Qurbani Ki Dua और Qurbani Ka Tarika पर हदीस शरीफ : हदीस शरीफ - हज़रात अनस रदी अल्लाहु ताला अन्ह से रिवायात हैं की नबी ए करीम सल्लल्लाहो अलयवासल्लम ने
Qurbani Ki Dua और Qurbani Ka Tarika पर हदीस शरीफ :
हदीस शरीफ - हज़रात अनस रदी अल्लाहु ताला अन्ह से रिवायात हैं की नबी ए करीम सल्लल्लाहो अलयवासल्लम ने 2 मेंढ़े चित'कब्रे सींग वालो की Qurbani की, उन्हें अपने दस्त ए मुबारक से ज़िबह किया और “بسـم الله والله اكبــر” कहा, कहते हैं मैं ने हुज़ूर को देखा के अपना पावं (कदम शरीफ ) उन के पहलु पर रखा और “بسـم الله والله اكبــر” कहा।
(बुखारी और मुस्लिम, बहार ए शरीअत )
Qurbani Ke Tarike बेहतर ये हैं के जानवर उम्दह फ़रबाह हो।
क़ुरबानी के तरीके (Qurbani Ka Tarike) में क़ुरबानी की दुआ (Qurbani Ki Dua) पढ़ने से पहले उसे चारा पानी दे दिया जाए, यानि कहने का ये मकसद हैं की भूका प्यासा ना जिबा करे।
और एक जानवर के सामने दूसरे क़ुरबानी के जानवर (Qurbani Ke Janwar) को ज़िबह ना करे।
और पहले से छुरी तेज कर ले , बाद में ये ना हो की क़ुरबानी की दुआ (Qurbani Ki Dua) पढ़लने के बाद जब जानवर की गर्दन पर छुरी चलाए तो छुरी मुरदाढ (तेज ना होने के कारन चले ना और क़ुरबानी के जानवर को जखम लग जाए।
क़ुरबानी के जानवर (Qurbani Ke Janwar) को बायें (लेफ्ट) पेहलु पर इस तरह लेटाएं की क़िबलह की तरफ उस का मुंह हो।
हो सके तो दो से तीन लोग उसे पकड़ ले ताकि कोई नुकसान ना हो, ज़िब्हा के कुछ लम्हो में उसे छोड़ दे।
क़ुरबानी की दुआ (Qurbani Ki Dua) ज़िब्हा से पहले ये दुआ पढ़ ले।
“اِنِّیْ وَجَّهْتُ وَجْهِيَ لِلَّذِيْ فَطَرَالسَّمٰوٰت وَالْاَرْضَ حَنِيْفًا وَّمَا اَنَا مِنَ الْمُشْرِكِيْن. اِنَّ صَلٰوتِيْ وَنُسُكِيْ وَمَحْيَايَ وَمَمَاتِيْ لِلّهِ ربِّ الْعٰلَمِيْن ە
لََا شَرِيْكَ لَه وَبِذٰلِكَ اُمِرْتُ وَاَنَا مِنَ الْمُسْلِمِيْنَ. اَللّهُمَّ لَكَ وَ مِنْكَ بِسْمِ اللهِ اللهُ اَكْبَرُ “
क़ुरबानी अपनी तरफ से तो ज़िबह के फ़ौरन बाद ये दुआ पढ़ ले।
” اَللّھُمَّ تَقَبَّلْ مِنِّيْ كَمَا تَقَبَّلْتَ مِنْ خَلِيْلِكَ اِبْرَاهِيْمَ عَلَيْهِ السَّلَام وَحَبِيْبِكَ مُحَمَّدٍ صــلَّى اللّٰــهُ تعـَـالٰى عَليْــه وسَـلَّمْ “
इस तरह ज़िबह कर के चारों रगे (नसे) काट लिया जाए, या कम से कम तीन रगें (नस) कट जाएँ, इस से ज़्यादा न काटें के छुरी गर्दन के मोहरा तक पहोच जाए।
फिर जब तक जानवर ठंडा न हो जाए यानी जब तक उस की रूह बिलकुल ना निकल जाए उस के ना पाँव वगैरा काटें ना खाल उतारें।
और दूसरे की तरफ से Qurbani करना - ज़िबह करना हो तो, “مِنِّي ” की जगह “مِن” के बाद उस का नाम ले, और अगर वो मुशतारक जानवर हैं जैसे गाये, ऊंट, तो वज़न से गोश्त तक़सीम किया जाए महज़ तखमीना (अंदाज़ा) से तक़सीम न करें.
क़ुरबानी करने वाला बकरा ईद के दिन सब से पहले क़ुरबानी का गोश्त खाये, उस से पहले कोई दूसरी चीज़ ना खाये, ये मुस्तहब हैं.
जरुरी : मुहम्मदीव व उम्मतीही की जगह जिसकी तरफ से Qurbani हो उसका नाम ले और अगर खुद की हो तो " अन " की जगह " अन्नी " कहे।
हदीस :
हज़रते जाबिर बिन 'अब्दुल्लाह रदी अल्लाहु अन्हु से रिवायत हैं की रसूल अल्लाह सल्लल्लाहो अलय वसल्लम ने ईद के दिन दो मेंढ़ों की क़ुरबानी की, जान आप सल्लल्लाहो अलय वसल्लम उनको क़िब्ला रुख किया तो आप ने ये कलिमात इरशाद फ़रमाया -
" इन्नी वज'जाहतु वजहिया लिल्लाजी फतारस समावाती वल अरदा हनीफव वमा अना मीनल मुशरिकीन। इन्ना सलाती व नुसुकि व महयाया व ममति लिल्लाहि रब्बिल अ'लमीन। ला शारिका लहू व बीजालिका उमिरतु व अना अव्वलु मीनल मुस्लिमीन। अल्लाहुम्मा मिनका व लका अना मुहम्मदीव व उम्मतीही। "
(बिस्मिल्लाही व अल्लाहु अकबर)
(जरुरी : Qurbani Ke Tarike मेंमुहम्मदीव व उम्मतीही की जगह जिसकी तरफ से क़ुरबानी हो उसका नाम ले और अगर अपनी खुद की हो तो अना की जगह अन्नी कहे Dua में )
(सुनन इब्न मजह, वॉल. 4 , किताब 26 , हदीस 3121)