Khairat Kya Hai खैरात क्या है पर हदीस खैरात की फ़ज़ीलत और जन्नत में लेके जाने वाले खैरात पर अमल, 28 Hadees Fazilat In Hindi
Khairat Kya Hai खैरात क्या है 28 Hadees Fazilat In Hindi
Khairat-Kya-Hai.
Khairat Kya Hai - किसी फकीर या गरीब को अल्लाह की जात पर कुछ रुपए दे देना किसी जरूरतमंद की जरूरत पूरी करना या फिर किसी नंगे को कपड़े बनाना किसी भूखे को खाना खिलाना,
या किसी भी अपने से गरीब इंसान की, गिरी हुई हालत में किसी इंसान की मदद किसी भी चीज के रूप में करना खैरात कहलाती है
जो इंसान खैरात दे रहा है वह इसका ढिंढोरा ना पिटे कि मैंने एक जरूरतमंद इंसान की मदद की है, अब वह चाहे पैसों के रूप में हो, खाने के रूप में हो कपड़ों के रूप में हो या दीगर किसी भी तरह से कोई चीज से मैंने किसी इंसान की मदद की है ऐसा उसने मन में जबान पर ना आना चाहिए।
इन बातों का ध्यान उसे रखना चाहिए नहीं तो जो सवाब आप खैरात के रूप में कमाना चाहते हैं,
वह इंसान उस सवाब से महरूम रह जाएगा और इसका बदला उसे अल्लाह ताला के जानिब से नहीं मिल पाएंगा।
खैरात क्या है, पर 28 हदीस Khairat Kya Hai Par Hadees
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( 1 ). हुजूरे अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाः मैं ने जत्रत के दरवाजे पर खड़े हो कर देखा कि उस में ज्यादा गरीब और मिस्कीन थे और मालदार दरवाज़े पर रोक दिये गए थे । ( तोहफतुल वाइज़ीन )
( 2 ). फ़िरऔन बहुत सख़ी था । उस के मत्बल में रोज़ाना एक हज़ार बकरे कटते थे । जब उस की हलाकत का वक्त करीब आया तो हामान ने उसे खैरात बन्द कर देने की सलाह दी ।
उस ने कम करते करते आखिर खैरात बन्द कर दी यहाँ तक कि उस के डूबने के दिन उस की रसोई में सिर्फ एक बकरा जिव्ह हुआ था और वह भी सिर्फ अपने घर के इस्तेमाल के लिये । इतने दिन तक उसे उस की खैरात ही बचाए रही । ( तफ़सीरे नईमी )
( 3 ). कलामे पाक में १५० जगह खैरात की ताकीद आई है । Khairat KI Fazilat. ( तफ़सीरे नईमी )
( 4 ). रसूले खुदा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का फरमान है : तालिबे इल्म पर एक दिरहम ख़र्च करने वाले को इतना सवाब मिलता है गोया उस ने कोहे उहद के बराबर सोना खैरात किया । ( तोहफतुल वाइज़ीन )
( 5 ). रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इरशाद है कि अपनी ज़िन्दगी में एक दिरहम खैरात करना मौत के वक्त सौ दिरहम देने से अफ़ज़ल है । ( तोहफ़तुल वाइज़ीन )
( 6 ). नबीये करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमायाः साजो सामान की कसरत से कोई शख्स गनी नहीं होता । गनी वह है जो दिल का गनी हो । ( शैखैन , तिर्मिज़ी )
( 7 ). नबीये करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कोई चीज़ हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु के पास तोहफे के तौर पर भेजी । आप ने उसे लौटा दिया । जानते है ?
सरकार सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पूछाः उसे क्यों लौटाया ? हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ कियाः या रसूलल्लाह ! क्या यह आप ही का इरशाद नहीं है कि हमारे लिये यही बेहतर है कि हम किसी से भी कोई चीज़ न लें ।
सरकार सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाः इस का मतलब यह है कि सवाल नहीं होना चाहिये और जो बिना मांगे मयस्सर आए वह तो अल्लाह तआला (Allah Tala) की देन है जिस से उस ने तुम्हें नवाज़ा ।
हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहाः उस ज़ात की कसम जिस के कब्ज़ए कुदरत में मेरी जान है आइन्दा मैं किसी से खुद कोई चीज़ तलब नहीं करूंगा और जो चीज़ बिना मांगे मेरे पास आएगी उसे कुबूल करने में कोई उज़ न होगा । ( मालिक , शैखैन , तिर्मिज़ी )
( 8 ). सरवरे आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमायाः जो शख्स किसी नंगे को कपड़ा देगा अल्लाह तआला उसे जन्नत के सब्ज़ लिबास अता करेगा ।
जो किसी भूखे को खाना खिलाएगा उसे जन्नत के मेवे दिये जाएंगे । जो किसी प्यासे को पानी पिलाएगा उसे जन्नत की खुशबू और शराब से सैराब किया जाएगा ।
( 9 ). हुजूरे अनवर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाः तुम को रोज़ी और मदद तुम्हारे बूढ़ों और कमज़ोरों की बदौलत दी जाती है । गोया बूढ़ों की ख़िदमत अल्लाह तआला के रहम का वसीला है ।
( 10 ). हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाः सख़ी अल्लाह तआला से करीब है , जन्नत के करीब है , लोगों के करीब है और दोज़ख़ से दूर है ।
और बख़ील अल्लाह तआला से दर है , जन्नत से दूर है , लोगों से दूर है और जहन्नम से करीब है और जाहिल सखी खुदा के नज़दीक इबादत गुज़ार बखील से कहीं बेहतर है । ( तिर्मिजी )
( 11 ). एक बार रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने शहादत की उंगली और बीच की उंगली को मिला कर फरमायाः मैं और यतीम की परवरिश करने वाला जन्नत में इन दो उंगलियों की तरह करीब होंगे । ( बुख़ारी शरीफ़ )
( 12 ). हदीस में है कि जो शख़्स बेकसों पर रहम नहीं करता उस पर अल्लाह तआला भी रहम और रहमत नहीं फरमाता यानी रब्बे करीम के रहम को करीब लाने वाली चीज़ उरा की नादार मखलूक पर रहम करना है । ( तोहफतुल वाइज़ीन )
( 14 ). रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाः जिस किसी ने किसी मुसलमान को पेट भर खाना खिलाया , अल्लाह तआला उसे दोज़ख़ से दूर रखेगा,
और उस के और जहन्नम के बीच ऐसी ख़न्दकें बना देगा कि हर ख़न्दक के बीच पांच सौ बरस की राह का फासला होगा । ( तोहफतुल वाइज़ीन )
( 15 ). हदीस में है कि ऊपर का ( देने वाला ) हाथ नीचे के ( लेने वाले ) हाथ से बेहतर होता है । ( बुख़ारी शरीफ )
( 16 ). रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की दुआ हुआ करती थीः ऐ मेरे रब मुझे मिस्कीन ज़िन्दा रख , मिस्कीन उठा और मिस्कीनों के साथ ही मेरा हश्र कर । ( नुव्हतुल कारी )
( 17 ). हदीस में है कि जो शख्स अता करने और मना करने और मुहब्बत करने में सिर्फ अल्लाह तआला की रज़ामन्दी चाहता हो यही ईमान में कामिल होता है ।
यानी उस की अता और मना और मुहब्बत और कीना में किसी गैरे खुदा का दखल और नफ़्स की खुशनूदी मुराद न हो । ( तोहफ़तुल वाइज़ीन )
( 19 ). नबीये करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाः तुम में का कोई शख्स अपने से अमीर की तरफ देखे तो चाहिये कि फिर अपने से गरीब की तरफ भी ख्याल करे । ( तफसीरे नईमी )
( 20 ). रसूले मुअज्जम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाः तुम उस से रहम के साथ पेश आओ जो तुम से कटे , उसे दो जो तुम्हें मेहरूम रखे और उसे माफ कर दो जो तुम पर जुल्म करे । ( सब्ए सनाबिल शरीफ )
( 21 ). हदीस में है कि बेवा औरत और मिस्कीन के साथ सुलूक करने वाला ऐसा है जैसे अल्लाह की राह में जिहाद करने वाला या तमाम रात नवाफिल पढ़ने वाला और दिन को रोज़ा रखने वाला । ( तफसीरे नईमी )
( 22 ). हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि साजो सामान की बोहतात से कोई गनी नहीं होता । गनी वह है जो दिल का ग़नी हो यानी अल्लाह की राह में खर्च कर सकता हो । ( तफसीरे नईमी )
( 23 ). नबीये करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हमेशा गरीबों और मिरकीनों से इस तरह पेश आते थे कि वह लोग अपनी गरीबी को रहमत समझने लगते और अमीरों को हसरत होती थी कि हम गरीब क्यों न हुए । ( नुन्हतुल कारी )
( 24 ). हदीस में है कि ग़नी की सही तारीफ़ यह है कि दूसरों के पास जो कुछ है उस से फायदा उठाने की ख्वाहिश दिल में न रखे यानी गैरों के माल से बेनियाज़ होना ही हकीकृत में ग़नी होना है । ( तोहफतुल वाइज़ीन )
( 25 ). वह ज़ाते अकदस जिसे अल्लाह तआला ने ज़मीन के सारे ख़ज़ानों की कुंजियाँ अता फरमाई थी उस के घर की कैफियत यह थी कि ज़िन्दगी की आख़िरी रात में चराग़ में तेल नहीं था । हज़रत सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा बयान करती हैं :
मैं ने अपना चराग़ अपनी एक पड़ोसन की तरफ़ भेजा और कहलवाया कि अपनी तेल की कुप्पी से चन्द कतरे इस चराग़ में डाल दो ताकि आज की रात गुज़र जाए । ( तारीखे अलखमीस , जिः २ )
( 26 ). नबीये करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इरशाद है : जिब्रईल अलैहिस्सलाम मुझे पड़ोसी पर एहसान की यहाँ तक वसियत करते रहे कि मुझे ख्याल हुआ कि पड़ोसी को मेरा वारिस ही करके छोड़ेंगे । ( बुख़ारी शरीफ )
( 28 ). हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इरशाद है : अगर किसी ज़मीन हो तो उसे चाहिये कि उस की काश्त करे वरना अपने किसी भाई को दे दे । ( तफसीरे नईमी ) .