मुहर्रम महीने Muharram Month में पूछे जाने वाले मसाइल अशुरा, सोग/मातम, तजिएदारी ( Ashura, Matam, Tajiya ) से जुड़े होते हैं 2020 date kab hai in 2021 h
Muharram मोहर्रम के मसले-मसाइल आशूरा, मातम, ताजियादारी
Muharram |
मोरर्हम इसलामी साल का पहला महीना है । इस की फजीलत के लिये यही बहोत काफी है । मगर इस महीने की 10 वीं तारीख जिसे यौमे आशुरा मोहर्रम Ashura Muharram कहा जाता है । काफी फजीलत है ।
अमबिया अलैहिस्सलाम के खास वाकेआत इसी आशुरा मोहर्रम Muharram में जहूर पजीर हुवे है । फिर इस महीने को खास तौर पर आशुरे मोहर्रम को जिक्रे इमामे हुसैन पाक रजीअल्ला तआला अन्हा से बड़ा गहरा राब्ता ( तआल्लुक ) है । आशुरे के रोजे Ashure ke Roze की फजीलत भी आहादीस में मजकुर ( मौजुद ) है ।
फकीहे आज़मे हिंद हज़रत अल्लामा मुफ्ती अब्दुल रशीद फतेहपूरी अलैहिर्रहमा ने अपने कुतबे ( किताब ) फज़ाईले आशुरा बयान Fazail Ashura Bayan फरमाने के बाद कुछ मसाईल तहरीर फरमाये हैं । जिन्हे जानना हर | मुसलमान Musalman पर ज़रूरी है । जो मुन्दरजा जैल ( निचे ) दिये गये है ।
मुहर्रम महीने Muharram Month में पूछे जाने वाले मसाइल अशुरा, सोग/मातम, तजिएदारी ( Ashura, Matam, Tajiya ) से जुड़े होते हैं
आशुरा वगैरह / Ashura
मुहर्रम Muharam में आशुरा Ashura वगैरह के मसाईले
Muharram |
मसला : इसाले सवाब Isale Sawab यानी कुरआन मजीद दरूद शरीफ कलमा तैय्यबा और हर नेक काम ख्वा वह इबादत बदनी हो या माली फर्ज हो या नफिल सब का सवाब दूसरों को पहोंचाया जा सकता है ।
जिंदा का इसाले सवाब से इंतेकाल शुदा को सवाब पहोंचाता है । कुतबे फुकहा और अहादिसे मुबारका से इस का जवाज़ साबित है ।
मसला : माहे मोहर्रम Mahe Muharram में खुसूसन 10 वीं मोहर्रम को हजरत सैय्यदना इमाम हुसैन रदीयल्लाह तआला अन्हो Imam Hussain और दूसरे शोहदाये करबला को लोग इसाले सवाब करते है । खिच्डा और मुख्तलिफ किस्म के खाने पकवाते है ।
पानी और शरबत की सबिल लगाते है । जाड़ो में चाय पिलाते है । यह और जो भी कारे खैर करें सब का सवाब पहोंचाना जाईज और बाईसे खैरो बरकत है ।
मसला : बाज जाहिलों में मशहूर है कि वो मोहर्रम Muharram में सिवाये शोहदाये करबला के दूसरों की फातिहा नहीं हो सकती । यह बिल्कुल गलत है । जिस तरह दूसरे दिनों में सब की फातिहा हो सकती है मोहर्रम में भी हो सकती है ।
मसला : आशुरा मोहर्रम Ashura Muharram में मजालिस मुन्आकिद करना , इनमें वाकियाते करबला बयान करना जाईज है । जबकि सही रिवायत बयान की जाये और उन वाकियात में सब्र व तहेमल तसलीम व रजा का मुकम्मिल दर्स हो । और इत्तेबाए सुन्नत का ज़बरदस्त अमली सुबूत यह है कि दिने हक की हिफाजत में तमाम अकरबा अईज्जा रूपका और खुद अपने को इमामे आली मकाम ने राहे हक में कुरबान कर दिया और जज़ा व कज़ा का नाम तक ना आने दिया । ( इन्तेहा कलामा )
सोग-मातम / Matam
मुहर्रम Muharam में सोग / मातम Matam के मसाईले
Muharram |
आज कल कुछ लोगों में यह मशहूर है के मोहर्रम Muharram के इन 10 दिनों में ( और इस के बाद तीन दिन और ) गमे हुसैन पाक रदीअल्लाह अन्ह Imam Hussain का इजहार करने के लिये गोश्त नहीं पकाते , ना ही खाते है । नये कपडे नही पहनते है ।
शादी ब्याह , मंगनी नही करते है और मकसूद | सिर्फ इजहारे गम होता है । यह सब सोग Matam की अलामतें है । और सोग Matam का हुक्म यह है कि किसी के भी इंतेकाल के बाद तीन दिन तक सोग जाईज है ।
इसके बाद नही ( आम कुतबे फक्हा ) सरकारें इमामे हुसैन रदीअल्लाह तआला अन्हा Imam Hussain की शहादत को सदीयाँ गुज़री उनकी अज़ीम कुरबानीयों का असर तो अब भी बाकी है और कयामत तक रहेगा । उनका जिक्र किया जाये ।
लेकिन सोग Matam ना मनाया जाये और इजहारेगम के तौर पर नौहा वगैरह करने के बारे में हज़रत मुफ्ती अब्दुल रशीद साहब किबला अलैहिर्रहमा फरमाते है : बाज लोग इजहारे गम के लिये बाल बिखेरते है । कपड़े फाड़ते है । सर पर खाक ( मिट्टी ) डालते है ।
इसी सिलसिले में कहीं नौहा व मातम भी होता है । सीना इतनी जोर से कूटते है कि वरम आ जाता है । बाज जगह जंजीरों और छुरियों से मातम करते है कि सीने से खून बहने लगता है । यह सब चीजे नाजायज़ व हराम है । हदीस शरीफ में इनकी सख्त मुमानिअत है । मुसलमानों Musalman पर लाज़िम है कि इन बातों से परहेज करें ।
ताज़ीयादारी / Tajiya
मुहर्रम Muharram में ताज़ीयादारी Tajiya के मसाईले
Muharram |
ज़िक्रे स्वालेहिन के तहत यादे इमाम हुसैन रदीअल्लाह तआला अन्हो Imam Hussain के लिये इमामे आलीमकाम के रोज - ए - पुरनूर की शबीह मुबारक रखने में तो किसी का इख्तेलाफ नही है । जिस तरह काबा - ए - मुकद्दस की शबीह , गुंबदे खिजरा शरीफ की शबीह मस्जिदे अक्सा की शबीह तमाम मुसलमान Musalman घरों में लगाते है ।
और उसे | बा - बरकत समझते है । इसी तरह मोहब्बते अहलेबैत की नीशानी के तौर पर शबीह पाक रोज - ए - अकदस का घरों में रखना तो यकीनन बाईसे | बरकत है । लेकिन इस शबीह मुबारक के साथ असल का सुलूक करना | जायज नही ।
जैसे शबीह मुबारक में कब्र बना देना और फिर वहीं फातेहा | पढ़ना जायज नही है कि यह जाअली कब्र है और जाअली कब्र बनाना हराम है । आज कल कुछ शहरों में ताजीयादारी Tajiya के नाम पर कुछ खिलाफे शरीयत उमूर का रिवाज पड़ गया है ।
इसके मुताअल्लिक हमारे बुजूर्गो के अकवाल पर अमल पैरा और कारबंद होने की जरूरत है । इस मुरावज्जा ताजीयादारी Tajiya के मुताअल्लिक हजरत मुफ्ती अब्दुल रशीद फतेहपूरी अलैहिर्रहमा फरमाते है - " ताजीयादारी Tajiya को वाकीयाते करबला के सिलसिले मे तरह तरह के ढांचे बनाये जाते है ।
इस के अन्दर स्नुई कलें भी बनाते है और इनको हजरत सैय्यदना इमाम हुसैन रदीअल्लाह अन्हो Imam Hussain की शबीह बताते है । कहीं तख्त बनाये जाते है । कहीं | अलम निकाले जाते है । कहीं सवारी बिठाई जाती हैं । इनके सामने तरह | तरह के बाजे बजाये जाते है । इन पर हार फुल चढाये जाते है ।
शरबत , | मलीदा पर फातेहा ( मस्नुई कब्र पर ) दिलाते है । उनसे मन्नतें मांगते है । फिर 10 वीं मोहर्रम Muharram को यह ताजीये मस्नुई कर्बला में लेजाकर दफन कर | देते है । गोया यह जनाजा था । जिसे यह दफन कर आये है ।
कहीं बुर्राक | बनाते है जिसका कुछ हिस्सा इन्सानी शक्ल का होता है और कुछ | जानवर का सा । इसे इमाम आली मकाम की सवारी का जानवर बताते है । कहीं हज़रते कासिम रदीअल्लाहों की मेहंदी निकालते है । गोया |
उनकी शादी हो रही हो । कहीं हरकारा बनाते है , जिसकी कमर पर धुंगरू बांधते है । गोया यह इमामे आलीमकाम का कासिद है जो खत लेकर इब्ने ज़ियाद के पास जायेगा । कहीं सुक्का बनाते है और छोटी सी मुश्क इसके कांधे पर लटका देते है ,
गोया यह हजरते अब्बास अलमबरदार Hazrate Abbas Alambrdar है । जो दरीयाऐ फिरात से पानी भरकर लायेंगे । इसी किस्म की और बहोत सी बातें की जाती है । यह सब बिदआत और खुराफात है । | यह वाकिया तुम्हारे लिये नसीहत था , तुमने इसे खेल तमाशा बना लिया ।
( मआज अल्लाह ) कहीं आदमी शेर , रिच्छ , लंगूर , बंदर बनते है । और कूदते फिरते है । जिनको इस्लाम तो इस्लाम इंसानी तहेज़ीब भी जायज नही रखती । कहीं बच्चों को फकीर बनाते है और इनके गले में झोली डाल देते है
और घर - घर उनसे भीक मंगवाते है । कहीं मर्सीये पढे जाते है और मीयों में गलत वाकियात नज्म किये जाते है । इन में अहले बैत की बेहुर्मती , बेसब्री और जजाअ फजाअ का जिक्र किया जाता है ।
अक्सर मर्सीये राफजियों के है । जिन में तब भी होता है । बहोत से सुन्नी | ऐसे मर्सीये पढ़ जाते है और उन्हें एहसास भी नही होता है कि हम क्या पढ़ रहे है ।
( इला इन काल ) मुसलमानों Musalman पर लाज़िम है कि इन बातों से मुहर्रम महीने Muharram Month में परहेज़ करें । जी हाँ हम पर लाज़िम है कि मोहब्बते अहले बैत के तरीके पर अहले बैत का जिक्र करे । इनका चर्चा आम करें.