Zakat Sadka Khairat ज़कात इस्लाम में मोमिन पर फ़र्ज़ हैं उन पांच फर्ज़ो में से। सदका खैरात ये नफिलि इबादत हैं जो मोमिन पर फ़र्ज़ नहीं है अगर करले तो दुनिया
ज़कात सदका खैरात Zakat Sadka Khairat की तफ़्सीरी मालूमात क़ुरान हदीस से In Hindi
Zakat Sadka Khairat ज़कात इस्लाम में मोमिन पर फ़र्ज़ हैं उन पांच फर्ज़ो में से। सदका खैरात ये नफिलि इबादत हैं जो मोमिन पर फ़र्ज़ नहीं है अगर करले तो दुनिया और आख़िरत का बेशुमत सवाब है
क़ुरान हदीस की रौशनी में ज़कात सदका खैरात Zakat Sadka Khairat की कुछ खास बाते मोहम्मद अरबी से
- हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम ने इब्लीस से पूछा कि तेरा सब से ज़्यादा मेहबूब लोगों में कौन है ? उस ने कहा कंजूस मुसलमान इस लिये कि उस की इबादत और बन्दगी अल्लाह तआला (Allah Tala) दरबार में हरगिज़ कुबूल नहीं । हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम ने पूछाः लोगों में तेरा सब से बड़ा दुशमन कौन है ? उस ने कहाः नाफरमान सखी । इस लिये कि उस की सख़ावत की वजह से उस के सारे गुनाह माफ हो जाते हैं । ( सब्ए सनाबिल शरीफ )
- नबीये करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाः सदका (Sadk) देना अपने ऊपर लाज़िम कर लो क्योंकि इस में छ : बातें हैं : तीन दुनिया में और तीन आख़िरत में । दुनिया में तो यह है कि रिक बढ़ता है , माल में ज़ियादती होती है , बस्तियाँ आबाद होती हैं । और जो आख़िरत में हैं वह यह हैं : पर्दा पोशी होगी , सर पर साया होगा और आग से बचाव होगा । ( तोहफतुल वाइज़ीन )
- शौहर पर कुछ लाज़िम नहीं कि वह औरत की ज़कात (Zakat) अदा करे । अगर न देगा तो उस पर इल्ज़ाम नहीं । जेवरात की मालिका औरत जिस पर ज़कात फ़र्ज़ है उसे लाज़िम है जहाँ से जाने ज़कात दे अगर्चे जेवर ही फकीर को दे या बेच कर उस की कीमत से अदा करे । ( बहारे शरीअत )
- माँ बाप को ज़कात (Zakat), फित्रा और कोई वाजिब सदका (Sadk) देना जाइज़ नहीं . ऐसे ही बीवी और अपनी औलाद को । ( ख़ज़ाइनुल इरफान )
- सारा माल खैरात (Khairat) कर देना मना है कि इस में अपनी और अपने बीवी बच्चों की हक तलफ़ी होती है । ( तोहफतुल वाइज़ीन )
- हदीस में है कि जो कोई मुहब्बत से यतीम के सर पर हाथ फेरेगा उसे हर बाल के बदले नेकी मिलेगी । ( तोहफ़तुल वाइज़ीन )
- अबू दाऊद में हज़रत इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि हुजूरे अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाः बुख़्ल से बचो । पिछली उम्मतें बुख़्ल की वजह से हलाक हुईं ।
- मुख़्तलिफ़ बख़ीलों की सज़ाएं मुख्तलिफ हैं । जानवरों का बख़ील कियामत में जानवर लादे रहेगा और दोज़ख़ में उन से रौंदा जाएगा । सोने चाँदी का बख़ील दागा जाएगा , दूसरे तिजारती मालों के बख़ील को तौक़ पहनाया जाएगा । ( तोहफतुल वाइज़ीन ) ७१ ) हज़रत अली कर्रमल्लाहु तआला वजहहुल करीम की निस्बत रुकूअ की हालत में चाँदी का छल्ला ज़कात (Zakat) में देने की जो बात मशहूर है वह ख्याली बात है । मौला अली पर कभी ज़कात फर्ज़ ही नहीं हुई , आप की ज़िन्दगी फ़क्र और फाके में गुज़री । ( तोहफतुल वाइज़ीन )
- रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम (Sallallahu Alaihi Wasallam) ने फरमायाः जो मुसलमान पौदा लगाता है या खेती करता है और उस में से परिन्दे या इन्सान जो कुछ भी खा लेते हैं वह उस के लिये सदका (Sadk) हो जाता है । ( तोहफतुल वाइज़ीन )
- सरवरे आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम (Sallallahu Alaihi Wasallam) ने फरमायाः बेहतरीन सदक़ा वह है जो आदमी को गनी रहने दे । ( तोहफतुल वाइज़ीन )
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- रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम (Sallallahu Alaihi Wasallam) के ज़माने में सदकए फ़ित्र सिर्फ छुहारा , मुनक्का और जी था , गेहूँ न था । गेहूँ की शुरूआत हज़रत अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु की ख़िलाफ़त के ज़माने से हुई । ( तफसीरे नईमी )
- सूफ़ियाए किराम फ़रमाते हैं जो चाहता है कि फरिश्तों के साथ उड़े वह मेहरबानी में सूरज की तरह , पर्दा पोशी में रात की तरह , आजिज़ी में ज़मीन की तरह , बुर्दबारी में मय्यत की तरह और सखावत में जारी नहर की तरह रहे । ( तफसीरे नईमी )
- हज़रत अबुल दहदाह रज़ियल्लाहु अन्हु ने एक बार सरकार सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बारगाह में हाज़िर हो कर अर्ज़ कियाः या हबीबल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! मेरे पास दो बाग़ हैं अगर उन में से एक सदका (Sadk) कर दूं तो क्या मुझे उस जैसा बाग जन्नत में मिलेगा ? फ़रमायाः हाँ । अर्ज़ कियाः मेरे साथ मेरी बीवी उम्मे दहदाह भी उस बाग में होगी ? फ़रमायाः हाँ । अर्ज़ कियाः मेरे बच्चे भी मेरे साथ होंगे ? फरमायाः हाँ । हज़रत अबू दहदाह ने उन में से बेहतरीन बाग़ हुनैनिया खैरात (Khairat) कर दिया । उस में छ : सौ दरख़्त थे । उन के बाल बच्चे . उसी बाग में रहते थे । आप उस बाग के दरवाजे पर पहुंचे और बीवी को आवाज़ दीः ऐ दहदाह की माँ ! यहाँ से निकल चलो , मैं ने यह बाग रब के हाथ बेच दिया , अब यह बाग हमारा न रहा । उस पाक बीवी ने कहाः मुबारक हो कि तुम ने बेहतरीन गाहक के हाथ बड़े ही नफा का सौदा किया । ( तफसीरे कबीर )
- कर्जे हसन उर्दू में उसे कहते हैं जिस का कर्ज लेने वाले पर तकाज़ा न हो , अगर वह दे दे तो ठीक वरना माफ । ( तफसीरे नईमी )
- बुजुर्गों का कहना है कि हर ख़र्च का मसरफ अलग अलग है । सदकात का मसरफ़ फुकरा , हदिये का मसरफ़ रिश्तेदार और अहले कराबत , जान का मसरफ़ जिहाद का मैदान , साँस का मसरफ ज़िक्रे रहमान और सारी नेकियों का मसरफ अल्लाह (Allah) व रसूल की रज़ा । ( तफसीरे नईमी )
- मकहूले शामी कहते हैं कि सदका (Sadk) करते वक़्त जहन्नम रब से दरख्वास्त करता है कि मौला मुझे शुक्र के सन्दे की इजाजत दे कि उम्मते मुहम्मदिया में से एक शख्स मुझ से आज आज़ाद हुआ क्योंकि मुझे मुहम्मदे जलाऊँ मगर तेरी इताअत ज़रूरी है । ( रूहुल बयान ) मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से हया आती है कि उन के उम्मती को
- हज़रत नाफेअ जो सय्यिदुना अब्दुल्लाह इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हु के गुलाम हैं और इमाम शाफई रहमतुल्लादि अलैहि के उस्ताद , जब उन की वफात का वक़्त करीब आया तो दोस्तों से कहा कि मेरी चारपाई की जगह खोदो । जगह खोदी गई तो वहाँ एक मटका निकला जिस में बीस हज़ार दिरहम थे । फरमाया कि मेरे दफ़्न के बाद इन्हें ख़रात कर देना । लोगों ने पूछः यह माल कैसा है ? फरमायाः मैं ने अल्लाह (Allah) के हुकूक और बीवी के हुकूक कभी न मारे मगर यह माल इस लिये जमा रखा कि मेरे दिल को सुकून रहे । इस के ज़रिये ज़कात (Zakat) देता रहूं और वक़्त पड़ने पर किसी के सामने हाथ न फैलाना पड़े । अब जब कि यह तीनों चीजें ख़त्म हो रही हैं तो इसे रब के बैंक में जमा कर देना । ( तफसीरे सहुल मआनी )
- ग़ज़वए तबूक के मौके पर नबीये करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सहाबए किराम को चन्दा देने का हुक्म दिया ताकि जिहाद पर खर्च हो । सब से पहले हज़रत अबू बक्र सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु अपना सारा माल यहाँ तक कि सुई धागा भी लेकर हाज़िर हुए जिस की कीमत चार हज़ार दिरहम थी । हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु अपने सारे माल का आधा लेकर हाज़िर हुए । जब हुजूरे अनवर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रत सिद्दीके अकबर रज़ियल्लाहु अन्हु से पूछाः तुम ने घर वालों के लिये क्या छोड़ा ? अर्ज़ कियाः अल्लाह (Allah) और उस का रसूल घर वालों के लिये काफ़ी है और जब हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु से पूछ कि तुम ने घर में क्या छोड़ा तो अर्ज़ किया कि उतना ही जितना यहाँ हाज़िर किया । फ़रमायाः तुम दोनों में वही फर्क है जो तुम्हारे कलामों में फर्क है । हज़रत उस्माने गनी रज़ियल्लाहु अन्हु ने दस हज़ार गाज़ियों को जिहाद का सामान दिया जिस पर दस हज़ार दीनार ख़र्च किये और एक हज़ार दीनार हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ख़िदमत में हाज़िर किये । इस के अलावा तीन ऊँट उन के सामान साथ और पचास घोड़े भी पेश किये । हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फ़रमायाः तुम जो चाहो करो , तुम जनती हो चुके । हज़रत अब्दुर्रहमान बिन औफ रज़ियल्लाहु अन्हु चार हज़ार दिरहम लाए और अर्ज़ कियाः या रसूलल्लाह ! मेरे पास आठ हज़ार दिरहम थे आधे यहाँ लाया आधे घर में रखे । हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाः जो लाए और जो घर छोड़ आए अल्लाह (Allah) दोनों में बरकत दे । उन के माल में इतनी बरकत हुई कि कुछ रिवायतों में है कि उन की चार बीवियाँ थीं । उन की वफात के बाद उन्हें आठवाँ हिस्सा मीरास मिली तो एक बीवी के हिस्से में अस्सी हज़ार दिरहम आए । हज़रत आसिम बिन अदी रज़ियल्लाहु अन्हु एक सौ क्सक खजूर लाए । एक वसक साठ साअ और एक साअ साढ़े चार सेर का । मगर हज़रत अबू अकील अन्सारी जिन का नाम हिजाब या सहल बिन राफेअ है , वह एक साअ खजूरें लाए और बोलेः या रसूलल्लाह ! आज रात मैं ने बाग में पानी देने की मजदूरी की , रात भर की मजदूरी दो साअ खजूर हुई । एक साअ मैं ने घर पर छोड़ दीं , एक साअ यहाँ लाया हूँ । हुजूरे अनवर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन के इस मामूली सदके की ऐसी कदर फरमाई कि फ़रमायाः इन खजूरों को सारे जमा शुदा माल पर छिड़क दो ताकि यह सब में शामिल हो जाएं । ( तफसीरे रूहुल बयान , रूहुल मआनी , ख़ाज़िन , तफ़सीरे कबीर )
- एक बार मौला अली कर्रमल्लाहु तआला वजहहुल करीम के घर खाना न था । आप ने मजबूर होकर हज़रत बीबी फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा की कमीस छः दिरहम में फरोख्त कर दी । पैसे लेकर आ ही रहे थे कि कोई साइल मिल गया । सब दिरहम उसे अता फरमा दिये । आगे बढ़े कि एक शख़्स ऊँटनी बेचता हुआ मिला । आप ने उस से उधार ख़रीद ली । लेकर चले ही थे कि एक ख़रीदार मिल गया जिस ने बहुत नफे से ख़रीद ली । आप ने चाहा कि कर्ज़ख्वाह का कर्ज अदा कर दें । बाज़ार में बहुत तलाश किया मगर न पाया । तब आकर यह वाकिआ हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से अर्ज़ किया । आप ने फ़रमायाः साइल जन्नत के मालिक रिज़वान थे और बेचने वाले हज़रत मीकाईल अलैहिस्सलाम और ख़रीदार हज़रत जिब्रईल अलैहिस्सलाम । ( तफसीरे सहुल बयान )
- इमामे आज़म अबू हनीफा रहमतुल्लाहि अलैहि के नदीक ज़मीन की हर पैदावार पर ज़कात वाजिब है , चाहे पैदावार थोड़ी हो या बहुत । चाहे सड़ने गलने वाली हो या बाकी रहने वाली । लिहाज़ा ग़ल्ला , फल , तरकारियाँ सब में ज़कात (Zakat) वाजिब है । ( तफसीरे नईमी )
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- अगर किराए की जगह में खेती की गई तो बीज वाले पर ज़कात है न कि ज़मीन के मालिक पर । यानी जिस की पैदावार उसी पर ज़काता (Zakat) ( तफसीरे नईमी )
- नज़ पूरी करना फर्ज है शर्त यह है कि अल्लाह (Allah) के लिये हो और जिन्से वाजिब से हो यानी ऐसी चीज़ की नज़ माने जो शरीअत में वाजिब है जैसे नमाज़ , रोज़ा , हज , कुरबानी वगैरा । औलिया के नाम की नज़ , ऐसे ही गैर वाजिब काम की नज़ का पूरा करना वाजिब नहीं , जैसे मस्जिदों में चराग जलाने की नज़ , वहाँ झाडू देने की नन या किसी वली के आस्ताने तक पैदल सफर करने की नज़ कि यह काम शरीअत में कहीं वाजिब नहीं हैं । ( तफसीरे नईमी )
- आम फ़कीरों के मुकाबले में गरीब उलमा , दीन के तालिब इल्म और मुदर्भिसीन को खैरात (Khairat) देना अफज़ल है जिन्हों ने अपने को दीनी ख़िदमत के लिये वक्फ कर दिया है । अगर उन की ख़िदमत न की गई और वह रोज़ी रोटी के लिये मजबूर हो गए तो दीन का सख़्त नुक्सान होगा । ( तफसीरे नईमी )
- हुजूर नबीये करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमाते हैं : जो मुसलमान भीक न मांगने का अहद करले मैं उस के लिये जनत का ज़ामिन हूँ । ( मिश्कात किताबुज़ ज़कात (Zakat) )
- हज़रत अबू बक्र सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु ने चालीस हज़ार दीनार ( लगभग एक लाख रुपये से ज़्यादा ) खैरात (Khairat) किये , दस हज़ार दीनार दिन में , दस हज़ार दीनार रात में , दस हज़ार छुपवाँ और दस हज़ार खुल्लम खुल्ला । ( बैज़ावी , मदारिक )
- गिरवी रखी हुई चीज़ की ज़कात (Zakat) किसी पर नहीं । क्योंकि मालिक का उस पर कब्जा नहीं और कर्ज ख़्वाह की उस पर मिल्कियत नहीं । हाँ जब गिरवी रखने वाला अपना माल छुड़ा ले तब उस पर पिछले सालों यानी कर्ज के ज़माने की ज़कात भी वाजिब होगी मगर कर्ज़ अलग करके । ( तफ़सीरे नईमी )
- अगर सय्यिद किसी गैर सय्यिद औरत से निकाह कर ले तो औलाद सय्यिद है कि उन्हें ज़कात (Zakat) लेना हराम है और अगर गैर सय्यिद किसी सय्यिद औरत से निकाह करले तो औलाद सय्यिद न होगी , उन्हें ज़कात हलाला सय्यिद की औलाद हर हाल में सय्यिद है चाहे लौंडी से हो या गैर सय्यिद औरत से । ( अहकामुल कुरआन )
- कअब अहबार से रिवायत है कि एक बार हज़रत बी बी फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा बीमार हो गई । हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने उन से पूछा कि दुनिया की चीज़ों में से तुम्हारा दिल किस चीज़ को चाहता है ? जवाब दियाः अनार को । हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु कुछ देर के लिये सोच में पड़ गए क्योंकि उन के पास कौड़ी पैसा न था । फिर बाज़ार में आए और एक दिरहम उधार लेकर अनार ख़रीदा और घर की तरफ चले । रास्ते में एक बीमार आदमी को सड़क पर पड़ा देखा । आप ठहर गए और उस से पूछाः तेरा दिल किस चीज़ को चाहता है ? उस ने कहाः ऐ अली , मैं पांच दिन से यहाँ पड़ा हूँ , बहुत से आदमी मेरे पास से गुज़रे मगर किसी ने मेरी तरफ़ निगाह न की । मेरा दिल अनार खाने को चाहता है । हज़रत अली अपने दिल में कहने लगे कि अगर मैं इसे अनार खिला दूं तो फातिमा मेहरूम रही जाती हैं और अगर मना कर दूं तो अल्लाह (Allah) की नाफरमानी होती है जो फ़रमाता है कि साइल को न झिड़को । चुनान्चे आप ने अनार तोड़ कर उस बीमार को खिलाया और वह उसी वक्त तन्दुरुस्त होकर उठ बैठा । उधर सदके की बरकत से बीबी फातिमा को सेहत हासिल हो गई । हज़रत अली करमल्लाहु तआला वजहहुल करीम शर्माए हुए घर में दाखिल हुए । हज़रत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा उन्हें देख कर खड़ी हो गई । हज़रत अली ने उन्हें सारा माजरा सुनाया । वह बोलीः आप गमगीन क्यों होते हैं । अल्लाह तआला के इज्ज़त और जलाल की कसम , उधर आप ने उस बीमार को अनार खिलाया , इधर मेरे दिल से उस की ख्वाहिश जाती रही । हज़रत अली इस बात से बहुत खुश हुए । इतने में किसी ने जंजीर खटखटाई । हज़रत अली ने फरमायाः कौन ? जवाब आयाः सलमान फारसी , ज़रा दरवाज़ा खोलिये । आप ने दरवाज़ा खोला , देखा कि हज़रत सलमान रज़ियल्लाहु अन्हु के हाथ में कपड़े से ढका हुआ एक थाल है । सलमान ने वह थाल हज़रत अली के सामने रख दिया । हज़रत अली ने पूछाः यह कहाँ से आया ? सलमान ने फरमायाः अल्लाह तआला की तरफ से रसूल को और रसूल की तरफ से आप को हदिया भेजा गया है । कपड़ा उठा कर देखा तो नौ अनार थे । उस वक़्त हज़रत अली ने फरमाया कि अगर यह हदिया अल्लाह (Allah) की तरफ से होता तो दस अनार होते क्योंकि अल्लाह (Allah) तआला का कौल है कि जो एक नेकी करता है उसे दस मिला करती हैं । सलमान यह सुन कर हंस पड़े और अपनी आस्तीन में से एक अनार निकाल कर थाल में . रख दिया और बोलेः ऐ अली ! खुदा की कसम अनार तो दस ही थे लेकिन मैं ने आप का इम्तिहान लेने की नियत से एक छुपा लिया था । ( रोज़तुल मुत्तकीन )
- नबीये करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाः अपनी तरफ से और अपने गुज़रे हुओं की तरफ से सदका (Sadk) दिया करो चाहे एक चूंट पानी ही क्यों न हो और अगर यह भी मयस्सर न हो तो कुरआने मजीद की एक आयत सिखा दिया करो और अगर यह भी मालूम न हो तो मगफिरत और रहमत की दुआ मांगा करो क्योंकि अल्लाह तआला ने कुबूलियत का वादा फ़रमा लिया है । ( हयातुल कुलूब )
- सदका (Sadk) चार तरह का है : एक के बदले दस गुना सवाब मिलता है , दूसरे के बदले सत्तर हिस्से , तीसरे के बदले सात सौ हिस्से , चौधे के बदले सात हज़ार । पहला सदका यह है कि फकीरों को कुछ दे दिया जाए । दूसरा सदका (Sadk) यह है कि अपने मोहताज रिश्तेदारों को दे , तीसरा यह कि अपने मोहताज भाई को दे , चौथा यह कि तालिबे इल्म की नज़ करे । ( तोहफतुल वाइज़ीन )
Zakat-Sadka-Khairat |
- हज़रत इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा ने रिवायत की कि एक नबी ने अर्ज़ कियाः इलाही मोमिन बन्दे पर , जो तेरा फरमाँ बरदार और गुनाहों से दूर रहता है , ज़्यादा मुसीबतें क्यों पड़ती हैं और काफिर जो नाफरमान और सरासर गुनहगार है , अकसर बलाओं से मेहफूज़ क्यों रहता है और उस पर दुनिया क्यों फराख कर दी जाती है । अल्लाह तआला ने वही नाज़िल की कि बन्दे भी मेरी मिल्क हैं और बला भी । मोमिन के ज़िम्मे कुछ गुनाह होते हैं इस लिये मैं उस से दुनिया समेट कर किसी बला में डाल देता हूँ ताकि गुनाहों का कफ्फारा हो जाए और काफिर कुछ नेकियाँ कर लिया करता है । उस के सिले में उस की रोज़ी फराख कर देता हूँ और बलाएं दफा कर देता हूँ ताकि कियामत के दिन गुनाहों की पूरी सज़ा दूं ( तफसीरे नईमी )
- रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम (Sallallahu Alaihi Wasallam) ने फरमायाः सब तीन तरह का होता है : एक मुसीबत पर दूसरा ताअत पर और तीसरा मअसियत पर । पहले को तीन सौ दर्जे , दूसरे को छ : सौ दर्जे और तीसरे को नौ सौ दर्जे मिलेंगे । एक दर्जे से दूसरे दर्जे तक इतना फासला होगा जितना आसमान और ज़मीन या सातवीं ज़मीन से पहली ज़मीन या पहली ज़मीन से अर्श के बीच फासला है । ( तोहफ्तुल वाइज़ीन )
- कुरआने मजीद में ७०. या ७५ जगह सब्र का ज़िक्र आया है । ( तफसीरे नईमी )
- रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम (Sallallahu Alaihi Wasallam) ने फरमायाः तुम में से किसी का अपनी बीवी से मुबाशिरत करना भी सदका (Sadk) है । सहाबा ने अर्ज़ कियाः ऐ अल्लाह (Allah) के रसूल ! कोई अपनी शहवत पूरी करेगा और उसे अज्र भी मिलेगा ? फरमायाः अगर वह हराम मुबाशिरत करता तो क्या वह गुनहगार न होता । इसी तरह वह जाइज़ मुबाशिरत करने पर अज्र का मुस्तहिक है । ( तफसीरे नईमी )
- फुकहाए किराम ने लिखा है कि जो काफिर अहले हर्ष में से न हों बल्कि ज़िम्मी हों उन के लिये सदक़ात जाइज़ हैं । ( तफसीरे नईमी )
- एक शख्स ने जंगल में देखा कि एक कुत्ता प्यासा है , प्यास के मारे दम निकला जा रहा है । उस ने टोपी को डोल बनाया और अमामा को रस्सी और एक कुएं से पानी खींच कर कुत्ते को पिलाया , उस की जान बच गई । उस ज़माने के पैगम्बर को हुक्म हुआः जाओ उस शख़्स से कहो हम ने तेरे सारे गुनाह माफ किये , तेरी यह खैरात (Khairat) हमें पसन्द आई । ( गुल्दस्तए तरीकृत ) १०० ) एक दिन रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम (Sallallahu Alaihi Wasallam) के पास दीन की ख़िदमत के लिये चन्दा हो रहा था । मालदार सैंकड़ों रुपये ला रहे थे । एक शख्स दो सेर गेहूँ लाया , लोग हंसने लगे । रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम (Sallallahu Alaihi Wasallam) ने फरमायाः हंसने की क्या बात है ? तुम ने अपनी हैसियत के मुताबिक दिया और उस ने अपनी हैसियत से । उस की गरीबी की वजह से सब से पहले उस की खैरात (Khairat) मकबूल हुई । ( गुल्दस्तए तरीकत )
- खैरात (Khairat) जैसे माल की होती है ऐसे ही और तरह की भी होती है : किसी ने कोई अच्छी बात कही जैसे खुद भी नेक काम में चन्दा दिया और दूसरों से भी चन्दा देने को कहा तो उस की यह नेक बात भी खैरात में गिनी जाएगी । दो शख़्सों में इन्साफ करना या किसी की मदद करना भी खैरात है । कलिमा शरीफ का ज़िक्र करना , मस्जिद की तरफ नमाज़ के लिये जाना भी खैरात है । रास्ते से तकलीफ देने वाली चीज़ दूर करना भी खैरात है , जितने नवाफिल हैं चाहे नमाज़ हो या रोज़ा हो या कुछ और हों , सब खैरात(Khairat) है । ( गुल्दस्तए तरीकृत )
- तिर्मिज़ी शरीफ में हज़रत अबू सईद खुदरी रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम (Sallallahu Alaihi Wasallam) ने फरमायाः मोमिन में दो ख़सलतें जमा नहीं होतीः एक बुख़्ल , दूसरी बद खुल्की Zakat Sadka Khairat। ( तफ़सीरे नईमी )