hazrat imam jafar sadiq radhiallahu anhu ki karamat in hindi : इमाम जाफर सादिक़ की करामात हिंदी में wikipedia, Irfani islam
Imam Jafar Sadiq Ki Karamat In Hindi : इमाम जफ़र सिदिक रदिअल्लहु अन्हु अपने वक़्त के अल्लाह के नेक और मुक़द्दस, परेजगार, तकवाकर बन्दे थे।
अल्लाह के इतने करीब थे की अपने एक नज़र और एक दुआ से मुर्दे जो जिला देते थे, Imam Jafar Sadiq Ki Karamat के भी क्या कहने अल्लाह ने उनके लिए अपनी कुदरत को हुकुम दिया था की मेरा वक़्त का इमाम जब भी कोई बात कहे तो वो हो जा।
निचे Imam Jafar Sadiq Ki Waqia निचे दी गई हैं जो बहुत मशहूर और इमान ताजा करने वाले Waqia हैं In Hindi मे।
ईमान ताजा करने वाले Imam Jafar Sadiq Ki Karamat In Hindi
- दरबान का अन्धा हो जाना
एक रोज़ का ज़िक्र है कि ख़लीफ़ह मंसूर ने अपने दरवान को हिदायत दी कि Hazrat Imam Jafar Sadiq Anhu को मेरे यहाँ पहुँचने से पहले ही मौत के घाट उतार देना ।
उसी रोज़ हज़रत इमाम जअफ़र सादिक़ रज़ियल्लाहु अन्हु तशरीफ़ लाये और मंसूर के यहाँ आकर बैठ गये , मंसूर ने दरबान को बुलाया , दरबान ने देखा कि इमाम साहिब तशरीफ़ रखते हैं ।
जब आप वापस तशरीफ़ ले गये तो मंसूर ने दरबान को वापस बुला कर कहा :
मैंने तुम्हें इमाम साहिब के बारे में क्या हुक्म दिया था ?
दरबान ने कहा : ऐ ख़लीफ़ह ! क़सम ब ख़ुदा ! मैंने इमाम साहिब को आप के पास आते देखा ही नहीं , बस यही देखा कि आप के पास तशरीफ़ रखते हैं ।
- ख़लीफ़ह मंसूर का Imam Jafar Sadiq को बुलाना
एक दफ़अ का ज़िक्र है कि मंसूर के एक दरबारी ने बयान किया कि : मैंने देखा कि मंसूर निहायत ग़मज़दह हैं
और कहा : ऐ ख़लीफ़ह ! आप इस क़दर परेशान क्यों हैं ,
ख़लीफ़ह ने कहा : मैंने अलवियों की एक जमाअत को हलाक करवाया है लेकिन उसके सरदार को छोड़ दिया है ,
उस शख़्स ने कहा वह कौन है ? ख़लीफ़ह ने कहा वह जअफ़र बिन मोहम्मद है ,
उस शख़्स ने कहा ः वह तो ऐसा शख़्स है जो अपने मअबूद के आगे सर ब सुजूद रहता है , वह दुनिया का कोई लालच नहीं रखता ,
ख़लीफ़ह ने कहा : मैं जानता हूँ कि तुम्हें उन से अक़ीदत है हालांकि पूरा मुल्क उन का मुख़ालिफ़ है , मैंने क़सम खा रखी है कि जब तक उन्हें हलाक न कर दूँ चैन से ना बैहूँगा ।
फिर ख़लीफ़ह ने जल्लाद को हुक्म दिया कि जब जअफ़र बिन मोहम्मद आयें तो मैं अपना हाथ अपने सर पर सख लूंगा तो तुम उन्हें क़त्ल कर देना ख़लीफ़ह ने Imam Jafar Sadiq को बुलवाया ,
मैं आप के हमराह था , मैंने देखा कि आप अपने मुंह में कुछ पढ़ रहे हैं जिस का मुझे इल्म न हो सका लेकिन मैंने यह कुछ देखा कि आप के महेल्लात में दाख़िल होते ही ज़लज़लह सा आ गया और ख़लीफ़ह ऐसे वाहेर आया जैसे कश्ती समन्दर की लहरों से ख़लासी करके बाहेर आती है ,
ख़लीफ़ह नंगे पांव आप के इस्तक़बाल के लिए आया और ख़ड़े होकर आप को अपनी जाए नशिश्त पर बिठाया
और कहने लगा : ऐ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बेटे ! आप किस काम से तशरीफ़ लाये हैं ? ,
Hazrat Imam Jafar Sadiq Anhu ने फ़रमाया : तुम्हारे बुलाने पर मैं आया हूँ , फिर ख़लीफ़ह ने कहा किसी चीज़ की तलब हो तो इरशाद फ़रमायें
हज़रत इमाम जअफ़र सादिक़ ने फ़रमाया : मुझे किसी चीज़ की तलब नहीं बेहतर यह है कि तुम मुझे बेज़ा बुलाया न करो , जब मैं चाहूँगा खुद ही आजाऊँगा ,
आप उठ कर बाहेर तशरीफ़ ले आये तो मंसूर पर उसी वक़्त बेहोशी तारी हो गयी और रात गये तक बेहोश रहा यहां तक कि नमाज़ भी क़ज़ा हो गयी ,
जब बेहोशी से ख़लासी पायी तो नमाज़ अदा करके मुझे तलब किया और कहा कि जब मैंने इमामे पाक को बुलवाया था तो मैंने एक अज़दहा देखा जिस के मुँह का एक हिस्सह ज़मीन पर था
और दूसरा हिस्सह महेल के ऊपर मुझे साफ़ तौर पर कह रहा था कि मैं अल्लाह तआला की जानिब से आया हूँ अगर तुम ने इमाम पाक को किसी क़िस्म की तकलीफ़ दी तो तुझे और तेरे महेल्लात को नीस्त व नाबूद कर दूँगा ।
यह सुन कर मेरी तबीअत क़ाबू से बाहेर हो गयी जो तुम्हारी नज़र से दूर नहीं है , उसने कहा यह तो न जादू है और न ही किसी क़िस्म का मिहर यह तो इस्मे आज़म की ख़ूबी है
जो ख़्वाज ए कौनैन सल्लल्लाहु अलैहि वआला आलिही वसल्लम पर नाज़िल हुआ था , फिर जिस तरह आप ने चाहा वैसा ही हुआ ।
- हज़रत Imam Jafar Sadiq की इल्मी फ़रास्त
एक दफ़अ हज़रत अबू बुमेर रहमतुल्लाहि अलैहि ने बयान किया कि मैं मदीनह मुनव्वरह गया तो मेरे हमराह एक् कनीज़ थी ,
मैंने उस कनीज़ से मुवाशिरत की और फिर ग़ुस्ल के लिए वाहेर निकला तो मैंने देखा कि बहुत से लोग हज़रत इमाम जअफ़र सादिक़ की मुलाक़ात के लिए उनके आसतान ए आलिया पर हाज़िर हो रहे हैं ,
हुसूले बरकत के लिए हाज़िर हो गया तो आप की नज़र मुझ पर पड़ी , आप ने मुझ से फ़रमाया : ऐ अबू बुसेर !
शायद कि तुम्हें इस बात का इल्म नहीं कि अंम्विया ए किराम और उनकी औलाद की रिहाइश गाहों पर आलमे जनावत ( नापाकी की हालत ) में नहीं जाना चाहिए ।
अवू बुसेर ने कहा : ऐ इब्ने रसूलुल्लाह ( सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) मैंने वकसतर आदमियों को आप के पास आते देखा तो मुझे अन्देशह हुआ कि शायद आप की मुलाक़ात की दौलत फिर हाथ न आये इस लिए मैं भी इन तमाम के हमराह आगया ।
यह कह कर मैं ताइव हुआ कि आइन्दह कभी भी ऐसा नहीं करूँगा और वाहर लौट आया ।
- क़ैद से निजात दिलवाना
एक शख्श ने बयान किया कि मेरा एक दोस्त था जिसे मंसूर ने क़ैद में डाल दिया , मेरी मुलाक़ात हज़रत इमाम जअफ़र सादिक़ से दौराने हज अरफ़ात के मैदान में हुई ,
आप ने मुझ से मेरे दोस्त के बारे में दरयाफ़्त किया मैंने अर्ज़ किया : हुज़ूर उसे तो मंसूर ने क़ैद में डाल रख्खा है ।
आप ने उस क़ैदी के लिए वारगाहे इलाही में दुआ की और कुछ वक़्त के बाद फ़रमाया , क़सम वख़ुदा तुम्हारा दोस्त क़ैद से निजात हासिल कर चुका है ।
रावी ने वयान किया कि जब हज से फ़ारिग हो कर वापस आया तो मैंने अपने दोस्त से दरयाफ़्त किया कि : तुम्हें क़ैद से रिहायी किस दिन मिली थी ?
उसने कहा : मुझे अरफ़ह के रोज़ अस्र की नमाज़ के बाद रिहायी मिल गयी थी ।
- गुम शुदह चादर मिल गयी
एक दफ़अ का ज़िक्र है कि एक शख़्स ने बयान किया कि मैंने मक्कह मोअज़्ज़मह में एक चादर ख़रीदी और इरादह किया यह चादर हरगिज़ किसी को न दूँगा
बल्की मैं अपने इन्तिक़ाल के बाद इस का कफ़न बनाऊँगा , जब मैं अरफात से मुज़दल्फ़ह में वापस आया तो चादर गुम हो गयी , मुझे इस चादर का बड़ा दुख हुआ ,
फिर मैं सुबह सवेरे मुज़दल्फ़ह से मिना की तरफ़ आया तो मस्जिदे ख़ीफ़ में बैठ गया , अचानक एक आदमी जो हज़रत इमाम जअफ़र सादिक़ रज़ियल्लाहु अन्हु के पास आय था आकर कहने लगा कि तुम्हे इमाम साहिव बुला रहे हैं ,
मैं बहुत जल्दी आप की ख़िदमत में हाज़िर हुआ और सलाम अर्ज करके एक तरफ़ बैठ गया , आप ने मेरी जानिव नज़्ज़े अमीक़ ( गहरी नज़र ) से देख कर फ़रमाया :
क्या तुम यह पसन्द करते हो कि तुम्हें तुम्हारी चादर मिल जाये जो तुम्हें तुम्हारी मौत के बाद कफ़न का काम दे ,
उसने अर्ज़ किया ऐ इब्ने रसूलुल्लाह ! ( सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) मिल जाये तो बहुत बेहतर है वह काफ़ी दिनों से गुम हो चुकी है ।
आपने अपने गुलाम को आवाज़ दी , वह चादर ले आया मैंने देखा वही थी , आप ने फ़रमाया : इसे लेलो और रब का शुक्र अदा करो ।
- मुरदह गाय को ज़िन्दह करना
एक दफ़अ का ज़िक्र है कि एक शख़्स ने बयान किया कि एक रोज़ मैं मक्कह मोअज्जमह में हज़रत इमाम जअफ़र सादिक़ रज़ियल्लाहु अन्हु के हमराह जा रहा था
कि हम एक जगह से गुज़रे जहाँ पर एक औरत मुग्दह गाय पर आहो ज़ारी कर रही थी , हज़रत इमाम जअफ़र मादिक ने फ़रमाया : आया तुम्हारा ख़्याल है कि अल्लाह तआला मुरदह गाय को ज़िन्दह कर देगा ।
औरत बोली : आप हम से इस तरह मज़ाक़ क्यों करते हैं मैं तो पहले ही से मुसीबत में मुब्तिला हूँ , हज़रत इमाम जअफ़र सादिक ने औरत से फ़रमाया मैं तुम से मज़ाक़ नहीं करता ।
उस के बाद Hazrat Imam Jafar Sadiq Radhiallah Anhu ने गाय के लिए दुआ फ़रमायी गाय का सर और पाँव पकड़ कर हिलाया वह गाय जल्दी से उठ खड़ी हुई
फिर इमाम साहिब लोगों में चले गये और वह औरत आप की पहचान न कर सकी ।
- खुजूर के दरख़्त का झुक जाना
एक दफ़अ का ज़िक्र है कि एक शख्स ने बयान किया कि हम हज़रत इमाम जअफर सादिक रज़ियल्लाहु अन्हु के हमराह हज के लिए जा रहे थे ,
कि रास्तह में हमें एक जगह सूखे हुए दनों के पास ठहेरना पड़ा , आप ने अन्दर ही अन्दर कुछ पढ़ना शुरू कर दिया जो मैं हरगिज़ समझ न सका , फिर अचानक आपने उन सूखे दरख्तों की तरफ मुँह करके फ़रमाया ।
अल्लाह तआला ने तुम में जो हमारे लिए रिज्क पैदा किया है उस में से हमें भी खिलाओ , उसी दरमियान में देखा कि वह जंगली खुजूरै आप की तरफ झुक रही थीं जिन पर तर खुशे लटक रहे थे ,
आप ने मुझ से फ़रमाया मेरे क़रीव आओ विस्मिल्लाह पढ़ कर खाओ , मैंने आप के हुक्म की तकमील करते हुए खुजूरै खायीं । ऐसी मज़ेदार खुजूरै इस से क़ब्त कभी हमने न खायी थीं ,
वहाँ एक एरावी भी मौजूद था उसने कहा कि आज जैसा जादू मैंने कभी नहीं देखा ,
हज़रत इमाम जअफ़र सादिक़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया : हम अंम्बिया के वारिस होते हैं हम साहिर व काहिन नहीं होते हम बारगाहे ख़ुदा वेन्दी में दुआ करते हैं
और वह क़ुबूल फ़रमाता है अगर तुम चाहो तो हमारी दुआ से तुम्हारी शक्ल तबदील हो जाये और तुम्हारी शक्ल कुत्ते की शक्ल बन जाये ।
एराबी ने अपनी जिहालत का सुबूत पेश करते हुए कहा : हाँ ! आप दुआ कीजिए , आप ने दुआ की तो एरावी कुत्ता बन कर अपने घर की तरफ़ भाग गया ।
हज़रत इमाम जअफ़र सादिक़ ने फ़रमाया इसका तअक़्क़ुब ( पीछा ) कीजिए । मैं उसके पीछे गया तो देखा कि यही कुत्ता अपने घर में जाकर अपने बाल बच्चों और घर वालों के सामने दुम हिलाने लगा ,
घर वालों ने उसे असा मार करे दौड़ा दिया , मैंने वापस आकर तमाम हाल अर्ज कर दिया , इतने में वह भी आगया और आप के सामने ज़मीन पर लोटने लगा , उसकी आँखों से पानी बहने लगा , यह हालत देख कर आप ने फिर दुआ फ़रमायी तो वह इन्सान बन गया ।
उस के बाद फ़रमाया : ऐ एाराबी मैंने जो कुछ कहा था उस पर यक़ीन है या नहीं , एरावी ने कहा : हाँ हुजूर एक बार तो कुजा बल्की हज़ार बार ईमान रखता हूँ ।
- परिन्दों को ज़िन्दह करना
एक दफ़अ का ज़िक्र है कि एक शख़्स ने बयान किया कि एक रोज़ ज़्यादह लोगों के हमराह हज़रत इमाम जअफ़र सादिक़ रज़ियल्लाहु अन्हु की ख़िदमत में हाज़िर था तो आपने फ़रमाया :
जब अल्लाह जल्ला मजदहुल करीम ने हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम को परिन्दों में से चार परिन्दे पकड़िये और फिर उन्हें अपनी तरफ़ बुलाइये , का हुक्म फ़रमाया था
तो क्या वह परिन्दे हम जिन्स थे या मुख़्तलिफ़ जिन्स ? अगर तुम तलब करो तो तुम्हें वैसा ही करके दिखा दें ,
हमने कहा : हाँ , आपने: फ़रमाया ऐ मोर इधर आजाओ , उसी वक़्त मोर हाज़िर होगया , फिर फ़रमाया ऐ कौए इधर आओ , फ़ौरन एक कौआ हाज़िर होगया ,
फिर फ़रमाया ऐ बाज़ इधर आओ फ़ौरन एक बाज़ हाज़िर होगया , फिर फ़रमाया कबूतर इधर आओ , फ़ौरन एक कबूतर हाज़िर हो गया ।
जब चारों परिन्दे आगये तो आप ने फ़रमाया इन्हें जवह करके इनके टुकड़े टुकड़े करदो और एक का गोश्त दूसरे से मिला दो लेकिन हर एक के सर की हिफ़ाज़त करना ,
फिर आपने मोर के सर को पकड़ कर फ़रमाया : ऐ मोर ! हमने मुशाहिदह किया कि मोर की हडडियाँ मोर के पर और मोर का गोश्त उसके सर के साथ मिल गये और वह एक सहीह सालिम मोर बन गया , इसी तरह दूसरे तीनों परिन्दों से वास्तह पड़ा तो वह भी ज़िन्दह हो गये ।
- बहिश्त में सराय ख़रीदना
एक दफ़अ का ज़िक्र है कि एक शख़्स हज़रत इमाम जअफ़र सादिक़ रज़ियल्लाहु अन्हु की ख़िदमत में दस हज़ार दीनार लेकर हाज़िर हुआ और कहा : हुज़ूर मैं हज करने के लिए जा रहा हूँ
आप मेरे इस पैसे से कोई सराय ख़रीद लेना ताकी मैं हज से वापसी पर अपनी औलाद को लेकर रहना शुरु कर दूँ ।
हज से वापसी पर वह शख़्स आप की बारगाह में हाज़िर हुआ तो आप ने उस से फ़रमाया : मैंने तुम्हारे लिए बहिश्त में सराय ख़रीद ली है
जिस की पहली हद हुज़ूर अलैहिस्सलातु वस्सलाम पर , दूसरी हद हज़रत अलीए मुरतज़ा रज़ियल्लाहु अन्हु पर , तीसरी हद हज़रत हसने मुजतबा रज़ियल्लाहु अन्हु पर और चौथी हदं हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु पर ख़त्म होती है और मैंने यह परवानह तहरीर कर दिया है ।
वह शख़्स यह वात सुन कर बहुत खुश हुआ और यह परवानह लेकर अपने घर चला गया और घर जाते ही बीमार हो गया और वसिय्यत की कि इस परवाने को मेरे विसाल के बाद मेरी क़ब्र में रख देना ,
घर वालों ने दफ़्न करते वक़्त उस परवाने को क़ब में रख दिया , फिर दूसरे दिन देखा कि वही परवानह क़ब्र पर पड़ा हुआ था और उसके पीछे यह तहरीर था
कि हज़रत इमाम जअफ़र सादिक़ ने जो वअदह किया था वह पूरा हो गया ।
- पचास हज के लिए दुआ करना
एक दफ़अ का ज़िक्र है कि एक आदमी ने हज़रत इमाम जअफ़र सादिक़ रज़ियल्लाहु अन्हु से दुआ के लिए अर्ज़ किया कि अल्लाह तआला मुझे बकस्तर माल दे ताकी मैं बहुत से हज करूँ ,
आप ने दुआ की : इलाहल आलमीन ! इन्हें बकस्रत माल अता कर ताकी यह अपनी ज़िन्दगी में पचास हज करे , चुनाँचेह उसे इतना माल हाथ आया कि उसने पूरे पचास हज किये ।
लेकिन इक्कानवाँ हज के लिए मक़ामे जोहफ़ाह पर पहुँचा तो ग़ुस्ल करने की ख़्वाहिश की , जूहीं पानी को हाथ लगाया तो पानी की तेज़ मौजें वहा ले गयीं और वह उसी में डूब गया ।
- अब्बास कलबी को शेर का फाड़ना
जब हज़रते ज़ैद रज़ियल्लाहु अन्हु को शहीद करके सूली पर चढ़ाया गया तो हाकिमे अब्बासी ने यह दो शेअर पढ़े
तर्जुमह : हम ने ज़ैद को खुजूर के तने पर फांसी देदी और मैंने कभी हिदायत याफ़्तह शख़्स को तख़्तए दार पर लटकते नहीं ने हिमाक़त के सबब से हज़रत अली को हज़रत : देखा , तुम , उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हुमा से बढ़ा दिया,
हालाँकी हज़रते उस्मान , अली रज़ियल्लाहु अन्हुमा से ज़्यादह पाक और बेहतर थे ।
जव यह दो शेअर आप के कान में डाले गये तो आप ने उस के हक़ में वद दुआ करते हुए कहा
तर्जुमह । ऐ अल्लाह ! अगर तेरा बन्दह वाक़यी झूटा है तो तू उस पर अपना कुत्ता मुसल्लत करदे , फिर उसे वनी उमय्यह ने कूफ़ा भेज दिया लेकिन,
उसे रास्ते में शेर ने फाड़ दिया जब यह ख़बर आप को पहुँची तो आप ने सर सजदह में रख कर कहा अलहमदु लिल्लाहिल्लज़ी अन्जज़्ना मा वअदना तमाम तअरीफ़ै उस रब के लिए है जिस ने हम से जो वअदह किया उसे पूरा किया।
तो ये थी Imam Jafar Sadiq Ki Karamat In Hindi में जो एक अपने वक़्त के इमाम थे और हर मोमिन के सर का ताज थे जिनकी Karamat सुन कर बदन के रोंगटे खड़े हो जाए।
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