Hazrat Ali हज़रत अली का इल्म Maula Ali 71+ Quotes In Hindi

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Hazrat Ali हज़रत अली का इल्म कुछ खास बाते In Hindi

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    मौला अली का तआरुफ़ / Hazrat Ali Ki History

    मुसल्मानों के चौथे ख़लीफ़ा , अमीरुल मुअमिनीन हज़रते मौला अली शेरे खुदा Hazrat Maula Ali मक्का शरीफ़ में पैदा हुए । 

    आप की अम्मीजान हज़रते बीबी फ़ातिमा बिन्ते असद ने अपने वालिद के नाम पर आप का नाम " हैदर " रखा , वालिद ने आप का नाम " अली " रखा और हुजूर  ने आप को “ असदुल्लाह " के लक़ब से नवाज़ा ( मिरआतुल मनाजीह , 8/412 ) इस के इलावा " मुर्तज़ा ( चुना हुवा ) " , 

    " कर्रार ( पलट पलट कर हम्ले करने वाला ) " , " शेरे खुदा Shere Khuda" और " मौला मुश्किल कुशा " आप के मशहूर अल्काबात हैं । 

    हज़रत मौला मुश्किल कुशा , अलिय्युल मुर्तज़ा , शेरे खुदा Hazrat Ali Shere Khuda की कुन्यत " अबुल हसन " और " अबू तुराब " है । आप प्यारे आका , मक्की मदनी मुस्तफा  के चचाज़ाद भाई हैं । 

    आप ने 4 साल 8 माह , 9 दिन तक ख़िलाफ़त फ़रमाई । 17 या 19 रमज़ानुल मुबारक को एक ख़बीस ख़ारिजी के कातिलाना हम्ले से आप शदीद ज़ख्मी हो गए और 21 रमज़ानुल मुबारक , इतवार की रात शहीद हो गए ।

                        

    Hazrat Ali शेरे खुदा का इल्म (इर्शादात), Hazrat Ali Quotes

    ( 1 ) अमल से बढ़ कर उस की कबूलिय्यत का एहतिमाम करो , इस लिये कि परहेज़ गारी के साथ किया गया थोड़ा अमल भी बहुत होता है और जो अमल मक़बूल हो जाए वोह कैसे थोड़ा होगा ? (

    ( 2 ) ( ईद के दिन फ़रमाया :) हर वोह दिन जिस में अल्लाह पाक की ना फ़रमानी न की जाए हमारे लिये ईद का दिन है । 

    ( 3 ) हज़रत अलि Hazrat Ali ने फरमाया, मैं तुम पर दो चीज़ों से बहुत ज़ियादा खौफ़ज़दा रहता हूं : ( 1 ) ख्वाहिश की पैरवी और ( 2 ) लम्बी उम्मीदें ।

    ( 4 ) जो शख्स येह गुमान रखता है कि नेक आ'माल अपनाए बिगैर जन्नत में दाखिल होगा तो वोह झूटी उम्मीद का शिकार है ।  

    ( 5 )खर्च करो , तश्हीर  न करो और खुद को इस लिये बुलन्द न करो कि तुम्हें पहचाना जाए और तुम्हारा नाम हो बल्कि छुपे रहो और खामोशी इख़्तियार करो , सलामत रहोगे ।

    ( 6 ) इन्सान का क़द 22 साल जब कि अक्ल 28 साल की उम्र तक बढ़ती है , इस के बाद मरते दम तक तजरिबात का सिल्सिला रहता है । 

    ( 7 ) हज़रत अलि Hazrat Ali ने फरमाया गुनाहों की नुहूसत से इबादत में सुस्ती और रिज्क में तंगी आती है ।

    ( 8 ) बन्दा बेसब्री कर के अपने आप को हलाल रोज़ी से महरूम कर देता है और इस के बा वुजूद अपने मुक़द्दर से ज़ियादा हासिल नहीं कर पाता । 

    ( 9 जिस “ तक्लीफ़ " के बा'द " जन्नत ' मिलने वाली हो वोह " तक्लीफ़ " नहीं और जिस “ राहत " का अन्जाम “ दोज़ख " पर हो वोह “ राहत " नहीं ।

    ( 10 )  हज़रत अलि Hazrat Ali ने फरमाया, अपनी राय को काफ़ी समझने वाला ख़तरे में है ।

    ( 11 ) जब तुम अपने दुश्मन से बदला लेने पर कादिर हो जाओ तो इस के शुक्राने में उसे मुआफ़ कर दो ।

    ( 12 ) उन लोगों में से मत होना जिन्हें नसीहत उसी वक़्त फ़ाएदा देती है जब में मुबालगा ( या'नी बहुत ज़ियादा शरमिन्दा ) किया जाए । 

    ( 13 ) हज़रत अलि Hazrat Ali ने फरमाया, लालच की चमक देख कर अक्सर अक्ल मार खा जाती है ।

    ( 14 ) हज़रत अलि Hazrat Ali ने फरमाया, जब किसी शख्स की अक्ल कामिल हो जाती है तो उस की गुफ्त्गू में कमी आ जाती है । 

    ( 15 ) लोगों में जो ज़ियादा इल्म वाला होता है वोह अल्लाह पाक से ज़ियादा डरता , ज़ियादा इबादत करता और अल्लाह पाक ( की रिजा ) के लिये ज़ियादा नसीहत करता है ।

    ( 16 ) माल व औलाद दुन्या की खेती है और नेक आ'माल आख़िरत की , अल्लाह पाक अपने बहुत से बन्दों को येह सब अता फ़रमाता है ।

    ( 17 ) अगर मैं चाहूं तो सूरतुल फ़ातिहा की तफ्सीर से 70 ऊंट भर दूं । ( या'नी उस की तफ्सीर लिखते हुए इतने रजिस्टर तय्यार हो जाएं कि 70 ऊंट उसे उठाएं । ) 

    ( 18 ) अगर शराब का एक कतरा कूएं में गिर जाए फिर उस जगह मनारा बनाया जाए तो मैं उस पर अज़ान न कहूं और अगर दरिया में शराब का क़तरा गिरे फिर दरिया खुश्क हो और वहां घास पैदा हो तो मैं उस में अपने जानवरों को न चराऊं । 

    ( 19 ) लम्बी उम्मीदें आख़िरत को भुलाती हैं और ख्वाहिशात का इत्तिबाअ ( Follow ) हक़ से रोकता है । 

    ( 20 ) अपने घरों से मक्ड़ियों के जाले ( Spider's web ) दूर करो , येह नादारी ( तंगदस्ती ) का बाइस होते हैं ।

    ( 21 ) हर नेकी करने वाले की नेकियों का वज़्न किया जाएगा सिवाए सब्र करने वालों के कि इन्हें बे अन्दाज़ा व बे हिसाब दिया जाएगा ।

    ( 22 ) जन्नत के दरवाजे के करीब एक दरख्त है उस के नीचे से दो चश्मे ( Springs ) निकलते हैं मोमिन वहां पहुंच कर एक चश्मे में गुस्ल करेगा उस से उस का जिस्म पाको साफ़ हो जाएगा और दूसरे चश्मे का पानी पियेगा उस से उस का बातिन पाकीज़ा हो जाएगा फिर फ़िरिश्ते जन्नत के दरवाजे पर ( उस का ) इस्तिक्बाल करेंगे ।

    ( 23 ) दो दोस्त मोमिन और दो दोस्त काफ़िर ( थे ) , मोमिन दोस्तों में एक मर जाता है तो बारगाहे इलाही में अर्ज करता है या रब फुलां मुझे तेरी और तेरे रसूल की फ़रमां बरदारी का और नेकी करने का हुक्म करता था और मुझे बुराई से रोकता था और खबर देता था कि मुझे तेरे हुजूर हाज़िर होना है , 

    या रब ! उस को मेरे बा'द गुमराह न कर और उस को हिदायत दे जैसी मेरी हिदायत फ़रमाई और उस का इक्राम कर जैसा मेरा इक्राम फ़रमाया , जब उस का मोमिन दोस्त मर जाता है तो अल्लाह पाक दोनों को जम्अ करता है और फ़रमाता है कि तुम में हर एक दूसरे की तारीफ़ करे तो हर एक कहता है कि येह अच्छा भाई है , 

    अच्छा दोस्त है , अच्छा रफ़ीक़ है । और दो काफ़िर दोस्तों में से जब एक मर जाता है तो दुआ करता है , या रब ! फुलां मुझे तेरी और तेरे रसूल की फ़रमां बरदारी से मन्अ करता था और बदी ( या'नी बुराई ) का हुक्म देता था , नेकी से रोकता था 

    और खबर देता था कि मुझे तेरे हुजूर ( या'नी तेरी बारगाह में ) हाज़िर होना नहीं , तो अल्लाह पाक फ़रमाता है कि तुम में से हर एक दूसरे की तारीफ़ करे तो उन में से एक दूसरे को कहता है बुरा भाई , बुरा दोस्त , बुरा रफ़ीक़ । 

    ( तफ्सीरे ख़ज़ाइनुल इरफ़ान , पारह : 25 , अज्जुङफ़ , तहूतल आयह : 66 ) 

    ( 24 ) इल्म ख़ज़ाना है और सुवाल करना इस की चाबी है , अल्लाह पाक तुम पर रहूम फ़रमाए सुवाल किया करो क्यूं कि इस ( सुवाल करने की सूरत ) में चार अपाद को सवाब दिया जाता है । सुवाल करने वाले को , जवाब देने वाले को , सुनने वाले और उन से महब्बत करने वाले को । 

    ( 25 ) तीन चीजें हाफ़िज़ा ( Memory ) तेज़ और बल्गम दूर करती हैं : ( 1 ) मिस्वाक ( 2 ) रोज़ा ( 3 ) कुरआने पाक पढ़ना । 

    ( 26 ) हज़रत अलि Hazrat Ali ने फरमाया, जो बिगैर इल्म के लोगों को फ़तवा दे आस्मानो ज़मीन के फ़िरिश्ते उस पर ला'नत करते हैं ।

    ( 27 ) मज्लूम के ज़ालिम पर गलबे का दिन ( या'नी क़ियामत का दिन ) ज़ालिम के मज्लूम पर गलबे के दिन से ज़ियादा सख़्त है ।

    ( 28 ) हज़रत अलि Hazrat Ali ने फरमाया, थोड़ी चीज़ देने से शर्म न करो क्यूं कि देने से महरूम रहना इस से भी थोड़ा है । 

    ( 29 ) अल्लाह पाक की क़सम ! मैं कुरआने करीम की हर आयत के बारे में जानता हूं कि वोह कब और कहां नाज़िल हुई , बेशक मेरे रब्बे करीम ने मुझे बहुत समझने वाला दिल और बहुत सुवाल करने वाली ज़बान अता फ़रमाई है ।

     ( 30 ) बरोजे कियामत दुन्या खूब सूरत शक्ल में आएगी और अर्ज करेगी : ऐ मेरे रब ! मुझे अपना कोई वली अता फ़रमा , अल्लाह पाक फ़रमाएगा : जा , तेरी कोई हकीकृत नहीं और न ही मेरी बारगाह में कोई मकाम है कि मैं तुझे अपना कोई वली अता करूं । चुनान्चे उसे पुराने कपड़े की तरह लपेट कर जहन्नम में फेंक दिया जाएगा ।

    ( 31 ) भलाई येह नहीं कि तुझे बहुत ज़ियादा माल व औलाद हासिल हो जाए बल्कि भलाई येह है कि तेरा इल्म ज़ियादा हो और हिल्म ( या'नी कुव्वते बरदाश्त ) भी अज़ीम हो और अल्लाह पाक की इबादत इतनी ज़ियादा करे कि लोगों से आगे बढ़ जाए । जब तू नेकी करने में काम्याब हो जाए तो उस पर अल्लाह करीम का शुक्र अदा करे और अगर गुनाह में पड़ जाए तो अल्लाह पाक से उस की बख्रिशश मांगे । और दुन्या में भलाई उस आदमी को हासिल होती है जो गुनाह हो जाने की सूरत में तौबा कर के उस की इस्लाह कर लेता है या वोह शख्स जो नेकियां करने में जल्दी करता है ।

    ( 32 ) मेरी 5 बातें याद रखो ( और येह ऐसी कीमती बातें हैं कि ) अगर तुम ऊंटों पर सुवार हो कर इन्हें तलाश करने निकलोगे तो ऊंट थक जाएं लेकिन येह बातें न मिल पाएंगी : 

    ( 1 ) बन्दा सिर्फ अपने रब्बे करीम से उम्मीद रखे ।

    ( 2 ) अपने गुनाहों की वज्ह से डरता रहे । 

    ( 3 ) जाहिल “ इल्म " के बारे में सुवाल करने से न शरमाए । 

    ( 4 ) और अगर आलिम को किसी मस्अले का इल्म न हो तो ( हरगिज़ न बताए और ला इल्मी का इज़हार और साफ़ इन्कार करते हुए ) "या'नी अल्लाह पाक सब से ज़ियादा इल्म वाला है । " कहने से न घबराए और 

    ( 5 ) ईमान में सब्र की वोह हैसिय्यत है जैसी जिस्म में सर की , उस का ईमान ( कामिल ) नहीं जो बे सब्री का मुजाहरा करता है ।


    ( 33 ) अल्लाह पाक के गुमनाम बन्दों के लिये खुश खबरी है ! वोह बन्दे जो खुद तो लोगों को जानते हैं लेकिन लोग उन्हें नहीं पहचानते , अल्लाह करीम ने ( जन्नत पर मुकर्रर फ़िरिश्ते ) हज़रते रिज्वान  को उन की पहचान करा दी है येही लोग हिदायत के रोशन चराग हैं और अल्लाह पाक ने तमाम तारीक फ़ितने इन पर ज़ाहिर फ़रमा दिये हैं । अल्लाह पाक इन्हें अपनी रहमत ( से जन्नत ) में दाखिल फ़रमाएगा । येह शोहरत चाहते हैं न जुल्म करते हैं और न ही रियाकारी में पड़ते हैं ।

    ( 34 ) सुनो ! कामिल फकीह वोह है जो लोगों को रहमते इलाही से मायूस न करे , अल्लाह पाक के अज़ाब से बे ख़ौफ़ न होने दे , उस की ना फ़रमानी की रुख्सत न दे और कुरआने करीम को छोड़ कर किसी और चीज़ में 

    ( 35 ) ऐ लोगो ! इल्म के सरचश्मे , रात के चराग ( या'नी रातों को जाग कर इबादते इलाही करने वाले ) , पुराने लिबास और पाकीज़ा दिल वाले बन जाओ , इस की वज्ह से आस्मानों में तुम्हारी शोहरत होगी और जमीन में तुम्हारा ज़िक्र बुलन्द होगा । रग्बत न रखे ।

    ( 36 ) इल्म माल से बेहतर है । इल्म तेरी हिफ़ाज़त करता है जब कि माल की तुझे हिफ़ाज़त करनी पड़ती है । इल्म फैलाने से बढ़ता है जब कि माल खर्च करने से घटता है । आलिम से लोग महब्बत करते हैं । आलिम , इल्म की बदौलत अपनी ज़िन्दगी में अल्लाह करीम की फ़रमां बरदारी करता है । 

    आलिम के मरने के बाद भी उस का ज़िक्रे खैर बाकी रहता है जब कि माल का फ़ाएदा उस के ख़त्म होने के साथ ही ख़त्म हो जाता है और येही मुआमला मालदारों का है कि दुन्या में माल ख़त्म होते ही उन का नाम तक मिट जाता है इस के बर अक्स उलमा का नाम रहती दुन्या तक बाकी रहता है । मालदारों के नाम लेने वाले कहीं नज़र नहीं आते जब कि उलमाए दीन की इज्जत और मकाम हमेशा लोगों के दिलों में काइम रहता है ।

    ( 37 ) हज़रत अलि Hazrat Ali ने फरमाया, तीन अमल मुश्किल हैं : 

    ( 1 ) अपनी जान का हक़ अदा करना 

    ( 2 ) हर हाल में अल्लाह पाक का ज़िक्र करते रहना और 

    ( 3 ) अपने ज़रूरत मन्द मुसल्मान भाइयों से माली तआवुन करना ।



    ( 38 ) जब तुम किसी चीज़ को हासिल करना चाहो तो फिर उस में ऐसे लग जाओ कि बस हर वक्त उसे हासिल करने की कोशिश करते रहो । 

    ( 39 ) बेशक ने मत का तअल्लुक “ शुक्र " के साथ है और शुक्र का तअल्लुक़ ने मतों की ज़ियादती के साथ है , येह दोनों एक दूसरे को लाज़िम हैं । पस अल्लाह पाक की तरफ़ से ने मतों की ज़ियादती उस वक्त तक नहीं रुकती जब तक कि बन्दे की तरफ़ से " शुक्र " न रुक जाए । ( शुक्र के फ़ज़ाइल , स . 11 )

    ( 40 ) 28 सूरतुत्तहूरीम की तफ्सीर बयान करते हुए हज़रते अली शेरे खुदा Shere Khuda फ़रमाते हैं : इस आयत का तकाज़ा है कि अपने आप को और अपने घर वालों को भलाई की तालीम दो और उन्हें आदाबे ज़िन्दगी सिखाओ । 

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    ( 41 ) मेरे नज़्दीक कोई उस शख़्सिय्यत से बढ़ कर पसन्दीदा नहीं जिस ने अल्लाह करीम से अपने नेक आ'माल नामे के साथ मुलाकात की हो । शैखैने करीमैन के बारे में इर्शादात 

    ( 42 ) जो मुझे हज़रते अबू बक्रउमर से अफ़्ज़ल कहेगा तो मैं उस को मुफ्तरी की ( या'नी बोहतान लगाने वाले को दी जाने वाली ) सज़ा दूंगा । 

    ( 43 ) इस उम्मत में नबी  के बाद सब से बेहतर ( हज़रते ) अबू बक्र व उमर  हैं । इमाम ज़हबी ने फ़रमाया कि येह क़ौल हज़रते अली Hazrat Ali से ब तवातुर मन्कूल है ।

    ( 44 ) ( हज़रते ) अबू बक्र सिद्दीक़  शुक्र करने वालों और अल्लाह के पसन्दीदा बन्दों के अमीन  हैं , आप इन सब से ज़ियादा शुक्र करने वाले और सब से ज़ियादा अल्लाह के पसन्दीदा हैं । 

    ( 45 ) हज़रत अलि Hazrat Ali ने फरमाया,  हम में सब से ज़ियादा बहादुर हज़रते अबू बक्र सिद्दीक ही हैं ।

    ( 46 ) याद रखो ! वोह ( या'नी हज़रते अबू बक्र सिद्दीक़ ) इन्सानों में सब से ज़ियादा रहूम दिल , नबिय्ये करीम के यारे गार और अपने माल से हुजूर को सब से ज़ियादा नफ्अ पहुंचाने वाले हैं ।

    ( 47 ) हज़रत अलि Hazrat Ali ने फरमाया, हम सब सहाबा में हज़रते अबू बक्र सिद्दीक़ सब से अफ़्ज़ल हैं 

    ( 48 ) हज़रत अलि Hazrat Ali ने फरमाया, ( क़सम खा कर इर्शाद फ़रमाया :) अल्लाह पाक ने अबू बक्र का नाम " सिद्दीक़ " आस्मान से नाज़िल फ़रमाया है । 

    ( 49 ) हज़रत अलि Hazrat Ali ने फरमाया, मैं तो हज़रते अबू बक्र सिद्दीक़ की तमाम नेकियों में से सिर्फ एक नेकी हूं ।

    ( 50 ) हुजूर नबिय्ये करीम , रऊफुर्रहीम के बाद सब से बेहतरीन शख्सिय्यात ( हज़रते ) अबू बक्र व उमर हैं , किसी मोमिन के दिल में मेरी महब्बत और हज़रते अबू बक्र व उमर का बुग्न जम्अ नहीं हो सकते , और न ही मेरी दुश्मनी और हज़रते अबू बक्र व उमर की महब्बत जम्अ हो सकती है । अफ़्ज़ल हैं । 

    जन्नत का इजाज़त नामा 

    एक बार हज़रते अबू बक्र सिद्दीक़ और हज़रते मौला अली शेरे खुदा Shere Khuda की मुलाकात हुई तो सिद्दीके अक्बर मौला अली को देख कर मुस्कुराने लगे । हज़रते अलिय्युल मुर्तजा ने पूछा : “ आप क्यूं मुस्कुरा रहे हैं ? " हज़रते अबू बक्र सिद्दीक़ ने फ़रमाया : " मैं ने रसूलुल्लाह  को येह फ़रमाते सुना कि पुल सिरात से वोही गुज़रेगा जिस को अलिय्युल मुर्तज़ा तहरीरी इजाज़त नामा देंगे । " येह सुन कर हज़रते अलिय्युल मुर्तजा भी मुस्कुरा दिये और कहने लगे : " क्या मैं आप को रसूलुल्लाह  की तरफ़ से आप के लिये बयान कर्दा खुश खबरी न सुनाऊं कि रसूलुल्लाह ने इर्शाद फ़रमाया : पुल सिरात से गुज़रने का तहरीरी इजाज़त नामा सिर्फ उसी को मिलेगा जो अबू बक्र सिद्दीक़ से महब्बत करने वाला होगा ।

    हर सहाबिये नबी .. जन्नती जन्नती 

    सब सहाबियात भी . जन्नती जन्नती 

    हज़रते सिद्दीक़ भी . जन्नती जन्नती 

    और उमर फ़ारूक़ भी . जन्नती जन्नती

    हज़रते Hazrat उस्मान भी . जन्नती जन्नती

    फ़ातिमा और अली Ali . जन्नती जन्नती

    वालिदैने नबी .. जन्नती जन्नती

    हर ज़ौजए नबी . जन्नती जन्नती


    ( 51 ) हज़रत अलि Hazrat Ali ने फरमाया, अपनी ज़बान को काबू में रखो क्यूं कि आदमी की हलाकत ज़ियादा गुफ़्त्गू करने में है । 

    ( 52 ) हज़रत अलि Hazrat Ali ने फरमाया, जब बन्दा फ़ौत होता है तो ज़मीन में उस की जाए नमाज़ और आस्मान में उस के अमल का ठिकाना उस पर रोते हैं । 

    ( 53 ) जो नमाज़ में खड़े हो कर कुरआने करीम की तिलावत करे , के लिये हर हर्फ के बदले 100 नेकियां हैं और जो बैठ कर तिलावत करे उस के लिये हर हर्फ़ के बदले 50 नेकियां हैं और जो नमाज़ के इलावा बा वुजू तिलावत करे उस के लिये 25 नेकियां हैं और जो बिगैर वुजू तिलावत करे उस के लिये 10 नेकियां हैं और रात का कियाम ( या'नी इबादत ) अफ़्ज़ल है क्यूं कि उस वक्त दिल ज़ियादा फ़ारिग होता है ।

    ( 54 ) तअज्जुब है उस शख्स पर जो सामाने नजात रखने के बा वुजूद हलाक हो जाता है । पूछा गया : सामाने नजात क्या है ? फ़रमाया : इस्तिग्फ़ार ।

    ( 55 ) मैं उस शख्स को कामिल अक्ल वाला नहीं समझता जो सूरए बक़रह की आखिरी दो आयात पढ़े बिगैर सो जाए ।वोह दो आयात येह हैं

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    तरजमए कन्जुल ईमान : रसूल ईमान लाया उस पर जो उस के रब के पास से उस पर उतरा और ईमान वाले सब ने माना अल्लाह और उस के फ़िरिश्तों और उस की किताबों और उस के रसूलों को येह कहते हुए कि हम उस के किसी रसूल पर ईमान लाने में फ़र्क नहीं करते और अर्ज की , कि हम ने सुना और माना तेरी मुआफ़ी हो ऐ रब हमारे और तेरी ही तरफ़ फिरना है 

    अल्लाह किसी जान पर बोझ नहीं डालता मगर उस की ताकत भर उस का फाएदा है जो अच्छा कमाया और उस का नुक्सान है जो बुराई कमाई ऐ रब हमारे हमें न पकड़ अगर हम भूलें या चूकें ऐ रब हमारे और हम पर भारी बोझ न रख जैसा तूने हम से अगलों पर रखा था ऐ रब हमारे और हम पर वोह बोझ न डाल जिस की हमें सहार ( ताकत ) न हो और हमें मुआफ फ़रमा दे और बख़्श दे और हम पर मह ( रहूम ) कर तू हमारा मौला है तो काफ़िरों पर हमें मदद दे । 


    अच्छी सिहत के बारे में इर्शादात

    जो खाना नमक ( या नमकीन चीज़ ) से शुरूअ करता है अल्लाह करीम उस से 70 बीमारियां दूर फ़रमा देता है । 

    जो रोज़ाना सात अज्चा खजूरें खा लिया करे उस के पेट की बीमारियां ख़त्म हो जाएंगी ।

    जो रोज़ाना 21 दाने सुर्ख किशमिश के खा लिया करे अपने जिस्म में कोई ना पसन्दीदा चीज़ न देखेगा। 

    गोश्त गोश्त पैदा करता है ।  

    सरीद अहले अरब का खाना है ।  

    निफ़ास वाली औरत के लिये तर खजूरों से बेहतर कोई चीज़ नहीं ।  मछली जिस्म को पिघला देती है ( या'नी दुबला 

    कर देती है ) ।  

    जो लम्बी उम्र चाहे वोह नाश्ता जल्द ( सुब्ह सवेरे ) करे , शाम का खाना कम और ताख़ीर से खाए और चादर हलकी रखे या'नी क़र्ज़ न ले । 

                                

    ( 56 ) तीन आदतें मर्दो में बुरी मगर औरतों में अच्छी हैं : ( 1 ) बुख़्ल ( 2 ) खुद पसन्दी और ( 3 ) बुज़दिली ।     वज़ाहत : क्यूं कि औरत बख़ील ( या'नी कन्जूस ) होगी तो अपने और शौहर के माल की हिफाज़त करेगी । खुद पसन्द होगी तो हर किसी से नर्म गुफ्तगू ना पसन्द करेगी और बुज़दिल होगी तो हर शै से घबराएगी , लिहाज़ा घर से बाहर नहीं निकलेगी और अपने शौहर के डर से तोहमत की जगहों से बचेगी । 

    ( 57 ) ऐ ताजिरो ! अपना हक़ लो और दूसरों का हक़ दो , सलामती में रहोगे और थोड़े नफ्अ को मत ठुक्राओ वरना ज़ियादा नफ्अ से महरूम हो जाओगे । 

    ( 58 ) तुम्हारा सच्चा दोस्त वोह है जो तुम्हारा साथ दे और तुम्हारे फाएदे के लिये खुद को नुक्सान पहुंचाए । जब तुम्हें गर्दिशे ज़माना पहुंचे ( या'नी तुम्हारे हालात तंग हो जाएं ) तो तुम्हारा सहारा बने और तुम्हारी हिफ़ाज़त के लिये अपनी चादर फैला दे । 

    ( 59 ) जब तुम में से किसी के पेट में दर्द हो तो अपनी बीवी से उस के महर में से कुछ रकम मांगे और उस रकम का शद ख़रीदे और उस शहद को बारिश के पानी के साथ मिला कर पिये । यूं उस के पीने में हनाअ ( 1 ) , शिफ़ा और मुबारक पानी का इज्तिमाअ हो जाएगा ।  

    ( 60 ) लोगो ! तुम आपस में शहद की मख्खियों की तरह हो जाओ , अगर्चे दूसरे परिन्दे इन्हें कमज़ोर व हक़ीर जानते हैं लेकिन अगर उन्हें येह मा'लूम हो जाए कि शहद की मख्खियों के पेट में अल्लाह पाक ने बड़ी बरकत रखी है तो कभी उन्हें हक़ीर न जानते । 

    ( 61 ) ऐ कुरआन सीखने वालो ! अहकामे कुरआनी पर अमल करो , आलिम वोही है जो इल्म हासिल करने के बाद उस पर अमल करे और अपने इल्म को अपने अमल की मुवाफ़क़त में पूरा उतारे ( या'नी उस का इल्म व अमल दोनों मुवाफ़िक़ हो जाएं ) । 

    ( 62 ) " तौफीके इलाही " बेहतरीन रहबर है , " खुश अख़्लाक़ी " बेहतरीन दोस्त है , “ अक्लो शुऊर " बेहतरीन साथी है , “ अदब " बेहतरीन मीरास है , और " गम " तकब्बुर से भी ज़ियादा बदतर है । 

    ( 63 ) मुसीबत और परेशानी भी एक मकाम पर पहुंच कर ख़त्म हो जाती । इस लिये अक्ल मन्द को चाहिये कि मुसीबत की हालत में सब्र करे ताकि मुसीबत अपनी मुद्दत पर चली जाए वरना मुद्दत ख़त्म होने से पहले मुसीबत को दूर करने की कोशिश मुसीबत को और बढ़ाती है । 


    इमामे हसन Imam Hasan मुज्तबा को नसीहतें 

    ( 64 ) बद बख्त इब्ने मुल्जिम के ज़ख्मी करने पर नवासए रसूल हज़रत इमामे हसन मुज्तबा अपने प्यारे अब्बाजान हज़रते मौला अली Hazrat Ali की ख़िदमत में रोते हुए हाज़िर हुए तो हज़रते अली Hazrat Ali ने अपने लख्ते जिगर से इर्शाद फ़रमाया : बेटा 8 बातें याद रखना : 

    ( 1 ) सब से बड़ी दौलत " अक्ल मन्दी " है 

    ( 2 ) सब से बड़ी गुर्बत " बे वुकूफ़ी " है 

    ( 3 ) सब से ज़ियादा वहशतो घबराहट " तकब्बुर " है 

    ( 4 ) सब से ज़ियादा बुजुर्गी व करम " खुश अख़्लाक़ी और अच्छा किरदार " है । बेटा ! इन चार चीज़ों से हमेशा बचना : ( 1 ) बे वुकूफ़ की दोस्ती से , अगर्चे वोह नफ्अ पहुंचाना चाहता है लेकिन आख़िर कार उस से तक्लीफ़ ही पहुंचती है ( 2 ) झूटे साथी से , क्यूं कि वोह करीब को दूर और दूर को करीब कर देता है ( 3 ) कन्जूस के साथ से , इस लिये कि वोह तुम से उन चीज़ों को छुड़ा देता है जिन की तुम्हें सख़्त ज़रूरत हो और ( 4 ) फ़ाजिर ( या'नी गुनाहगार ) की दोस्ती से इस लिये कि वोह तुम्हें थोड़ी चीज़ के बदले बेच डालेगा ।

    ( 65 ) हज़रत अलि Hazrat Ali ने फरमाया, ज़ियादा होशियारी दर अस्ल “ बद गुमानी " है ।

    ( 66 ) महब्बत दूर के ख़ानदान वाले को करीब कर देती है और दुश्मनी खानदान के करीबी रिश्तेदार को दूर हटा देती है । हाथ जिस्म से बहुत ज़ियादा करीब है मगर गल सड़ जाने पर काट दिया जाता और आखिर कार दाग दिया जाता है ।

    ( 67 ) जब मुझ से कोई ऐसी बात पूछी जाए जिस के जवाब में कहता हूं कि अल्लाह पाक बेहतर जानता है कि मैं इस मस्अले से ना वाकिफ़ हूं तो उस वक़्त मुझे खूब राहत पहुंचती है और मेरा येह जवाब खुद मुझे बहुत पसन्द व मरगूब है ।

    ( 68 ) हज़रत अलि Hazrat Ali ने फरमाया, लोगों में अदलो इन्साफ़ करने वाले पर लाज़िम है कि जो दूसरों के लिये पसन्द करे वोही अपने लिये पसन्द करे ।

    ( 69 ) हज़रत अलि Hazrat Ali ने फरमाया, तुम आख़िरत के बेटे बनो ! दुन्या के नहीं इस लिये कि आज ( या'नी अमल नहीं । दुन्या में ) अमल है , हिसाब नहीं और कल ( या'नी आख़िरत में ) हिसाब है 

    ( 70 ) रियाकार की तीन अलामतें हैं जब अकेला हो तो इबादत में सुस्ती करे और नवाफ़िल बैठ कर पढ़े और जब लोगों में हो तो सुस्ती न करे बल्कि अमल ज़ियादा करे और जब लोग उस की तारीफ़ करें तो इबादत ज़ियादा करे , अगर लोग बुराई करें तो छोड़ दे ।

    ( 71 ) जो जन्नत का उम्मीद वार हुवा उस ने नेकियों में जल्दी की , जो जहन्नम से डरा उस ने खुद को ना जाइज़ ख्वाहिशात से रोक दिया और जिसे मौत का यकीन आ गया उस ने लज्जाते दुन्या को ख़त्म कर दिया ।

    ( 72 ) हज़रत अली Hazrat Ali ने फरमाया आंखें शैतान का जाल हैं आंख सरीउल असर ( जल्द असर क़बूल करने वाला ) उज्व है और बहुत ही जल्द हार जाता है , जिस किसी ने अपने जिस्मानी आ'ज़ा को अल्लाह पाक की इबादत में इस्ति'माल किया उस की उम्मीद पूरी हुई और जिस ने अपने आ जाए बदन को ख्वाहिशात के पीछे लगा दिया उस के आ'माल बातिल हो गए 


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