Shab E Meraj Ka Waqia In Hindi: shab-e-meraj the complete story ka waqia written wikipedia शब् ए मेराज सातो आसमान का वाक़िअ अल्लाह का दीदार और कलाम
Shab E Meraj Ka Waqia In Hindi: शब ए मेराज की वो मुक़द्दस रात हैं, जो अल्लाह ने अपने प्यारे नबी सल्लल्लाहो अलयवसल्लम को अपने पास बुलाया और जन्नत - दोजख की सैर करवाई, अपने लाखो पैगम्बर का इमाम बनाया।
Meraj E Mustafa की रात अल्लाह के हबीब सल्लल्लाहो अलैवसल्लम सातो आसमान की सैर करे। निचे हमने सतो आसमान यानि पहले आसमान से लेकर सतो आसमान और अल्लाह से मुलाकात का Shab E Meraj Ka Waqia In Hindi निचे इस पोस्ट के जरिये दिया हैं।
साथ ही Meraj Un Nabi की रात अल्लाह के रसूल ने अल्लाह का दीदार और अल्लाह से कलाम भी किया ये सब निचे इस पोस्ट में दिया गया हैं।
Shab E Meraj Ka Waqia सातो आसमानो सफर In Hindi
आस्मान की तरफ उरूज शब् ऐ मेराज Shab E Meraj
- पहला आस्मान
बैतुल मुक़द्दस के मुआमलात से फ़ारिग होने के बाद प्यारे प्यारे आका ,मोहम्मद मुस्तफा ने आस्मान की तरफ़ सफ़र शुरूअ फ़रमाया और हर बुलन्दी को पस्त फ़रमाते हुवे तेजी से आस्मान की तरफ बढ़े चले गए , आन की आन में पहला आस्मान आ गया ।
रिवायत में है कि आप मोहम्मद मुस्तफा इस के एक दरवाजे पर तशरीफ़ लाए जिसे बाबुल हफ़ज़ह कहा जाता है , इस पर इस्माईल नामी एक फ़िरिश्ता मुक़र्रर है ।
हज़रते जिब्राईल ने दरवाजा खुलवाना चाहा ।
पूछा गया : कौन है ?
हज़रते जिब्रीले अमीन ने जवाब दिया : जिब्रील हूं ।
पूछा गया : आप के साथ कौन हैं ?
जवाब दिया : मुहम्मद मुस्तफ़ा मोहम्मद मुस्तफा
पूछा गया : क्या इन्हें बुलाया गया है ?
जवाब दिया : हां ।
इस पर कहा गया : या'नी खुश आमदीद ! क्या ही अच्छा आने वाला आया है !!! " फिर दरवाज़ा खोल दिया । जब आप मोहम्मद मुस्तफा दरवाजे से गुज़र कर आस्मान के ऊपर तशरीफ़ लाए तो देखा कि हज़रते आदम तशरीफ़ फ़रमा हैं ।
हज़रते जिब्राईल ने अर्ज़ किया : येह आप मोहम्मद मुस्तफा के वालिद हज़रते आदम हैं , इन्हें सलाम फ़रमाइये । आप मोहम्मद मुस्तफा ने सलाम कहा । उन्हों ने सलाम का जवाब दिया , फिर आप मोहम्मद मुस्तफा को खुश आमदीद करते हुवे कहने लगे या'नी सालेह बेटे और सालेह नबी को खुश आमदीद ।
- जन्नती व जहन्नमी अरवाह
सय्यिदे र आलम , नूरे मुजस्सम जन्नती व जहन्नमी अरवाह सय्यिदे र आलम , नूरे मुजस्सम मोहम्मद मुस्तफा ने हज़रते आदम के दाएं बाएं कुछ लोगों को मुलाहज़ा फ़रमाया , जब आप मोहम्मद मुस्तफा अपनी दाई जानिब देखते तो हंस पड़ते हैं
और जब बाई जानिब देखते तो रो पड़ते हैं । हज़रते जिब्राईल ने अर्ज़ किया : इन के दाई और बाई जानिब जो येह सूरतें हैं येह इन की अवलाद हैं , दाई जानिब वाले जन्नती हैं और बाई जानिब वाले जहन्नमी हैं ।
- दूसरा आसमान
इस के बाद प्यारे आका मोहम्मद मुस्तफा ने दूसरे आस्मान की तरफ़ सफ़र शुरूअ फ़रमाया , आन की आन में दूसरा आस्मान भी आ गया और यहां भी वोही मुआमला पेश आया कि
हज़रते जिब्राईल ने दरवाजा खुलवाना चाहा ।
पूछा गया : कौन है ? हज़रते जिब्रीले अमीन .ने
जवाब दिया : जिब्रील हूं ।
पूछा गया : आप के साथ कौन हैं ?
जवाब दिया : मोहम्मद मुस्तफा
पूछा गया : क्या इन्हें बुलाया गया है ?
जवाब दिया : हां ।
इस पर कहा गया या'नी खुश आमदीद ! क्या ही अच्छा आने वाला आया है !!! " फिर दरवाज़ा खोल दिया । जब आप मोहम्मद मुस्तफा दरवाजे से गुज़र कर आस्मान के ऊपर तशरीफ़ लाए तो हज़रते यया Rahmatullah Tala Alaih और हज़रते ईसा को मुलाहज़ा फ़रमाया , येह दोनों ख़ालाज़ाद भाई हैं ।
हज़रते जिब्राईल .ने अर्ज किया : येह हज़रते यया और हज़रते ईसा इन्हें सलाम फ़रमाइये । आप मोहम्मद मुस्तफा ने सलाम कहा । उन्हों ने सलाम का जवाब दिया फिर आप मोहम्मद मुस्तफा को खुश आमदीद करते हुवे कहने लगे : या'नी सालेह भाई और सालेह नबी को खुश आमदीद
- तीसरा आस्मान
फिर तीसरे आस्मान की तरफ़ सफ़र शुरू हुवा , जब वहां पहुंचे
हज़रते जिब्रीले अमीन ने दरवाजा खुलवाना चाहा ।
पूछा गया : कौन है ?
फ़रमाया : जिब्रील ।
पूछा गया : आप के साथ कौन हैं ?
फ़रमाया : मुहम्मद मुस्तफ़ा صلى الله عليه وسلم
पूछा गया : क्या इन्हें बुलाया गया है ?
फ़रमाया : हां ।
इस पर कहा गया खुश आमदीद ! क्या ही अच्छा आने वाला आया है !!! " फिर दरवाज़ा खोल दिया गया । दरवाजे से गुज़र कर जब आप صلى الله عليه وسلم आस्मान के ऊपर पहुंचे तो हज़रते यूसुफ़ को मुलाहज़ा फ़रमाया ।
हज़रते जिब्राईल ने अर्ज किया : येह हज़रते यूसुफ़ हैं इन्हें सलाम फरमाइये । आप صلى الله عليه وسلم ने सलाम कहा । उन्हों ने सलाम का जवाब दिया और फिर आप صلى الله عليه وسلم को खुश आमदीद करते हुवे कहने लगे सालेह भाई और सालेह नबी को खुश आमदीद ।
- चौथा आस्मान
फिर चौथे आस्मान की तरफ़ सफ़र शुरू हुवा , वहां पहुंच कर भी येही मुआमला हुवा कि हज़रते जिबीले अमीन ने दरवाजा खुलवाना चाहा ।
पूछा गया : कौन है ?
फ़रमाया : जिब्रील ।
पूछा गया : आप के साथ कौन हैं ?
फ़रमाया : मुहम्मद मुस्तफ़ा صلى الله عليه وسلم
पूछा गया : क्या इन्हें बुलाया गया है ?
फ़रमाया : हां ।
इस पर कहा गया खुश आमदीद ! क्या ही अच्छा आने वाला आया है !!! " और फिर दरवाज़ा खोल दिया गया । इस से गुज़र कर जब प्यारे आका صلى الله عليه وسلم आस्मान के ऊपर तशरीफ़ लाए तो हज़रते इदरीस को मुलाहज़ा फ़रमाया ।
हज़रते जिब्राईल ने अर्ज किया : येह हज़रते इदरीस हैं , इन्हें सलाम फ़रमाइये । आप صلى الله عليه وسلم ने सलाम कहा । उन्हों ने सलाम का जवाब दिया और फिर आप को खुश आमदीद करते हुवे कहा : सालेह भाई और सालेह नबी को खुश आमदीद ।
- पांचवें आस्मान
की तरफ़ सफ़र का आगाज़ फ़रमाया , यहां पहुंच कर भी हज़रते जिब्रीले अमीन ने दरवाजा खुलवाना चाहा ।
पूछा गया : कौन है ?
फ़रमाया : जिब्रील ।
पूछा गया : आप साथ कौन हैं ?
फ़रमाया : मुहम्मद मुस्तफ़ा ﷺ
पूछा गया : क्या इन्हें बुलाया गया है ?
फ़रमाया : हां ।
इस पर कहा गया : खुश आमदीद ! क्या ही अच्छा आने वाला आया है !!! " फिर दरवाज़ा खोल दिया । सय्यिदे आलम , नूरे मुजस्सम , ﷺ दरवाजे से गुज़र कर आस्मान के ऊपर तशरीफ़ लाए और हज़रते हारून को मुलाहज़ा फ़रमाया ।
हज़रते जिब्राईल ने अर्ज किया : येह हज़रते हारून हैं , इन्हें सलाम फ़रमाइये । आप ने सलाम कहां , उन्हों ने सलाम का जवाब दिया और फिर आप ﷺ को खुश आमदीद करते हुवे कहा या'नी सालेह भाई और सालेह नबीको खुश आमदीद ।
- छटा आस्मान
पांचवें आस्मान पर हज़रते सय्यिदुना हारून से मुलाकात फरमाने के बाद प्यारे आका , मीठे मुस्तफा ﷺ छटे आस्मान पर तशरीफ़ लाए । हज़रते जिब्रीले अमीन . दरवाज़ा खुलवाना चाहा ।
पूछा गया : कौन है ?
फ़रमाया : जिब्रील ।
फिर पूछा गया : आप के साथ कौन हैं ?
फ़रमाया : मुहम्मद मुस्तफा ﷺ
पूछा गया : क्या इन्हें बुलाया गया है ?
फ़रमाया : हां ।
इस पर कहा गया खुश आमदीद ! क्या ही अच्छा आने वाला आया है !!! " फिर दरवाजा खोल दिया गया । सरकारे आली वकार , महबूबे रब्बे गफ्फार ﷺ दरवाजे से गुज़र कर आस्मान के ऊपर तशरीफ़ लाए और यहां हज़रते मूसा कलीमुल्लाह को मुलाहज़ा फ़रमाया । हज़रते जिब्राईल ...
अर्ज गुज़ार हुवे : येह हज़रते मूसा हैं , इन्हें सलाम फरमाइये । आप ﷺ ने सलाम कहा । उन्हों ने सलाम का जवाब दिया फिर आप ﷺ को खुश आमदीद करते हुवे कहा सालेह भाई और सालेह नबी को खुश आमदीद ।
" हज़रते मूसा से मुलाकात फ़रमाने के बाद जब शाहे आदमो बनी आदम , रसूले मोहूतशम ﷺ आगे बढ़े तो हज़रते मूसा गिर्या फ़रमाने लगे ।
दरयाफ्त किया गया ﷺ को किस चीज़ ने रुलाया ? फ़रमाया : मुझे इस बात ने रुलाया है कि एक नौजवान जो मेरे बाद मबऊस हुवे उन की उम्मत में से दाखिले जन्नत होने वाले लोगों की तादाद मेरी उम्मत में से दाखिले जन्नत होने वालों से ज़ियादा होगी ।
- सातवें आस्मान
फिर सातवे आसमान पर तशरीफ़ लाए , यहां भी हज़रते जिब्रीले अमीन ने दरवाजा खुलवाना चाहा ।
पूछा गया : कौन है ?
फ़रमाया : जिब्रील ।
पूछा गया : आप के साथ कौन हैं ?
फ़रमाया : मुहम्मद मुस्तफ़ा ﷺ
पूछा गया : क्या इन्हें बुलाया गया है ?
फ़रमाया : हां ।
इस पर कहा गया खुश आमदीद ! क्या ही अच्छा आने वाला आया है !!! " फिर दरवाज़ा खोल दिया । जब प्यारे आका मुस्तफा दरवाजे से गुज़र कर आस्मान के ऊपर तशरीफ़ लाए तो हज़रते इब्राहीम ख़लीलुल्लाह को मुलाहज़ा फ़रमाया , आप मुस्तफा बैतुल मा'मूर से टेक लगाए तशरीफ़ फ़रमा थे ।
हज़रते जिब्राईल ने अर्ज किया : येह आप के वालिद हैं , इन्हें सलाम कहिये । आप Mohammad मुस्तफा ने सलाम कहा , उन्हों ने सलाम का जवाब दिया ।
फिर आप Mohammad मुस्तफा को खुश आमदीद करते हुवे कहा सालेह बेटे और सालेह नबी को खुश आमदीद बैतुल मा'मूर फ़िरिश्तों का क़िब्ला है , का'बए मुअज्जमा के मुक़ाबिल सातवें आस्मान के ऊपर है ,
बा'ज़ रिवायात में है कि हुजूरे अन्वर Mohammad मुस्तफा ने वहां फ़िरिश्तों को नमाज़ पढ़ाई जैसे बैतुल मुक़द्दस में नबियों को पढ़ाई थी ।
( मिरआतुल मनाजीह , में राज का बयान , पहली फ़स्ल , 8/144 )
Shab E Meraj में सिदतुल मुन्तहा Ka Waqia In Hindi
सातवें आस्मान पर हज़रते इब्राहीम खलीलुल्लाह से मुलाकात फ़रमाने के बाद सय्यिदे वाला तबार , दो आलम के ताजदार Mohammad मुस्तफा सिद्रतुल मुन्तहा के पास तशरीफ़ लाए ।
येह एक नूरानी बैरी का दरख्त है , जिस की जड़ छटे आस्मान पर और शाखें सातवें आस्मान के ऊपर हैं , इस के फल | मकामे हजर के मटकों की तरह बड़े बड़े और पत्ते हाथी के कानों की तरह हैं ।
हज़रते जिब्राईल . ने अर्ज़ किया : येह सिद्रतुल मुन्तहा है । प्यारे आका Mohammad मुस्तफा ने यहां चार नरें मुलाहज़ा फ़रमाई जो सिद्रतुल मुन्तहा की जड़ से निकलती थीं , इन में से दो तो ज़ाहिर थीं और दो खुफ़्या ।
आप Mohammad मुस्तफा ने हज़रते जिब्राईल . से दरयाफ्त फ़रमाया : ऐ जिब्राईल ! येह नहरें कैसी हैं ? अर्ज किया : ख़ुफ़िया नहरे तो जन्नत की हैं । और ज़ाहिरी | नहरे नील और फुरात हैं ।
Shab E Meraj में मकामे मुस्तवा Ka Waqia In Hindi
जब प्यारे आका , मुस्तफ़ा صلى الله عليه وسلم सिद्रतुल मुन्तहा से आगे बढ़े तो हज़रते जिब्राईल Rahmatullah Tala Alaih . वहीं ठहर गए और आगे जाने से मा'ज़िरत ख़्वाह हुवे ।
फिर आप صلى الله عليه وسلم आगे बढ़े और बुलन्दी की तरफ़ सफ़र फ़रमाते हुवे एक मकाम पर तशरीफ़ लाए जिसे मुस्तवा कहा जाता है , यहां आप صلى الله عليه وسلم ने कलमों की चर चराहट समाअत फ़रमाई ।
येह वोह कलम थे जिन से फ़िरिश्ते रोज़ाना के अहकामे इलाहिय्या लिखते हैं और लौहे महफूज से एक साल के वाकिआत अलग अलग सहीफ़ों में नक्ल करते हैं और फिर येह सहीफे शा'बान की पन्दरहवीं शब मुतअल्लिका हुक्काम फ़िरिश्तों के हवाले कर दिये जाते हैं ।
अर्श उला से भी ऊपर शब् ऐ मेराज Shab E Meraj Ka Waqia In Hind
फिर मुस्तवा से आगे बढ़े तो अर्श आया , आप मोहम्मद मुस्तफा उस से भी ऊपर तशरीफ़ लाए और फिर वहां पहुंचे जहां खुद " कहां " और " कब " भी ख़त्म हो चुके थे क्यूंकि येह अल्फ़ाज़ जगह और ज़माने के लिये बोले जाते हैं
और जहां | हमारे हुजूरे अन्वर मोहम्मद मुस्तफा रौनक अफ्रोज़ हुवे वहां जगह थी न जमाना । इसी वजह से इसे ला मकां कहा जाता है ।
यहां अल्लाह Allah रब्बुल इज्जत ने अपने प्यारे मोहम्मद मुस्तफा को वोह कुर्बे ख़ास अता फरमाया कि न किसी को मिला न मिले ।
हृदीस शरीफ़ में इस के बयान के लिये का - ब क़ौसैन के अल्फ़ाज़ इस्ति'माल किये गए हैं । जिन्हें उस वक्त इस्ति'माल किया जाता है जब इन्तिहाई कुर्ब और नज़दीकी बताना मक्सूद होता है ।
दीदारे इलाही और हम कलामी का शरफ़
मोहम्मद मुस्तफा ने बेदारी की हालत में सर की आंखों से अपने प्यारे रब Allah तबारक व तआला का दीदार किया कि पर्दा था न कोई हिजाब , ज़माना था न कोई मकान , फ़िरिश्ता था न कोई इन्सान , और बे वासिता कलाम का शरफ़ भी हासिल किया ।
ला मकां की वही वोह वही क्या थी जो रब तआला ने इस कुर्बे ख़ास में बन्दए खास की तरफ़ फ़रमाई और क्या राज़ नियाज़ हुवे , बुखारी शरीफ़ की हदीस में इसे इन अल्फ़ाज़ में बयान किया गया है
या'नी रब ने अपने बन्दे की तरफ़ जो वही की वोह की । " अकसर मुहक्किकीन फ़रमाते हैं कि उस वही का मज़मून किसी को मालूम नहीं कि मुहिब्ब और महबूब के असरार दूसरों पर जाहिर नहीं किये जाते ,
अगर खुदा को इन का इज़हार मक्सूद होता खुद ही बयान फ़रमा देता जब उस ने बयान नहीं किया कि फ़रमाया : वही की अपने बन्दे की तरफ़ जो वही की , तो किस की मजाल है कि दरयाफ्त करे ?
बहर हाल मुख़्तसर तौर पर इतना कहा जा सकता है कि दीनो दुन्या की जिस्मानी व रूहानी , ज़ाहिरी व बातिनी ने'मतों और उलूमो मआरिफ़ जो कुछ भी अल्लाह Allah अपने हबीब मोहम्मद मुस्तफा को अपनी हिक्मत के मुताबिक़ अता फरमाना चाहता था
वोह सब कुछ Shab E Meraj Ka Waqia की रात शब् ए मेराज अता फ़रमा दिया अलबत्ता हर ने'मत और हर इल्म व हिक्मत का जुहूर अपने अपने वक्त पर हुवा और होता रहेगा ।