इफ्तार Iftar के वक़्त हर रोज़दार की दुआ क़ुबूल होती हैं और इफ्तार में दुआ Dua मांगने से मुराद खुश खास इस्लाही बाते
दुआ Dua ऐसे होंगी क़ुबूल इफ्तार Iftar में
इफ्तार Iftar के वक़्त हर रोज़दार की दुआ क़ुबूल होती हैं और इफ्तार में दुआ Dua मांगने से मुराद खुश खास इस्लाही बाते
इफ्तार Iftar के वक्त दुआ Dua क़बूल होती है :
( 1 ) " बेशक रोज़ादार के लिये इफ्तार के वक्त एक ऐसी दुआ होती है जो रद नहीं की जाती । "
( 2 ) " तीन शख्सों की दुआ Dua रद नहीं की जाती
- बादशाहे आदिल की और
- रोज़ादार की ब वक्ते इफ्तार और
- मज्लूम की । इन तीनों की दुआ Dua अल्लाह 5 बादलों से भी ऊपर उठा लेता है और आस्मान के दरवाजे उस के लिये खुल जाते हैं और अल्लाह फ़रमाता है : " मुझे मेरी इज्जत की क़सम ! मैं तेरी ज़रूर मदद फ़रमाऊंगा अगर्चे कुछ देर बा'द । "
इफ्तार Iftar के दुआ Dua के वक़्त हम खाने पीने में रह जाते हैं
इफ्तार के वक्त दुआ कबूल होती है , आह ! इस कबूलिय्यत की घड़ी में हमारा नफ्स इस मौकअ पर सख्त आजमाइश में पड़ जाता है । क्यूं कि इस वक्त अक्सर हमारे आगे अन्वाओ अक्साम के फलों , कबाब , समोसों , पकोड़ों के साथ साथ गरमी का मौसिम हो तो ठन्डे ठन्डे शरबत के जाम भी मौजूद होते हैं ,
इधर सूरज गुरूब हुवा , उधर खानों और शरबतों पर हम ऐसे टूट पड़ते हैं कि दुआ Dua याद ही नहीं रहती ! दुआ Dua तो दुआ Dua हमारे कुछ इस्लामी भाई इफ्तार Iftar के दौरान खाने पीने में इस क़दर मश्गूल हो जाते हैं कि उन को नमाजे मगरिब की पूरी जमाअत तक नहीं मिलती , बल्कि बा'ज़ तो इस क़दर सुस्ती करते हैं कि घर ही में इफ़्तार Iftar कर के वहीं पर बिगैर जमाअत नमाज़ पढ़ लेते हैं । तौबा ! तौबा !!
जन्नत के तलब गारो ! इतनी भी गफलत मत कीजिये !! नमाजे | बा जमाअत की शरीअत में निहायत सख्त ताकीद आई है । याद रखिये ! बिला किसी सहीह शरई मजबूरी के मस्जिद की पन्ज वक्ता नमाज़ की पहली जमाअत तर्क कर देना गुनाह है ।
गिज़ा से इफ्तार Iftar के बाद नमाज़ के लिये मुंह साफ़ करना ज़रूरी है
'बेहतर येह है कि एकआध खजूर से इफ्तार Iftar कर के फ़ौरन अच्छी तरह मुंह साफ़ कर ले और नमाजे बा जमाअत में शरीक हो जाए । आज कल मस्जिद में लोग फल पकोड़े वगैरा खाने के बाद अच्छी तरह मुंह साफ़ नहीं करते यूं ही जमाअत में शरीक हो जाते हैं हालां कि गिज़ा का मामूली ज़र्रा या जाएका भी मुंह में नहीं होना चाहिये
मुतअद्दिद अहादीस में इर्शाद हुवा है कि " जब बन्दा नमाज़ को खड़ा होता है फ़िरिश्ता उस के मुंह पर अपना मुंह रखता है येह जो पढ़ता है इस के मुंह से निकल कर फ़िरिश्ते के मुंह में जाता है उस वक़्त अगर खाने की कोई शै उस के दांतों में होती है मलाएका को उस से ऐसी सख़्त । ईजा होती है कि और शै से नहीं होती । "
हुजूरे अकरम , नूरे मुजस्सम , शाहे बनी आदम , रसूले मोहूतशम ने फ़रमाया : जब तुम में से कोई रात को नमाज़ के लिये खड़ा हो तो चाहिये कि मिस्वाक कर ले क्यूं कि जब वोह अपनी नमाज़ में किराअत करता है तो फ़िरिश्ता अपना मुंह इस के मुंह पर रख लेता है और जो चीज़ इस के मुंह से निकलती है वोह फ़िरिश्ते के मुंह में दाखिल हो जाती है ।
और " तबरानी ने कबीर " में हज़रते सय्यिदुना अबू अय्यूब अन्सारी ' से रिवायत की है कि दोनों फ़िरिश्तों पर इस से ज़ियादा कोई चीज़ गिरां नहीं कि वोह अपने साथी को नमाज पढ़ता देखें और उस के दांतों में खाने के रेजे फंसे हों ।
मस्जिद में इफ्तार Iftar करने वालों के लिये अक्सर मुंह साफ़ करना दुश्वार होता है कि अच्छी तरह सफ़ाई करने बैठे तो जमाअत निकल जाने का अन्देशा होता है लिहाज़ा मश्वरा है कि सिर्फ एकआध खजूर खा कर पानी पी लें पानी को मुंह के अन्दर खूब जुम्बिश दें या'नी हिलाएं ताकि खजूर की मिठास और उस के अज्ज़ा छूट कर पानी के साथ पेट में चले जाएं ज़रूरतन दांतों में खिलाल भी करें ।
अगर मुंह साफ़ करने का मौक़अ न मिलता हो तो आसानी इसी में है कि सिर्फ पानी से इफ्तार कर लीजिये । मुझे वोह रोज़ेदार बड़े प्यारे लगते हैं जो तरह तरह की ने'मतों के थालों से बे नियाज़ हो कर गुरूबे आफ्ताब से पहले पहले मस्जिद की पहली सफ़ में , पानी ले कर बैठ जाएं कि इस तरह इफ्तार से जल्दी फ़रागत भी मिले , मुंह भी साफ़ रहे और पहली सफ़ में तक्बीरे ऊला के साथ बा जमाअत नमाज़ भी नसीब हो जाए ।
गुज़श्ता हदीसे मुबारक में फ़रमाया गया है कि " इफ्तार Iftar के वक्त दुआ Dua रद नहीं की जाती । " बा'ज़ अवक़ात कबूलिय्यते दुआ के इज़्हार में ताख़ीर हो जाती है तो ज़ेह्न में येह बात आती है कि दुआ आखिर कबूल क्यूं नहीं हुई ! जब कि हदीसे मुबारक में तो कबूले दुआ की बिशारत आई है । ब ज़ाहिर ताख़ीर से न घबराइये ।
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