Khwaja Garib Nawaz गरीब नवाज़ ख्वाजा मोईनुद्दीन अजमेरी चिश्ती रहमतुल्ला अलय की बीलखूसूसी ज़िन्दगी पर एक नजर और उनकी सादगी और बेशुमार करामाते,
Khwaja Garib Nawaz ख्वाजा गरीब नवाज़ की सादगी भरी ज़िन्दगी और करामाते बेशुमार मालूमात
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Khwaja Garib Nawaz |
आप छटी सदी हिजरी में हिन्द तशरीफ़ लाए और एक अज़ीमुश्शान रूहानी व समाजी इन्किलाब है का बाइस बने,
हत्ता कि हिन्द का ज़ालिमो जाबिर हुक्मरान भी आप की शख्सिय्यत से मरऊब हो कर ताइब हुवा और अकीदत मन्दों में शामिल है हो गया ।
आइये ! ख्वाजा गरीब नवाज़ (Khwaja Garib Nawaz) की ज़िन्दगी के हसीन पहलूओं को मुलाहज़ा कीजिये ।
ख्वाजा गरीब नवाज़ मोईनुद्दीन चिश्ती की विलादते बासआदत
हज़रते सय्यदुना ख्वाजा गरीब नवाज़ सय्यिद मुईनुद्दीन हसन सन्जरी चिश्ती अजमेरी 537 हिजरी ब मुताबिक़ 1142 ईसवी में सिजिस्तान या सीस्तान के अलाके ' सन्जर ' में पैदा हुवे ।
आप (Khwaja Garib Nawaz) का इस्मे गिरामी हसन है और आप नजीबुत्तरफैन हसनी व हुसैनी सय्यिद हैं ।
आप के अल्काब बहुत ज़ियादा हैं मगर मशहूरो मा'रूफ़ अल्काब में मुईनुद्दीन , ख्वाजा गरीब नवाज़ , सुल्तानुल हिन्द , वारिसुन्नबी और अताए रसूल वगैरा शामिल हैं ।
आप का सिलसिलए नसब सय्यिद मुईनुद्दीन हसन बिन सय्यिद गियासुद्दीन हसन बिन सय्यिद नजमुद्दीन ताहिर बिन सय्यिद अब्दुल अज़ीज़ है ।
ख्वाजा गरीब नवाज़ के वालिदेन (माँ-बाप)
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Khwaja Garib Nawaz |
वलिय्युल्लाह के जूठे की बरकत
फिर आप है ने बाग , पन चक्की और सारा साजो सामान बेच कर इस की कीमत फुकरा व मसाकीन में तक्सीम फ़रमा दी और हुसूले इल्मे दीन की ख़ातिर राहे ख़ुदा के मुसाफ़िर बन गए ।
मेरे प्यारे भाइयों बयान कर्दा वाकिए से हमें येह दर्स मिलता है कि जब हम किसी मजलिस में बैठे हों और हमारे बुजुर्ग , असातिजा , मां - बाप , या पीरो मुर्शिद आ जाएं तो हमें उन की ता'ज़ीम के लिये खड़ा हो जाना चाहिये और उन्हें इज्जतो एहतिराम के साथ बिठाना चाहिये । याद रखिये ! अदब ऐसी शै है जिस के जरीए इन्सान दुन्यवी व उखरवी ने'मतें हासिल कर लेता है और जो इस सिफ़त से महरूम होता है वोह इन ने'मतों का भी हक़दार नहीं होता ।
शायद इसी लिये कहा जाता है कि ' बा अदब बा नसीब , बे अदब बे नसीब ' यकीनन अदब ही इन्सान को मुमताज़ बनाता है , जिस तरह रैत है के ज़रों में मोती अपनी चमक और अहम्मिय्यत नहीं खोता इसी तरह बा अदब शख्स भी लोगों में अपनी शनाख्त को काइम व दाइम रखता है । लिहाजा हमें भी अपने बड़ों का अदबो एहतिराम करने और छोटों के साथ शफ्कृत व महब्बत से पेश आना चाहिये ।
हुसूले इलम के लिये सफ़र
हाकिम आप (Khwaja Garib Nawaz) की नज़रे जलालत की ताब न ला सका और बेहोश हो कर ज़मीन पर गिर पड़ा । खादिमों ने मुंह पर पानी के छींटे मारे , जूं ही होश आया फ़ौरन आप के क़दमों में गिर कर बद मज़हबिय्यत और गुनाहों से ताइब हो गया और आप के दस्ते ?
मुबारक पर बैअत हो गया । पीरो मुर्शिद हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज़ (Khwaja Garib Nawaz) की इनफ़िादी कोशिश से उस ने जुल्मो जोर से जम्अ की हुई सारी दौलत अस्ल मालिकों को लौटा दी और आप की सोहबत को लाज़िम पकड़ लिया । आप ने कुछ ही अर्से में उसे फुयूजे बातिनी से माला माल कर के खिलाफ़त अता फरमाई और वहां से रुख्सत हो गए ।
या'नी गन्ज बख़्श दाता अली हिजवेरी का फैज़ सारे आलम पर जारी है और आप नूरे खुदा के मज़हर हैं , आप का मकाम येह है कि राहे तरीक़त में जो नाक़िस हैं उन के लिये पीरे कामिल और जो खुद पीरे कामिल हैं उन के लिये भी राहनुमा हैं ।
श्शेर
शेर
दीगर बुजुर्गाने दीन और औलियाए कामिलीन की तरह आप (Khwaja Garib Nawaz) भी ज़ियादा से ज़ियादा इबादते इलाही बजा लाने की खातिर बहुत ही कम खाना तनावुल फ़रमाते ताकि खाने की कसरत की वजह से सुस्ती , नींद या गुनूदगी इबादत में रुकावट का बाइस न बने , चुनान्चे , आप के बारे में मन्कूल है कि सात रोज़ बाद दो ढाई तोला वन के बराबर रोटी पानी में भिगो कर खाया करते ।
अल्लाह वालों की शान है कि वोह ज़ाहिरी जैब व आराइश के बजाए बातिन की सफ़ाई पर जोर देते हैं । हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज़ (Khwaja Garib Nawaz) के लिबास मुबारक में भी इन्तिहा दरजे की सादगी । नज़र आती थी आप का लिबास सिर्फ दो चादरों पर
मुश्तमिल होता और उस में भी कई कई पैवन्द लगे होते गोया लिबास से भी सुन्नते मुस्तफ़ा से बे पनाह महब्बत की झलक दिखाई देती थी नीज़ पैवन्द लगाने में भी इस कदर सादगी इख्तियार करते कि जिस रंग का कपड़ा मुयस्सर होता उसी को शरफ़ बख़्श देते ।
आप (Khwaja Garib Nawaz) अपने पड़ोसियों का बहुत ख़याल रखा करते , उन की खबरगीरी फ़रमाते , अगर किसी पड़ोसी का इन्तिकाल हो जाता तो उस के जनाजे के साथ ज़रूर तशरीफ़ ले जाते , उस की है तदफ़ीन के बाद जब लोग वापस हो जाते तो आप तन्हा उस की कब्र के पास तशरीफ़ फ़रमा हो कर उस के हक़ में मगफिरत व नजात की दुआ फ़रमाते नीज़ उस के अहले खाना को सब्र की तल्कीन करते और है उन्हें तसल्ली दिया करते ।
(Khwaja Garib Nawaz) के हिल्म व बुर्दबारी जूदो सखावत हूँ और दीगर अख्लाके आलिय्या से मुतअस्सिर हो कर लोग उम्दा अख़्लाक़ के हामिल और पाकीज़ा सिफ़ात के पैकर हुवे और देहली से अजमेर तक के सफर के दौरान तकरीबन नव्वे लाख अफराद मुशर्रफ़ ब ? इस्लाम हुवे ।
आप (Khwaja Garib Nawaz) बहुत ही नर्म दिल और मुतहम्मिल मिजाज सन्जीदा तबीअत के मालिक थे । अगर कभी गुस्सा आता तो सिर्फ दीनी गैरत व हमिय्यत की बुन्याद पर आता अलबत्ता जाती तौर पर अगर कोई सख्त बात कह भी देता तो आप (Khwaja Garib Nawaz) बरहम न होते बल्कि उस वक्त भी हुस्ने अख़्लाक़ और खन्दा पेशानी का मुजाहरा करते हुवे सब्र का दामन हाथ से न जाने देते और ऐसा मा'लूम होता कि आप ने उस की ना जैबा बातें सुनी ही न हों ।
हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज़ Gharib Nawaz Khwaja Moinuddin Chishti पर खौफे खुदा इस कदर गालिब था कि आप हमेशा खुशिय्यते इलाही से कांपते और गिर्या व जारी करते , खल्के खुदा को खौफे खुदा की तल्कीन करते हुवे इरशाद फ़रमाया करते : ऐ लोगो ! अगर तुम जेरे खाक सोए हुवे लोगों का हाल जान लो तो मारे खौफ़ के खड़े खड़े पिघल जाओ ।
हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी अपने पीरो मुर्शिद हज़रते ख्वाजा गरीब नवाज़ (Khwaja Garib Nawaz) की सिफ़ाते मोमिनाना बयान करते हुवे फ़रमाते हैं कि मैं कई बरस तक ख्वाजा गरीब नवाज़ की खिदमते अक्दस में हाज़िर रहा लेकिन है है कभी आप की ज़बाने अक्दस से किसी का राज़ फ़ाश होते नहीं देखा , आप कभी किसी मुसलमान का भेद न खोलते
एक मरतबा हज़रते ख्वाजा मुईनुद्दीन हसन चिश्ती (Khwaja Garib Nawaz) अपने मुरीदीन की तरबिय्यत फ़रमा रहे थे । दौराने बयान जब जब आप की नज़र दाईं तरफ़ पड़ती तो बा अदब खड़े हो जाते । तमाम मुरीदीन येह देख कर हैरान थे कि पीरो मुर्शिद बार बार क्यूं खड़े हो रहे हैं ? मगर किसी को पूछने की जुरअत न हो सकी ।
अल गरज़ जब सब लोग वहां से चले गए , तो एक मन्जूरे नज़र मुरीद अर्ज़ गुज़ार हुवा : हुजूर ! हमारी तरबिय्यत के दौरान आप ने बारहा कियाम फ़रमाया इस में क्या हिक्मत थी ? हज़रते मुईनुद्दीन ने फ़रमाया उस तरफ़ पीरो मुर्शिद शैख़ उस्मान हारवनी का मज़ारे मुबारक है जब भी उस जानिब रुख होता तो मैं ता'ज़ीम के लिये उठ जाता , पस मैं अपने पीरो मुर्शिद के रौज़ए मुबारक की ता'ज़ीम में कियाम करता था ।
जिस वक्त हज़रते सय्यिदुना गौसे आ'ज़म Gaus Paak ने बगदादे मुक़द्दस में इरशाद फ़रमाया मेरा येह कदम अल्लाह के हर वली की गर्दन पर है । तो उस वक्त है । ख्वाजा गरीब नवाज़ सय्यिदुना मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी Gharib Nawaz Khwaja Moinuddin Chishti अपनी जवानी के दिनों में मुल्के खुरासान में वाकेअ एक पहाड़ी के दामन में इबादत किया करते थे , जब आप ने येह फ़रमाने आली सुना तो अपना सर झुका लिया और फ़रमाया ' बल्कि आप के कदम मेरे सर और आंखों पर हैं ।
एक बार ख्वाजा गरीब नवाज़ (Khwaja Garib Nawaz) मक्कए मुकर्रमा की नूर बार फ़ज़ाओं में मुराकबा कर रहे थे कि हातिफे गैब से आवाज़ आई : मांग क्या मांगता है ? हम तुझ से बहुत खुश हैं , जो तलब करेगा पाएगा । अर्ज़ की : या इलाही मेरे तमाम मुरीदों को बख़्श जवाब आया : बख़्श दिया । अर्ज़ की : मौला ! जब तक मेरे तमाम मुरीद जन्नत में न चले जाएं मैं जन्नत में कदम न रखूगा ।
सुल्तानुल हिन्द हज़रते सय्यदुना ख्वाजा गरीब नवाज़ (Khwaja Garib Nawaz), ने अपनी ज़िन्दगी के तकरीबन 81 बरस राहे खुदा में इल्मे दीन हासिल करने और मख्लूक को राहे रास्त पर लाने के लिये बसर कर दिये बल्कि कई किताबें भी तहरीर फ़रमाईं उन में से चन्द किताबों के नाम येह हैं ।
आप (Khwaja Garib Nawaz) की तसानीफ़
- अनीसुल अरवाह ( पीरो मुर्शिद ख्वाजा उस्मान हारवनी के मल्फूजात )
- कशफुल असरार ( तसव्वुफ़ के मदनी फूलों का गुल्दस्ता )
- गन्जुल असरार ( सुल्तान शम्सुद्दीन अल तमश की तालीम व तल्कीन के लिये लिखी )
- रिसालए आफ़ाक़ व अन्फुस ( तसव्वुफ़ के निकात पर मुश्तमिल )
- रिसालए तसव्वुफ़ मन्जूम
- हदीसुल मआरिफ
- रिसालए मौजूदिय्या )
सुल्तानुल हिन्द , ख्वाजा गरीब नवाज़ (Khwaja Garib Nawaz) की बारगाह में अक़ीदत मन्दों और मुरीदों का हर वक्त हुजूम रहता जिन की ज़ाहिरी व बातिनी इस्लाह के लिये मल्फूज़ात का सिलसिला जारी व सारी रहता । ज़बाने हक्के तर्जमान से जो अल्फ़ाज़ निकलते उसे आप के ख़लीफ़ए अक्बर व सज्जादा नशीन हज़रते ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी फ़ौरन लिख लिया करते । यूं हज़रते ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी ने अपने पीरो मुर्शिद के मल्फूज़ात पर मुश्तमिल एक किताब तरतीब दी जिस का नाम ' दलीलुल आरिफ़ीन ' रखा । इस गुलशने अजमेरी से चन्द महकते फूल मुलाहज़ा कीजिये ।
- जो बन्दा रात को बा तहारत सोता है , तो फ़िरिश्ते गवाह रहते हैं और सुब्ह अल्लाह से अर्ज करते हैं ऐ अल्लाह - इसे बख़्श दे येह बा तहारत सोया था ।
- नमाज़ एक राज़ की बात है जो बन्दा अपने परवर दगार से कहता है , चुनान्चे , हदीसे पाक में आया है या'नी नमाज़ पढ़ने वाला अपने परवर दगार से राज़ की बात कहता है ।
- जो शख्स झूटी कसम खाता है वोह अपने घर को वीरान करता है और उस के घर से खैरो बरकत उठ जाती है ।
- मुसीबत ज़दा लोगों की फ़रयाद सुनना और उन का साथ देना , हाजत मन्दों की हाजत रवाई करना , भूकों को खाना खिलाना , असीरों को कैद से छुड़ाना येह बातें अल्लाह के नज़दीक बड़ा मर्तबा रखती हैं ।
- नेकों की सोहबत नेक काम से बेहतर और बुरे लोगों की सोहबत बदी करने से भी बदतर है ।
- बद बख़्ती की अलामत येह है कि इन्सान गुनाह करने के बा वुजूद भी अल्लाह की बारगाह में खुद को मक़बूल समझे ।
- खुदा का दोस्त वोह है जिस में येह तीन खूबियां हों : सखावत दरया जैसी , शफ़्क़त आफ्ताब की तरह और तवाज़ोअ ज़मीन की मानिन्द
हुजूर सय्यिदी ख्वाजा गरीब नवाज़ (Khwaja Garib Nawaz) के खुलफ़ा में सब से करीबी और महबूब हज़रते सय्यिदुना कुतबुद्दीन बख्तियार काकी थे । ख्वाजा साहिब के विसाले जाहिरी के बाद आप ही सज्जादा नशीन हुवे । इन के इलावा दीगर जलीलुल क़द्र खुलफा में हज़रते काजी हमीदुद्दीन नागोरी , सुल्तानुत्तारिकीन हज़रत शैख़ हमीदुद्दीन सूफ़ी और हज़रत शैख अब्दुल्लाह बयाबानी ( साबिका अजयपाल जोगी ) का शुमार होता है ।
जब अल्लाह के मुकर्रब बन्दे अपनी तमाम तर जिन्दगी उस के अहकाम की बजा आवरी और उस के ज़िक्र में बसर करते हैं , दुन्यवी लज्जतों और आसाइशों को छोड़ हैकर तब्लीग व इशाअते दीन में गुज़ार देते हैं तो अल्लाह उन्हें बतौरे इन्आम आख़िरत में तो बुलन्दो बाला दरजात और बे शुमार हुने मतों से सरफ़राज़ फ़रमाता ही है लेकिन दुन्या में भी उन के मकाम व मर्तबे को लोगों पर ज़ाहिर करने के लिये कुछ खसाइस व करामात अता है फ़रमाता है । ख्वाजा गरीब नवाज़ (Khwaja Garib Nawaz) ने बे शुमार करामात से नवाज़ रखा था , आइये , उन में से चन्द करामात पढ़िये और अपने दिलों में औलियाए किराम की महब्बत को जगाइये !
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Khwaja Garib Nawaz |
मुर्दा जिन्दा कर दिया
अजाबे कब्र से रिहाई
छागल में तालाब
अल्लाह वालों का तसर्राफ
दिन गुज़रे थे कि सुल्तान मोइजुद्दीन मुहम्मद गौरी ने उस शहर पर हम्ला कर दिया । राजा अपनी फ़ौज के हमराह मुकाबला करने आया मगर लश्करे इस्लाम की जुरअत व बहादुरी के आगे ज़ियादा देर न ठहर सका बिल आखिर हथयार डाल कर इब्रत नाक शिकस्त से दो चार हुवा और सिपाहियों ने उसे ज़िन्दा गिरिफ्तार कर के इन्तिहाई जिल्लत के साथ सुल्तान गौरी के सामने पेश कर दिया ।
हर रात तवाफ़े का'बा
हज़रते सय्यदुना ख्वाजा गरीब नवाज़ (Khwaja Garib Nawaz) का कोई मुरीद या अहले महब्बत अगर हज या उमरह की सआदत पाता और तवाफ़े का'बा के लिये हाज़िर होता तो देखता कि ख्वाजा गरीब नवाज़ : तवाफ़े का'बा में मश्गूल हैं , उधर अहले खाना और दीगर अहबाब येह समझते कि आप अपने हुजरे में मौजूद हैं । बिल आखिर एक दिन येह राज़ खुल ही गया कि आप बैतुल्लाह शरीफ़ हाज़िर हो कर सारी रात तवाफ़े का " में मश्गूल रहते हैं और सुव्ह अजमेर शरीफ़ वापस आ कर बा जमाअत नमाजे फ़ज़ अदा फ़रमाते हैं ।
अनोखा खजाना
हज़रते सय्यिदुना ख्वाजा गरीब नवाज़ के आस्तानए मुबारका पर रोज़ाना इस कदर लंगर का एहतिमाम होता कि ।शहर भर से गुरबा व मसाकीन आते और सैर हो कर खाते । खादिम जब अख़राजात के लिये आप की बारगाह में दस्त बस्ता अर्ज करता तो आप मुसल्ले का कनारा उठा देते जिस के नीचे अल्लाह की रहमत से खज़ाना ही खज़ाना नज़र आता । चुनान्चे , खादिम आप (Khwaja Garib Nawaz) के हुक्म से हस्बे ज़रूरत ले लेता ।
विसाले पुर मलाल
आप के विसाल की शब बा'ज़ बुजुर्गों ने ख्वाब में अल्लाह के महबूब , दानाए गुयूब सल्लल्लाहो ताला अलै वसल्लम को येह फ़रमाते सुना : मेरे दीन का मुईन हसन सन्जरी आ रहा है मैं अपने मुईनुद्दीन के इस्तिकबाल के लिये आया हूं । 6 रजबुल मुरज्जब 633 हिजरी ब मुताबिक़ 16 मार्च 1236 ईसवी बरोज़ पीर फज्र के वक्त मुहिब्बीन इन्तिज़ार में थे कि पीरो मुर्शिद आ कर नमाजे फ़ज्र पढ़ाएंगे मगर अपसोस ! उन का इन्तिज़ार करना बे सूद रहा । काफ़ी देर गुज़र जाने के बाद जब ख्वाजा गरीब नवाज़ (Khwaja Garib Nawaz) के हुजरे शरीफ़ का दरवाज़ा खोल कर देखा गया तो गम का समन्दर उमंड आया , हज़रते सय्यिदुना ख्वाजए ख्वाजगान सुल्तानुल हिन्द , मुईनुद्दीन हसन चिश्ती अजमेरी विसाल फ़रमा चुके थे । और देखने वालों ने येह हैरत अंगेज़ रूहानी मन्ज़र अपनी आंखों से देखा कि आप की नूरानी पेशानी पर येह इबारत नक्श थी या'नी अल्लाह का महबूब बन्दा महब्बते इलाही में विसाल कर गया ।
मजार शरीफ़ और उर्स मुबारक
ख्वाजा के सदके सिहहत याबी
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