Khwaja Garib Nawaz ख्वाजा गरीब नवाज़ की सादगी भरी ज़िन्दगी और करामाते बेशुमार मालूमात

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Khwaja Garib Nawaz गरीब नवाज़ ख्वाजा मोईनुद्दीन अजमेरी चिश्ती रहमतुल्ला अलय की बीलखूसूसी ज़िन्दगी पर एक नजर और उनकी सादगी और बेशुमार करामाते,

Khwaja Garib Nawaz ख्वाजा गरीब नवाज़ की सादगी भरी ज़िन्दगी और करामाते बेशुमार मालूमात

Khwaja Garib Nawaz
Khwaja Garib Nawaz

आग़ाज़े हज़रात Khwaja Garib Nawaz Moinuddin Chishti - अर्सए दराज से पाक व हिन्द अल्लाह के नेक बन्दों की तवज्जोह का मर्कज़ रहा है । 
मुख़्तलिफ़ अदवार में यके बाद दीगरे बे शुमार औलियाए किबार ने हिन्द का रुख किया और लोगों को न सिर्फ दीने इस्लाम की दावत दी,
बल्कि कुफ्रो शिर्क की तारीकियों में भटकने वाले अन गिनत गैर मुस्लिमों को अल्लाह - की वहदानिय्यत और प्यारे आका सल्लल्लाहो अलैवसल्लम - की रिसालत से आगाह कर के उन्हें दाइरए इस्लाम में दाखिल भी फ़रमाया ।

ताजुल औलिया , सय्यदुल अस्फ़िया , वारिसुन्नबी , अताए रसूल , सुल्तानुल हिन्द , हज़रते सय्यिदुना ख्वाजा गरीब नवाज़ सय्यिद मुईनुद्दीन हसन सन्जरी चिश्ती अजमेरी का शुमार भी इन्ही बुजुर्गों में होता है ।

आप छटी सदी हिजरी में हिन्द तशरीफ़ लाए और एक अज़ीमुश्शान रूहानी व समाजी इन्किलाब है का बाइस बने,

हत्ता कि हिन्द का ज़ालिमो जाबिर हुक्मरान भी आप की शख्सिय्यत से मरऊब हो कर ताइब हुवा और अकीदत मन्दों में शामिल है हो गया । 

आइये ! ख्वाजा गरीब नवाज़ (Khwaja Garib Nawaz) की ज़िन्दगी के हसीन पहलूओं को मुलाहज़ा कीजिये ।

    ख्वाजा गरीब नवाज़ मोईनुद्दीन चिश्ती की विलादते बासआदत

    हज़रते सय्यदुना ख्वाजा गरीब नवाज़ सय्यिद मुईनुद्दीन हसन सन्जरी चिश्ती अजमेरी 537 हिजरी ब मुताबिक़ 1142 ईसवी में सिजिस्तान या सीस्तान के अलाके ' सन्जर ' में पैदा हुवे ।

    आप (Khwaja Garib Nawaz) का इस्मे गिरामी हसन है और आप नजीबुत्तरफैन हसनीहुसैनी सय्यिद हैं । 

    आप के अल्काब बहुत ज़ियादा हैं मगर मशहूरो मा'रूफ़ अल्काब में मुईनुद्दीन , ख्वाजा गरीब नवाज़ , सुल्तानुल हिन्द , वारिसुन्नबी और अताए रसूल वगैरा शामिल हैं । 

    आप का सिलसिलए नसब सय्यिद मुईनुद्दीन हसन बिन सय्यिद गियासुद्दीन हसन बिन सय्यिद नजमुद्दीन ताहिर बिन सय्यिद अब्दुल अज़ीज़ है ।

    ख्वाजा गरीब नवाज़ के वालिदेन (माँ-बाप)

    आप (Khwaja Garib Nawaz) के वालिदे माजिद सय्यिद गियासुद्दीन जिन का शुमार ' सन्जर ' के उमरा व रुअसा में होता था इन्तिहाई मुत्तकी व परहेज़गार और साहिबे करामत बुजुर्ग थे ।

    नीज़ आप , (Khwaja Garib Nawaz) की वालिदए माजिदा भी अकसर अवकात इबादतो रियाज़त में मश्गूल रहने वाली नेक सीरत खातून थीं ।
    जब हज़रते सय्यदुना ख्वाजा गरीब नवाज़ ) पन्दरह साल की उम्र को पहुंचे तो वालिदे मोहतरम का विसाले पुर मलाल हो गया । 
    विरासत में एक बाग और एक पन चक्की मिली आप (Khwaja Garib Nawaz ने उसी को ज़रीअए मआश बना लिया और खुद ही बाग की निगहबानी करते और दरख्तों की आबयारी फ़रमाते ।

    Khwaja Garib Nawaz
    Khwaja Garib Nawaz

    वलिय्युल्लाह के जूठे की बरकत

    एक रोज़ हज़रते सय्यिदुना ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी Gharib Nawaz Khwaja Moinuddin Chishti RA बाग में पौदों को पानी दे रहे थे कि एक मजजूब बुजुर्ग हज़रते सय्यिदुना इब्राहीम कन्दोजी , बाग में तशरीफ़ लाए । जूं ही हज़रते सय्यिदुना ख्वाजा मुईनुद्दीन (Khwaja Garib Nawaz) की नज़र अल्लाह के इस मक्बूल बन्दे पर पड़ी , फौरन दौड़े , सलाम कर के दस्त बोसी की और निहायत अदबो एहतिराम के साथ दरख्त के साए में बिठाया ।
    फिर इन की ख़िदमत में इन्तिहाई आजिज़ी के साथ ताज़ा अंगूरों का एक खोशा पेश किया और दो जानू बैठ गए । अल्लाह के वली को इस नौ जवान बागबान का अन्दाज़ भा गया , खुश हो कर खली ( तल या सरसों का फूक ) का एक टुकड़ा चबा कर आप (Khwaja Garib Nawaz) के मुंह में डाल दिया । खली का टुकड़ा जूं ही हल्क से नीचे उतरा , आप (Khwaja Garib Nawaz) के दिल की कैफ़िय्यत यक्दम बदल गई और दिल दुन्या की महब्बत से उचाट हो गया ।
    फिर आप है ने बाग , पन चक्की और सारा साजो सामान बेच कर इस की कीमत फुकरा व मसाकीन में तक्सीम फ़रमा दी और हुसूले इल्मे दीन की ख़ातिर राहे ख़ुदा के मुसाफ़िर बन गए ।
    मेरे प्यारे भाइयों बयान कर्दा वाकिए से हमें येह दर्स मिलता है कि जब हम किसी मजलिस में बैठे हों और हमारे बुजुर्ग , असातिजा , मां - बाप , या पीरो मुर्शिद आ जाएं तो हमें उन की ता'ज़ीम के लिये खड़ा हो जाना चाहिये और उन्हें इज्जतो एहतिराम के साथ बिठाना चाहिये । याद रखिये ! अदब ऐसी शै है जिस के जरीए इन्सान दुन्यवी व उखरवी ने'मतें हासिल कर लेता है और जो इस सिफ़त से महरूम होता है वोह इन ने'मतों का भी हक़दार नहीं होता ।
    शायद इसी लिये कहा जाता है कि ' बा अदब बा नसीब , बे अदब बे नसीब ' यकीनन अदब ही इन्सान को मुमताज़ बनाता है , जिस तरह रैत है के ज़रों में मोती अपनी चमक और अहम्मिय्यत नहीं खोता इसी तरह बा अदब शख्स भी लोगों में अपनी शनाख्त को काइम व दाइम रखता है । लिहाजा हमें भी अपने बड़ों का अदबो एहतिराम करने और छोटों के साथ शफ्कृत व महब्बत से पेश आना चाहिये ।

    हुसूले इलम के लिये सफ़र

    हज़रते सय्यिदुना ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती Gharib Nawaz Khwaja Moinuddin Chishti ने 15 बरस की उम्र में हुसूले इल्म के लिये सफ़र इख्तियार किया और समरकन्द में हज़रते सय्यिदुना मौलाना शरफुद्दीन की बारगाह में हाज़िर हो कर बा काइदा इल्मे दीन का आगाज़ किया । पहले पहल कुरआने पाक हिफ़्ज़ किया और बा'दे अज़ां इन्ही से दीगर उलूम हासिल किये ।
    मगर जैसे जैसे इल्मे दीन सीखते गए जौके इल्म बढ़ता गया , चुनान्चे , इल्म की प्यास को बुझाने के लिये बुख़ारा का रुख किया और शोह्रए आफ़ाक़ आलिमे दीन मौलाना हुसामुद्दीन बुख़ारी के सामने ज़ानूए तलम्मुज़ तह किया और फिर इन्ही की शक्कतों के साए में आप Khwaja Garib Nawaz ने थोड़े ही असें में तमाम दीनी उलूम की तक्मील कर ली । इस तरह आप Khwaja Garib Nawaz ने मजमूई तौर पर तकरीबन पांच साल समरकन्द और बुख़ारा में हुसूले इल्म के लिये कियाम फ़रमाया ।

    तालिब मतलूब के दर पर

    इस अर्से में उलूमे ज़ाहिरी की तक्मील तो हो चुकी थी मगर जिस तड़प की वजह से घर बार को खैरबाद कहा था उस की तस्कीन अभी बाक़ी थी । चुनान्चे , किसी ऐसे तबीबे हाज़िक ( माहिर ) की तलाश में निकल खड़े हुवे जो दर्दे दिल की दवा कर सके । चुनान्चे , मुशिदे कामिल की जुस्त्जू में बुखारा से हिजाज़ का रखते सफ़र बांधा । रास्ते में जब नैशापूर ( सूबए खुरासान रज़वी ईरान ) के नवाही अलाके ' हारवन ' से गुज़र हुवा और मर्दे कलन्दर कुत्बे वक़्त हज़रते सय्यिदुना उस्मान हारवनी चिश्ती का शोहरा सुना तो फ़ौरन हाज़िरे खिदमत हुवे और इन के दस्ते हक परस्त पर बैअत कर के सिलसिलए चिश्तिय्या में दाखिल हो गए ।

    यक दर गीर मोहकम गीर

    आप Khwaja Garib Nawaz कई साल तक मुर्शिदे कामिल की खिदमत में हाज़िर रहे और मा रिफ़त की मनाज़िल ते करते हुवे बातिनी उलूम से फैज़याब होते रहे । हज़रते सय्यिदुना ख्वाजा उस्मान हारवनी । जहां भी तशरीफ़ ले जाते आप इन का सामान अपने कन्धों पर उठाए साथ जाते नीज़ आप को कई मरतबा मुर्शिद के साथ हज की सआदत भी हासिल हुई ।
    आप ai Khwaja Garib Nawaz फ़रमाते हैं : जब मेरे पीरो मुर्शिद ख्वाजा उस्मान हारवनी ने मेरी ख़िदमत और अकीदत देखी तो ऐसी कमाले ने'मत अता फ़रमाई जिस की कोई इन्तिहा नहीं ।


    मुरीद हो तो ऐसा

    यकीनन जिस तरह हर मुहिब की चाहत होती है कि महबूब की नज़रों में समा जाऊं और शागिर्द की आरजू येह होती है कि उस्ताद है की आंखों का तारा बन जाऊं इसी तरह एक मुरीद की दिली ख्वाहिश येह होती है कि मैं अपने पीरो मुर्शिद का मन्जूरे नज़र बन हूँ जाऊं मगर ऐसे किस्मत के धनी बहुत कम होते हैं जिन की येह तमन्ना पूरी हो जाए ।
    हज़रते ख्वाजा मुईनुद्दीन हसन चिश्ती अजमेरी Gharib Nawaz Khwaja Moinuddin Chishti बारगाहे मुर्शिद में इस क़दर मक्बूल थे कि एक मौकअ पर खुद मुर्शिदे करीम ख्वाजा उस्मान हारवनी ने फ़रमाया : हमारा मुईनुद्दीन अल्लाह का महबूब है हमें अपने मुरीद पर फक्र.


    बारगाहे इलाही में मक्बूलिय्यत

    एक बार हज के मौकअ पर हज़रते सय्यिदुना ख्वाजा उस्मान हारवनी ने मीज़ाबे रहमत के नीचे आप (Khwaja Garib Nawaz) का हाथ पकड़ कर बारगाहे इलाही में दुआ की : ऐ मौला ! मेरे मुईनुद्दीन हसन को अपनी बारगाह में क़बूल फ़रमा । गैब से आवाज़ आई : मुईनुद्दीन हमारा दोस्त है , हम ने इसे कबूल किया ।

    बारगाहे रिसालत से हिन्द की सुल्तानी

    बारगाहे रिसालत में ख्वाजा मुईनुद्दीन (Khwaja Garib Nawaz) के मर्तबे का अन्दाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि एक मरतबा हज़रते सय्यिदुना ख्वाजा मुईनुद्दीन को मदीने शरीफ़ की हाज़िरी का शरफ़ मिला तो निहायत अदबो एहतिराम के साथ यूं सलाम अर्ज़ किया : इस पर रौज़ए अक्दस से सलाम के जवाब की आवाज़ आई : नीज़ हज़रते सय्यिदुना ख्वाजा गरीब नवाज Gharib Nawaz Khwaja Moinuddin Chishti को हिन्द की सुल्तानी भी बारगाहे रिसालत - ही से अता हुई ।

    सुल्तानुल हिन्द का सफर हिन्द

    आप (Khwaja Garib Nawaz) इस बिशारत के बाद हिन्द रवाना हुवे और समरकन्द , बुखारा , उरूसुल बिलाद बगदाद शरीफ़ , नैशापूर , तबरेज़ , औश , अस्फ़हान , सब्ज़वार , खुरासान , खिरकान , इस्तराबाद , बल्ख और गज़नी वगैरा से होते हुवे हिन्द के शहर अजमेर शरीफ़ ( सूबा राजस्थान ) पहुंचे और इस पूरे सफ़र में आप (Khwaja Garib Nawaz) ने सेंकड़ों औलियाउल्लाह और अकाबिरीने उम्मत से मुलाकात की । 

    हम अंरर उलमा व औलिया से मुलाकात

    आप (Khwaja Garib Nawaz) बगदादे मुअल्ला में हज़रते सय्यिदुना गौसे आज़म मुहूयुद्दीन सय्यद अब्दुल कादिर जीलानी की ख़िदमत में हाज़िर हुवे और पांच माह तक बारगाहे गौसिया से इक्तिसाबे फैज़ किया । तबरेज़ में शैख़ बदरुद्दीन अबू सईद तबरेज़ी की बारगाह से इल्म की मीरास हासिल की ।
    अस्फ़हान में शैख महमूद अस्फ़हानी के पास हाज़िर हुवे और खिरकान में शैख अबू सईद अबुल खैर और ख्वाजा अबुल हसन खिरकानी के मजारात पर हाज़िरी दी । इस्तराबाद में हज़रते अल्लामा शैख़ नासिरुद्दीन इस्तराबादी से कसबे फैज़ किया । हरात में शैखुल इस्लाम इमाम अब्दुल्लाह अन्सारी के मज़ार की ज़ियारत की और बल्ल में शैख़ अहमद खज़रविय्या की खानकाह में कियाम फ़रमाया ।


    हाकिमे सब्जवार की तौबा

    सफ़रे हिन्द के दौरान जब हज़रते सय्यिदुना ख्वाजा गरीब नवाज़ -- (Khwaja Garib Nawaz) का गुज़र अलाका सब्ज़वार ( सूबए खुरासान रज़वी ईरान ) से हुवा तो आप * ने वहां एक बाग में कियाम फरमाया जिस के वस्त में एक खुश नुमा हौज़ था । येह बाग हाकिमे सब्ज़वार का था जो बहुत ही ज़ालिम और बद मज़हब शख्स था । उस का मा मूल था कि जब भी बाग में आता तो शराब पीता और नशे में खूब शोरो गुल मचाता ।
    आप ने हौज़ से वुजू किया और नवाफ़िल अदा करने लगे । मुहाफ़िज़ों ने अपने हाकिम की सख़्त गीरी का हाल अर्ज़ किया और दरख्वास्त की , कि यहां से तशरीफ़ ले जाएं कहीं हाकिम आप को कोई नुक्सान न पहुंचा दे । आप (Khwaja Garib Nawaz) ने फ़रमाया : अल्लाह मेरा हाफ़िज़ो नासिर ( निगहबान व मददगार ) है । इसी दौरान हाकिम बाग में दाखिल हुवा और सीधा हौज़ की तरफ़ आया । अपनी ऐशो इशरत की जगह पर एक अजनबी दुरवेश को देखा तो आग बगूला हो गया और इस से पहले कि वोह कुछ कहता आप drufairs ने एक नज़र डाली और उस की काया पलट दी ।।
    हाकिम आप (Khwaja Garib Nawaz) की नज़रे जलालत की ताब न ला सका और बेहोश हो कर ज़मीन पर गिर पड़ा । खादिमों ने मुंह पर पानी के छींटे मारे , जूं ही होश आया फ़ौरन आप के क़दमों में गिर कर बद मज़हबिय्यत और गुनाहों से ताइब हो गया और आप के दस्ते ?

    मुबारक पर बैअत हो गया । पीरो मुर्शिद हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज़ (Khwaja Garib Nawaz) की इनफ़िादी कोशिश से उस ने जुल्मो जोर से जम्अ की हुई सारी दौलत अस्ल मालिकों को लौटा दी और आप की सोहबत को लाज़िम पकड़ लिया । आप ने कुछ ही अर्से में उसे फुयूजे बातिनी से माला माल कर के खिलाफ़त अता फरमाई और वहां से रुख्सत हो गए ।


    दाता के मजार पर ख्वाजा की हाजिरी

    इसी सफर में आप (Khwaja Garib Nawaz) ने हज़रत दाता गन्ज बख़्श सय्यिद अली हिजवेरी के मज़ारे अवदस पर न सिर्फ हाज़िरी दी बल्कि मुराकबा भी किया और हज़रते सय्यिदुना दाता गन्ज बख़्श का खुसूसी फैज़ हासिल किया । मज़ारे पुर अन्वार से रुख्सत होते वक्त दाता गन्ज बख़्श की अज़मत व फैजान का बयान इस शे'र के जरीए किया।

    या'नी गन्ज बख़्श दाता अली हिजवेरी का फैज़ सारे आलम पर जारी है और आप नूरे खुदा के मज़हर हैं , आप का मकाम येह है कि राहे तरीक़त में जो नाक़िस हैं उन के लिये पीरे कामिल और जो खुद पीरे कामिल हैं उन के लिये भी राहनुमा हैं ।

    श्शेर
    शेर


    तिलावते कुरआन और शब बेदारी

    हज़रते सय्यिदुना ख्वाजा गरीब नवाज़ Gharib Nawaz Khwaja Moinuddin Chishti का मा'मूल था कि सारी सारी रात इबादते इलाही में मसरूफ़ रहते हत्ताकि इशा के वुजू से नमाजे फ़ज़ अदा करते और तिलावते कुरआन से इस कदर शगफ़ था कि दिन में दो कुरआने पाक ख़त्म फरमा लेते , दौराने सफ़र भी कुरआने पाक की तिलावत जारी रहती ।

    पेट का कुफ्ले मदीना

    दीगर बुजुर्गाने दीन और औलियाए कामिलीन की तरह आप (Khwaja Garib Nawaz) भी ज़ियादा से ज़ियादा इबादते इलाही बजा लाने की खातिर बहुत ही कम खाना तनावुल फ़रमाते ताकि खाने की कसरत की वजह से सुस्ती , नींद या गुनूदगी इबादत में रुकावट का बाइस न बने , चुनान्चे , आप के बारे में मन्कूल है कि सात रोज़ बाद दो ढाई तोला वन के बराबर रोटी पानी में भिगो कर खाया करते ।


    लिबास मुबारक और सादगी

    अल्लाह वालों की शान है कि वोह ज़ाहिरी जैब व आराइश के बजाए बातिन की सफ़ाई पर जोर देते हैं । हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज़ (Khwaja Garib Nawaz) के लिबास मुबारक में भी इन्तिहा दरजे की सादगी । नज़र आती थी आप का लिबास सिर्फ दो चादरों पर

    मुश्तमिल होता और उस में भी कई कई पैवन्द लगे होते गोया लिबास से भी सुन्नते मुस्तफ़ा से बे पनाह महब्बत की झलक दिखाई देती थी नीज़ पैवन्द लगाने में भी इस कदर सादगी इख्तियार करते कि जिस रंग का कपड़ा मुयस्सर होता उसी को शरफ़ बख़्श देते ।


    पड़ोसियों से हुस्ने सुलूक

    आप (Khwaja Garib Nawaz) अपने पड़ोसियों का बहुत ख़याल रखा करते , उन की खबरगीरी फ़रमाते , अगर किसी पड़ोसी का इन्तिकाल हो जाता तो उस के जनाजे के साथ ज़रूर तशरीफ़ ले जाते , उस की है तदफ़ीन के बाद जब लोग वापस हो जाते तो आप तन्हा उस की कब्र के पास तशरीफ़ फ़रमा हो कर उस के हक़ में मगफिरत व नजात की दुआ फ़रमाते नीज़ उस के अहले खाना को सब्र की तल्कीन करते और है उन्हें तसल्ली दिया करते ।

    (Khwaja Garib Nawaz) के हिल्म व बुर्दबारी जूदो सखावत हूँ और दीगर अख्लाके आलिय्या से मुतअस्सिर हो कर लोग उम्दा अख़्लाक़ के हामिल और पाकीज़ा सिफ़ात के पैकर हुवे और देहली से अजमेर तक के सफर के दौरान तकरीबन नव्वे लाख अफराद मुशर्रफ़ ब ? इस्लाम हुवे ।


    अफ्व व बुर्दबारी

    आप (Khwaja Garib Nawaz) बहुत ही नर्म दिल और मुतहम्मिल मिजाज सन्जीदा तबीअत के मालिक थे । अगर कभी गुस्सा आता तो सिर्फ दीनी गैरत व हमिय्यत की बुन्याद पर आता अलबत्ता जाती तौर पर अगर कोई सख्त बात कह भी देता तो आप (Khwaja Garib Nawaz) बरहम न होते बल्कि उस वक्त भी हुस्ने अख़्लाक़ और खन्दा पेशानी का मुजाहरा करते हुवे सब्र का दामन हाथ से न जाने देते और ऐसा मा'लूम होता कि आप ने उस की ना जैबा बातें सुनी ही न हों ।


    खौफे खुदा

    हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज़ Gharib Nawaz Khwaja Moinuddin Chishti पर खौफे खुदा इस कदर गालिब था कि आप हमेशा खुशिय्यते इलाही से कांपते और गिर्या व जारी करते , खल्के खुदा को खौफे खुदा की तल्कीन करते हुवे इरशाद फ़रमाया करते : ऐ लोगो ! अगर तुम जेरे खाक सोए हुवे लोगों का हाल जान लो तो मारे खौफ़ के खड़े खड़े पिघल जाओ ।


    पर्दा पोशी

    हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी अपने पीरो मुर्शिद हज़रते ख्वाजा गरीब नवाज़ (Khwaja Garib Nawaz) की सिफ़ाते मोमिनाना बयान करते हुवे फ़रमाते हैं कि मैं कई बरस तक ख्वाजा गरीब नवाज़ की खिदमते अक्दस में हाज़िर रहा लेकिन है है कभी आप की ज़बाने अक्दस से किसी का राज़ फ़ाश होते नहीं देखा , आप कभी किसी मुसलमान का भेद न खोलते


    मुर्शिदे कामिल के मजारे मुबारक की ता'जीम

    एक मरतबा हज़रते ख्वाजा मुईनुद्दीन हसन चिश्ती (Khwaja Garib Nawaz) अपने मुरीदीन की तरबिय्यत फ़रमा रहे थे । दौराने बयान जब जब आप की नज़र दाईं तरफ़ पड़ती तो बा अदब खड़े हो जाते । तमाम मुरीदीन येह देख कर हैरान थे कि पीरो मुर्शिद बार बार क्यूं खड़े हो रहे हैं ? मगर किसी को पूछने की जुरअत न हो सकी ।
    अल गरज़ जब सब लोग वहां से चले गए , तो एक मन्जूरे नज़र मुरीद अर्ज़ गुज़ार हुवा : हुजूर ! हमारी तरबिय्यत के दौरान आप ने बारहा कियाम फ़रमाया इस में क्या हिक्मत थी ? हज़रते मुईनुद्दीन ने फ़रमाया उस तरफ़ पीरो मुर्शिद शैख़ उस्मान हारवनी का मज़ारे मुबारक है जब भी उस जानिब रुख होता तो मैं ता'ज़ीम के लिये उठ जाता , पस मैं अपने पीरो मुर्शिद के रौज़ए मुबारक की ता'ज़ीम में कियाम करता था ।


    फरमाने गौसे आजम पर सर झुका दिया

    जिस वक्त हज़रते सय्यिदुना गौसे आ'ज़म Gaus Paak ने बगदादे मुक़द्दस में इरशाद फ़रमाया मेरा येह कदम अल्लाह के हर वली की गर्दन पर है । तो उस वक्त है । ख्वाजा गरीब नवाज़ सय्यिदुना मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी Gharib Nawaz Khwaja Moinuddin Chishti अपनी जवानी के दिनों में मुल्के खुरासान में वाकेअ एक पहाड़ी के दामन में इबादत किया करते थे , जब आप ने येह फ़रमाने आली सुना तो अपना सर झुका लिया और फ़रमाया ' बल्कि आप के कदम मेरे सर और आंखों पर हैं ।


    मुरीदों की फ़िक्र

    एक बार ख्वाजा गरीब नवाज़ (Khwaja Garib Nawaz) मक्कए मुकर्रमा की नूर बार फ़ज़ाओं में मुराकबा कर रहे थे कि हातिफे गैब से आवाज़ आई : मांग क्या मांगता है ? हम तुझ से बहुत खुश हैं , जो तलब करेगा पाएगा । अर्ज़ की : या इलाही मेरे तमाम मुरीदों को बख़्श जवाब आया : बख़्श दिया । अर्ज़ की : मौला ! जब तक मेरे तमाम मुरीद जन्नत में न चले जाएं मैं जन्नत में कदम न रखूगा ।
    सुल्तानुल हिन्द हज़रते सय्यदुना ख्वाजा गरीब नवाज़ (Khwaja Garib Nawaz), ने अपनी ज़िन्दगी के तकरीबन 81 बरस राहे खुदा में इल्मे दीन हासिल करने और मख्लूक को राहे रास्त पर लाने के लिये बसर कर दिये बल्कि कई किताबें भी तहरीर फ़रमाईं उन में से चन्द किताबों के नाम येह हैं ।


    आप (Khwaja Garib Nawaz) की तसानीफ़


    1. अनीसुल अरवाह ( पीरो मुर्शिद ख्वाजा उस्मान हारवनी के मल्फूजात )
    2. कशफुल असरार ( तसव्वुफ़ के मदनी फूलों का गुल्दस्ता )
    3. गन्जुल असरार ( सुल्तान शम्सुद्दीन अल तमश की तालीम व तल्कीन के लिये लिखी )
    4. रिसालए आफ़ाक़ व अन्फुस ( तसव्वुफ़ के निकात पर मुश्तमिल )
    5. रिसालए तसव्वुफ़ मन्जूम
    6. हदीसुल मआरिफ
    7. रिसालए मौजूदिय्या )

    मल्फूजात

    सुल्तानुल हिन्द , ख्वाजा गरीब नवाज़ (Khwaja Garib Nawaz) की बारगाह में अक़ीदत मन्दों और मुरीदों का हर वक्त हुजूम रहता जिन की ज़ाहिरी व बातिनी इस्लाह के लिये मल्फूज़ात का सिलसिला जारी व सारी रहता । ज़बाने हक्के तर्जमान से जो अल्फ़ाज़ निकलते उसे आप के ख़लीफ़ए अक्बर व सज्जादा नशीन हज़रते ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी फ़ौरन लिख लिया करते । यूं हज़रते ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी ने अपने पीरो मुर्शिद के मल्फूज़ात पर मुश्तमिल एक किताब तरतीब दी जिस का नाम ' दलीलुल आरिफ़ीन ' रखा । इस गुलशने अजमेरी से चन्द महकते फूल मुलाहज़ा कीजिये ।

    1. जो बन्दा रात को बा तहारत सोता है , तो फ़िरिश्ते गवाह रहते हैं और सुब्ह अल्लाह से अर्ज करते हैं ऐ अल्लाह - इसे बख़्श दे येह बा तहारत सोया था ।
    2. नमाज़ एक राज़ की बात है जो बन्दा अपने परवर दगार से कहता है , चुनान्चे , हदीसे पाक में आया है या'नी नमाज़ पढ़ने वाला अपने परवर दगार से राज़ की बात कहता है ।
    3. जो शख्स झूटी कसम खाता है वोह अपने घर को वीरान करता है और उस के घर से खैरो बरकत उठ जाती है ।
    4. मुसीबत ज़दा लोगों की फ़रयाद सुनना और उन का साथ देना , हाजत मन्दों की हाजत रवाई करना , भूकों को खाना खिलाना , असीरों को कैद से छुड़ाना येह बातें अल्लाह के नज़दीक बड़ा मर्तबा रखती हैं ।
    5. नेकों की सोहबत नेक काम से बेहतर और बुरे लोगों की सोहबत बदी करने से भी बदतर है ।
    1. बद बख़्ती की अलामत येह है कि इन्सान गुनाह करने के बा वुजूद भी अल्लाह की बारगाह में खुद को मक़बूल समझे ।
    2. खुदा का दोस्त वोह है जिस में येह तीन खूबियां हों : सखावत दरया जैसी , शफ़्क़त आफ्ताब की तरह और तवाज़ोअ ज़मीन की मानिन्द


    सज्जादा नशीन व खुलफ़ा

    हुजूर सय्यिदी ख्वाजा गरीब नवाज़ (Khwaja Garib Nawaz) के खुलफ़ा में सब से करीबी और महबूब हज़रते सय्यिदुना कुतबुद्दीन बख्तियार काकी थे । ख्वाजा साहिब के विसाले जाहिरी के बाद आप ही सज्जादा नशीन हुवे । इन के इलावा दीगर जलीलुल क़द्र खुलफा में हज़रते काजी हमीदुद्दीन नागोरी , सुल्तानुत्तारिकीन हज़रत शैख़ हमीदुद्दीन सूफ़ी और हज़रत शैख अब्दुल्लाह बयाबानी ( साबिका अजयपाल जोगी ) का शुमार होता है ।
    जब अल्लाह के मुकर्रब बन्दे अपनी तमाम तर जिन्दगी उस के अहकाम की बजा आवरी और उस के ज़िक्र में बसर करते हैं , दुन्यवी लज्जतों और आसाइशों को छोड़ हैकर तब्लीग व इशाअते दीन में गुज़ार देते हैं तो अल्लाह उन्हें बतौरे इन्आम आख़िरत में तो बुलन्दो बाला दरजात और बे शुमार हुने मतों से सरफ़राज़ फ़रमाता ही है लेकिन दुन्या में भी उन के मकाम व मर्तबे को लोगों पर ज़ाहिर करने के लिये कुछ खसाइस व करामात अता है फ़रमाता है । ख्वाजा गरीब नवाज़ (Khwaja Garib Nawaz) ने बे शुमार करामात से नवाज़ रखा था , आइये , उन में से चन्द करामात पढ़िये और अपने दिलों में औलियाए किराम की महब्बत को जगाइये !

    Khwaja Garib Nawaz
    Khwaja Garib Nawaz

    मुर्दा जिन्दा कर दिया

    एक बार अजमेर शरीफ़ के हाकिम ने किसी शख्स को बे गुनाह सूली पर चढ़ा दिया और उस की मां को कहला भेजा कि अपने बेटे की लाश ले जाए । दुख्यारी मां गम से निढाल हो कर रोती हुई हज़रते ख्वाजा गरीब नवाज़ (Khwaja Garib Nawaz) की बारगाहे बे कस पनाह में हाज़िर हुई और फ़रयाद करने लगी : आह !
    मेरा सहारा छिन गया , मेरा घर उजड़ गया , मेरा एक ही बेटा था हाकिम ने उसे बे कुसूर सूली पर चढ़ा दिया । येह सुन कर आप (Khwaja Garib Nawaz) जलाल में आ गए और फ़रमाया : मुझे उस की लाश के पास ले चलो । जूं ही आप लाश के करीब पहुंचे तो इशारा कर के फ़रमाया : ऐ मक्तूल ! अगर हाकिमे वक्त ने तुझे बे कुसूर सूली दी है तो अल्लाह SH के हुक्म से उठ खड़ा हो । लाश में फ़ौरन हरकत पैदा हुई और देखते ही देखते वोह शख्स जिन्दा हो कर खड़ा हो गया ।


    अजाबे कब्र से रिहाई

    हज़रते सय्यिदुना बख्तियार काकी फ़रमाते हैं : हज़रते सय्यिदुना ख्वाजा गरीब नवाज़ (Khwaja Garib Nawaz) अपने एक मुरीद के जनाजे में तशरीफ़ ले गए , नमाज़े जनाज़ा पढ़ा कर अपने दस्ते मुबारक से कब्र में उतारा । तदफ़ीन के बाद एक एक कर के सब लोग चले गए मगर हुजूर ख्वाजा गरीब नवाज़ (Khwaja Garib Nawaz) कब्र के पास तशरीफ़ फ़रमा रहे । अचानक आप : गमगीन हो गए । कुछ देर के बा'द आप की ज़बान पर जारी हुवा और आप मुतमइन हो गए ।
    मेरे इस्तिफ्सार पर फ़रमाया : इस के पास अज़ाब के फ़िरिश्ते आ गए थे जिस की वजह से मैं परेशान हो गया इतने में मेरे मुर्शिदे गिरामी हज़रते सय्यदुना ख्वाजा उस्मान हारवनी तशरीफ़ लाए और फ़िरिश्तों से कहा : येह बन्दा मेरे मुरीद मुईनुद्दीन का मुरीद है , इस को छोड़ दो । फ़िरिश्तों ने कहा : येह बहुत ही गुनहगार शख्स था । यकायक गैब से आवाज़ आई : ऐ फ़िरिश्तो ! हम ने उस्मान हारवनी के सदके मुईनुद्दीन चिश्ती के मुरीद को बख़्श दिया।


    छागल में तालाब

    हुजूर ख्वाजा गरीब नवाज़ Gharib Nawaz Khwaja Moinuddin Chishti के चन्द मुरीद एक बार अजमेर शरीफ़ के मशहूर तालाब अना सागर पर गुस्ल करने गए तो काफ़िरों ने शोर मचा दिया कि येह मुसलमान हमारे तालाब को ' नापाक ' कर रहे हैं । चुनान्चे , वोह हज़रात लौटे और सारा माजरा ख्वाजा गरीब नवाज़ की खिदमत में अर्ज कर दिया । आप ने एक खादिम को छागल ( पानी रखने का मिट्टी का बरतन ) देते हुवे इरशाद फ़रमाया : इस में तालाब का पानी भर लाओ ।
    खादिम ने जूं ही पानी भरने के लिये छागल तालाब में डाला तो उस का सारा पानी छागल में आ गया । लोग पानी न मिलने पर बे क़रार हो गए और आप की खिदमते सरापा करामत में हाज़िर हो कर फरयाद करने लगे चुनान्चे , आप ने खादिम को हुक्म दिया कि जाओ और पानी वापस तालाब में उंडेल दो । खादिम ने हुक्म की तामील की तो अना सागर फिर पानी से लबरेज़ हो गया ।


    अल्लाह वालों का तसर्राफ

    आप (Khwaja Garib Nawaz) का एक मुरीद राजा के हां मुलाज़िम था । राजा को जब अपने उस मुलाज़िम के इस्लाम लाने की खबर हुई तो उस पर जुल्म करने लगा । हुजूर ख्वाजा गरीब नवाज़ submiss को पता चला तो आप ने राजा को जुल्म से बाज़ रहने का हुक्म भेजा लेकिन वोह ज़ालिमो जाबिर शख्स इक्तिदार के नशे में मस्त था कहने लगा : येह कौन आदमी है जो यहां बैठ कर हम पर हुक्म चला रहा है ? आप को खबर पहुंची तो फ़रमाया : हम ने उसे गिरिफ्तार कर के लश्करे इस्लाम के हवाले कर दिया ।
    अभी चन्द ही है

    दिन गुज़रे थे कि सुल्तान मोइजुद्दीन मुहम्मद गौरी ने उस शहर पर हम्ला कर दिया । राजा अपनी फ़ौज के हमराह मुकाबला करने आया मगर लश्करे इस्लाम की जुरअत व बहादुरी के आगे ज़ियादा देर न ठहर सका बिल आखिर हथयार डाल कर इब्रत नाक शिकस्त से दो चार हुवा और सिपाहियों ने उसे ज़िन्दा गिरिफ्तार कर के इन्तिहाई जिल्लत के साथ सुल्तान गौरी के सामने पेश कर दिया ।


    हर रात तवाफ़े का'बा

    हज़रते सय्यदुना ख्वाजा गरीब नवाज़ (Khwaja Garib Nawaz) का कोई मुरीद या अहले महब्बत अगर हज या उमरह की सआदत पाता और तवाफ़े का'बा के लिये हाज़िर होता तो देखता कि ख्वाजा गरीब नवाज़ : तवाफ़े का'बा में मश्गूल हैं , उधर अहले खाना और दीगर अहबाब येह समझते कि आप अपने हुजरे में मौजूद हैं । बिल आखिर एक दिन येह राज़ खुल ही गया कि आप बैतुल्लाह शरीफ़ हाज़िर हो कर सारी रात तवाफ़े का " में मश्गूल रहते हैं और सुव्ह अजमेर शरीफ़ वापस आ कर बा जमाअत नमाजे फ़ज़ अदा फ़रमाते हैं ।


    अनोखा खजाना

    हज़रते सय्यिदुना ख्वाजा गरीब नवाज़ के आस्तानए मुबारका पर रोज़ाना इस कदर लंगर का एहतिमाम होता कि ।शहर भर से गुरबा व मसाकीन आते और सैर हो कर खाते । खादिम जब अख़राजात के लिये आप की बारगाह में दस्त बस्ता अर्ज करता तो आप मुसल्ले का कनारा उठा देते जिस के नीचे अल्लाह की रहमत से खज़ाना ही खज़ाना नज़र आता । चुनान्चे , खादिम आप (Khwaja Garib Nawaz) के हुक्म से हस्बे ज़रूरत ले लेता ।


    विसाले पुर मलाल

    आप के विसाल की शब बा'ज़ बुजुर्गों ने ख्वाब में अल्लाह के महबूब , दानाए गुयूब सल्लल्लाहो ताला अलै वसल्लम को येह फ़रमाते सुना : मेरे दीन का मुईन हसन सन्जरी आ रहा है मैं अपने मुईनुद्दीन के इस्तिकबाल के लिये आया हूं । 6 रजबुल मुरज्जब 633 हिजरी ब मुताबिक़ 16 मार्च 1236 ईसवी बरोज़ पीर फज्र के वक्त मुहिब्बीन इन्तिज़ार में थे कि पीरो मुर्शिद आ कर नमाजे फ़ज्र पढ़ाएंगे मगर अपसोस ! उन का इन्तिज़ार करना बे सूद रहा । काफ़ी देर गुज़र जाने के बाद जब ख्वाजा गरीब नवाज़ (Khwaja Garib Nawaz) के हुजरे शरीफ़ का दरवाज़ा खोल कर देखा गया तो गम का समन्दर उमंड आया , हज़रते सय्यिदुना ख्वाजए ख्वाजगान सुल्तानुल हिन्द , मुईनुद्दीन हसन चिश्ती अजमेरी विसाल फ़रमा चुके थे । और देखने वालों ने येह हैरत अंगेज़ रूहानी मन्ज़र अपनी आंखों से देखा कि आप की नूरानी पेशानी पर येह इबारत नक्श थी या'नी अल्लाह का महबूब बन्दा महब्बते इलाही में विसाल कर गया ।


    मजार शरीफ़ और उर्स मुबारक

    सुल्तानुल हिन्द , ख्वाजा मुईनुद्दीन हसन चिश्ती अजमेरी Gharib Nawaz Khwaja Moinuddin Chishti का मज़ारे अक्दस हिन्द के मशहूर शहर अजमेर शरीफ़ ( सूबए राजस्थान शिमाली हिन्द ) में है । जहां हर साल आप का उर्स मुबारक 6 रजबुल मुरज्जब को निहायत तुक व एहतिशाम के साथ मनाया जाता है और इसी तारीख की निस्बत से उर्स मुबारक को ' छटी शरीफ़ ' भी कहा जाता है इस उर्स में मुल्क व बैरूने मुल्क से हज़ारों अफराद बड़े जोश व जज्चे से शिर्कत कर के ख्वाजा गरीब नवाज़ से अपनी अक़ीदत का इज़हार करते हैं ।


                                      ख्वाजा के सदके सिहहत याबी

    आ'ला हज़रत इमामे अहले सुन्नत , मौलाना शाह इमाम अहमद रज़ा खान Aala Hazrat फ़रमाते हैं : हज़रत ख्वाजा ( गरीब नवाज़ Khwaja Garib Nawaz ) के मज़ार से बहुत कुछ फुयूज़ो बरकात हासिल होते हैं , मौलाना बरकात अहमद साहिब महम जो मेरे पीर भाई और मेरे वालिदे माजिद के शागिर्द थे उन्हों ने मुझ से बयान किया कि मैं ने अपनी आंखों से देखा कि एक गैर मुस्लिम जिस के सर से पैर तक फोड़े थे , अल्लाह ही जानता है कि किस कदर थे , ठीक दोपहर को आता और दरगाह शरीफ़ के सामने गर्म कंकरों और पथ्थरों पर लौटता और कहता " ख्वाजा अगन ( यानी ऐ ख्वाजा गरीब नवाज़ जलन ) लगी है । " तीसरे रोज़ मैं ने देखा कि बिल्कुल अच्छा हो गया है ।



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    Irfani - Info For All: Khwaja Garib Nawaz ख्वाजा गरीब नवाज़ की सादगी भरी ज़िन्दगी और करामाते बेशुमार मालूमात
    Khwaja Garib Nawaz ख्वाजा गरीब नवाज़ की सादगी भरी ज़िन्दगी और करामाते बेशुमार मालूमात
    Khwaja Garib Nawaz गरीब नवाज़ ख्वाजा मोईनुद्दीन अजमेरी चिश्ती रहमतुल्ला अलय की बीलखूसूसी ज़िन्दगी पर एक नजर और उनकी सादगी और बेशुमार करामाते,
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