैस  माहे शाबान मुअज्जम की आमद पर अपनी दुकान बन्द कर देते और तिलावते कुरआने करीम के लिये फ़ारिग हो जाते । 

    Shaban में रोज़े की आदत 

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    शा ' बानुल मुअज्जम के रोज़ों की एक हिक्मत येह भी बयान की गई है कि शा ' बानुल मुअज्जम के रोज़ों से रमज़ान के रोज़ों की मश्क़ ( प्रेक्टिस ) हो जाए 

    ताकि रमजान के रोज़ों में मशक्कत और तक्लीफ़ महसूस न हो बल्कि तब तक बन्दे को रोज़ों की आदत हो चुकी हो और रमज़ान से पहले शा'बान में रोज़ों  की मिठास 

    और लज्जत का एहसास हो चुका हो , लिहाज़ा जब माहे रमज़ान आए तो बन्दा चुस्ती के साथ रमज़ान के रोजे रखने लगे । 

    Shaban ke Rozo ki Fazilat In Hindi

    उम्मुल मुअमिनीन हज़रते बीबी आइशा सिद्दीका फ़रमाती हैं : रसूलुल्लाह को माहे शा'बान में रोजे Shaban ke Roze रखना तमाम महीनों से ज़ियादा पसन्दीदा था कि इस में रोजे रखा करते फिर इसे रमज़ान से मिला देते ।  

    उम्मुल मुअमिनीन हज़रते बीबी आइशा सिद्दीका ही से रिवायत है : रसूलुल्लाह  पूरे शा'बान के रोजे शाबान ke roze रखा करते थे 

    और फ़रमाते : अपनी इस्तिताअत के मुताबिक़ अमल करो कि अल्लाह पाक Allah Paak उस वक्त तक अपना फ़ज़्ल नहीं रोकता जब तक तुम उक्ता न जाओ 

    शारेहे बुख़ारी हज़रते अल्लामा मुफ्ती मुहम्मद शरीफुल हक़ अमजदी इस हदीसे पाक के तहत लिखते हैं : मुराद येह है कि शा'बान में अक्सर दिनों में रोज़ा रखते थे इसे तग्लीबन ( या'नी गलबे और ज़ियादत के लिहाज़ से ) कुल ( या'नी सारे महीने के रोजे रखने ) से ता'बीर कर दिया । 

    जैसे कहते हैं : “ फुलां ने पूरी रात इबादत की " जब कि उस ने रात में खाना भी खाया हो और ज़रूरिय्यात से फ़रागत भी की हो , यहां तम्लीबन अक्सर को " कुल " कह दिया ।

     मजीद फ़रमाते हैं : इस हदीस से मालूम हुवा कि शा'बान में जिसे कुव्वत हो वोह ज़ियादा से ज़ियादा रोजे रखे । 

    अलबत्ता जो कमज़ोर हो वोह रोज़ा न रखे क्यूं कि इस से रमज़ान Ramzan  के रोज़ों पर असर पड़ेगा , येही महूमल ( या'नी मुराद व मक्सद ) है उन अहादीस का जिन में फ़रमाया गया कि निस्फ़ ( या'नी आधे ) शा'बान के बाद रोज़ा न रखो 

    ( नुज्हतुल कारी , 3/377 , 380 ) 

    अगर कोई पूरे शा'बानुल मुअज्जम के रोजे रखना चाहे तो उस को मुमानअत भी नहीं ।आशिकाने रसूल की दीनी तहरीक दा'वते इस्लामी के कई इस्लामी भाई 

    और इस्लामी बहनों में रजबुल मुरज्जब और शा ' बानुल मुअज्जम दोनों महीनों के रोजे रखने की तरकीब होती है और मुसल्सल रोजे रखते हुए येह हज़रात रमज़ानुल मुबारक से मिल जाते हैं । 

    Shaban ke Rozo की बरकत

    हज़रते अल्लामा शाह फज्ले रसूल बदायूनी फ़रमाते हैं : जो शा ' बानुल मुअज्जम के रोजे इस लिये रखे कि हुजूर  को पसन्द थे , उसे हुजूरे पाक  की शफ़ाअत नसीब होगी ।  

     Shaban Ke Roze हुजूर को पसन्द होने की वज्ह 

    जन्नती सहाबी , हज़रते उसामा बिन ज़ैद  ने अर्ज की : या रसूलल्लाह ! मैं देखता हूं कि आप जिस तरह शा ' बान के रोजे रखते हैं इस तरह किसी और महीने में रोजे नहीं रखते । 

    फ़रमाया : रजब और रमज़ान के बीच में येह महीना है , लोग इस से गाफ़िल हैं । इस में लोगों के आ'माल अल्लाह करीम की बारगाह में पेश किये जाते हैं 

    और मुझे येह महबूब ( या'नी पसन्द ) है कि मेरा अमल इस हाल में उठाया जाए कि मैं रोज़ादार होउं । 

    हमारे प्यारे आका का येह अमल यक़ीनन हम गुलामों की तालीम के लिये था जभी तो फ़रमाया कि " रजब और रमज़ान Ramzan के बीच में येह महीना है , लोग इस से गाफ़िल हैं । "

     लिहाज़ा हमें चाहिये कि हम ख्वाबे गफ्लत से बेदार हो जाएं , नेकियों में इज़ाफ़ा करें और आख़िरत को बेहतर बनाने की फ़िक्र करें नीज़ इस अच्छी निय्यत से माहे Shaban  के रोजे रखने में दिलचस्पी लें कि इस महीने में जब हमारा आ'माल नामा हमारे प्यारे Allah Paak  की बारगाह में पेश किया जाए तो ऐ काश ! हम भी रोज़ादार हों ।

    Shaban Mahine Ki Fazilat ना हासिल करना कैसा 

    हमारे बुजुर्गाने दीन तो इस मुबारक महीने को इबादत में गुजारें , तिलावत करें , नेकियों का एहतिमाम करें और हम गफलत की नींद सोते ही रहें ऐसे गाफ़िलों के बारे में कहा गया है : 

    ऐ मुबारक वक़्तों में कोताही करने वाले ! इन वक्तों को जाएअ करने वाले ! और इन्हें बुरे आ'माल से आलूदा करने वाले ! तू ने कितने बुरे काम इन मुबारक वक्तों के हवाले किये ! ( चन्द अरबी अश्आर का तरजमा ) 

    ( 1 ) रजब चला गया और तू ने उस में कोई नेकी नहीं की और अब येह बरकत वाला माहे शा'बान है । 

    ( 2 ) ऐ शाबान की अजमत से बे ख़बर रह कर इन वक्तों को जाएअ करने वाले ! होश में आ और तबाही से डर । 

    ( 3 ) बहुत जल्द सब लज्जतें तुझ से छीन ली जाएंगी और मौत तुझे तेरे घर से जबर दस्ती निकाल देगी । 

    ( 4 ) सच्ची और खुलूस भरी तौबा के जरीए जिस क़दर गुनाहों का इलाज कर सकता है कर ले । 

    ( 5 ) और जहन्नम से सलामती को ही अपना मक्सद बना ले , बेहतरीन मुजरिम वोह है जो अपने जुर्मों का इलाज कर ले । 

    तो ये थी Shaban Ki Fazilat In Hindi मैं, इसे सवाब की नियत से शेयर करे और जो कुछ पढ़ा सीखा उसे याद रखे और दुसरो तक पहुंचाए। अस्सलामु अलैकुम 

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