Kana Dajjal कौन हैं ?, Kana Dajjal और इस्लाम , kahan hai, where is dajjal now, photo, kana dajjal movie, kana dajjal in english, dajjal island
बात आख़िरत की आती हैं तो अक्सर हर मुस्लमान के दिमाग में Kana Dajjal का नाम पहले आता है,
और वो काना दज्जाल के बारे में जानने के लिए उतावला होता हैं, दिमाग में सवाल आते हैं की काना दज्जाल कौन है?, कहां है?, कब बरआमद होगा?
हम क्यू ना जाने, क्यू की Kana Dajjal एक इस्लाम का दुश्मन मतलब विलन हैं
और हर मुस्लमान का दुश्मन शैतान हैं।
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फितनए Kana Dajjal .
Fitnae Dajjal का आगाज़ तो यकीनन हो चुका है। इसका सरबराहे आज़म कौन होगा? इसका नुक्तए उरूज कौन सा लम्हा होगा? और हम इस लम्हे से कितनी दूर हैं या हम दज्जाल के अहद में ही जी रहे हैं?
थे वे तीन सवाल हैं जो हर उस ज़ेहन में गर्दिश करते हैं जो दुनिया को सिर्फ दुनिया तक और माहियत तक महदूद नहीं समझता,
आख़िरत पर यकीन और रूहानियत और मादियत के दर्मियान होने वाली जबरदस्त कशमकश पर नज़र रखता है और यह भी यकीन रखता है,
कि रोजे क्यामत इससे जरूर इस हवाले से सवाल किया जाएगा कि ईमान व मादियत के इस अज़ीम मअरके में उसने अपना वज़न किस पड़े में डाला था और इस हवाले से उसका रवय्या और किरदार क्या था?
Kana Dajjal कौन हैं ?
बाज़ हज़रात का कहना है कि हज़रत मूसा अलै0 के ज़माने में बनी इस्टाईल को गुमराह करके शिर्क में मुब्तल़ा करने वाला सामरी दरहकीकत काना दज्जाल था।
काना दज्जाल का आलमे एशिया में तसर्रुफ् का जो भरपूर इद़््तियार दिया गया है उसके तहत सोने से बनाए गए बछड़े को मुतहर्रिक, जानदार और आवाज़ लगाने वाला बना देना कुछ भी बईद नहीं ।
इसकी दलील यह है कि हजरत मूसा अलै0 ने सामरी से इतना जबरदस्त जुर्म सरज़द होने के बावजूद उसे जाने दिया और जो बनी इस्राईल उसके वरगलाने पर शिर्क में मुब्तला हुए थे,
उनकी तौबा यह तै हुई कि उनको कत्ल किया जाए।
आपने सामरी से फ्रमायाः "बेशक तेरे लिये एक वक्त मुर्करर हैं जिस से तू आगे पीछे न हो सकेगा।”
यह इसलिये कि सामरी को उस वक्त कत्ल किया जाना मक्सूद न था। दज्जाल जो मसीहे काज़िब है, की मौत तो हज़रत ईसा अलै0 के हाथ पर लिखी हुई है जो मसीह सादिक हैं।
जब सामरी से कहा गया : “चला जा तेरी यह सज़ा है कि जिंदगी भर कहेगा मुझे न छुओ।”
तो दज्जाल अलमुसम्मा घिसामरी मज्रूह हालत में वहां से ग़ायब हो गया और अब कहीं रूपोश है।
यह राए हाल ही में दज्जालियत के हवाले से शोहरत पाने वाले मुसन्निफ् जनाब इसरार आलम की है।
इसकी ताईद में कोई कौल बंदा को नहीं मिला और सामरी जादूगर के बारे में जो तफसीलाते कूतुब तफसीर व तारीख़ में वारिद हुई हैं वह दज्जाल पर मुंतबिक् होती दिखाई नहीं देतीं ।
मसलनः वह यक चश्म न था। उसकी आंखों के दरमियान काफिर लिखा हुआ न था। हजरत मूसा अलै0 ने उसे कहीं कैद नहीं किया था जबकि काना दज्जाल बेड़ियों में मुकैयद है।
सामरी को ताहयात सजा दी गई थी कि वह हर आने वाले से यह कहता था: “मुझे मत छुओ।” Kana Dajjal ऐसा न कहेगा। बह तो सारी दुनिया को अपने करीब करने की फिक्र में होगा।
फिर अगर सामरी ही दज्जाल होता तो हदीस शरीफ में कहीं कोई इशारा मिलना चाहिये था। दज्जाल के मुतअल्लिक् हदीस शरीफ में तफसीली अलामात हैं लेकिन कहीं यह जिक्र नहीं कि वह हजारों साल पहले वाला सामरी था।
Kana Dajjal और इस्लाम
बंदा इस हवाले से अर्सए दराज़ तक मुतालआ, जुस्तजू और तफतीशी काविशों में लगा रहा लेकिन एक आध मर्तबा हल्का सा मुब्हम किस्म का ज़िक्र करने के अलावा कभी इस मौजू को बराहे रास्त नहीं छेड़ा।
अल्लाह तआला जजाए खैर दे उन इल्मी शख़्सियात को जो इस मौजू पर उम्मत को बेहत्तरीन मालूमात से आगाह रखते और बरवक्त नसीहतें करते रहते हैं।
इन हज़रात के नाम बंदा की किताब “आलमी यहूदी तंजीमें” के मुकहमे में दिये गए हैं और इस किताब॑ के आख़िर में इनकी तसनीफ कर्दा मालूमाती किताबों का तजकिरा भी किया गया है।
आलमे अरब में सऊदी अरब के डाक्टर अब्दुरहमान अलहवाली और मिस्र के उस्ताज॒ मुहम्मद अमीन जमालुद्दीन और हिशाम मुहम्मद ने इस हवाले से शानदार काम किया है।
डाक्टर अलहवाली किताबों का तर्जुमा रज़ीउद्दीन सय्यद ने और उस्ताद अलअमीन की किताबों का तर्जुमा प्रोफेसर खुर्शद आलम, कुरआन कालेज लाहौर ने किया है।
हमारे बुजुर्गों में से मौलाना मनाज़िर अहसन गीलानी ने “दज्जाली फिलना के नुमायां ख़दूद व खाल” और मौलाना सय्यद अबुल हसन अली नदवी रह० ने “मअरकए ईमान व मादियत” में दज्जाल की शख़्सियत और,
और फिले की नौइय्यत पर सूरह कहफ की रौशनी में मुफस्सल और मुहक़्कक गुफ्तगू की है जो लाइके दीद है। मुआसिरीन में रजीउद्दीन सय्यद और जकीउद्दीन शर्फी (कराची) के अलावा इसरार आलम (भारत) ने बहुत कुछ लिखा है
(मुअख़िबिरुज़जकर का काम अगर्चे सब से वकी और मुफस्सल है लेकिन वह कुछ जगहों पर राहे एतिदाल से हट गये हैं और अपने कलम को बहकने और अपनी फिक्र को जम्हूर की तावील व तफसीर, तशरीह व तौजीह से हट जाने से बचा नहीं सके ।
मसलन तफसीरी जखीरा और फिक्ट इस्लामी पर उनके गैर मुनासिब तबसिरे बाइसे तअज्जुब व अफसोस हैं। अल्लाह तआला उनकी छिदमात को कबूल फ्रमाए,
और कोताहियों से दरगुज़र फ्रमाए मौलाना आसिम उमर और आसिफु मजीद नक्शवंदी ने हज़रत मेहदी और फिल्ए दज्जाल की असी तत्वीक में काफी काविश की है।
हाल ही में कामरान रअद की “फुरी मैसजी और दज्जाल” नामी शानदार किताब तखलीकात लाहौर से छप कर सामने आई है। अल्लाह तआला सब की मेहनतें कबूल फ्रमाएं।
बाइसे तअज्जुब यह है कि इतनी मुतअद्विद काविशों के बावजूद और इतनी मुततनववोज आवाजें लगने के बावजूद अवाम व ख़्वास में इस हवाले से ख़ास फिक्र व तशवीश और तैयारी व दिफाअ के आसारे दौर तक दिखाई नहीं देते ।
दरअसल जब तक ग़्वास इस पर भरपूर तवच्जुह नहीं देंगे, अवाम कहां इसकी जृहमत गवारा करेंगे कि इस आलमगीर फिल्ने से आगाही हासिल करें और इससे हिफाजत के तकाज़ों को समझें?
जेरे नज़र तहरीर का मकसद तजस्सुस फैलाना नहीं, हिफाज़ते ईमान की दावत को आगे बढ़ाना और शैतानी फिलों से अपनी, अपने मुतअल्लिकीन और अहले इस्लाम के तहफ़्फुज की तरफ मुतवज्जेह करना है,
वल्लाह वलीयुत्तौफीक । Kana Dajjal कौन है? इस हवाले से मुख़्तलिफ बातें की जाती रही हैं। बाज़ तो इतनी मजहका खेज़ हैं कि बेइ्तियार हंसी आती है।
हम इनसे सर्फे नज़र करते हुए यहां तीन मशहूर अक्वाल जिक्र करके इन पर तब्सिरा करते हुए चलेंगे।
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