Dua दुआ की अहमियत और फ़ज़ीलत Duaa In Hindi - Irfani-Islam
अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है : तर्जमए कन्जुल ईमान : दुआ Dua कबूल करता हूं पुकारने वाले की जब मुझे पुकारे ।
(Dua) दुआ अर्जे हाजत है और इजाबत ( कबूलिय्यत ) येह है कि परवरदगार अपने बन्दे की दुआ पर लब्बैक अब्दी फ़रमाता है दिली मुराद अता | फ़रमाना दूसरी चीज़ है । कभी ब मुक्तज़ाए हिक्मत किसी ताखीर से कभी बन्दे की हाजत दुन्या में रवा फ़रमाई जाती है.
कभी आखिरत में , कभी बन्दे का नफ्अ दूसरी चीज़ में होता है वोह अता की जाती है । कभी बन्दा महबूब होता है तो उस की हाजत रवाई में इस लिये देर की जाती है कि वोह अर्सए दराज़ तक दुआ में मश्गूल रहे कभी दुआ करने वाले में सिद्क व इख्लास | या'नी कबूलिय्यत के शराइत नहीं पाए जाते लिहाज़ा दुआ (Dua) कबूल नहीं होती । (Very Important)
अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है (Very Important)
कन्जुल ईमान : और तुम्हारे रब ने फ़रमाया मुझ से दुआ (Dua) करो मैं कबूल करूंगा ।(Duaa) दुआ इबादत की रूह और उस का मज है क्यूंकि इन्तिहा दर्जे की आजिज़ी और नियाज़मन्दी को इबादत कहते हैं और इस का जुहूर सहीह मानों में उसी वक्त होता है जब इन्सान मसाइब में घिरा हो । दोस्त साथ छोड़ गए हों । हर तदबीर नाकाम हो चुकी हो । हालाते संगीनी ने उस की | कुव्वत व ताक़त को रेज़ा रेज़ा कर डाला हो । जब हर तरफ़ से उम्मीदें मुन्कत कर के अपने रब्बे करीम के दरे अक्दस पर आ कर वोह सरे नियाज़ झुका दे ।
उस की ज़बान गुंग हो , दिले दर्दमन्द की दास्तां अश्कबार आंखें सुना रही हों और उस को यक़ीन हो कि वोह उस कादिरे मुतलक के सामने पेश हो रहा है और अपनी मुश्किल को बयान कर रहा है जिस के सामने कोई मुश्किल , मुश्किल ही नहीं ।
नीज़ उसे येह पुख्ता ए'तिमाद हो कि यहां से कभी कोई साइल खाली नहीं गया मैं भी कभी ख़ाली और महरूम नहीं लौटाया जाऊंगा । जो इज्जो नियाज , गायत ताल्लुल , खुशूओ खुजूअ उस वक्त जुहूर पज़ीर होता है इस की मिसाल कहां मिलेगी ! येह है दुआ की लज्जत व चाश्नी अगर कोई समझे ।
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Dua |
दुआ की अहम्मिय्यत : - हुजूर नबिय्ये करीम सल्लल्लाहो ताला अलयवासल्लम ने इरशाद फ़रमाया
तर्जमा : - दुआ इबादत का मग्ज है ।
दुआ मोमिन का हथयार है : - ताजदारे मदीना ने इरशाद फ़रमाया (Very Important)
तर्जमा : - दुआ मोमिन का हथयार है और दीन का सुतून और आस्मानो ज़मीन का नूर है ।
दूसरी हदीसे मुबारक में है कि इरशाद फ़रमाया : क्या मैं तुम्हें वोह चीज़ न बताऊं । जो तुम्हें तुम्हारे दुश्मन से नजात दे और तुम्हारे रिज्क वसीअ कर दे ( लिहाज़ा ) रात दिन अल्लाह तआला से दुआ मांगते रहो कि दुआ सिलाहे मोमिन ( मोमिन का हथयार ) है ।
दुआ का दरवाजा खुलना रहमत का दरवाजा खुलना है
नबिय्ये मुकर्रम नूरे मुजस्सम सल्लल्लाहो ताला अलयवासल्लम ने इरशाद फ़रमाया
दुआ दाफ़ेए बला है : - नविय्ये करीम ने इरशाद फ़रमाया : बला उतरती है फिर दुआ उस से जा मिलती है तो दोनों कुश्ती लड़ते रहते हैं कियामत तक या'नी दुआ उस बला को उतरने नहीं देती । इबादात में दुआ का मक़ाम : - हज़रते अबू ज़र गिफ़ारी फ़रमाते हैं इबादात में दुआ की वोही हैसिय्यत है जो खाने में नमक की ।
दुआ एक ने मते उजमा है जो अल्लाह रब्बुल इज्जत ने अपने बन्दों को करामत फ़रमाई हल्ले मुश्किलात में इस से ज़ियादा कोई चीज़ मुअस्सिर नहीं और दाफेए बला व आफ़त में कोई बात इस से बेहतर नहीं ।
- एक दुआ से बन्दे को पांच फाएदे हासिल होते हैं ।
1 ) आबिदों के गुरौह में दाखिल होता है कि दुआ फी नप्सिही इबादत है ताजदारे मदीना ने इरशाद फ़रमाया
तर्जमा : दुआ ही इबादत है ।
2 ) दुआ (Dua) करने वाला अपने इज्जो एहतियाज का इज़हार और अपने परवर दगार के करम व कुदरत का ए'तिराफ़ करता है ।
3 ) इम्तिसाले अने शरअ ( शर के हुक्म की ता'मील ) करता है कि शारेअ ने इस पर ताकीद फ़रमाई और दुआ (Dua) न मांगने पर गजबे इलाही की वईद सुनाई ।
4 ) इत्तिबाए सुन्नत कि हुजूरे अक्दस अक्सर औकात दुआ (Dua) मांगते और दूसरों को भी ताकीद फ़रमाते ।
5 ) दफ्ए बला और हुसूले मुद्दआ है कि दाई ( दुआ करने वाला ) अगर बला से पनाह चाहता है अल्लाह तआला पनाह देता है और जो वोह किसी बात की तलब करता है तो अपनी रहमत से उस को अता फरमाता है या आखिरत में सवाब बख़्शता है ।
मुन्दरिजए बाला आयते करीमा में " 15 " जर्फे जमान है । या'नी जिस किसी वक्त भी बन्दा अपने मा'बूद J6 की बारगाह में इल्तिजा करता है अल्लाह तआला उसे कबूल फ़रमाता है । किसी को येह शुबा और वम न हो कि हम सालहा साल से दुआ कर रहे हैं | मगर हमारी दुआ (Dua) इजाबत से हम कनार नहीं होती लिहाज़ा शुवा का इज़ाला | करते हुवे मुफस्सिरे कुरआन हज़रते अल्लामा मुफ्ती नईमुद्दीन मुरादाबादी ने तहरीर फ़रमाया कि इजाबते दुआ येह है कि परवरदगार - अपने बन्दे की दुआ पर लब्बैक अब्दी फ़रमाता है । रहा दिली मुराद का पूरा होना या न होना तो इस के अहवाल मुख्तलिफ़ हैं ।
दिली मुराद का पूरा ना होना अगर्चे बार बार दुआ करता है इस की एक बहुत बड़ी वज्ह.
- हराम खोरी दुआ के लिये कैची है (Very Important)
सूफ़ियाए किराम फरमाते हैं कि दुआ के दो बाजू या'नी पर हैं ( 1 ) अकले हलाल ( हलाल खाना ) ( 2 ) सिद्के मकाल ( या'नी सच बोलना ) अगर दुआ इन से खाली हो तो क़बूल नहीं होती ।
- इजाबते दुआ के अहवाल पर मजीद तशरीह (Very Important)
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Dua |
- अल्लाह तआला ने जो वादा फ़रमाया है या'नी मुझ से मांगो मैं तुम्हारी दुआ (Dua) कबूल करूंगा ।
इस आयते करीमा में मुतलक इजावत का वादा है । वक्त , दुआ और बन्दे की ख्वाहिश के साथ इजाबत मुक़य्यद नहीं है । क्यूंकि इजाबत का जामिन अल्लाह तआला है या'नी जिस वक्त और जिस तरीके पर हो चाहे दुआ कबूल करे न कि उस वक्त में जिस में बन्दा चाहे क्यूंकि अल्लाह तआला ने इजाबत को अपने इख्तियार में रखा है बन्दे के इख्तियार में नहीं और जानना चाहिये कि उस में बन्दे की ऐन बेहतरी है क्यूंकि बन्दा नादान है वोह येह नहीं जानता कि इस की बेहतरी किस चीज़ में और किस वक्त है ?
बा'ज़ औकात इस तरह दुआ की इजावत होती है कि मांगी हुई चीज़ की मिस्ल या उस जैसी कोई और चीज़ जो मांगने वाले के हाल के मुनासिब हो अता की जाती है । मसलन कोई किसान बादशाह से तेज़ रू ( तेज़ रफ्तार ) | घोड़ा तलब करे और बादशाह उसे बेल दे दे । कोई भी अक्ले सलीम रखने वाला येह न कहेगा कि बादशाह ने उस की हाजत को पूरा नहीं किया । क्यूंकि बादशाह ने उस के हाल के मुनासिब उसे अता किया ।
( क्यूंकि किसान के लिये घोड़े से बेल बहुत मुफीद है कि खेती - बाड़ी के सिलसिले में मुआविन व मददगार होगा ) बा'ज़ औकात इजाबत इस तरह होती है कि तलब की हुई चीज़ के बराबर बुराई और मा'सिय्यत को अल्लाह तआला उस बन्दे से दूर कर देता है इजाबत के येह तमाम माना हदीसों में वारिद हैं ।
इजाबत का एक और माना जो तस्कीने खातिर का सबब है हदीस शरीफ़ में आया है कि हज़रते जिब्रील बारगाहे रब्बुल इज्जत में अर्ज करते हैं कि फुलां बन्दा आप से अपनी हाजत तलब करता है उस की हाजत को पूरा फ़रमा ( हालांकि अल्लाह तआला हाजतमन्द और उस की हाजत से खूब बा खबर है ) अल्लाह तआला का फरमान होता है कि मेरे बन्दे को सुवाल करता हुवा छोड़ दे कि मैं उस की आवाज़ व दुआ (Dua) को सुनना पसन्द करता हूं ।
तर्जमा : पसन्द आती है मुझ को उस की आवाज़ और उस का “ ऐ खुदा " कहना और उस की गिर्या व जारी ।
हज़रते यहया बिन सईद ने अल्लाह तआला को ख्वाब में देखा । अर्ज की : इलाही ! मैं अक्सर दुआ करता हूं और तू कबूल नहीं फ़रमाता । हुक्म हुवा : ऐ यहूया ! मैं तेरी आवाज़ को दोस्त रखता हूं । इस वासिते तेरी दुआ में ताख़ीर करता हूँ
- नबिय्ये करीम से रिवायत है कि बन्दे की दुआ (Dua) तीन बातों से खाली नहीं होती ।
( 2 ) या दुन्या में उसे फाएदा हासिल होता है या
( 3 ) उस के लिये आख़िरत में भलाई जम्अ की जाती है ( और उस की शान येह होती है कि ) जब बन्दा अपनी उन दुआओं का सवाब देखेगा जो दुन्या में मुस्तजाब न हुई थी तो तमन्ना करेगा : काश ! दुन्या में मेरी कोई दुआ कबूल न होती और सब यहीं ( आखिरत ) के वासिते जम्अ रहतीं ।
- दुआओं में अपने इस्लामी भाइयों को भी शामिल रखें
अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है
तर्जमए कन्जुल ईमान : और वोह जो उन के बाद आए अर्ज करते हैं ऐ हमारे रब हमें बख्श दे और हमारे भाइयों को जो हम से पहले ईमान लाए ।
मजकूरए बाला आयते करीमा में अल्लाह तआला ने इस अमल को बतौरे इस्तिहसान इरशाद फ़रमाया कि जहां बा'द में आने वाले मुसलमान अपने लिये दुआए मगफिरत करते हैं वहां वोह पहले वाले मुसलमानों के लिये भी दुआए मगफिरत करते हैं क्यूंकि येह सूदमन्द अमल है अगर दूसरे मुसलमान भाइयों के लिये दुआए मगफिरत फाएदे मन्द न होती तो इस अमल को बतौरे इस्तिहसान बयान न फ़रमाया जाता क्यूंकि कलामे इलाही में फुजूलियात की कोई गुन्जाइश नहीं ।
जिस तरह एक मुसलमान का दूसरे मुसलमान के लिये दुआ (Dua) करना फाएदे से खाली नहीं इसी तरह दूसरे माली या बदनी आ'माल का सवाब पहुंचाना भी फ़ाएदे से खाली नहीं है
अंदम मौजूदगी में दुआ (Dua) और इसका फाएदा
हुजूर ने इरशाद फ़रमाया : - एक मुसलमान आदमी अपने किसी मुसलमान भाई के लिये उस की अमे मौजूदगी में दुआ करे तो वोह दुआ मक्बूल होती है । ( और ) इस ( दुआ करने वाले ) के सर के पास एक फ़िरिश्ता मुकर्रर होता है । जब भी वोह अपने भाई के लिये दुआ करता है तो वोह फ़िरिश्ता कहता है : आमीन ( या'नी तेरी दुआ कबूल हो ) और तुझे भी वोही ने मत अता हो ।
मुसलमानों के लिये दुआए (Dua) मगफिरत करने पर नेकियों की बिशारत
सहीह हदीस में आता है कि जो सब मुसलमान मर्दो और मुसलमान औरतों के लिये इस्तिगफार करे अल्लाह तआला उस के लिये हर मुसलमान मर्द और मुसलमान औरत के बदले एक नेकी लिखेगा ।
अबू शैख अस्वहानी ने हज़रते सावित बुनानी से रिवायत की , कि हम से जिक्र किया गया जो शख्स मुसलमान | मदों और औरतों के लिये दुआए (Dua) खैर करता है क़ियामत के दिन जब वोह उन की मजलिसों पर गुज़रेगा तो एक कहने वाला कहेगा : येह वोह है जो तुम्हारे लिये दुन्या में दुआए खैर करता था । पस वोह उस की शफाअत करेंगे और जनाबे इलाही में अर्ज कर के उसे बिहिश्त में ले जाएंगे ।
- दुआ (Dua) न करने पर मज़म्मत. Islamic
अल हदीसुल कुदसी
तर्जमा : - या'नी अल्लाह तआला फ़रमाता है जो मुझ से दुआ (Dua) न करेगा मैं उस पर गज़ब फ़रमाऊंगा ।
- मन्कूल है कि चार आदमियों में कोई भलाई नहीं : Islamic
दुवुम ) अज़ान का जवाब न देने वाला ।
सिवुम ) नेक काम में किसी की मदद न करने वाला ।
चहारुम ) नमाज़ों के बाद अपने और तमाम मोमिनीन के लिये दुआ न करने वाला ।
हदीस शरीफ़ में है : अल्लाह तआला हया वाला करम वाला है उस से हया फ़रमाता है कि उस का बन्दा उस की तरफ हाथ उठाए और उन्हें खाली फेर दे ( बल्कि ) जो दुआ न मांगे अल्लाह तआला उस पर गज़ब फ़रमाता है ।
आदाबे दुआ : - अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है : Islamic
तर्जमए कन्जुल ईमान : अपने रब से दुआ (Dua) करो गिड़ गिड़ाते और आहिस्ता बेशक हृद से बढ़ने वाले उसे पसन्द नहीं ।
दुआ अल्लाह तआला से खैर तलब करने को कहते हैं और येह दाखिले इबादत है क्यूंकि दुआ करने वाला अपने आप को आजिज़ व मोहताज और अपने परवरदगार = को हक़ीक़ी कादिर और हाजत रवा एतिकाद करता है । इसी लिये हदीसे मुबारक में वारिद हुवा तर्रुअ से इज़हारे इज्जो खुशूअ मुराद है और अदबे दुआ में येह है कि आहिस्ता हो ।
हज़रते हसन का कौल है कि आहिस्ता दुआ (Duaa)करना अलानिया दुआ करने से सत्तर दरजा जियादा अफ़ज़ल है ।
इस में उलमा का इख्तिलाफ़ है कि इबादात में इज़हार अफ्ज़ल है या इका ? बा'ज़ कहते हैं कि इखफा अफ़ज़ल है क्यूंकि वोह रिया से बहुत दूर है बा'ज़ कहते हैं कि इज़हार अफ्ज़ल है इस लिये कि इस से दूसरों को रगबते इबादत पैदा होती है । तिरमिजी ने कहा कि अगर आदमी अपने नफ्स पर रिया का अन्देशा रखता हो तो उस के लिये इख्या अफ़्ज़ल है और अगर कल्च साफ़ हो अन्देशए रिया न हो तो इज़हार अफ्ज़ल है ।
दूसरी बात आयते करीमा में येह है कि अल्लाह तआला ( मो'तदीन ) या'नी हद से बढ़ने वालों को पसन्द नहीं फ़रमाता इस की तशरीह करते हुवे साहिबे तफ्सीरे जियाउल कुरआन ने फ़रमाया : ए'तदा कहते हैं हृद से तजावुज़ करने को यहां इस दुआ (Dua) करने वाले को मो'तदी ( हृद से तजावुज़ करने वाला ) कहा गया है जो ऐसे उमूर के लिये दुआ (Dua) करे जो अक्लन या शरअन ममनूअ हों । मसलन नबुव्वत के मर्तबे तक रसाई की दुआ , किसी हराम चीज़ के लिये दुआ या मुसलमानों के हक में बद दुआ या जो आदाबे दुआ को नजर अन्दाज़ कर दे ।
कब्ल इस के कि आदाबे दुआ पर कुछ अर्ज किया जाए पहले आ'ला हज़रत के कलम से निकले हुवे अल्फ़ाज़ समाअत फरमाएं : आप अहसनुल विआइ लि आदाबिहुआइ की शर्ह जैलुल मुद्दआइ लि अहसनिल विआइ में तहरीर फ़रमाते हैं कि
आदाबे दुआ जिस कदर हैं सब अस्वाबे इजाबत हैं इन का इजतिमा मूरिसे इजाबत ( कबूलिय्यत का सबब ) होता है बल्कि इन आदाबे दुआ (Dua) में बा'ज़ ब मन्ज़िलए शर्त हैं जैसे हुजूरे कल्ब या'नी दिल का हाज़िर होना कि गैर की तरफ़ ध्यान न हो ) और या'नी नबिय्ये करीम पर दुरूद शरीफ़ पढ़ना ) और बा'ज़ दीगर वोह मोहसिनात व मुस्तहूसनात या'नी आरास्ता व खूब सूरत करने वाले हैं सुम्म अकूलु ( या'नी फिर मैं कहता हूं कि ) यहां कोई अदब ऐसा नहीं जिसे हकीकृतन शर्त कहिये बई माना ( या'नी इस मा'ना में ) कि इजाबत इस पर मौकूफ़ हो कि अगर वोह न हो तो इजाबत जन्हार ( या'नी कबूलिय्यत हरगिज़ ) न हो ।
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Dua |
- अब येह हुजूरे कल्व ही है कि जिस की निस्बत खुद हदीस शरीफ़ में इरशाद हुवा :
हालांकि बारहा सोते में जो महज़ बिला कस्द ज़बान से निकल जाए वोह मक्बूल हो जाता है लिहाज़ा हदीसे सहीह में इरशाद हुवा कि जब नींद गलबा करे तो ज़िक्रो नमाज मुल्तवी कर दो । मबादा ( ऐसा न हो कि ) चाहो इस्तिग़फ़ार और नींद में निकल जाए बद दुआ (Duaa) तो साबित हुवा कि यहां शर्त ब माना हकीकी नहीं बल्कि येह मक्सूद है कि इन शराइत का इजतिमाअ हो तो वोह दुआ बर वजए कमाल है और इस में तवक्कोए इजाबत को निहायत कुव्वत और अगर शराइत से खाली हो तो फी नपिसही हो रजाए कबूल ( कबूल की उम्मीद ) नहीं अलबत्ता करम व रहमत या तवाफ़िके साअते इजाबत ( कबूलिय्यत की घड़ी के इत्तिफ़ाक़ की वह क़बूल हो जाना दूसरी बात है येह फ़ाएदा ज़रूर मुलाहा रखिये ।
अदब नम्बर । : - दुआ (Dua) करते वक्त दिल को हत्तल इमकान ख़यालाते गैर से पाक करे । Islami Hindi
अदब नम्बर 2 : - आ'ज़ा को ख़ाशेअ ( आजिज़ी वाला ) और दिल को हाज़िर करे हदीस में है : अल्लाह तआला गाफिल दिल की दुआ नहीं सुनता ऐ अज़ीज़ हैफ़ ( अफ्सोस ) है कि ज़बान से उस की कुदरत व करम का इकरार करे और दिल दूसरों की अजमत व बड़ाई से पुर हो ।
बनी इस्राईल ने अपने पैगम्बर से शिकायत की , कि हमारी दुआ कबूल नहीं होती , जवाब आया : उन की दुआ किस तरह कबूल करूं किवोह जबान से दुआ करते हैं और दिल उन के गैरों की तरफ़ मुतवज्जेह रहते हैं Islami Hindi
अदब नम्बर 3 : - दुआ (Dua) के वक्त बा वुजू किल्ला रू मुअद्दव दो जानू बैठे ( जिस तरह नमाज़ के का'दे में बैठते हैं ) मगर किब्ला रू बैठने में बाज़ मवाकेअ मुस्तशना हैं जैसे मजलिस में सब किल्ला रू बैठे हैं उलमा व मशाइख में से कोई जब दुआ करेंगे तो उन का रुख लोगों की तरफ़ होगा और पीठ किब्ला शरीफ़ की तरफ़ होगी ।
यूंही इमाम के लिये भी है कि दाएं या बाएं मुड़ जाए और अगर इस की मुहाज़ में मुक्तदी नमाज न पढ़ रहा हो तो मुक्तदियों की तरफ़ भी मुंह कर सकता है इस हालत में भी पीठ किन्ला शरीफ की तरफ होगी ।
यूंही सरकारे मदीना के रौज़ए अन्वर पर जब कोई खुश नसीब हाज़िरी देते वक्त दुआ (Dua) करेगा तो उस वक्त भी पीठ किब्ला शरीफ़ की तरफ़ होगी ।
अदब नम्बर 4 : - निगाह नीची रखे वरना ज़वाले बसर या'नी आंख की बीनाई के जाइल होने का खौफ़ है । अगर्चे येह वईद हदीसे मुबारक में दुआए नमाज के लिये वारिद है मगर उलमा इसे आम फ़रमाते हैं ।
अदब नम्बर 5 : - ब कमाले अदब हाथ आस्मान की तरफ़ उठा कर सीने या शानों या चेहरे के मुकाबिल लाए या पूरे उठाए यहां तक कि बगल की सपेदी ( या'नी पसीने की वजह से क़मीज़ का वोह हिस्सा जो बगल के साथ होता है सपेद हो जाता है ) जाहिर हो येह इब्लिहाल ( या'नी अल्लाह तआला से गिड़गिड़ा कर दुआ (Duaa) मांगना ) है ।
अदब नम्बर 6 : -हथेलियां फैली रखें या'नी उन में ख़म न हो जिस तरह पानी को चुल्लू में लेते वक्त खम होता है क्यूंकि आस्मान किब्लए दुआ (Duaa) है सारी कफ़े दस्त ( हथेली ) मुवाजए आस्मान ( आस्मान के सामने ) है ।
अदब नम्बर 7 : - दोनों हाथ खुले रखे कपड़े वगैरा से पोशीदा न हों । हज़रते जुन्नून मिस्री ने दुआ में सर्दी के सबब सिर्फ एक हाथ निकाला था । इल्हाम हुवा एक हाथ उठाया हम ने उस में रख दिया जो रखना था दूसरा उठाता तो उसे भी भर देते । हाथ उठाना और रब्बे करीम के हुजूर फैलाना इज़हारे इज्जो फ़क्र के लिये मशरूअ ( शरअ के मुवाफिक ) हुवा । लिहाजा हाथों का छुपाना इस के मुखिल ( खलल डालने वाला ) होगा जैसे नमाज में मुंह छुपाना मकरूह हुवा । कि सूरते तवज्जोह के खिलाफ़ है अगर्चे रब तआला से कुछ निहां ( छुपा हुवा ) नहीं ।
अदब नम्बर 8 : - दुआ (Dua) के लिये अव्वल व आखिर हम्दे इलाही बजा लाए कि अल्लाह तआला से ज़ियादा कोई अपनी हम्द को दोस्त रखने वाला नहीं । थोड़ी हम्द पर बहुत राजी होता और बेशुमार अता फरमाता है ।
अदब नम्बर 9 : - अव्वल व आखिर नबिय्ये करीम और उन की आल व अस्हाब पर दुरूद भेजे कि दुरूद अल्लाह तआला की बारगाह में मक्बूल है ।Islami Hindi
बैहक़ी और अबुश्शैख हज़रते सय्यिदुना अली से रावी हैं कि हुजूर सय्यिदुल मुर्सलीन / फ़रमाते हैं :
तर्जमा : - दुआ अल्लाह तआला से हिजाब में है जब तक मुहम्मद और उन के अले बैत पर दुरूद न भेजा जाए ।
ऐ अज़ीज़ ! दुआ (Dua) ताइर है और दुरूद शहपर । लिहाज़ा ताइरे बे पर क्या उड़ सकता है ? हम्दे इलाही और दुरूद शरीफ़ दोनों के लिये दुआ अव्वल व आखिर पढ़ने का कहा गया लिहाजा यूं समझिये कि इब्तिदाअन एक हकीक़ी है और एक इज़ाफ़ी यूंही इन्तिहा लिहाज़ा हम्दे इलाही इब्तिदाअन हकीकी पर महमूल होगी और दुरूद का पढ़ना इब्तिदाअन इज़ाफ़ी पर महमूल होगा लिहाज़ा पहले हम्दे इलाही करे फिर दुरूद पढ़े । Islami Hindi
अदब नम्बर 10 : - दुआ (Duaa) के शुरू में पहले अल्लाह को उस के महबूब अस्मा से पुकारे । रसूलुल्लाह फ़रमाते हैं अल्लाह तआला ने इस्मे पाक पर एक फ़िरिश्ता मुकर्रर फ़रमाया कि जो शख्स इसे तीन बार कहता है फ़िरिश्ता निदा करता है : मांग के तेरी तरफ़ मुतवज्जेह हुवा ।
एक मरतबा हज़रते जैद बिन हारिसा ने सफर के लिये ताइफ़ ( मुल्के हिजाज़ का एक कस्वा ) में एक खच्चर किराए पर लिया , खच्चर वाला डाकू था । वोह आप को सुवार कर के ले चला और एक वीरान व सुन्सान जगह पर ले जा कर आप को खच्चर से उतार दिया और एक खन्जर ले कर आप की तरफ़ हम्ले के इरादे से बढ़ा । आप ने देखा कि वहां हर तरफ़ लाशों के ढांचे बिखरे पड़े हैं । आप ने फ़रमाया : ऐ शख्स तू मुझे कत्ल करना चाहता है लेकिन मुझे इतनी मोहलत दे दे कि मैं दो रक्अत नमाज़ पढ़ लूं । उस बद नसीव ने कहा कि अच्छा तू नमाज़ पढ़ ले । मगर तेरी नमाज़ तुझे बचा न सकेगी ।
हज़रते जैद बिन हारिसा का बयान है कि जब मैं नमाज़ से फ़ारिग हुवा तो वोह मुझे कत्ल करने के इरादे से करीब आ गया उस वक्त मैं ने दुआ (Dua) मांगी और कहा ।
गैब से आवाज़ आई : ऐ शख्स ! तू इस मर्दे कामिल को कत्ल मत कर येह आवाज़ सुन कर वोह डाकू डर गया और इधर उधर देखने लगा लेकिन जब उसे कोई नज़र न आया तो दोबारा अपने इरादे की तक्मील के लिये आगे बढ़ना चाहा तो
मैं ने फिर पुकारा : ऐ सब रहूम करने वालों से ज़ियादा रहूम करने वाले ) लेकिन उस डाकू पर कुछ असर न हुवा लिहाज़ा जब मैं ने तीसरी मरतबा पुकार कर कहा आप फ़रमाते हैं : अभी मैं ने येह अल्फ़ाज़ खत्म ही किये थे कि एक शख्स घोड़े पर सुवार नज़र आया और उस के हाथ में ऐसा नेजा था जिस की नोक पर आग का शो'ला था ।
उस आने वाले शख्स ने मेरे देखते ही देखते डाकू के सीने में इस कदर ज़ोर से नेज़ा मारा कि नेजा उस डाकू के सीने को छेदता हुवा उस की पुश्त के पार निकल गया और यूं उस डाकू का किस्सा तमाम हुवा फिर वोह अजनबी सुवार मुझ से कहने लगा कि जब तुम ने पहली मरतबा कहा तो मैं सातवें आस्मान पर था जब तुम ने दूसरी मरतबा पुकारा तो मैं आस्माने दुन्या पर था और जब तुम ने तीसरी मरतबा पुकारा तो मैं तुम्हारे पास इमदाद व नुस्रत के लिये हाज़िर हो गया ।
दुआ (Dua) करते हुवे बारगाहे इलाही में हाजत बर आने के लिये पांच मरतबा या रब्बना कहना भी निहायत मुअस्सिरे इजाबत है । हज़रते इमाम जा'फर सादिक़ - Jise से मन्कूल है कि जो शख्स इज्ज़ के वक्त पांच बार या रब्बना कहे अल्लाह तआला उसे उस चीज़ से जिस का खौफ रखता है अमान बखो और जो चीज़ चाहता है अता फरमाए ।
हज़रते अनस से मरवी है कि नबिय्ये करीम ने इरशाद फ़रमाया
तर्जमा : - तुम के कलिमात को अपने ऊपर लाज़िम कर लो ।
अदब नम्बर 11 : - अल्लाह तआला के अस्मा व सिफ़त और उस की किताबों खुसूसन कुरआने पाक और मलाइका व अम्बियाए किराम बिल खुसूस सय्यिदुल मुसलीन : और औलियाउल्लाह के वसीले से दुआ (Dua) करें कि महबूबाने ख़ुदा के वसीले से दुआ कबूल होती है । यूंही अपनी उम्र का वोह नेक अमल जो ख़ालिसन लि वजहिल्लाह किया हो उस के जरीए तवस्सुल करें कि जालिबे रहमत ( रहमत का लाने वाला ) है । नेक आ'माल के जीए तवस्सुल करना जाइज़ है जैसा कि बुख़ारी शरीफ किताबुल आदाब की हदीस से साबित है जो अले इल्म से मख़्फी नहीं । यूंही महबूबाने खुदा के वसीले से दुआ करना भी साबित जैसा कि ख़ुद हुजूर ने तालीम फ़रमाया.
तर्जमा : - ऐ अल्लाह मैं तुझ से सुवाल करता हूं और तेरी तरफ़ नबिय्ये रहमत हज़रते मुहम्मद के वसीले से मुतवज्जेह होता हूँ । ऐ मुहम्मद मैं ने आप के जरीए अपने रब की तरफ़ इस हाजत में तवज्जोह की ताकि मेरी येह हाजत पूरी हो जाए । ऐ अल्ला मेरे लिये हुजूर की शफाअत को कबूल फ़रमा ।
अदब नम्बर 12 : - दुआ (Dua) मांगने में हाजते आख़िरत को मुक़द्दम रखे कि अमे अहम की तकदीम ज़रूरी है ।
गौसे आ'जम सय्यिदुना अब्दुल कादिर जीलानी अपनी तस्नीफे लतीफ़ " फुतूहुल गैब " जिस की शह हज़रते अल्लामा शैख अब्दुल हक मुहद्दिसे देहलवी ने फ़ारसी में की और इस का उर्दू तर्जमा हज़रते अल्लामा मुफ्ती मुहम्मद यूसुफ़ बन्दयालवी ने किया इस अनमोल किताब से एक तहरीर लिखी जाती है ताकि हमें पता चले कि दुआ में तालिब किस चीज़ को तलब करे ।
तर्जमा : - हज़रते शैख ने फ़रमाया : ( ऐ दुआ (Dua) करने वाले ) गुज़श्ता गुनाहों से मगफिरत और मौजूदा और आइन्दा आने वाले ज़माने में गुनाहों से निगहदाश्त के सिवा कुछ न मांग और अल्लाह तआला से उस की तौफीक तलब कर । अच्छी ताअत व इबादत के लिये और शरीअत के अहकाम पर अमल करने के लिये ना फ़रमानियों से बचने के लिये तल्खिये क़ज़ा पर राजी रहने और बला की सख्तियों पर सब्र करने के लिये और ज़ियादतिये ने मत व अता की अदाएगिये शुक्र के लिये और अल्लाह तआला से तलब कर ख़ातिमा बिलखैर और ईमान के साथ मरने को और अम्बिया व सिद्दीक़ीन और शुहदा व सालिहीन जो अच्छे रफ़ीक हैं उन के साथ आखिरत में इकठ्ठा होने को ( अपनी दुआ का जुज़ व लाज़िम बना ले )
अदब नम्बर 13 : - दुआ (Dua) में तकरार चाहिये कि तकरारे सुवाल सिद्क़ तालिब पर दलील है और येह उस करीमे हक़ीकी की शान है कि तकरारे सुवाल से मलाल नहीं फ़रमाता बल्कि न मांगने पर गज़ब फ़रमाता है । हज़रते शैख सा'दी शीराज़ी तहरीर फ़रमाते हैं
तर्जमा : - हदीस शरीफ़ में है कि सरवरे काइनात मुफ़ख्खिरे मौजूदात रहमतुल्लिल आलमीन मख्लूक में सब से ज़ियादा बरगुज़ीदा नबिय्ये आखिरुज्जमान ने फ़रमाया :
गुनहगार बन्दा ज़माने का परेशान रुजूअ का हाथ कबूलिय्यत की | उम्मीद में अल्लाह तआला की बारगाह में उठाता है अल्लाह तआला उस पर नज़र नहीं फ़रमाता । बन्दा दोबारा दुआ (Dua) करता है अल्लाह तआला ए राज़ फ़रमाता है । बन्दा फिर गिड़गिड़ाते हुवे गिर्या व जारी करते हुवे दुआ करता है ।
अल्लाह तआला ( जो तमाम ज़्यूब से मुनज्जा व मुबर्रा है ) फ़िरिश्तों से फ़रमाता है : ऐ मेरे फ़िरिश्तो ! मुझे या आई अपने बन्दे से कि उस का मेरे सिवा कोई नहीं । उस की दुआ को मैं ने कबूल किया और उस की उम्मीद को मैं ने पूरा किया कि बन्दे की दुआ (Dua) और बहुत गिर्या व जारी से मैं हया फ़रमाता हूं ।
अदब नम्बर 14 : - दुआ (Dua) फ़म मा ना के साथ हो लफ़्जे वे माना कालिबे बेजान है लिहाज़ा अरबी में दुआ जो इजावत से ज़ियादा करीब होती है वोह जब ही मुफ़ीदे कामिल है जब कि माना भी समझ में आएं चुनान्चे , आ'ला हज़रत फ़रमाते हैं जो अरबी न समझता हो और अरबी दुआ का | मा'ना सीख कर ब तकल्लुफ़ उस की तरफ़ ख़याल ले जाना मुश्तूशे ख़ातिर व मुखिले हुजूर हो ( या'नी दिल की परेशानी और हुजूरे कल्वी में खलल हो ) तो दुआ करने वाला अपनी ही ज़बान में अल्लाह तआला को पुकारे कि हुजूर व यक्सूई अहम उमूर हैं ।
अदब नम्बर 15 : - आंसू बहाने में कोशिश करे अगचें एक ही कृतरा हो कि | दलीले इजाबत है अगर रोना न आए तो रोने का सा मुंह बनाए कि नेकों की सूरत भी नेक है ऐसा करना अल्लाह तआला की रिज़ा को तलब में हो न कि दूसरों के दिखाने के लिये कि वोह देख रहा है । ऐसा करना हराम है । लिहाजा येह नुक्ता याद रहे । हज़रते का'ब अहबार से मरवी है कि फ़रमाया : मुझे खौफे खुदा से बहने वाले आंसू पहाड़ के बराबर सोना सदका करने से जियादा महबूब हैं ।
अदब नम्बर 16 : - दुआ (Dua) अज्मो जज़्म के साथ हो येह ख़याल न करे कि क़बूल हो या न हो इसी तरह दिल में फ़ासिद वस्वसे न लाए । यकीने कामिल : - हज़रते हसन बसरी फ़रमाते हैं कि हम एक मरतबा अबू उस्मान ) की इयादत को गए हम में से किसी ने कहा : ऐ अबू उस्मान ! हमारे लिये दुआ कीजिये आप बीमार हैं और मरीज़ की दुआ बहुत जल्द कबूल होती है । चुनान्चे , उन्हों ने हाथ उठाए उन के साथ |
हम ने भी हाथ उठा लिये । हम्दो सना के बाद कुरआने पाक की चन्द आयात तिलावत की दुरूद शरीफ़ पढ़ा , इस के बाद दुआ की फिर फ़रमाया : मुबारक हो अल्लाह तआला ने दुआ कबूल फ़रमा ली । हम ने पूछा : आप को कैसे ख़बर हुई ? फ़रमाया : वाह अगर हसन बसरी मुझ से कोई बात कहें तो मैं तस्दीक करूं और जब अल्लाह तआला ने कबूलिय्यत का वादा फ़रमाया है तो फिर उस की तस्दीक क्यूं न करूं कि कुरआन में है :
तर्जमए कन्जुल ईमान : मुझ से दुआ (Dua) करो मैं कबूल करूंगा ।
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Dua |
अदब नम्बर 17 : - तन्दुरुस्ती व खुशी व फ़राख दस्ती की हालत में दुआ की कसरत करे । ताकि सख्ती व रन्ज में भी दुआ कबूल हो ।
तर्जमा : - जिस को येह पसन्द हो कि मुश्किलात के वक्त अल्लाह तआला उस की दुआ कबूल फ़रमाए तो उसे चाहिये कि आसाइश के वक़्त दुआ की कसरत करे ।
अदब नम्बर 18 : - दुआ (Dua) में तकब्बुर और शर्म से बचे । मसलन तन्हाई में दुआ निहायत तरुअ व इल्हाह ( आजिज़ी व इन्किसारी गिड़गिड़ाते हुवे ) से कर रहा था कि कोई आ गया तो आने वाले को देख कर इस हालत को शर्म की वज्ह से मौकूफ़ कर देना । येह सख्त हुमाकृत और वे वुकूफी है कि अल्लाह तआला के हुजूर गिड़गिड़ाना मूजिबे हजारां ( हज़ार की जम्अ ) इज्जत है । न कि खिलाफे शानो शौकत ।
अदब नम्बर 19 : दुआ तन्हाई में करे ताकि रिया का शुबा ही न रहे अगर बिगैर रिया लोगों केहमराह दुआ करे तो कोई हरज नहीं बिलखुसूस बड़े बड़े इजतिमाआत में न जाने किस बन्दए खुदा को आमीन पर सब का बेड़ा पार हो जाए ।
अगर मज्म में रियाकारी का अन्देशा हो तो एहतिराज़ करे और तन्हाई में अपने लिये अपने दूसरे मुसलमान भाइयों के लिये दुआ (Dua) करे और इस बात को हमेशा पेशे नज़र रखे कि दुआ करते वक्त अपने नफ्स के साथ वालिदैन , असातिजा , उलमा व मशाइख और इस्लामी भाइयों को भी शामिल रखे , इस की फजीलत पहले बयान की जा चुकी ।
दुआ और तन्हाई : - अल हदीस : पोशीदा की एक दुआ अलानिया की सत्तर ) दुआ (Dua) के बराबर है । ( अबुश्शैख , दैलमी रावी हज़रते अनस )
अदब नम्बर 20 : - दुआ (Dua) में सिर्फ मुद्दआ पर नज़र रखे बल्कि नपसे दुआ को मक्सूद बिज्जात जाने कि दुआ खुद इबादत है बल्कि मजे इबादत है । मक्सद मिलना या न मिलना दर किनार लज्जते मुनाजात नक्दे वक्त है लिहाजा ब ज़ाहिर मक्सूद न पाए लेकिन फिर भी दुआ में कोताही न करे ।
अदब नम्बर 21 : - दुआ (Dua) करने के बाद दोनों हाथ चेहरे पर फेरे कि वोह खैरो बरकत जो ब ज़रीअए दुआ हासिल हुई अशरफुल आजा यानी चेहरे | से मुलाकी ( मुलाकात करने वाली ) हो । हज़रते इब्ने मसऊद से मरवी है कि फ़रमाया : जब तुम अपने हाथ अल्लाह तआला की बारगाह में उठा कर दुआ व सुवाल करो ( दुआ के बाद ) उन्हें मुंह पर फेर लो कि अल्लाह तआला हया व करम वाला है जब बन्दा अपने दोनों हाथ उठाता और सुवाल करता है तो अल्लाह तआला खाली हाथ फेरने से हया फ़रमाता है पस इस खैर को अपने मुंहों पर मस्ह करो ( या'नी रब्बे करीम हाथ खाली नहीं फेरता । ) या तो वोही खैर | जिस की तलब की गई या दूसरी ने'मत ब तकाज़ाए हिक्मत महमत फ़रमाता है लिहाज़ा ब नज़र उस ने'मत व बरकत के दुआ के बाद मुंह पर हाथ फेरना मुकर्रर हुवा ( ash हज़रते अनस से मरवी है कि फ़रमाया :
तर्जमा : - नविय्ये करीम अक्सर येह दुआ (Dua) ( या'नी मुतक्किरा दुआ ) फ़रमाया करते ।
अदब नम्बर 22 : - हत्तल वस्अ औकात व अमाकिन इजाबत को रिआयत करे । यानी वोह औकात और मकामात जो इजाबते दुआ (Dua) के अस्वाब हैं जहां तक कोशिश हो उन को मल्हूजे ख़ातिर रखे । इस की तफ्सील किताब ( अहसनुल विआइ लि आदाबिद्दुआइ ) जैलुल मुद्दआइ लि अहसनिल विआइ में देखिये (Duaa)
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