20 se bhi jada Hazrat Ghous Pak Ki Karamat In hindi, Bachpan Ki Karamat , Waqte Wiladat Karamat हज़रात गौस पाक की करामत हिंदी, बचपन की करामात, वक़्ते वि
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वैसे तो हज़रत ग़ौस पाक की करामत Hazrat Ghous Pak Ki Karamat बेशुमार हैं, आप का नाम ही एक करामत है की जब एक इंसान गौस पाक Gaus Paak का नाम लेता था तो उसके जिस्म में कप-कपी पैदा हो जाती थी।
आप के विलायत या आप के करिश्मा बेशुमार लोगो ने देखा था या जनते थे
आज भी हज़रत ग़ौस पाक की करामत Hazrat Ghous Pak Ki Karamat काई लोगो को मालुम नहीं या लोग जनना चाहते हैं।
निचे हमने गौस पाक Gaus Paak के बेशुमार करामत ki Karamat दिए गए हैं। जो सुन कर पहले लोग दांतो तले उनगलिया चबालिया करते थे।
इसे भी देखे :
- गौस पाक की अज़ीम करामात।
- गौस पाक की फातिहा का तरीका।
- शजरा ऐ क़ादरिया हिंदी में।
- गौस पाक की करामात इन हिंदी।
- क़सीदा ऐ गौसिया हिंदी में।
- हज़रात गौस पाक की करामात बेशुमार।
हज़रत ग़ौस पाक की बचपन की करामात Hazrat Ghous Pak Ki Bachpan Ki Karamat
- हज़रत ग़ौस पाक की वक़्त विलादत करामत का जहूर
सरकार गौसुल आजम Gaus Azam दस्तफिर रहमतुल्लाह अलेह की विलादत माहे रामजानुल मुबारक में हुई
और पहले दिन ही रोज़ रखा, सेहरी से ले कर इफ्तार तक गॉस पाक Hazrat Ghous Pak अपनी वलिदा ए मोहतरमा का दूध नहीं पिते थे।
इस्लिये गौसस - सकलैन हजरत शेख अब्दुलकादि र जिलानी रहमतुल्लाह अलैहा की वलीदा ए मजीद फरमाती हैं की,
जब मेरा फ़र्ज़न्द अब्दुल कादिर पैदा हुआ तो रमज़ान शरीफ़ में दिन भर दूध नहीं पिता था।
500 याहुदियो और इसाइयो का कबुले इस्लाम
हज़रत ग़ौस पाक Gaus Paak फरमाते हैं।
मेरे हाथ पर 500 से ज्यादा यहुदियो और इसाइयो ने इस्लाम काबुल किया और एक लाख से ज्यादा डाकु, चोर, फुस्सको फजर, फसादी और बिद्दती लोगो ने तौबा की।
(गौस पाक के हालत, सफह 37-38)
- डाकू तैब हो गाए।
हुज़ूर गौसे आजम Gaus Azam फरमाते हैं। जब मैं इलमे दिन हसील करने के लिए जिलान से बगदाद काफिले के हमरा रवाना हुआ,
और चंद हमदान से आगे पाहुचा तो 60 डाकु कफिले पर टूट पढ़े और सारा कफिला लुट लिया लेकिन किसी ने मुच पर तवज़ु ना किया,
बाद में एक डाकू मेरे पास आ कर पूछने लगा।
ऐ लड़के तुम्हारे पास भी कुछ हैं?
मैंने जवाब में कहा : हा।
डाकू ने कहा : क्या है?
मैने कहा : 40 दिनार।
उसने पूछा : कहा है ?
मैने कहा : कपड़ो के अंदर (गुदाड़ी) के निचे ।
डाकू इस बात को मजाक समझ चला गया, इस्के बाद दूसरा डाकू आया और उसे भी इस तरह के सुवालात किया,
और मैंने यही जवाब उसे भी दिए और वो भी इसी तरह मजाक समझ कर चलता बना,
जब डाकु अपने सरदार के पास जमा हुए तो अपने सरदार को मेरे (गॉस पाक/Hazrat Ghous Pak) बारे में बताया तो सरदार ने वाहा बुलाया गया, वो माल की तकसीम करने में मसरूर थे,
डाकुओ का सरदार मुझ से पूछा की तुम्हारे पास क्या है?
मैने कहा 40 दिनार हैं।
डाकुओ के सरदार ने डाकुओ को हुकुम देते हुए कहा इसकी तलाशी लो। तलाशी लेने पर सचाई का इजहार हुआ तो उसके ताजुब से सुवाल किया की तुम्हें सच बोलने पर किसी चिज ने आमदा किया?
मैंने कहा वलिदे मजीद की नसीहत ने।
सरदार बोला वो नसीहत क्या है?
मैंने कहा मेरी वलिदे मोहतर्मा ने मुछे हमेश सच बोलने की बात फरमाई थी और मैंने उनसे वादा किया था की सच बोलूंगा।
तो डाकुओ का सरदार रो कर कहने लगा ये बच्चा अपनी मां से हुए वादे से मुनहरिफ नहीं हुआ,
और मैंने सारी उमर अपने रब से किए हुए वादे के खिलाफ गुजर दी हैं। उसी वक्त वो उन 60 डाकु समेत हाथ पर तौबा हुआ और काफिले का लुटा हुआ माल वापस कर दिया।
(गौस पाक के हालात, सफह 38-39)
निगाह वाली में ये तसीर देखि
बदलते हजारो की तकदीर देखि
- बरकते हज़रते ग़ौस पाक की बचपन की करामाते
गॉस आजम Gaus Azam की वालिद ए मजीदा फरमाया करती थी।
जब मैंने अपने साहाब जादे अब्दुल कादिर को जन्म दिया वो रामजानुल मुबारक में दिन के वक्त मेरा दूध नहीं पिता था।
अगले साल रमजान का चांद, गुबार (बारिश, या बदली) की वजह से नजर ना आया था।
लोग मेरे पास दरियाफ्त करने के लिए आए तो मैंने कहा "मेरे बच्चे ने दूध नहीं पिया"।
फिर मलुम हुआ की आज रमजान का दिन है और हमारे शहर में ये बात मशहूर हो गई की सैय्यदो में एक बच्चा पैदा हुआ है।
जो रमजान में दिन के वक्त दूध नहीं पिता हैं।
(गौस पाक के हालात, सफाहा नंबर 24-25)
- हज़रत ग़ौस पाक ऊँगली मुबारक की करामत
एक मरतबा रात में सरकारे बगदाद अब्दुल कादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलेह के हमरा शेख अहमद रिफाई,
और अदि बिन मुसाफिर रहमतुल्लाह अलैह, हज़रत इमाम अहमद बिन हम्बल रहमतुल्ला अलेह के मज़ारे पुर अनवर की ज़िरयात के लिए तशरीफ़ ले गए।
मगर हमें वक्त अँधेरे बहुत ज्यादा था हज़रते गौसे आज़म Gaus Azam रहमतुल्लाह अलेह उनके आगे आगे थे,
ग़ौस पाक Gaus Paak जब किसी पत्थर, लकड़ी, दिवार या कबर के पास से गुज़रते तो ग़ौस पाक Gaus Paak हाथ से इरशाद फरमाते, तो उस वक़्त ग़ौस पाक Gause Paak का हाथ मुबारक चांद की तरहा रोशन हो जाता था,
और इस तरह वो सब हज़रत ग़ौस पाक Gause Paak के मुबारक हाथ की रोशनी के जरिये हज़रते इमाम अहमद बिन हम्बल रहमतुल्ला अलेह के मज़ारे मुबारक तक पहुच गए।
(गौस पाक के हालात , सफह 41)
- अल्लाह का ग़ौस पाक से वादा
हुजूर गौस आजम Gaus Azam रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं। मेरे परवर दीगर ने मूछ से वादा फरमाया है।
की जो मुसलमान तुम्हारे मदरसे के दरवाजे से गुजरेगा उनके अजब में तखफिफ फरमाउंगा।
मदरसे के करीब से गुजरे वाले की बख्शीश
एक शख्स ने खिदमत अकदस में हजीर हो कर अर्ज़ की, फूला कब्रिस्तान में एक शख्स दफन किया गया है जिस का हाल ही में इंतेकल हुआ है।
उनकी कबर से चिखने की आवाज आती है जैसे अजाब में मुबतिला है।
हुजूर गौस पाक Gause Paak इरशाद फरमाते हैं
क्या वो हम से बैत हैं?
अर्ज़ की: मालुम नहीं।
फरमाया : हमारे यहाँ के आने वालो में था?
अर्ज़ की: मालुम नहीं।
फरमाया : कभी हमारे घर का खाना उसने खाया है?
अर्ज़ की: ये भी मालुम नहीं।
हुजूर गौसुस-कलेन Ghous e Pak रहमतुल्लाह आलेह ने फरमाया और जरा देर में सरे अक्दस उठाया, हैबतो जलाल रुए अनवर से जाहिर था,
इरशाद फरमाया फिरिश्ते हम से ये कहते हैं की एक बार इसने हम को देखा था और दिल में नेक गुमान लाया था इस वजा से बख्श दिया गया।
फिर जो उसकी कबर पर जा कर देखा तो मैय्यत की अंदर से आवाज़ आना बिलकुल बंद हो गई।
(गौस ए पाक के हालात , सफा 41-42)
- अज़ाबे कबर से निजात मिल गया
बगदाद शरीफ के मोहल्ले बाबुल के कबीरस्तान में एक कबर से मुर्दे के चिखने की आवाज सुनाने देने के मुतालिक लोगों ने गौस ए आज़म Gause Azam रहमतुल्लाह अलैह की बरगाह में अरज़ किया तो गौस ए आजम Gause Azam ने पूछा।
क्या हम कबर वाले ने मुझसे खिरका पहना है?
लोगों ने कहा हुजूर वाला इस्का हमें इल्म नहीं है।
गौस ए आजम Gause Azam ने पूछा उसने कभी मेरी मजलिस में हजीरी दी थी?
लोगो ने अर्ज़ की बंदा नवाज़, इस्का भी हमे इल्म नहीं।
इस्के बाद गौस ए आजम Gause Azam ने पूछा क्या उसे मेरे पीछे नमाज पढी है?
लोगो ने कहा हम इसके मुतालिक भी नहीं जनते ।
गौस ए आज़म Gause Azam ने इरशाद फरमाया भुला हुआ शक्स ही ख़सार में पढ़ता है?
इस्के बाद गौस ए आज़म Ghous e Pak ने मुराकबा फरमाया और आप के चेहरे मुबारक से जलाल हैबत और वकार जहीर होने लगा गॉस ए आज़म Hazrat Ghous Pak ने सर मुबारक उठाया, फरमाया की फरिश्तों ने मुझे कहा है,
इस शख्स नेआप की जियारत की है और आप से हुस्न जान और मोहब्बत रखता था तो अल्लाह ताला ने आप के सबब इस पर रहम फरमा लिया।
इस्के बाद हमें कबर से कभी भी आवाज ना सुनाई दी।
(गौस ए पाक के हालात , सफह 44)
- मुर्गी जिंदा कर दे Ki Karamat
एक बीबी सरकार बगदाद रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में अपना बेटा छोड़ गई की इस्का दिल हुजूर से गिरविदा है।
अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तरबियत फरमाए।
गौस ए आजम Gaus e Azam ने कबुल फरमा कर मुजाहदे पर लगा दिया और एक रोज उनकी मां आई की देखा लडका भुख ,
और शब बेदारी से बहुत कमजोर और जर्द रंग का हो गया है और उसने जव की रोटी खाते देखा
जब बरगाहे अक़दस में हाज़िर हुई तो देखा की आपके सामने एक बर्तन में मुर्गी की हड्डिया रखी है,
जिस्से हुजुर रहमतुल्ला ले ने तनवुल (खा लिया) फरमाया था।
उस औरत ने अर्ज़ की, ए मेरे मौला हुज़ूर आप मुर्गी खाए और मेरा बच्चा जौ की रोटी
यह सुनकर हुज़ूर पुर-नूर रहमतुल्लाह अलैह अपना दस्ते अक़दस मुर्गी की हड्डियों पर रखा और फरमाया उठ उस अल्लाह के हुकुम से जो बोसिदा हदियों को जिंदा फरमाने वाला हैं ।
या फरमान था की मुरगी फौरन जिंदा सही सलामत खड़े होकर आवाज करने लगी,
गौस ए पाक Gause Paak रहमतुल्लाह ले ने फरमाया जब तेरा बेटा इस दरजे तक पांच जाएगा तो जो चाहे खाएगा
(गौस ए पाक की हालात, सफर 44 - 45)
- हज़रत ग़ौस पाक की दुआ की बरकत की करामाती
हजरत शेख सालेह अबुल मुजफ्फर इस्माइल बिन अली हुमैरी ज़रीरानी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते
हैं।
हजरत शेख अली बिन हैतमी रहमतुल्लाह अलैह जब बीमार होते तो कभी मेरी ज़मीन की तरफ जो की ज़रीरन में थी तशरीफ लाते और वहा दिन गुजरे।
एक दफा आप वही बीमार हो गए तो उन के पास मेरे गौस ए समदानी रहमतुल्लाह अलेह बगदाद से तामीर दारी के लिए तशरीफ लाए,
दोनो मेरी ज़मीन पर जमा हुए, उस में दो खजूर के दरख्त थे , जो चार बरस से खुश्क थे और उने फल नहीं लगता था।
हमने उन को काट देने का इरादा किया तो, जब हजरत अब्दुल कादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलेह खड़े हुए और उन में से एक के के निचे वजू किया और दसरे के निचे दो रकात नफल अदा किए।
कुछ दिनों में सब्ज़ हो गए और उनके पत्ते निकल आ गए ।
और उशी हफ्ते में उन का फल आ गया। हालांकि वो खजूर के फल का वक्त नहीं था में अपनी जमीन से कुछ खजुरे ले कर आप की खिदमत में हजीर कर दी आप ने उस में से कुछ खजूरे खाए ,
और मूछ से कहा अल्लाह तेरी ज़मीन, तेर दिरहम और तेरे दूध में बरकत दे।
हजरत शेख इस्माइल बिन अली रहमतुल्लाह अलैह फरमाते है की मेरी ज़मीन में हम साल की मिकदार से दो से छै गुना पैसा होना शुरू हुआ,
अब मेरा ये हाल है की जब में एक दिरहम खर्च करता हूं तो उसमे मेरे पास दो से तीन गुना आ जाता है।
और जब में गन्दुम की 100 बोरी किसी मकान में रखता हूं फिर उस में से 50 बोरी खर्च कर डालता हूं और बाकी को देखता हूं तो 100 बोरी मौजुद होती हैं।
मेरे मवेशी इस कदर बच्चे जन्म ते हैं की में उन का शूमार (गिनती) भूल जाता हूं।
और ये सब हजरत शेख अब्दुल कादिर जिलानी रहमतुल्ला अलेह की बरकत से अब तक बाकी हैं।
(गौस ए पाक के हालात , सफह 46)
- खलीफा ए वक्त का माली दौलत खुन में बदल गया
हज़रत अबू अब्दुल्लाह मुहम्मद बिन अबुल अब्बास मौसिली रहमतुल्लाह अलैह अपने वालिद से नकल करते हैं की उन्होन फरमाया:
हम एक रात अपने शेख अब्दुल कादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलेह के मदरसे बगदाद में उस वक्त ग़ौस ए आजम Gaus Pak की ख़िदमत में बादशा अल मुस्तंजद बिलाल अबुल मुजफ्फर युसूफ हाजीर हुआ,
उसे आप को सलाम किया और नसीहत का ख्वास्त गार हुआ और आप की खिदमत में दास थेलिया पेश की,
आप रहमतुल्लाह अलैह ने फरमाया की मुझे इसकी हाजत नहीं रखत । और कुबुल करने से इनकार फरमा दिया, बादशाह ने बड़ी अज़ीज़ी की,
तब ग़ौस ए आजम Gaus Pak ने एक थेलिअपने दाए हाथ में पकड़ी और दूसरी थेलि बाई हाथ में पकड़ी और दोनो थेलिया को हाथ से दबा कर निचोड़ दी वो दोनो थेलिया खुन हो कर बह गई,
आप हज़रत ग़ौस पाकGaus Pak ने फरमाया ए अबुल मुजफ्फर क्या तुम्हें अल्लाह का खोफ नहीं की लोगो का ख़ून लेते हो और मेरे सामने लाते हो।
वो आप की बात सुनकर हैबत (हैरान) के आलम में बेहोश हो गया।
फ़िर हज़रत ग़ौस पाक Gause Pak रहमतुल्लाह अलैह ने फरमाया अल्लाह की कसम अगर इस्के हुज़ूर नबिये पाक से रिश्ते का लिहज़ ना होता तो मैं इस ख़ून को इस तरह छोडता की उनके मकान तक पहूचता।
(गौस ए पाक के हालात , सफह 46-47)
- अंधों को बिना और मुर्दो को जिंदा करना
हजरत शेख बरगुजिदा अबुल हसन कारशी फरमाते हैं। मैं और शेख अबुल हसन अली बिन हैती हजरत शेख मुह्युद्दीन अब्दुल कादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलेह की खिदमत में उनके मदरसे में मौजुद था,
तो उनके पास अबू गालिब फजलुल्लाह बिन इस्माइल बगदादी अज़ी सौदागर हज़ीर हुआ वो आप से अर्ज़ करने लगा की।
ए मेरे सरदार! आप के जद्दे अमजद हुजुरे पुर-नूर का फरमाने जीशान हैं की "जो शक दावत में बुलाया जाए उस की दावत कबुल करनी चाहिए ।
मैं हजीर हुआ हू की, आप मेरे घर दावत पर तशरीफ लाए।
आप ने फरमाया अगर मुझे इज्जत मिली तो मैं आउंगा। फिर कुछ देर बाद आप ने मुस्कुरा कर के फरमाया हा आउंगा।
फ़िर आप हज़रत ग़ौस पाक Gause Pak अपने खच्चर पर सुवर हुए, शेख अली ने आप की दाई रिकाब पकड़ी और मैंने बाई रिकाब थामी और जब उसके घर में हम ऐ आए देखा तो हम ने बगदाद के मसाईका, उल्मा और मुअज्जिन जमा हैं,
दस्तर ख़्वान बिछाया गया जिसमे तमाम शिरी और तुर्श (महेमान) खाने के लिए मौजुद थे और एक बड़ा संदुक लाया गया जो सर बी मोहर था,
दो आदमी उसे उठाए हुए थे, दस्तरख़ान के एक तरफ़ रख दिया गया.
अबू गालिब ने कहा इज़ाज़त हैं।
उश वक़्त हज़रत शेख मुहिय्युदीन अब्दुल कादिर जिलानी रहमतुल्ला अलेह मुरकबे में और आप ने खाना न ख़या न ही खाने की इज़ाज़त दी।
आप रहमतुल्लाह अलेह ने खाने की इज़ाज़त न दी, किसी ने भी खाना ना खाया,
आप की हैबत के सबब मजलिस वालो का हाल ऐसा था की गोया उनके सरो पर परिंदे बैठा है,
फिर आप ने शेख अली की तरफ इशारा करते हुए फरमाया की वो संदूक उठा लाए।
हम उठे और उसे उठाया वो वजनी था, हमने संदुक को गॉस आज़म Gaus e Azam के सामने ला कर रख दिया। गॉस आजम Hazrat Ghous Pak ने हुकुम दिया की संदूक को खोला जाए।
हमने खोला तो उसमे अबू गालिब का लड़का मौजुद था जो मादर जाद अंधा था तो गॉस आजम Hazrat Ghous Pak ने उसे कहा खड़ा हो जा।
हमने देखा की गोस आजम Gaus e Azam के कहने की देर थी की लड़का दौड़ ने लगा और बिना भी हो गया और एसा हो गया की कभी बिमारी में मुबतला नहीं था,
ये देख कर मजलिस में शोर बरपा हो गया और गोस आजम Gaus e Azam इसी हलत में बहार निकला आए और कुछ ना खाया।
इस्के बाद में शेख अबू साद खिदमत में हजीर हुआ और ये हाल बयान किया तो उनहोने कहा की हजरत शेख अब्दुल कादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह मदार जध अंधे और बरस वालो को अच्छा करते हैं खुदा के हुकुम से मुर्दा जिंदा करते हैं।
(गौस पाक के हालात , सफह 50)
- बादलो पर भी गोस आजम की हुक्मरानी
हजरत शेख अब्दुल कादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह एक दिन मिंबर पर बैठे बयान फरमा रहे थे,
की बारिश शुरू हो गई तो आप ने फरमाया में तो जमा करता हुआ और ए बादल तू मुतफारिक कर देता है।
से बादल मजालिस से हट गया और मजलिस से बहार बरसने लगा,
रावी कहते हैं की अल्लाह की कसम हजरत शेख अब्दुल कादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलेह का कलाम अभी पूरा नहीं हुआ था की,
बरिश हम पर से बरसना बंद हो गई और हमारे दाए बाए बरसने लगी थी और हम पर नहीं बरसती थी।
(गौस पाक के हालात , सफह 51)
- छोटे बच्चे की लाश Ki Karamat
खानका में एक बा परदा खातून अपने छोटे बचे की लाश चादर में लपटे सिने से चिपका ए जारो कतार रो रही थी।
इतने में एक नूरानी बच्चा दौड़ता हुआ आता है।
और हम ददरानालहज़े में हम खातून से रोने का सबब दरियाफत करते हैं।
वो रोते हुए कहती हैं बेटा! मेरा शोहर अपने लखते जिगर के दीदार की हसरत लिए दुनिया से रुखसत हो गया है।
ये बच्चा उस वक्त पेट में था और अब ये अपने बाप की निशानी और मेरी जिंदगी का सरमाया था।
ये बिमार हो गया मैं इसे ईशी खानकाहा में दम करवाने ला रही थी की रास्ते में दम तोड दिया है।
मैं फिर भी बड़ी उम्मिद ले कर यह हजीर हो गई की इस खानका वाले बुजुर्ग की विलायत की हर तरह धूम (चर्चा) हैं।
और इनकी निगाह करम से अब भी बहुत कुछ हो सकता है।
मगर वो मुझ से सब्र की बात कर रहे हैं अंदर तशरीफ ले जा चुके हैं।
ये कह कर वो खातून फिर रोने लगी , अब नूरानी बच्चे का दिल पिघल गया।
और नूरानी बचे की रहमत भरी जबान पर ये अल्फाज निकले।
मोहतरमा आप का बच्चा मरा हुआ नहीं बल्की जिंदा है देखा तो सही वो हरकत कर रहा है।
दुखियारी माँ ने बेताबी के साथ अपने बचे की लाश पर से कपड़ा उठा कर देखा तो वो सच बहुत ज़िंदा था और हाथ - जोड़ी हिला रहा था।
इतने में खानकहा वाले बुज़ुर्ग अंदर से तशरीफ़ लाए।
बच्चे को ज़िंदा देखा कर सारि बात समज गए और लाठी उठा कर ये कहते हुए हमें नूरानी बच्चों की तरह लपके की।
तू ने अभी से तकदीरे खुदा बंदी के सरबस्ता राज खोलने शुरू कर दिया है।
नूरा नी बच्चा वहा से भाग खड़ा हुआ और वो बुज़ुर्ग उसके पीछे दौड़ने लगे।
नूरानी बच्चा यका-यक कब्रिस्तान की तरफ कूदा और बुलंद आवाज से पुकारने लगा ए कबर वालो! मुचे बचाओ।
तेजी से लपकते हुए बुज़ुर्ग अचानक रुक गए।
क्यूं की कब्रस्तान से 300 मुर्दे उठ कर उसकी नूरानी बच्चे की ढाल बन चुके थे।
और वो नूरानी बच्चा दूर खड़ा अपना चांद सा चहेरा चमका मुस्कुरा रहा था।
हमें बुज़ुर्ग ने बड़ी हसरत के साथ नूरानी बच्चे की तरफ देखते हुए कहा बेटा! हम तेरे मरतबे को नहीं पा सकते हैं।
इसलिए तेरी मर्जी के आगे अपना सर तस्लीम करते हैं.
प्यारे दोस्तो क्या आप जानते हैं वो नूराई बच्चा कोन था?
उस नूरानी बच्चे का नाम "हजरत शेख अब्दुल कादि जिलानी रहमतुल्लाह अलैह" था।
और वो बुज़ुर्ग उन के नाना जान हज़रते सैय्यदना अब्दुल्ला सुमई रहमतुल्लाह अलैह।
(गौस पाक का बचपन, सफह नंबर 4-5)
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