रमजान Ramzan या नफिल रोज़े Roze रखने की पूरी मालूमात और सफर में रोज़े Safar Me Roza रखने की पूरी इस्लाही मालूमात
Safar Me Roza सफर में रोज़े की मालूमात
शरई सफ़र में रोज़े Safar Me Roza की तारीफ़
दौराने सफ़र Safar भी रोज़ा Roza न रखने की इजाज़त है । सफ़र की मिक्दार भी ज़ेह्न नशीन कर लीजिये । सय्यिदी व मुर्शिदी इमामे अहले सुन्नत , आ'ला हज़रत , मौलाना शाह अहमद रज़ा खान की तहक़ीक़ के मुताबिक़ शरअन सफ़र Safar की मिक्दार साढ़े सत्तावन मील ( या'नी तकरीबन 92 किलो मीटर ) है
जो कोई इतनी मिक्दार का फ़ासिला तै करने की गरज़ से अपने शहर या गाउं की आबादी से बाहर निकल आया , वोह अब शरअन मुसाफ़िर है , उसे रोज़ा Roza क़ज़ा कर के रखने की इजाज़त है और नमाज़ में भी वोह कर करेगा ।
सफ़र में Safar Me मुसाफ़िर अगर रोज़ा Roza रखना चाहे तो रख सकता है मगर चार रक्अत वाली फ़र्ज़ नमाज़ों में Me उसे कर करना वाजिब है , नहीं करेगा तो गुनाहगार होगा । और कस्दन चार पढ़ी और दो पर का'दा किया तो फ़र्ज़ अदा हो गए और पिछली दो रक्अतें नफ़्ल हो गई मगर गुनहगार व अज़ाबे नार का हकदार है कि वाजिब तर्क किया लिहाज़ा तौबा करे ( और नमाज़ का इआदा भी वाजिब है ) और दो रक्अत पर का'दा न किया तो फ़र्ज़ अदा न हुए और वोह नमाज़ नफ़्ल हो गई ।
( बहारे शरीअत , जि . 1 , स . 743 मुलख्खसन )
" और जहालतन ( या'नी इल्म न होने की वज्ह से ) पूरी ( चार ) पढ़ी तो उस नमाज़ का फैरना भी वाजिब है "
( फ़तावा रज़विय्या मुखीजा , जि . 8 , स . 270 मुलख्खसन )
या'नी मा'लूमात न होने की बिना पर भी आज तक | जितनी नमाजें सफ़र में Safar Me पूरी पढ़ी हैं उन का हिसाब लगा कर चार रक्अती फ़र्ज़ की जगह कर की निय्यत से दो दो फ़र्ज़ लौटाने होंगे । हां मुसाफ़िर Musafir को मुक़ीम इमाम के पीछे फ़र्ज़ चार पूरे पढ़ने होते हैं , सुन्नतें और वित्र लौटाने की ज़रूरत नहीं । कर सिर्फ जोहर , अस्र और इशा की फ़र्ज़ रक्अतों में करना है ।
या'नी इन में चार रक्अत फ़र्ज़ की जगह दो रक्अत अदा की जाएंगी , बाक़ी सुन्नतों और वित्र की रक्अतें पूरी अदा की जाएंगी , दूसरे शह या गाउं वगैरा में Me पहुंचने के बाद जब तक पन्दरह दिन से कम मुद्दत तक क़ियाम की निय्यत थी मुसाफ़िर Musafir ही कहलाएगा और मुसाफ़िर के अहकाम रहेंगे और अगर मुसाफ़िर ने वहां पहुंच कर पन्दरह दिन या उस से ज़ियादा कियाम की निय्यत कर ली तो अब मुसाफ़िर Musafir के अहकाम ख़त्म हो जाएंगे और वोह मुकीम कहलाएगा ।
अब उसे रोज़ा Roza भी रखना होगा और नमाज़ भी कर नहीं करेगा । सफ़र Safar के मुतअल्लिक़ ज़रूरी अहकाम की तफ़्सीली मा'लूमात हासिल करने के लिये बहारे शरीअत हिस्सए चहारुम के बाब " नमाजे मुसाफ़िर का बयान " या मक्तबतुल मदीना के रिसाले “ मुसाफ़िर की नमाज़ " Musafit ki Namaz का मुतालआ फ़रमाएं ।