Roza Tutne Wali Cheezain 21 फरमाने मुस्तफा रोजा टूटने वाली चीज, kin chijo se tutta hain, रोजा किन-किन चीजों से टूटता है, रोज़ा किस समय से आरंभ होता है
हमेशा रमजान के रोज़ो को लेकर मोमिन के मन में कई सवाल होते हैं और Ramzan Ke Roze किन कारन से नहीं Tutne चाहिए,
इस बात को लेकर भी कई सवाल हम अपने रोज़े पर उठाते हैं और हर एक चीजें से डरते हैं कही Roza Tuta तो नहीं,
इसे भी जानना बहुत जरुरी हैं इस पोस्ट में हमने २१ बाते बतलाई हैं जिससे रमजान के रोज़े नहीं टूटते
Roza Tutne Wali Cheezain 21 फरमाने मुस्तफा रोजा टूटने वाली चीजे
( 1 ) भूल कर खाया , पिया या जिमाअ किया रोज़ा Roza फ़ासिद न हुवा , ख्वाह वोह रोज़ा फ़र्ज़ हो या नफ्ल ।
( 2 ) रोज़ादार को भूल कर खाता पीता देखे तो क्या करे
किसी रोज़ादार को इन अफ्आल में देखें तो याद दिलाना वाजिब है , हां रोज़ादार बहुत ही कमज़ोर हो कि याद दिलाने पर वोह खाना छोड़ देगा जिस की वज्ह से कमज़ोरी इतनी बढ़ जाएगी कि इस के लिये रोज़ा रखना ही दुश्वार हो जाएगा और अगर खा लेगा तो रोज़ा भी अच्छी तरह पूरा कर लेगा
और दीगर इबादतें भी बखूबी अदा कर सकेगा ( और चूंकि भूल कर खा पी रहा है इस लिये इस का Roza तो हो ही जाएगा ) लिहाज़ा इस सूरत में याद न दिलाना ही बेहतर है । ( बहारे शरीअत , जि . 1 , स . 981 )
बा'ज़ मशाइखे किराम फ़रमाते हैं :
“ जवान को देखे तो याद दिला दे और बूढ़े को देखे तो याद न दिलाने में हरज नहीं । " मगर येह हुक्म अक्सर के लिहाज़ से है क्यूं कि जवान अक्सर कवी ( या'नी ताकत वर ) होते हैं और बूढ़े अक्सर कमज़ोर ।
इसलिए अस्ल हुक्म येही है कि जवानी और बुढ़ापे को कोई दखल नहीं , बल्कि कुव्वत व जो'फ़ ( या'नी ताकत और कमज़ोरी ) का लिहाज़ है
लिहाज़ा अगर जवान इस क़दर कमज़ोर हो तो याद न दिलाने में हरज नहीं और बूढ़ा क़वी ( या'नी ताक़त वर ) हो तो याद दिलाना वाजिब है ।
( 3 ) रोज़ा याद होने के बा वुजूद भी मख्खी या गुबार या धूआं हल्क में चले जाने से रोज़ा नहीं टूटता ।
ख्वाह गुबार आटे का हो जो चक्की पीसने या आटा छानने में उड़ता है या गल्ले ( या'नी अनाज ) का गुबार हो या हवा से ख़ाक उड़ी या जानवरों के खुर या टाप से ।
( बहारे शरीअत , जि . 1 , स . 982
( 4 ) इसी तरह बस या कार का धूआं या उन से गुबार उड़ कर हल्क में पहुंचा अगर्चे रोज़ादार होना याद था , रोज़ा नहीं जाएगा ।
( 5 ) अगरबत्ती सुलग रही है और उस का धूआं नाक में गया तो रोज़ा नहीं टूटेगा । हां लोबान या अगरबत्ती सुलग रही हो और Roza याद होने के बा वुजूद मुंह करीब ले जा कर उस का धूआं नाक से खींचा तो रोज़ा फ़ासिद हो जाएगा ।
( 6 ) भरी सींगी लगवाई या तेल या सुरमा लगाया तो रोज़ा न गया , तेल या सुरमे का मज़ा हल्क में महसूस होता हो बल्कि थूक में सुरमे का कुछ रंग दिखाई देता हो तो इस वजह से रोज़ा टूटने में नहीं आता यानि रोज़ा नहीं टूटता।
( 7 ) गुस्ल किया और पानी की खुनुकी ( या'नी ठन्डक ) अन्दर महसूस हुई जब भी यह Roza Tutne Wali Cheezain नहीं ।
( 8 ) कुल्ली करके मुँह के पानी तुरंत फेक दिया। और कुछ तरी मुँह के अंदर बची थी उसे भी थूक के जरिये फेक निकल दिया और इस वजह से रोज़ा नहीं टुटा Roza Na Tuta।
( 9 ) दवा कूटी और हल्क में इस का मज़ा महसूस हुवा रोज़ा नहीं
( 10 ) कान में पानी चला गया जब भी यह Roza Tutne Wali Cheezain नहीं, बल्कि खुद पानी डाला जब भी Roza Nahi Tutenga। अलबत्ता कान का पर्दा फटा हुवा हो तो कान में पानी डालने से हल्क़ के नीचे चला जाएगा और रोज़ा टूट जाएगा ।
( 11 ) तिन्के से कान खुजाया और उस पर कान का मैल लग गया फिर वोही मैल लगा हुवा तिन्का कान में डाला अगषे चन्द बार ऐसा किया हो जब भी यह Roza Tutne Wali Cheezain नहीं ।
( 12 ) दांत या मुंह में ख़फ़ीफ़ ( या'नी मा'मूली ) चीज़ बे मा'लूम सी रह गई कि लुआब के साथ खुद ही उतर जाएगी और वोह उतर गई , यह Roza Tutne Wali Chiz नहीं।
( 13 ) तिल या तिल के बराबर कोई चीज़ चबाई और थूक के साथ हल्क से उतर गई तो रोज़ा न गया मगर जब कि उस का मज़ा हल्क में महसूस होता हो तो रोज़ा जाता रहा ।
( 14 ) थूक या बल्गम मुंह में आया फिर उसे निगल गया तो रोज़ा न टुटा.
( 15 ) इसी तरह नाक में रीठ जम्अ हो गई , सांस के जरीए खींच कर निगल जाने से भी रोज़ा नहीं जाता गया Roza Na Tutne Wali Chijen ।
( 16 ) दांतों से खून निकल कर हल्क तक पहुंचा मगर हल्क से नीचे न उतरा तो रोज़ा न गया ।
( 17 ) मख्खी हल्क में चली गई यह Roza Tutne Wali Chiz नहीं और कस्दन ( या'नी जान बूझ कर ) निगली तो चला गया ।
( 18 ) भूले से खाना खा रहे थे , याद आते ही लुक्मा फेंक दिया या पानी पी रहे थे याद आते ही मुंह का पानी फेंक दिया तो रोज़ा न गया । अगर मुंह में का लुक्मा या पानी याद आने के बा वुजूद निगल गए तो रोज़ा गया ।
( 19 ) सुब्हे सादिक़ से पहले खा या पी रहे थे और सुब्ह होते ही ( या'नी सहरी का वक्त ख़त्म होते ही ) मुंह में का सब कुछ उगल दिया तो रोज़ा न गया Roza Na Gaya , और अगर निगल लिया तो जाता रहा ।
( 20 ) गीबत की तो रोज़ा न गया Roza Na Gaya। अगर्चे गीबत सख़्त कबीरा गुनाह है , कुरआने मजीद में गीबत करने की निस्बत फ़रमाया : " जैसे अपने मुर्दा भाई का गोश्त खाना । "
और हदीसे पाक में फ़रमाया : " गीबत ज़िना से सख़्त तर है । गीबत की वज्ह से रोजे की नूरानिय्यत जाती रहती है । ( बहारे शरीअत , जि . 1 , स . 984 )
( 21 ) जनाबत ( या'नी गुस्ल फ़र्ज़ होने ) की हालत में सुब्ह की बल्कि अगर्चे सारे दिन जुनुब ( या'नी बे गुस्ल ) रहा Roza Na Gaya। मगर इतनी देर तक कस्दन या'नी जान बूझ कर ) गुस्ल न करना कि नमाज़ क़ज़ा हो जाए गुनाह व हराम है ।
हृदीस शरीफ़ में फ़रमाया : “ जिस घर में जुनुब हो उस में रहमत के फ़िरिश्ते नहीं आते । बहारे शरीअत , जि . 1 , स . 984 )
ऊपर दी गई बाते Roza Tutne Wali Cheezain याद रखे और अपनी इस्लाह करे साथ ही इसे शेयर करे, खास रमजान के महीने में और 70 गुणा सवाब कमाए .
Roze Ke Makroohat रोज़े के 12 मकरूहात In Hindi
( 1 ) झूट , चुगली , गीबत , गाली देना , बेहूदा बात , किसी को तकलीफ़ देना कि येह चीजें वैसे भी ना जाइज़ व हराम हैं रोज़े में और ज़ियादा हराम इन की वज्ह से रोजे में कराहत आती है । ( बहारे शरीअत , जि . 1 , स . 996 ) |
( 2 ) रोज़ादार को बिला उज्र किसी चीज़ का चखना या चबाना मरूह है । चखने के लिये उज्र येह है कि मसलन औरत का शोहर बद मिज़ाज है कि नमक कम या ज़ियादा होगा तो उस की नाराज़ी का बाइस होगा ,
इस वज्ह से चखने में हरज नहीं । चबाने के लिये उज्र येह है कि इतना छोटा बच्चा है कि रोटी नहीं चबा सकता और कोई नर्म गिज़ा नहीं जो उसे खिलाई जा सके ,
न हैज़ व निफ़ास ' वाली या कोई और ऐसा है कि उसे चबा कर दे । तो बच्चे के खिलाने के लिये रोटी वगैरा चबाना मरूह नहीं । मगर पूरी एहतियात रखिये कि गिज़ा का कोई ज़र्रा हल्क से नीचे न उतरने पाए ।
चखना किसे कहते हैं ? : चखने के मा'ना वोह नहीं जो आज बका 13 कल आम मुहावरा है या'नी किसी चीज़ का मज़ा दरयाफ्त करने के लिये उस में से थोड़ा खा लिया जाता है !
कि यूं हो तो कराहत कैसी रोज़ा Roza ही जाता रहेगा बल्कि कफ्फ़ारे के शराइत पाए जाएं तो कफ्फ़ारा भी लाज़िम होगा ।
चखने से मुराद येह है कि सिर्फ ज़बान पर रख कर मज़ा दरयाफ़्त कर लें और उसे थूक दें , उस में से हल्क में कुछ भी न जाने पाए । ( बहारे शरीअत , जि . 1 , स . 996 )
( 3 ) कोई चीज़ ख़रीदी और उस का चखना ज़रूरी है कि अगर न चखा तो नुक्सान होगा तो ऐसी सूरत में चखने में हरज नहीं वरना मरूह है ।
( 4 ) बीवी का बोसा लेना और गले लगाना और बदन को छूना मरूह नहीं । हां येह अन्देशा हो कि इन्जाल हो जाएगा ( या'नी मनी निकल जाएगी ) या जिमाअ में मुब्तला होगा
और होंट और ज़बान चूसना Roze में मुत्लकन मक्रूह हैं । यूं ही मुबाशरते फ़ाहिशा ( या'नी शर्मगाह से शर्मगाह टकराना ' )
( 5 ) गुलाब या मुश्क वगैरा सूंघना , दाढ़ी मूंछ में तेल लगाना और सुरमा लगाना मरूह नहीं ।
( 6 ) रोजे की हालत में हर किस्म का इत्र सूंघ भी सकते हैं और लगा भी सकते हैं । इसी तरह रोजे में बदन पर तेल की मालिश करने में भी हरज नहीं ।
( 7 ) रोजे में मिस्वाक करना मरूह नहीं बल्कि जैसे और दिनों में सुन्नत है वैसे ही रोज़े में भी सुन्नत है , मिस्वाक खुश्क हो या तर ,
अगर्चे पानी से तर की हो , ज़वाल से पहले करें या बा'द , किसी वक़्त भी मरूह नहीं ।
( 8 ) अक्सर लोगों में मशहूर है कि दो पहर के बाद रोज़ादार के लिये मिस्वाक करना मरूह है येह हमारे मज़हबे हनफ़िय्या के ख़िलाफ़ है । ( बहारे शरीअत , जि . 1 , स . 997 )
हज़रते सय्यिदुना आमिर बिन रबीआ से रिवायत है : “ मैं ने रसूले पाक को बे शुमार बार रोजे में मिस्वाक करते देखा । "
( 9 )अगर मिस्वाक चबाने से रेशे छूटे या मज़ा महसूस हो तो ऐसी मिस्वाक रोजे में नहीं करना चाहिये । ( फ़तावा रविय्या मुखर्रजा , जि . 10 , स . 511 )
अगर रोज़ा याद होते हुए मिस्वाक चबाते या दांत मांझते हुए इस का रेशा या कोई जुज़ हल्क से नीचे उतर गया और उस का मज़ा हल्क में महसूस हुवा तो रोज़ा फ़ासिद हो जाएगा ।
और अगर इतने सारे रेशे हल्क़ से नीचे उतर गए जो एक चने की मिक्दार के बराबर हों तो अगर्चे हल्क में जाएका महसूस न हो तब भी रोज़ा टूट जाएगा ।
( 10 ) वुजू व गुस्ल के इलावा ठन्डक पहुंचाने की गरज़ से कुल्ली करना या नाक में पानी चढ़ाना या ठन्डक के लिये नहाना बल्कि बदन पर भीगा कपड़ा लपेटना भी मरूह नहीं ।
हां परेशानी जाहिर करने के लिये भीगा कपड़ा लपेटना मक्रूह है कि इबादत में दिल तंग होना अच्छी बात नहीं । ( बहारे शरीअत , जि . 1 , स . 997)
( 11 ) बा'ज़ इस्लामी भाई रोजे में बार बार थूकते रहते हैं , शायद वोह समझते हैं कि रोजे में थूक नहीं निगलना चाहिये , ऐसा नहीं ।
अलबत्ता मुंह में थूक इकठ्ठा कर के निगल जाना , येह तो बिगैर रोज़ा के भी ना पसन्दीदा है और रोजे में मरूह । ( बहारे शरीअत , जि . 1 , स . 998 )
( 12 ) रमज़ानुल मुबारक के दिनों में ऐसा काम करना जाइज़ नहीं जिस से ऐसा जो'फ़ ( या'नी कमज़ोरी ) आ जाए कि रोजा तोड़ने का ज़न्ने गालिब हो ।
लिहाज़ा नानबाई को चाहिये कि दो पहर तक रोटी पकाए फिर बाकी दिन में आराम करे । मि'मार व मजदूर और दीगर मशक्कत के काम करने वाले इस मस्अले पर गौर फरमा लें ।
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