Bismillah Hir Rahman Nir Raheem बिस्मिल्लाह फ़ज़ीलत बरकत, meaning in hindi, arabic, urdu, tamil, بسم الله الرحمن الرحيم text, png, vector, wikipedia,
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Bismillah Hir Rahman Nir Raheem |
बिस्मिल्लाह Bismillah Hir Rahman Nir Raheem की 13 फ़ज़ीलत
( 1 ) हज़रते सय्यिदुना अहमद बिन अली शम्सुल मआरिफ़ ( उर्दू ) के सफ़हा 37 पर लिखते हैं : जो बिला नागा ( या'नी रोज़ाना ) सात दिन तक " बिस्मिल्लाह इर्रहमान निर्रहीम (Bismillah) " 786 बार ( अव्वल आखिर एक बार दुरूद शरीफ़ ) पढ़े इंशाअल्लाह उस की हर हाजत पूरी हो । अब वोह हाजत ख्वाह किसी भलाई के पाने की हो या बुराई दूर होने की या कारोबार चलने की ।
( शम्सुल मआरिफ़ ( मुतर्जम ) , स . 37 )
( 2 ) जो किसी ज़ालिम के सामने " बिस्मिल्लाह इर्रहमान निर्रहीम (Bismillah Rahman Rahim Alhadulillah) " 50 बार ( अव्वल आखिर एक बार दुरूद शरीफ़ ) पढ़े उस ज़ालिम के दिल में पढ़ने वाले की हैबत पैदा हो और उस के शर से बचा रहे ।
( ऐज़न , स . 37 )
( 3 ) जो शख़्स तुलूए आफ़ताब के वक्त सूरज की तरफ रुख कर के बिस्मिल्लाह इर्रहमान निर्रहीम 300 बार और दुरूद शरीफ़ 300 बार पढ़े अल्लाह पाक उस को ऐसी जगह से रिज्क अता फ़रमाएगा जहां उस का गुमान भी न होगा और ( रोज़ाना पढ़ने से ) इंशाअल्लाह एक साल के अन्दर अन्दर अमीरो कबीर ( या'नी बड़ा मालदार ) हो जाएगा । ( ऐज़न , स . 37 )
( 4 ) कुन्द जेह्न अगर " बिस्मिल्लाह इर्रहमान निर्रहीम (Bismillah Rahman Rahim Alhadulillah) " 786 बार ( अव्वल आख़िर एक बार दुरूद शरीफ़ ) पढ़ कर पानी पर दम कर के पी ले तो adivali3 ) उस का हाफ़िज़ा मज़बूत हो जाए और जो बात सुने याद रहे । ( ऐज़न , स . 37 )
( 5 ) अगर कहूत साली हो तो " बिस्मिल्लाह इर्रहमान निर्रहीम " 61 बार ( अव्वल आखिर एक बार दुरूद शरीफ़ ) पढ़ें ( फिर दुआ करें ) इंशाअल्लाह बारिश होगी । ( ऐज़न , स . 37 )
( 6 , 7 ) " बिस्मिल्लाह इर्रहमान निर्रहीम (Bismillah Hir Rahman Nir Raheem) " कागज़ पर 35 बार ( अव्वल आख़िर एक बार दुरूद शरीफ़ ) लिख कर घर में लटका दें , शैतान का गुज़र न हो और खूब बरकत हो । अगर दुकान में लटकाएं तो इंशाअल्लाह कारोबार खूब चमके । ( ऐज़न , स . 38 )
( 8 ) पहली मुहर्रमुल हराम को " बिस्मिल्लाह इर्रहमान निर्रहीम (Bismillah Hir Rahman Nir Raheem) " 130 बार लिख कर ( या लिखवा कर ) जो कोई अपने पास रखे ( या प्लास्टिक कोटिंग करवा कर कपड़े , रेग्जीन या चमड़े में सिलवा कर पहन ले ) इंशाअल्लाह उम्र भर उस को या उस के घर में किसी को कोई बुराई न पहुंचे । ( ऐजन , स . 38 )
मस्अला : सोने या चांदी या किसी भी धात की डिबिया में ता'वीज़ पहनना मर्द को जाइज़ नहीं । इसी तरह किसी भी धात की जन्जीर ख्वाह उस में ता'वीज़ हो या न हो मर्द को पहनना ना जाइज़ व गुनाह है । इसी तरह सोने , चांदी और स्टील वगैरा किसी भी धात की तख्ती या कड़ा जिस पर कुछ लिखा हुवा हो या न लिखा हुवा हो अगर्चे अल्लाह पाक का मुबारक नाम या कलिमए तय्यिबा वगैरा खुदाई किया हुवा हो उस का पहनना मर्द के लिये ना जाइज़ है । औरत सोने चांदी की डिबिया में तावीज़ पहन सकती है ।
( 9 ) जिस औरत के बच्चे जिन्दा न रहते हों वोह " बिस्मिल्लाह इर्रहमान निर्रहीम (Bismillah Hir Rahman Nir Raheem) " 61 बार लिख कर ( या लिखवा कर ) अपने पास रखे ( चाहे तो मोमजामा या प्लास्टिक कोटिंग कर के कपड़े , रेग्जीन या चमड़े में सी कर गले में पहन ले या बाजू में बांध ले । ) इंशाअल्लाह बच्चे जिन्दा रहेंगे । ( ऐज़न , स . 38 )
( 10 ) घर का दरवाज़ा बन्द करते वक्त याद कर के " बिस्मिल्लाह इर्रहमान निर्रहीम (Bismillah Hir Rahman Nir Raheem )" पढ़ लीजिये , शैतान ( सरकश जिन्नात ) घर में दाखिल न हो सकेंगे ।
( 11 ) रात को खाने पीने के बरतन बिस्मिल्लाह शरीफ़ पढ़ कर ढक दीजिये , अगर ढकने के लिये कोई चीज़ न हो तो " बिस्मिल्लाह इर्रहमान निर्रहीम (Bismillah Hir Rahman Nir Raheem ) " कह कर बरतन के मुंह पर तिन्का वगैरा रख दीजिये ।
मुस्लिम शरीफ़ की एक रिवायत में है कि साल में एक रात ऐसी आती है कि उस में वबा ( या'नी बीमारी ) उतरती है जो बरतन छुपा हुवा नहीं है या मश्क का मुंह बंधा हुवा नहीं है अगर वहां से वोह वबा गुज़रती है तो उस में उतर जाती है ।
( 12 ) सोने से कब्ल " बिस्मिल्लाह इर्रहमान निर्रहीम (Bismillah Rahman Rahim Alhadulillah ) " पढ़ कर तीन बार बिस्तर झाड़ लीजिये , इंशाअल्लाह मूज़ियात ( या'नी ईज़ा देने वाली चीज़ों ) से पनाह हासिल होगी ।
( 13 ) कारोबार में जाइज़ लेनदेन के वक़्त या'नी जब किसी से लें तो " बिस्मिल्लाह इर्रहमान निर्रहीम " पढ़ें और जब किसी को दें तो " बिस्मिल्लाह " कहें इंशाअल्लाह ! खूब बरकत होगी ।
या रब्बे मुस्तफा ! हमें " बिस्मिल्लाह इर्रहमान निर्रहीम " की बरकतों से और मजकूर तू मालामाल फरमा और हर नेक व जाइज़ काम की इब्तिदा में " बिस्मिल्लाह इर्रहमान निर्रहीम " पढ़ने की तौफीक अता फ़रमा ।
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बिस्मिल्लाह Bismillah Hir Rahman Nir Raheem के 8 अवराद
( 1 ) घर की हिफाजत के लिये
हज़रते सय्यिदुना इमाम फ़लद्दीन राजी फ़रमाते हैं : " जिस ने अपने घर के बाहरी दरवाजे ( MAIN GATE ) पर " बिस्मिल्लाह (bismillah hirrahman nirrahim) " लिख लिया वोह ( सिर्फ दुन्या में ) हलाकत से बे ख़ौफ़ हो गया ख्वाह काफ़िर ही क्यूं न हो , तो भला उस मुसल्मान का क्या आलम होगा जो ज़िन्दगी भर अपने दिल के आबगीने पर इस को लिखे हुए होता है । "
( 2 ) दर्दे सर का इलाज
जन्नती सहाबी , मुसल्मानों के दूसरे ख़लीफ़ा अमीरुल मुअमिनीन हज़रते उमर फ़ारूके आ'ज़म को कैसरे रूम ने खत लिखा कि मुझे दाइमी ( या'नी लगातार ) दर्दे सर की शिकायत है अगर आप के पास इस की दवा हो तो भेज दीजिये ! हज़रते उमर फ़ारूके आ'ज़म ने उस को एक टोपी भेज दी कैसरे रूम उस टोपी को पहनता तो उस का दर्दे सर काफूर ( या'नी दूर ) हो जाता और जब सर से उतारता तो दर्दे सर फिर लौट आता ।
उसे बड़ा तअज्जुब हुवा । आख़िरे कार उस ने उस टोपी को उधेड़ा तो उस में से एक कागज़ बरआमद हुवा जिस पर " बिस्मिल्लाह इर्रहमान निर्रहीम (Bismillah Hir-Rahman Nir-Rahim ) ": लिखा था ।
( 3 ) नक्सीर फूटने का इलाज
अगर किसी की नक्सीर फूट जाए और खून बहने लगे तो शहादत की उंगली से पेशानी पर " बिस्मिल्लाह इर्रहमान निर्रहीम (Bismillah Hir-Rahman Nir-Rahim) " लिखना शुरू कर के नाक के आख़िर पर ख़त्म करे खून बन्द हो जाएगा ।
( 4 ) जिन्नात से सामान की हिफाज़त का तरीका
हज़रते सफ्वान बिन सुलैम फ़रमाते हैं : इन्सान के साजो सामान और मल्बूसात ( या'नी लिबास ) को जिन्नात इस्ति'माल करते हैं । लिहाज़ा तुम में से जब कोई शख्स कपड़ा ( पहनने के लिये ) उठाए या ( उतार कर ) रखे तो " बिस्मिल्लाह शरीफ़ " पढ़ लिया करे । उस के लिये अल्लाह पाक का नाम मोहर है । ( या'नी बिस्मिल्लाह पढ़ने से जिन्नात उन कपड़ों को इस्तिमाल नहीं करेंगे । )
इसी तरह हर चीज़ रखते उठाते वक़्त " बिस्मिल्लाह इर्रहमान निर्रहीम ( Bismillah Hir-Rahman Nir-Rahim ) " पढ़ने की आदत बनानी चाहिये । इंशाअल्लाह शरीर जिन्नात की दस्त बुर्द से हिफ़ाज़त हासिल होगी ।
( 5 ) दुश्मनी ख़त्म करने का वज़ीफ़ा
अगर पानी पर 786 मरतबा " बिस्मिल्लाह इर्रहमान निर्रहीम (Bismillah Hirrahman Nirrahim ) " पढ़ कर मुखालिफ़ ( या'नी दुश्मन ) को पिला दें तो इंशाअल्लाह ) वोह मुखालफ़त छोड़ देगा और महब्बत करने लगेगा और अगर मुवाफ़िक ( या'नी दोस्त ) को पिला दें तो महब्बत बढ़ जाएगी ।
( जन्नती जेवर , स . 578 )
( 6 ) मरज़ से शिफ़ा का वज़ीफ़ा
जिस दर्द या मरज़ पर तीन रोज़ तक सो मरतबा " बिस्मिल्लाह इर्रहमान निर्रहीम (Bismillah Hirrahman Nirrahim ) " हुजूरे दिल से ( या'नी खूब दिल लगा कर ) पढ़ कर दम किया जाए इंशाअल्लाह इस से आराम हो जाएगा । ( जन्नती जेवर , स . 579 )
( 7 ) चोर और अचानक मौत से हिफ़ाज़त
अगर रात को सोते वक्त 21 मरतबा " बिस्मिल्लाह इर्रहमान निर्रहीम (Bismillah Hir Rahman Nir Raheem ) " पढ़ लें तो इंशाअल्लाह ) माल व अस्बाब चोरी से महफूज़ रहेंगे और मर्गे ना गहानी ( या'नी अचानक मौत ) से भी हिफ़ाज़त होगी । ( जन्नती जेवर , स . 579 )
( 8 ) आफ़तें दूर होने का आसान विर्द
मौला मुश्किल कुशा जन्नती सहाबी हज़रते अलिय्युल मुर्तज़ा शेरे खुदा से रिवायत है कि नबिय्ये करीम सल्लल्लाहो ताला अलैवसल्लम ने इर्शाद फ़रमाया : “ ऐ अली ! मैं तुम्हें ऐसे कलिमात न बता दूं जिन्हें तुम मुसीबत के वक्त पढ़ लो । " अर्ज किया : ज़रूर इर्शाद फरमाइये ! आप सल्लल्लाहो ताला अलैवसल्लम - पर मेरी जान कुरबान !
तमाम अच्छाइयां मैं ने आप सल्लल्लाहो ताला अलैवसल्लम ही से सीखी हैं इर्शाद फ़रमाया : " जब तुम किसी मुश्किल में फंस जाओ तो इस तरह पढ़ो " बिस्मिल्लाह इर्रहमान निर्रहीम वलाहो वाला वाला कुवाता इलबिल्लाह अलियल अज़ीम " पस अल्लाह इस की बरकत से जिन बलाओं को चाहेगा दूर फ़रमा देगा । "
जब भी बीमारी , कर्जदारी , मुक़द्दमा बाज़ी , दुश्मन की तरफ़ से ईज़ा रसानी , बे रोज़गारी या कोई सी भी आफ़ते ना गहानी आन पड़े । कोई चीज़ गुम हो जाए , किसी की बात सुन कर सदमा पहुंचे , कोई मारे , दिल दुख जाए , ठोकर लगे , गाड़ी खराब हो जाए , ट्राफ़िक जाम हो जाए , कारोबार में नुक्सान हो जाए , चोरी हो जाए अल गरज़ छोटी या बड़ी कोई सी भी परेशानी हो ।
" बिस्मिल्लाह इर्रहमान निर्रहीम वलाहो वाला वाला कुवाता इलबिल्लाह अलियल अज़ीम " पढ़ते रहने की आदत बना लीजिये । निय्यत साफ़ होगी तो atइंशाअल्लाह ! मन्जिल आसान होगी ।
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चन्द शरई मसाइल बिस्मिल्लाह के Bismillah Hir Rahman Nir Raheem
( 1 ) जो " बिस्मिल्लाह " हर सूरत के शुरू में लिखी हुई है , येह पूरी आयत है और जो " सूरए नम्ल " की आयत नम्बर 30 में है वोह उस आयत का एक हिस्सा है ।
( 2 ) " बिस्मिल्लाह" हर सूरत के शुरू की आयत नहीं है बल्कि पूरे कुरआन की एक आयत है जिसे हर सूरत के शुरू में लिख दिया गया ताकि दो सूरतों के दरमियान फ़ासिला हो जाए , इसी लिये सूरत के ऊपर इम्तियाज़ी शान में " बिस्मिल्लाह " लिखी जाती है आयात की तरह मिला कर नहीं लिखते और इमाम जहरी नमाज़ों ( या'नी वोह नमाजें जिन में इमाम बुलन्द आवाज़ में किराअत करता है । ) में " बिस्मिल्लाह " आवाज़ से नहीं पढ़ता , नीज़ हज़रते जिब्रील . जो पहली वही लाए उस में " इंशाअल्लाह " न थी ।
( 3 ) तरावीह पढ़ाने वाले को चाहिये कि वोह किसी एक सूरत के शुरू में " बिस्मिल्लाह " आवाज़ से पढ़े ताकि एक आयत रह न जाए ।
( 4 ) तिलावत शुरू करने से पहले " ओज़ू बिल्लाहि मिनसैतान निर्रज़ीम " पढ़ना सुन्नत है , लेकिन अगर शागिर्द उस्ताद से कुरआने मजीद पढ़ रहा हो तो उस के लिये सुन्नत नहीं । ( सिरातुल जिनान , 1/42 )
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बिस्मिल्लाह Bismillah Hir Rahman Nir Raheem की इस्लामी मालूमात
बिस्मिल्लाह (Bismillah) कहना कब सुन्नत है
हर अहम काम जैसे खाने पीने वगैरा के शुरूअ में " बिस्मिल्लाह " पढ़ना सुन्नत है और नमाज़ में सूरए फ़ातिहा व सूरत के दरमियान , और उठते बैठते के वक्त " बिस्मिल्लाह " पढ़ना जाइज़ व मुस्तहूसन है । जब कि खारिजे नमाज़ दरमियाने सूरत से तिलावत की , इब्तिदा के वक्त " बिस्मिल्लाह (bismillah hirrahman nirrahim) " पढ़ना मुस्तहब है और सूरए तौबह के दरमियान से पढ़ते वक्त भी येही हुक्म है । ( फ़तावा फैजुरसूल , 2/506 )
बिस्मिल्लाह (Bismillah) कहना कब कुफ्र है ?
हराम व ना जाइज़ काम से क़ब्ल बिस्मिल्लाह शरीफ़ हरगिज़ , हरगिज़ , हरगिज़ न पढ़ी जाए कि " फ़तावा आलमगीरी " में है : शराब पीते वक्त , ज़िना करते वक़्त या जुआ खेलते वक़्त बिस्मिल्लाह कहना कुफ्र हैं।
कच्ची पियाज़ खाते वक़्त बिस्मिल्लाह मत पढ़िये
फ़तावा फैजुर्रसूल जिल्द 2 सफ़हा 506 पर है : हुक्का , बीड़ी , सिगरेट पीने और ( कच्चे ) लहसन , पियाज़ जैसी चीज़ खाने के वक्त और नजासत की जगहों में बिस्मिल्लाह पढ़ना मक्रूह है ।
बिस्मिल्लाह कीजिये " कहना मम्नूअ
बाज़ लोग इस तरह कह देते हैं : " बिस्मिल्लाहकीजिये ! " " आओ जी बिस्मिल्लाह (bismillah hirrahman nirrahim) ! " " मैं ने बिस्मिल्लाह कर डाली " , ताजिर हज़रात जो दिन में पहला सौदा बेचते हैं उस को उमूमन " बोनी " कहा जाता है मगर बा'ज़ लोग इस को भी " बिस्मिल्लाह " कहते हैं , मसलन " मेरी तो आज अभी तक बिस्मिल्लाह ही नहीं हुई ! " जिन जुम्लों की मिसालें पेश की गई येह सब गलत अन्दाज़ हैं । इसी तरह खाना खाते वक्त अगर कोई आ जाता है तो अक्सर खाने वाला उस से कहता है :
आइये आप भी खा लीजिये , आम तौर पर जवाब मिलता है : " बिस्मिल्लाह " या इस तरह कहते हैं : " बिस्मिल्लाह कीजिये ! " बहारे शरीअत हिस्सा 16 सफ़हा 32 पर है : इस मौकअ पर इस तरह बिस्मिल्लाह कहने को उलमा ने बहुत सख्त मम्नूअ करार दिया है । हां येह कह सकते हैं : बिस्मिल्लाह (Bismillah) पढ़ कर खा किजिये । बल्कि ऐसे मौक़अ पर दुआइया अल्फ़ाज़ कहना बेहतर है , मसलन FLASHE या'नी अल्लाह पाक हमें और तुम्हें बरकत दे । या अपनी मादरी ज़बान में कह दीजिये : अल्लाह पाक बरकत दे ।
बिस्मिल्लाह से अधूरा काम पूरा
सरकारे मक्कए मुकर्रमा , सरदारे मदीनए मुनव्वरह ने फ़रमाया : " जो भी अहम काम बिस्मिल्लाह के साथ शुरूअ नहीं किया जाता वोह अधूरा रह जाता है ।
अपने नेक और जाइज़ कामों में बरकत दाखिल करने के लिये हमें पहले बिस्मिल्लाह (Bismillah) ज़रूर पढ़ लेना चाहिये । खाने खिलाने , पीने पिलाने , रखने उठाने , धोने पकाने , पढ़ने पढ़ाने , चलने ( गाड़ी वगैरा ) चलाने , उठने उठाने , बैठने बिठाने , बत्ती जलाने , पंखा चलाने , दस्तर ख्वान बिछाने बढ़ाने , बिछोना लपेटने बिछाने , दुकान खोलने , ताला खोलने लगाने , तेल डालने इत्र लगाने , बयान करने ना'त शरीफ़ सुनाने , जूता पहनने , इमामा सजाने , दरवाज़ा खोलने बन्द फ़रमाने , अल गरज हर जाइज़ काम के शुरू में ( जब कि कोई मानेए शई न हो ) बिस्मिल्लाह (Bismillah) पढ़ने की आदत बना कर इस की बरकतें लूटना ऐन सआदत है ।
आऊज बिल्लाह को बिस्मिल्लाह से पहले क्यूं पढ़ते हैं ?
मुफ़स्सिरे कुरआन हज़रते मुफ़्ती अहमद यार खान फ़रमाते हैं : " आऊज बिल्लाह " में बुरे अकाइद और बुरे आ'माल से परहेज़ है और " बिस्मिल्लाह " में अच्छे अकाइद और अच्छे आ माल वगैरा को रब से हासिल करना है तो गोया वोह ( या'नी आऊज बिल्लाह ) परहेज़ के लिये था येह ( या'नी बिस्मिल्लाह ) इलाज है और परहेज़ इलाज पर मुक़द्दम है ( या'नी पहले होता है ) पहले बीमारी को दफ्अ करो फिर मुक़ब्वियात का इस्ति'माल करो लिहाज़ा आऊज बिल्लाह पहले पढ़ो और बिस्मिल्लाह बाद में । ( तफ्सीरे नईमी , 1/29 मुल्तकृतन ब तगय्युरे कलील )
ज़बान जलने से महफूज़ रहेगी
गीबतों और गुनाहों भरी बातों से रिश्ता तोड़िये और अल्लाह पाक की यादों , मीठे मीठे मुस्तफा की ना'तों से रिश्ता जोड़िये खूब दुरूदो सलाम Darood Salam के लिये ज़बान का इस्ति'माल कीजिये और खूब खूब तिलावते कुरआने पाक कीजिये और सवाब का ढेरों ख़ज़ाना हासिल कीजिये ।
इसलिए " रूहुल बयान " में येह हदीसे कुदसी है : जिस ने एक बार बिस्मिल्लाह (Bismillah) को अल हम्द शरीफ़ के साथ मिला कर ( या'नी बिस्मिल्लाह इर्रहमान निर्रहीम अल्हम्दो लिल्लाहि रब्बिल आलमीन ख़त्मे सूरह तक ) पढ़ा तो तुम गवाह हो जाओ कि मैं ने उसे बख़्श दिया , उस की तमाम नेकियां कबूल फ़रमाई और उस के गुनाह मुआफ़ कर दिये और उस की ज़बान को हरगिज़ न जलाऊंगा और उस को अज़ाबे कब्र , अज़ाबे नार , अज़ाबे क़ियामत और बड़े खौफ़ से नजात दूंगा
अज़ाब से हिफ़ाज़त की हिकायत
फ़िक़्हे हनफ़ी की मशहूरो मा'रूफ़ किताब " दुर्रे मुख़्तार " में है , एक शख्स ने मरने से पहले येह वसिय्यत की , कि इन्तिकाल के बाद मेरे सीने और पेशानी पर बिस्मिल्लाह , लिख देना । चुनान्चे ऐसा ही गया ! किया गया । फिर किसी ने ख्वाब में उस शख्स को देख कर हाल पूछा ।
उस ने बताया कि जब मुझे कब्र में रखा गया , अज़ाब के फ़िरिश्ते आए , जब पेशानी पर बिस्मिल्लाह (Bismillah) शरीफ़ देखी तो कहा , तू अज़ाब से बच गया
कफ़न पर बिस्मिल्लाह लिखने का तरीका
जब भी कोई मुसल्मान फ़ौत हो जाए तो बिस्मिल्लाह, वगैरा ज़रूर लिख लिया करें । आप की थोड़ी सी तवज्जोह बेचारे मरने वाले की बख्रिाश का ज़रीआ बन सकती है । और मय्यित के साथ हमदर्दी की नेकी आप की भी नजात का बाइस बन सकती है ।
हज़रते अल्लामा शामी फ़रमाते हैं : यूं भी हो सकता है कि मय्यित की पेशानी पर बिस्मिल्लाह (Bismillah) , लिखिये और सीने पर ला इलाहा इल्ललला मोहम्मदुर रसूल अल्लाह लिखिये । मगर नहलाने के बा'द और कफ़न पहनाने से पहले कलिमे की उंगली से लिखिये , रोशनाई - शाई ( INK ) से न लिखिये । शजरा या अद्द नामा क़ब्र में रखना जाइज़ है और बेहतर येह है कि मय्यित के मुंह के सामने किब्ले की जानिब ताक खोद कर उस में रखें बल्कि " दुरे मुख़्तार " में कफ़न में अह्द नामा लिखने को जाइज़ कहा है और फ़रमाया कि इस से मरिफ़रत की उम्मीद है ।
( बहारे शरीअत , हिस्सा : 4 , स . 108 )
खाने का हिसाब न होगा
फ़रमाने मुस्तफ़ा निवाले पर बिस्मिल्लाह (bismillah hirrahman nirrahim) शरीफ़ पढ़ेगा क़ियामत के दिन उस से उस खाने का हिसाब न लिया जाएगा ।
तीन हज़ार नाम
मन्क़ूल हैं एक हज़ार नाम सिवाए फ़िरिश्तों के कोई नहीं जानता और एक हज़ार नाम सिवाए अम्बियाए किराम के किसी को मालूम नहीं और तीन सो तौरात में हैं , तीन सो इन्जील में हैं , तीन सो ज़बूर में हैं और निनानवे नाम कुरआने करीम में हैं और एक नाम वोह है जिस को सिर्फ अल्लाह पाक ही जानता है । लेकिन बिस्मिल्लाह में रब्बे करीम के जो तीन नाम आए हैं ( अल्लाह , रहमान और रहीम ) इन तीन में उन तीन हज़ार के मा'ना पाए जाते हैं लिहाज़ा जिस ने इन तीनों नामों से रब्बे करीम को याद किया गोया उस ने तमाम नामों से उस को याद किया । ( तपसौरे नईमी , 1/31 )
" इस्मे आ जम " की बहुत बरकतें हैं
इस्मे आ ज़म के साथ जो दुआ की जाए वोह कबूल हो जाती है । सरकारे आला हज़रत के अब्बूजान हज़रते रईसुल मुतकल्लिमीन मौलाना नकी अली खान फ़रमाते हैं : बाज़ उलमा ने बिस्मिल्लाह को इस्मे आ ज़म कहा । सरकारे बग़दाद हुजूरे गौसे पाक से मन्कूल है : बिस्मिल्लाह ज़बाने आरिफ़ ( या'नी अल्लाह पाक को पहचानने वाला ) से ऐसी है जैसी कलामे खालिक से " कुन । " ( या'नी हो जा । )
( अहसनुल विआअ . स . 66 )
बिस्मिल्लाह " से कुरआने करीम का आगाज़ करने की वजह
हज़रते अल्लामा अहमद सावी फ़रमाते हैं : कुरआने करीम की इब्तिदा " बिस्मिल्लाह " से इस लिये की गई ताकि अल्लाह पाक के बन्दे इस की पैरवी करते हुए हर अच्छे काम की इब्तिदा " बिस्मिल्लाह " से करें । और हदीसे पाक में भी ( अच्छे और ) अहम काम की इब्तिदा " बिस्मिल्लाह " से करने की तरगीब दी गई है । छोड़ दे सारे ग़लत रस्मो रवाज सुन्नतों पर चलने का कर अहद आज खूब कर जिक्रे खुदा व मुस्तफा दिल मदीना याद से उन की बना.
दारुल इफ़्ता अहले सुन्नत का एक अहम फ़तवा
क्या फ़रमाते हैं
उलमाए दीन व मुफ्तियाने शरए मतीन इस मस्अले के बारे में कि आज कल घरों में अटेच बाथ होते हैं और उसी में लोग वुजू भी करते हैं तो सुवाल येह है कि वुजू से पहले ऐसे अटेच बाथ में बिस्मिल्लाह शरीफ़" बिस्मिल्लाह शरीफ़ Bismillah Sharif " नीज़ दौराने वुजू की दुआएं व वजाइफ़ पढ़ सकते हैं कि नहीं ?
उमूमी तौर पर ऐसे बाथरूम और टोयलेट के दरमियान कोई दीवार , या बड़ा दरवाज़ा वगैरा इस अन्दाज़ में नहीं लगा होता कि जिस के सबब दोनों मकाम अलग अलग शुमार हों लिहाज़ा ऐसे अटेच बाथ में वुजू करने से पहले " बिस्मिल्लाह शरीफ़ Bismillah Hir Rahman Nir Raheem " या दौराने वुजू पढ़ी जाने वाली दुआएं , वज़ाइफ़ नहीं पढ़ सकते और अगर अटेच बाथ इस अन्दाज़ से बना हुवा हो कि टोयलेट और बाथरूम के दरमियान कोई दीवार , दरवाज़ा या फिर लोहे या लकड़ी की चादर ( Sheet ) लगा दी जाए कि टोयलेट और बाथरूम जुदा जुदा हैसिय्यत इख्तियार कर जाएं तो अब बाथरूम में वुजू करते हुए ज़िक्रो वजाइफ़ और दुआएं पढ़ सकते हैं कि अब येह मौजए नजासत नहीं ।
Bismillah Song
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