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Eid Milad Un Nabi Ki Haqeeqat In Hindi ईद मिलाद उन नबी की हकीकत
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Eid Milad Un Nabi Ki Haqeeqat In Hindi - सवाल .: ईद मीलादुन्नबी के मुत्अल्लिक़ आजकल कुछ लोग तरह - तरह की बकवासें करते हैं ऐसा लगता है कि उनके नज़दीक समाज में ईद मीलादुन्नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम मनाने से ज़्यादा बुरा काम और कोई नहीं ज़रा इस पर रौशन दलीलें पेश फ़र्मानें की ज़हमत गवारा फ़र्मायेंगे ?
जवाब .: वे लोग जो मक़सूदे काइनात , बाइसे तख़लीक़े आदम ( अलैहिस्सलाम ) अल्लाह तआला के महबूब पाक और रब तआला की ख़ास नेमत मुस्तफ़ा जाने रहमत सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम की मीलाद पाक की खुशियाँ देखकर मारे गुस्सा से पागल हो जाते हैं
अल्लाह तआला के महबूबों की बारगाह में नज़राना - ए अक़ीदत पेश करने वाले बन्दों पर तानों की तीरों से बारिश करते रहते हैं ।
क्या ही अच्छा होता कि अगर वे लोग अपनी तक़रीरों , तहरीरों को शराब , जुवा , ज़िना , चोरी , रिश्वत , झूठ , ग़ीबत , और इन जैसी दूसरी बुराईयों के मिटाने के लिए इस्तेमाल करते मगर उनसे ऐसी उम्मीद कहाँ हो सकती है ?
उनकी ज़बान व क़लम के तीर तो मुसलमानों के रूहानी व ईमानी जज़बात को घायल करने के लिए हैं ।
ईद ए मिलाद उन नबी का सबूत कुरान हदीस से Eid E Milad Un Nabi Ka Saboot / Ki Haqeeqat Quran Hadees Se In Hindi
अल्लाह की रहमत पर ख़ुशियाँ मनाओ
क्या उन लोगों ने कभी इस फ़र्माने इलाही पर ग़ौर करने की कोशिश की ? अल्लाह तआला फ़र्माता है “
ऐ हबीब ! आप फ़र्माइये ! अल्लाह के फ़ज़्ल और उसकी रहमत ( के मिलने ) पर चाहिए कि लोग ) ख़ुशी करें । " ( सूरह यूनुस )
इस आयत करीमा में हुक्म दिया जा रहा है कि , जब अल्लाह तआला का फ़ज़्ल और उसकी रहमत हो तो मुँह बिसोर कर न बैठ जाया करो ! जो चराग जल रहा है उसको भी न बुझा दिया करो !
क्योंकि अल्लाह तआला के फ़ज़्ल व रहमत पर अल्लाह का शुक्रिया अदा न करना उसके फ़ज़्ल व रहमत से ख़ुश न होना , और खुशी ज़ाहिर न करना कुफ़राने नेमत है । ऐसा न करो ! बल्कि खुशी का इज़हार करो ।
और यह बताने की भी कोई ज़रूरत नहीं कि खुशियाँ ज़ाहिर करने के लिए क्या - क्या तरीक़े हैं ? जब दिल में सच्ची खुशी के जज़बात उमड़ कर आते हैं तो अपने ज़ाहिर होंने केलिए ख़ुद रास्ता पैदा कर लेते हैं ।
और अल्लाह तआला ने कुरआन पाक में कई जगहों पर सरकार दो आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम की जात पाक को रहमत क़रार देते हुए यूँ फ़र्माया है कि - "
" और हम ने तुम्हें सारी दुनिया केलिए रहमत बना कर भेजा । ” ( पारा १७ रुकूअ ७ )
इस आयत करीमा में अल्लाह तआला ने हुज़ूर सल्लाल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम की जात पाक को रहमत फ़र्माया और दूसरी आयत में अल्लाह तआला ने अपने हबीब पाक सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम को दुनिया में भेजे जाने पर अपना एहसान ( फ़ज़ल ) मोमिनों के लिए फ़र्माया है । इर्शाद बारी तआला है
" बेशक ! अल्लाह तआला ने बड़ा एहसान किया बन्दों पर कि उन में एक रसूल भेजा । ” ( पारा ६ रुकूअ ४ )
ख़ुदा का एहसान ख़ुदा का फ़ज़्ल ही तो है । मालूम हुआ कि जो हुज़ूर रहमते आलम मुहसिने इन्सानियत हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम की जात पाक को ख़ुदा की रहमत और उसका फ़ज़्ल समझता है
वह शख़्स यक़ीनन आपकी पैदाइशे पाक की खुशियाँ मनायेगा और जिस शख़्स के नज़दीक हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम की जात पाक कोई अहमियत नहीं रखती वह भला क्यों ख़ुशी करेगा ?
और दूसरी जगह अल्लाह तआला फ़र्माता है
“ और याद करो ! अल्लाह तआला की नेमत जो तुम पर है । ” ( पारा ४ रुकूअ २ )
बुख़ारी शरीफ़ जि . २ सफ़ा ५६६ में हज़रत इमाम बुख़ारी से रिवायत हैं कि - “ हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम नेमतुल्लाह ( अल्लाह की नेमत ) हैं । "
मालूम हुआ कि जब हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम नेमतुल्लाह हैं इस हदीस शरीफ़ के मुताबिक़ हुज़ूर रहमते आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम का चर्चा ख़ूब करना चाहिए क्योंकि आप ख़ुद भी अल्लाह तआला की नेमत हैं
और दुनिया की नेमतों की नेमत हैं । आप ही ने नेमतों को नेमत बनाया अगर आप अल्लाह की नेमतों से फ़ायदा उठाने का सलीक़ा न बताते तो हम नेमतों के होते हुए भी नेमतों से फ़ायदा उठाने से महरूम रहते |
ग़लत तरीके से इस्तेमाल करने से नेमतें ज़हमतें बन जातीं । आपका ज़िक्र पाक ख़ुदा को महबूब व मक़बूल और मतलूब है ।
अब यह चर्चा चाहे जुलूसे ईद मीलादुन्नबी की शक्ल में हो , या महफ़िले मीलादुन्नबी की सूरत में हो , या सलात व सलाम के रूप में हो और
या नात ख़्वानी की ख़ास महफ़िल की शक्ल में हो यह सब ज़िक्र मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ही है और कुरआन पाक के ईर्शादात पर अमल है । :
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मीलाद शरीफ़ , कुरआन पाक में Milad un Nabi ki Daleel Haqeeqat Quran Se In Hindi
अल्लाह तआला कुरआन शरीफ़ में इर्शाद फ़र्माता है -
“ बेशक ! तुम्हारे पास तशरीफ़ लाये तुम में से वह रसूल जिन पर तुम्हारा मशक़्क़त में पड़ना गेराँ है , तुम्हारी भलाई के निहायत चाहने वाले मुसलमानों पर कमाल मेहरबान । ” ( पारा ११ सूरह तौबा )
इस आयत मुबारक में अल्लाह तआला ने अपने महबूबे पाक सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम की तशरीफ़ आवरी , नसब ( पीढ़ी ) शरीफ़ अख़लाक मुबारका , का बयान फ़र्माया,
और महफ़िले मीलाद शरीफ़ में यही बातें बयान की जाती हैं । मालूम हुआ मीलाद शरीफ़ बढ़ना अल्लाह तआला की सुन्नत है ।
ज़िक्रे मीलाद शरीफ़ , बिदअत नहीं ! इबादत है Eid Milad Un Nabi Bidat Nahi Ki Haqeeqat In Hindi
ख़ुद हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने फ़र्माया है कि -
" अम्बिया ए किराम अलैहिमुस्सलाम का ज़िक्र इबादत है और औलिया अल्लाह का ज़िक्र गुनाहों का कफ़्फ़ारा है । ” ( फ़तहुल कबीर जि . २ सफ़ा २० )
जब अम्बिया औलिया का ज़िक्र इबादत और गुनाहों का कफ़्फ़ारा है तों हुज़ूर इमामुल आम्बिया सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम का ज़िक्र ( ज़िक्र मीलादुन्नबी ) किस दर्जा इबादत,
और किस क़दर बाइसे रहमत व बरकत और गुनाहों का कफ़्फ़ारा होगा !
बेशक ज़िक्रे मीलादुन्नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ईमान का सरमाया और दिल व जान की तसकीन है ।
ज़िक्रे मीलादुन्नबी , ख़ुदा का ज़िक्र है Zikare Eid Milad Un Nabi Ki Haqeeqat In Hindi
हदीस कुदसी है , हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने फ़र्माया कि अल्लाह तआला फ़र्माता है -
“ मैं ने ईमान का मुकम्मल होना इस बात पर मौक़ूफ़ कर दिया है कि ऐ महबूब ! मेरे ज़िक्र के साथ तुम्हारा ज़िक्र भी हो और मैं ने तुम्हारे ज़िक्र को अपना ज़िक्र ठहरा दिया है । तो जिसने तुम्हारा ज़िक्र किया , उसने मेरा ज़िक्र किया । ” ( शिफ़ा शरीफ़ जि . १ सफ़ा १२ )
और ज़िक्रे मीलादुन्नबी अल्लाह के महबूब का ही ज़िक्र है । और अल्लाह तआला ने अपने नबी हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम के ज़िक्र को अपना ही ज़िक्र फ़र्माया है ।
जब महबूब रब्बुल आलमीन का ज़िक्र ख़ुदा का ज़िक्र ठहरा तो ज़िक्रे मीलादुन्नबी ख़ुदा ही का ज़िक्र ठहरा ।
जब ज़िक्रे मीलादुन्नबी ख़ुदा का ज़िक्र ठहरा तो जो कोई ख़ुदा के ज़िक्र को शिर्क व बिदअत कहे उससे बड़ा गुमराह दुनिया में भला कौन होगा ?
ज़िक्रे मीलादुन्नबी बिदअत नहीं , हुब्बे रसूल की निशानी है
Hubbe Rasul Ki Nishani Eid Milad Un Nabi Ki Haqeeqat In Hindi
हज़रत अनस बिन मालिक अन्सारी रज़ियल्लाहु तआला अन्ह फ़र्माते हैं कि , हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने फ़र्माया कि
“ तुम में कोई मोमिन न होगा जब तक मैं उसके नज़दीक उसके माँ - बाप व औलाद और सब लोगों से ज़्यादा प्यारा न हो जाऊँ । ” ( बुख़ारी शरीफ़ सफा ७ )
मालूम हुआ कि ईमान का दारोमदार हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम की मुहब्बत पर है । और मुहब्बत की निशानियों में से एक निशानी यह भी है कि
" मुहिब अपने महबूब का बहुत ज़्यादा ज़िक्र करता है । ”
जैसा कि खुद हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम फ़र्माते हैं -
" जिसको जिससे मुहब्बत होती है वह अकसर उसी का ज़िक्र करता है । ” ( ज़रकानी अलल मवाहिब जि . ६ सफ़ा ३१४ )
मालूम हुआ कि जिसको हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम से जितनी ज़्यादा मुहब्बत होगी वह उतना ही ज़्यादा आपका ज़िक्र करेगा । कभी मीलाद शरीफ़ के ज़रिये ज़िक्र करेगा ,
कभी जुलूसे ईद मीलादुन्नबी के ज़रिये ज़िक्र करेगा , कभी सलात व सलाम के ज़रिये ज़िक्र करेगा , और कभी अज़ान में आपका नाम पाक सुन कर बोसा देते हुए और दुरूद व सलाम पढ़ते हुए आपका ज़िक्र करेंगा ।
मीलाद नूरानी , रसूलुल्लाह की ज़बानी Eid Milad Un Nabi Nurani Rasul Ki Jubani Haqeeqat In Hindi
हज़रत अब्बास रज़ियल्लाहु तआला अन्ह से रिवायत है कि - हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम मिम्बर पर जल्वा फ़र्मा हुए और फ़र्माया -
“ मैं कौन हूँ ? ” -
सहाबा ए किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम ने अर्ज़ किया कि
“ आप ! अल्लाह तआला के रसूल हैं ! ”
आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने फ़र्माया -
“ मैं , अब्दुल मुत्तलिब के बेटे का बेटा हूँ ! अल्लाह तआला ने मख़्लूक पैदा की तो उन में सब से बेहतर मुझे बनाया ।
फिर - मखलूक के दो गिरोह बनाया , उन में एक गिरोह को बेहतर बनाया और उस बेहतर गिरोह में मुझे सब से बेहतर बनाया ,
फिर - उन में क़बीले बनाये और उन क़बीलों मैं एक क़बीला बेहतर बनाया और उस बेहतर क़बीला में मुझे सब से बेहतर बनाया
फिर - उन में घराने बनाये और उन घरानों में एक घराना बेहतर बनाया और उस बेहतर घराने में मुझे सब से बेहतर बनाया । तो मैं उन सब में अपनी ज़ात के एतबार और घराने के एतबार से बेहतर हूँ । ( मिश्कात शरीफ़ सफ़ा ५१३ )
एक और जगह हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ख़ुद अपना मीलाद शरीफ़ सहाबा ए किराम की नूरानी महफ़िल में बयान फ़र्माया
मैं तुम लोंगों को अपने इब्तिदाई मामिला की ख़बर देता हूँ
- मैं हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की दुआ हूँ ,
- मैं हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की ख़ुशख़बरी हूँ
- मैं अपनी वालिदा का वह आँखों देखा मन्ज़र हूँ
जो उन्होंने मेरी विलादत के वक़्त देखा था कि उनके जिस्म से एक ऐसा नूर निकला जिसकी रौशनी में उन्हें मुल्क शाम की बिल्डिंगें नज़र आ गयीं । ” ( मिश्कात शरीफ़ )
जो जश्ने ईद मीलादुन्नबी के मुनकिर हैं , उन से अर्ज़ है कि “ सेहाह सित्ता ” की मशहूर किताब “ तिर्मिज़ी शरीफ़ ” उठा कर पढ़ो ! “ तिर्मिज़ी शरीफ़ ” का शुमार हदीस शरीफ़ की उन ६ किताबों में है जो सबसे ज़्यादा सही मानी गयीं हैं । फिर “ तिर्मिज़ी शरीफ़ " की कुछ ऐसी ख़ूबियाँ हैं जो हदीस शरीफ़ की किसी दूसरी किताब में नहीं पाई जातीं ।
हज़रत इमाम तिर्मिज़ी अलैहिर्रहमह ने “ तिर्मिज़ी शरीफ़ ” में अगर नमाज़ , रोज़ा , हज , ज़कात का बाब बांधा है तो वहीं बाजू में “ बाब माजा - अ फ़ी मीलादिन्नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ” यानी “ उन हदीसों का ज़िक्र जो मीलादुन्नबी सल्लम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम के बारे में आई हैं । "
हज़रत इमाम तिर्मिज़ी अलैहिर्रहमह मीलादुन्नबी का बाब बाँधते हैं तो हज़रत तिर्मिज़ी का मनाने वाला और तिर्मिज़ी शरीफ़ पढ़ने और पढ़ाने वाला मुसलमान मीलादुन्नबी की मजालिस क्यों नहीं क़ाएम कर सकता है ? नश्ने ईमादुन्नबी क्यों नहीं मना सकता है ?
एतराज़ करने वालों को तो हज़रत इमाम तिर्मिज़ी पर एतराज़ करना चाहिए कि “ इमाम ! आपने रोज़ा , नमाज़ के बाब के बगल में यह मीलादुन्नबी का बाब कैसे बाँध दिया है ? "
अब पता नहीं ! ये लोग अपने दारूल उलूम में “ तिर्मिज़ी शरीफ़ ” पढ़ते और पढ़ाते वक़्त इस जगह आँख बन्द कर के क्यों गुज़र जाते हैं ? इसका राज़ तो वही बतायेंगे । हम तो यही कहेंगे
" मेरा पैग़ाम मुहब्बत है जहाँ तक पहुँचे !!! "
यौमे विलादत , यौमे ईद है Youme Milad Un Nabi Ki Haqeeqat In Hindi
अल्लाह तआला ने अपने कलाम पाक में हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम का ज़िक्र फ़र्माया , उन्होंने अल्लाह तआला से दुआ की
“ ऐ अल्लाह ! हमारे परवर दिगार ! हम पर आसमान से एक दस्तरख़ाना उतार दे ! ताकि से वह हमारे लिए और हमारे अगलों और पिछलों के लिए “ ईद ” हो । और तेरी तरफ़ से एक निशानी हो और हमें रिज़्क दे ! और तू सब से बेहतर रोज़ी देने वाला है । " ( सूरह माइदा )
गौर फ़माइये ! हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम ने आसमान से दस्तरखान उतरने के दिन को ईद क़रार दिया । इसलिए ईसाई आज तक इतवार के दिन छुट्टी करते और खुशियाँ मनाते हैं क्योंकि उस दिन दस्तरखान उतरा था ।
जिस दिन दस्तरख़ान उतरे वह हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम और उनके अगलों - पिछलों केलिए ईद हो तो जिस दिन अल्लाह तआला की सब से बड़ी नेमत व रहमत हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम तशरीफ़ लायें वह दिन मुसलमानों के लिए क्यों नहीं ईद होगा ? यक़ीनन होगा ।
मीलादुन्नबी की रात , शबे क़द्र की रात से अफ़जल
Eid Milad Un Nabi Ki Raat Shab E Qadar Ki Raat Se Afzal Ki Haqeeqat In Hindi
हज़रत शाह अब्दुल हक़ मुहद्दिस देहलवी अलैहिर्रहमह अपनी किताब “ मासबत बिस्सुन्नह सफ़ा ७८ ” में फर्माते हैं कि -
“ मीलादुन्नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम की रात लैलतुल क़द्र ( शबे क़द्र ) से बेशक अफ़ज़ल है ।
इसलिए कि मीलाद रसूल की रात ख़ुद मक़सूदे काइनात हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम के ज़ूहुर की रात है ।
और शबे क़द्र हुज़ूर को अता की गई है । और ज़ाहिर है कि जिस रात को जाते पाक से फ़जीलत मिली वह उस रात से अफ़जल ज़रूर होगी जो हुज़ूर को दिये जाने की वजह से बुजुर्गों वाली है ।
शब क़द्र फ़रिश्तों के नाज़िल होने की वजह से अज़मत वाली हुई और शबे मीलाद ख़ुद बख़ुद हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला की तशरीफ़ आवरी से अज़मत वाली हुई ।
और इसलिए भी कि शबे केंद्र में हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम की उम्मत पर फ़ज़्ल व एहसान है ।
और शबे मीलाद में तमाम मख़्लूकात सारे मौजूदात पर फ़ज़्ल व एहसान हुआ है । क्याकि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम रहमतुललिल आलमीन हैं ।
जिनकी वजह से अल्लाह तआला की तमाम नेमतें सारी मख़्लूकात पर आम हो गयीं ।
माहे रबीउल अव्वल शरीफ़ तमाम महीनों से अफ़ज़ल है :
Mahe Rabiul Awwal Sharif Tamam Mahino Se Afzal Ki Haqeeqat In Hindi
रबीउल अव्वल शरीफ़ की बहुत बड़ी फ़ज़ीलत है उलमा - ए किराम ने इस का खुलासा फ़र्माया है कि माहे रबीउल अव्वल का मर्तबा बाक़ी तमाम महीनों से बुलंद है,
यहाँ तक कि रमज़ानुल मुबारक की शान भी इस महीना की शान से कम है । वजह यह है कि रमज़ानुल मुबारक में कुरआन पाक उतरा और रबीउल अव्वल शरीफ़ में कुरआन वाला तशरीफ़ लाया ।
हमारी हक़ीक़ी ईद तो इसी महीने में है क्योंकि इस महिना में अल्लाह तआला ने अगर अपना प्यारा महबूब सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ,
हमें अता न फ़र्माता तो रमज़ान , कुरआन , ईमान यहाँ तक कि ख़ुद रहमान भी हमें न मिलता । यह सब उन्हीं का सदक़ा है अगर वे पैदा न किये जाते तो हम क्या दुनिया की कोई भी चीज़ वजूद में न आती ।
हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम की पीर और रबीउल अव्वल को पैदाईश की हिकमत :
स . : अक़्ल कहती है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम की पैदाईश पाक रमज़ानुल मुबारक में होती क्योंकि उस में कुरआन उतरा और उसमें शबे क़द्र है ,
मगर ऐसा नहीं हुआ । उन ४ महीनों में आपकी पैदाईश नहीं हुई जिन्हें इज़्ज़त वाले महीने कहा गया है ।
शाबान की १५ वीं रात , जुमा के दिन , या जुमा की रात को आपकी पैदाईश नहीं हुई इसमें क्या राज़ है ?
ज . : इस की सब से बड़ी वजह यह हैं कि अल्लाह तआला ने हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम की विदालत से उस ज़माने को इज़्ज़त बख़्शी जिस में आप पैदा हुए यानी रबीउल शरीफ़ और पीर को आप से बकमाल बुजुर्ग बनाया गया,
अगर दूसरे मुबारक वक़्तों में आपकी पैदाईश होती तो वहम होता कि आप को शायद इसी महीना , या इसी दिन , या इसी वक्त से अजमत मिली है,
इसलिए अल्लाह तआला ने महबूब पाक सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम को ऐसे .महीना और वक़्त में पैदा फ़र्माया जिसे इस से पहले कोई निसबत व बरकत न मिली थी,
इस लिए आप को किसी से इज़्ज़त व अज़मत नहीं मिली हमें चाहिए कि उस महीना का एहतराम करें । और अफ़ज़ल समझें ।
स . : कुछ लोग कहते हैं कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम की पैदाईश १२ रबीउल अव्वल शरीफ़ को इल्मे तक़वीम के हिसाब से दुरूस्त नहीं क्योंकि आपकी पैदाईश २२ अप्रैल ५७१ ई . को इसका हिसाब किया जाये तो ९ रबीउल अव्वल बनती है । सही क्या है ?
ज . : इस एतराज़ का जवाब यह है कि जनाब मुहम्मद इर्फान रिज़्वी साबिक डायरेक्टर एजोकेशेन रावलपिन्डी ने अपनी किताब में तक़वीम ही से १२ रबीउल अव्वल तारीख को दुरूस्त साबित कर दिया है तज़ किरतुल अम्बिया में इसका मुकम्मल खुलासा देखें !
और दूसरी बात यह है कि हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम की तशरीफ़ आवरी से पहले अरबी महीनों का कॅलेंडर मुस्तक़िल न था बल्कि कुफ़्फ़ार अपनी मरज़ी से उसे घटा - बढ़ा देते थे । ( तज़किरतुल अम्बिया सफ़ा ५१४ )
अगर उन्हें १२ रबीउल अव्वल तारीख़ सहीं नहीं लगती तो वे ९ रबीउल ही को जश्ने ईद मीलादुन्नबी मनाया करें हमें कोई शिकायत नहीं होगी ।
बल्कि मुबारकबाद पेश करेंगे मगर ऐसा कभी नहीं करेंगें क्योंकि वे तारीख़ के इख्तिलाफ़ में मीलादुन्नबी के जश्न को मिटाना चाहत हैं । मगर क़ियामत तक उन की मुराद पूरी न होगी इन्शा अल्लाह मौला तआला
स .: आज कल यह भी एतराज़ होता है कि अगर १२ रबीउल अव्वल पैदाईश का दिन साबित हो जाये तो वही वफ़ात का भी दिन है ।
तो फिर उस दिन ख़ुशी का इज़हार करना कैसे जायज़ होगा ? वह दिन गमी का भी है ?
ज .: एक ही तारीख़ अगर पैदाईश पाक भी हो और विसाल शरीफ़ भी तो ग़म क्यों नहीं किया जाता ? सिर्फ़ ख़ुशी का इज़हार क्यों किया जाता है इसका जवाब हज़रत अल्लामा सियूती अलैहिर्रहमह से सुनिए ! फ़र्माते हैं :
“ शरीयत ने नेमतों के शुक्र का इज़हार करने का हुक्म दिया है जबकि मुसीबतों , ग़मों के वक़्त सब्र व सुकून और उसे छुपाये रखने का हुक्म दिया ।
क्योंकि शरीयत ने बच्चे की पैदाईश पर ख़ुशी जाहिर करने के लिए अक़ीक़ा का हुक्म दिया । लेकिन वफ़ात पर जानवरों के जिबह का हुक्म नहीं दिया और न ही ऐसे कामों का हुक्म है,
जो ख़ुशी के मौक़ा पर किये जाते हैं । बल्कि नौहा से भी मना किया गया है क्योंकि यह बेसबरी की निशानी है ।
शरीयत के क़वानीन इस बात पर गवाह हैं कि हुज़ूर नबी ए करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम की विदालत शरीफ़ की वजह से इस महीना में खुशी का इज़हार करना अच्छा है ।
लेकिन आपके विसाल शरीफ़ पर गम ज़ाहिर करना अच्छा नहीं । न अल्लाह तआला ने आयत उतारी कि , “ ऐ मोमिनो ! मेरे नबी के विसाल शरीफ़ पर मातम और सोग करना । ”
न हुज़ूर ने फ़र्माया , “ ऐ मेरे गुलामों ! मेरे इन्तिक़ाल पर ग़म मनाना । ” न सहाबा ए किराम ने ऐसा कुछ फ़र्माया और न ख़ुद मातम व ग़म मनाया तो हम कैसे कर सकते ?
मगर “ हयातुन्नबी न मानने की जिद है कि नहीं ग़म मनाओ ! ” हालाँकि ये लोग कुछ भी नहीं करते । न ख़ुशी न गमी । इनके
किरदार गवाही दे रहे हैं कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम तशरीफ़ न लाते तो इनको कोई दुखः न होता और तशरीफ़ लाने पर कोई खुशी की बात भी नहीं है ।
इब्ने रजब अलैहिर्रहमह ने अपनी किताब “ अल्लताइफ़ ” में राफ़ज़ियों के यौमे आशूरा ( मुहर्रम १० वीं तारीख़ ) को हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्ह की शहादत की वजह से मातम करने की बुराई बयान करते हुए फ़र्माया
“ अल्लाह तआला और उसके रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने अम्बिया ए किराम पर मुसीबत के दिनों और उन के विसाल के दिनों को मातम ( ग़मी ) करने का हुक्म नहीं दिया तो उन से कम दर्जा वालों पर मातम क्योंकर किया जाये ? " ( अलहावी लिलफ़तावा जि . १ सफ़ा ९९ ३ )
सबसे बड़ी बात तो यह है कि हमारे नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम बर्ज़ख में दुनिया की ज़िन्दगी से आला ज़िन्दगी गुज़ार रहे हैं । जब आप ज़िन्दा हैं तो ग़म करने का सवाल कहाँ रहा ?
हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने फ़र्माया कि
“ बेशक ! अम्बिया ए किराम अपनी क़बरों में जिन्दा है वे नमाज़ें अदा करते हैं । ” ( बैहक़ी शरीफ़ )
हज़रत अल्लामा सियूती अलीहर्रहमह इस जैसी और कई हदीसें नक़ल करने के बाद फ़र्माते हैं कि -
“ इन तमाम रिवायतों व हदीसों से ज़ाहिर है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम अपने रूह व जिस्म के साथ ज़िन्दा हैं ज़मीन के चारों तरफ़ और मलकूत में जहाँ चाहें सैर करें,
और तसर्रूफ़ करें , अपने इख़्तियारात इस्तेमाल करें आपको विसाल से पहले जो सूरत हासिल थी वही अब भी है । उसमें कोई बदलाव नहीं आप सिर्फ़ नज़रों से छुपे हुए हैं,
जैसे फ़रिश्ते नज़रों से छुपे रहते हैं । आप अपने जिस्म के साथ ज़िन्दा हैं अल्लाह तआला जिसको आप की दीदार से मुशर्रफ़ करना चाहता है आप से पर्दा हटा देता है
वह आपको उसी हाल में देखता है जैसे आप ज़ाहिरी हयात में थे इस में कोई चीज़ रूकावट नहीं और यह कहने की भी ज़रूरत नहीं कि आप के जिस्म पाक को कई शक्लें अता फ़र्मा देता हैं,
और आदमी आपकी शबीहों को देखता है बल्कि आप को ज़ाहिरी तौर पर देखता है । ” ( अलहावी लिलफ़तावा जि . २ सफ़ा २६५ )
अम्बिया ए किराम की जिस्मानी ज़िन्दगी पर सिर्फ़ इतनी ही दलीलें नहीं क़ुरआन व अहादीस में बेशुमार दलीलें मौजूद हैं । यह मुख़्तसर सा बयान ईमान और मुहब्बत वालों के लिए काफ़ी है और मुनकिरीन केलिए तो दफ़्तरों के दफ़्तर भी बेकार हैं ।
ये मुहब्बत की बाते हैं मुहब्बत हो तो सारी बातें समझ में आती हैं अक़्ल का तो काम ही है भागने की राहें ढूँढना , तनक़ीदें करना । Eid Milad Un Nabi Ki Haqeeqat In Hindi यह थी ईद मिलादुन्नबी की हकीकत हिंदी में
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