Roza Rakhne (sehri) Ki Niyat और Roza Kholne (Iftar) Ki dua In Hindi, arabic, roman english रोज़ा सेहरी खोलने दुआ और इफ्तार की नियत हिंदी, अरबी, इंग्लिश
Roza Rakhne Ki Niyat रोज़ा रखने की सहरी की नियत और दुआ Hindi.

Roza_Rakhne_Ki_Niyat

Roza Rakhne Ki Niyat Hindi - रोजे के लिये निय्यत शर्त है । लिहाज़ा " बे निय्यते रोज़ा अगर कोई इस्लामी भाई या इस्लामी बहन सुब्हे सादिक़ के बाद से ले कर गुरूबे आफ़्ताब तक बिल्कुल न खाए पिये तब भी उस का रोज़ा न होगा "
रमजान शरीफ़ Ramzan Sharif का रोज़ा हो या नफ्ल या नजे मुअय्यन का रोज़ा ( या'नी अल्लाह के लिये किसी मख्सूस दिन के रोजे की मन्नत मानी हो मसलन खुद सुन सके इतनी आवाज़ से यूं ऊपर वाली Roza Rakhne Ki Niyat रोज़ा रखें सहरी की नियत की दुआ हो जो की हिंदी Hindi में और दीगर भाषा में हैं
तो येह नजे मुअय्यन है और इस मन्नत का पूरा करना वाजिब हो गया । इन तीनों किस्म के रोज़ों के लिये गुरूबे आफ़्ताब के बाद से ले कर " निस्फुन्नहारे शरई " (रोज़ा रखने)( इसे ज़हूवए कुब्रा भी कहते हैं ) से पहले पहले तक जब भी निय्यत कर लें रोज़ा हो जाएगा ।
Roza Rakhne Ki Niyat Aur Roza Kholne Ki Niyat Hindi, Roman English Aur Arabic main
Roza Rakhne Ki Niyat Aur Dua
इस्लाम हर काम करते वक़्त अछि अछि नियत अपनी जबान से या दिल में कर लेना चाहिए. रोज़ा रखते वक़्त roza rakhne ki dua या कहिये की रोज़ा रखने की Niyat पढ़ी जाती हैं नियत दिल के इरादे को कहते हैं निचे roja rakhane ki dua in Hindi, Arabic, Roman English में दी गई हैं
Roza Rakhne Ki Niyat (Dua) In Arabic
" وَبِصَوْمِ غَدٍ نَّوَيْتُ مِنْ شَهْرِ رَمَضَانَ "
Sehri Rakhne Ki Niyat (Dua) In Hindi
‘’व बि सोमि गदिन नवई तु मिन शहरि रमजान’’
तर्जुमा : हे, अल्लाह! मैंने तुम्हारे लिए रोज़ा रखा और मुझे तुम पर विश्वास है और मैंने तुम पर अपना भरोसा रखा है।
Sehri Rakhne Ki Niyat (Dua) In Roman English
“Wa bisawmi ghadinn nawaitu min shahri Ramzan”.
Roza Kholne Ki Niyat Aur Dua
Ramzan में Iftar के वक़्त का क्या कहना जब एक मोमिन पूरा दिन अपने रब के लिए, रब को राज़ी करने के लिए भूका प्यासा रह कर इफ्तार के वक़्त Roza Kholna हैं इफ्तार में यानि roza kholne ki dua पढ़ी जाती हैं इसका पढ़ना सुन्नते रसूल भी हैं और सवाब का काम हैं
Roza Kholne Ki Niyat (Dua) In Arabic
" اَللّٰهُمَّ اِنَّی لَکَ صُمْتُ وَبِکَ اٰمَنْتُ وَعَلَيْکَ تَوَکَّلْتُ وَعَلٰی رِزْقِکَ اَفْطَرْتُ "
Iftar Kholne Ki Niyat (Dua) In Hindi
”अल्लाहुम्मा इन्नी लका सुमतु, व-बिका आमन्तु, व-अलयका तवक्कालतू, व- अला रिज़क़िका अफतरतू ”
Iftar Kholne Ki Niyat (Dua) In Roman English
“ Allahumma inni laka sumtu wa bika aamantu wa alayka tawakkaltu wa ala rizq-ika-aftartu. ”
रोज़ा रखने की नियत की दुआ की तफ़्सीरी छोटी से इस्लाही मालूमात
निस्फुन्नहारे शरई (रोज़ा रखने ) का वक़्त मालूम करने का तरीका : जिस दिन का निस्फुन्नहारे शरई मा'लूम करना हो उस दिन के सुब्हे सादिक़ से ले कर गुरूबे आफ्ताब तक का वक्त शुमार कर लीजिये और उस सारे वक़्त के दो हिस्से कर लीजिये पहला आधा हिस्सा ख़त्म होते ही " निस्फुन्नहारे शरई (रोज़ा Roza रखने )" का वक्त शुरू हो गया । मसलन आज सुब्हे सादिक़ ठीक पांच बजे है और गुरूबे आफ़ताब ठीक छ बजे ।
तो दोनों के दरमियान का वक़्त कुल तेरह घन्टे हुवा , इन के दो हिस्से करें तो दोनों में का हर एक हिस्सा साढ़े छ घन्टे का हुवा । अब सुब्हे सादिक़ के पांच बजे के बा'द वाले इब्तिदाई साढ़े छ घन्टे साथ मिला लीजिये , तो इस तरह दिन के साढ़े ग्यारह बजे के फ़ौरन बा'द " निस्फुन्नहारे शरई (रोज़ा रखने) " का वक्त शुरू हो गया तो अब इन तीन तरह के रोज़ों की निय्यत Roza Rakhne Ki Niyat नहीं हो सकती ।
हर बयान कर्दा तीन किस्म के रोज़ों के इलावा दीगर जितनी भी अक्सामे रोज़ा Roza हैं उन सब के लिये येह लाजिमी है कि रातों रात या'नी गुरूबे आफ्ताब के बाद से ले कर सुब्हे सादिक़ तक निय्यत Niyat कर लीजिये , अगर सुब्हे सादिक़ हो गई तो अब निय्यत नहीं हो सकेगी । मसलन क़ज़ाए रोज़ए रमज़ान Ramzan , कफ्फारे के रोजे Roje , कज़ाए रोज़ए नफ्ल ( रोज़ए नफ़्ल शुरूअ करने से वाजिब हो जाता है , अब बे उज्रे शरई तोड़ना गुनाह है ।
अगर किसी तरह से भी टूट गया ख़्वाह उज्र से हो या बिला उज्र , इस की क़ज़ा बहर हाल वाजिब है ) " रोज़ए नजे गैरे मुअय्यन " ( या'नी अल्लाह के लिये रोजे Roje की मन्नत तो मानी हो मगर दिन मख्सूस न किया हो इस मन्नत Mannat का भी पूरा रना वाजिब है और अल्लाह के लिये मानी शरई मन्नत का पूरा करना वाजिब है
जब कि ज़बान से इस तरह के अल्फ़ाज़ इतनी आवाज़ से कहे हों कि खुद सुन सके , मसलन इस तरह कहा : " मुझ पर अल्लाह के लिये एक रोज़ा Roza है " अब चूंकि इस में दिन मख्सूस नहीं किया कि कौन सा रोज़ा रखूगा लिहाज़ा ज़िन्दगी में जब भी मन्नत की निय्यत से रोज़ा Roza Rakhne Ki Niyat Hindi रख लेंगे मन्नत अदा हो जाएगी ।
मन्नत की नियत Niyat के लिये ज़बान से कहना शर्त है और येह भी शर्त है कि कम अज़ कम इतनी आवाज़ से कहें कि खुद सुन लें , मन्नत के अल्फ़ाज़ इतनी आवाज़ से अदा तो किये कि खुद सुन लेता मगर बहरा पन या किसी किस्म के शोरो गुल वगैरा की वज्ह से सुन न पाया जब भी मन्नत Mannat हो गई इस का पूरा करना वाजिब है वगैरा वगैरा इन सब रोजों की निय्यत Niyatरात में ही कर लेनी ज़रूरी है ।
रमजान का रोज़ा हर मोमिन मुसलमान मर्द औरत पर फ़र्ज़ हैं और इसका छोड़ना बहुत बड़ा गुन्हा हैं और रोज़ा रखने और खोलने की नियत करना करने से पहले सीखना सवाब का काम हैं और इसको सिखके अमल में लाना, अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की खुश करना हैं
हमने ऊपर में रमजान की रोज़ा रखने की नियत हिंदी Roza Rakhne Ki Niyat Hindi में दी हैं इसको ज्यादा से ज्यादा रमजान शेयर करे और एक नेकी के बदले 70 नेकी का सवाब कमाए ..........
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