सलाम करने की सुन्नतें और आदाब सलाम करना हमारे प्यारे आका , ताजदारे मदीना Sallallaho Aalay Wasallam की बहुत ही प्यारी सुन्नत है । ( बहारे शर...
सलाम करने की सुन्नतें और आदाब
सलाम करना हमारे प्यारे आका , ताजदारे मदीना Sallallaho Aalay Wasallam की बहुत ही प्यारी सुन्नत है ।
( बहारे शरीअत , हिस्सा : 16 , स . 88 ) ,
बद क़िस्मती से आज कल येह सुन्नत भी ख़त्म होती नज़र आ रही है । इस्लामी भाई जब आपस में मिलते हैं तो , से इब्तिदा करने के बजाए “ आदाब अर्ज़ ” , “ क्या हाल है ? ” , “ मिज़ाज शरीफ़ ” , “ सुब्ह बखैर ” , “ शाम बखैर " वगैरा वगैरा अजीबो गरीब कलिमात से इब्तिदा करते हैं , ये ख़िलाफ़े सुन्नत है ।
रुख़सत होते वक्त भी " खुदा हाफ़िज़ ” , “ गुडबाय ” , “ टाटा ” वगैरा कहने के बजाए सलाम करना चाहिये । हां रुख़सत होते हुए Assalamu Alaikum के बाद अगर खुदा हाफ़िज़ कह दें तो हरज नहीं । सलाम की चन्द सुन्नतें और आदाब मुला - हज़ा हों :
सलाम (Assalamu Alaikum) करने के 38 सुन्नते In Hindi
( 1 ) सलाम के बेहतरीन अल्फ़ाज़ येह हैं
Assalamu Alaikum Wa Rahmatullahi Wa Barakatuh यानी तुम पर सलामती हो और अल्लाह की तरफ से रहूमतें और ब र कतें नाज़िल हों । " ( माखूज़ अज़ फ़तावा र ज़विय्या , जि . 22 , स . 409 )
( 2 ) सलाम करने वाले को उस से बेहतर जवाब देना चाहिये ।
अल्लाह इर्शाद फ़रमाता है :
तर - ज - मए कन्जुल ईमान - और जब तुम्हें कोई किसी लफ़्ज़ से सलाम करे तो तुम उस से बेहतर लफ्ज़ जवाब में कहो या वोही कह दो |
( 3 ) सलाम के जवाब के बेहतरीन अल्फ़ाज़ येह हैं :
Walekum Assalam Wa Rahmatullahi Wa Barakatuh यानि और तुम पर भी सलामती हो और अल्लाह J , की तरफ से रहूमतें और ब - र - कतें नाज़िल हों । " ( माखूज़ अज़ फ़तावा र ज़विय्या , जि . 22 , स . 409 )
( 4 ) सलाम करना हज़रते सय्यिदुना आदम की भी सुन्नत है ।
हज़रते अबू हुरैरा से मरवी है कि हुज़ूर सय्यिदे दो आलम Sallallaho Alay wasallam ने फ़रमाया : “ जब अल्लाह ने हज़रते सय्यिदुना आदम को पैदा फ़रमाया तो उन्हें हुक्म दिया कि जाओ और फ़िरिश्तों की उस बैठी हुई जमाअत को सलाम करो ।
और गौर से सुनो ! कि वोह तुम्हें क्या जवाब देते हैं । क्यूं कि वोही तुम्हारा और तुम्हारी औलाद का सलाम है । हज़रते सय्यिदुना आदम ने फ़िरिश्तों से कहा : Assalamu Alaikum.
तो उन्हों ने , जवाब दिया Assalamu Alaikum Wa Rahmatullahi Wa Barakatuh और उन्होंने Walekum Assalam के अल्फ़ाज़ ज़ाइद कहे । ' ' ( मिरआतुल मनाजीह , जि . 6 , स . 313 )
( 5 ) आम तौर पर मा'रूफ़ येही है कि Assalamu Alaikum ही सलाम है । मगर सलाम के दूसरे भी बा'ज़ सीगे हैं । म - सलन हैं कोई आ कर सिर्फ़ कहे " सलाम " तो भी सलाम हो जाता है और ‘ ‘ सलाम ’ ’ के जवाब में " सलाम " कह दिया , या ही कह दिया , Assalamu Alaikum या सिर्फ़ " Walekum " कह दिया तो भी जवाब हो गया ।
( माखूज़ अज बहारे शरीअत हिस्सा : 16 , स . 93 )
( 6 ) सलाम करने से आपस में महब्बत पैदा होती है । हज़रते अबू हुरैरा से मरवी है , कि हुज़ूर Sallallaho Alay wasallam ने फ़रमाया : “ तुम जन्नत में दाखिल नहीं होगे जब तक तुम ईमान न लाओ और तुम मोमिन नहीं हो सकते जब तक कि तुम एक दूसरे से महब्बत न करो ।
क्या मैं तुम को एक ऐसी चीज़ न | बताऊं जिस पर तुम अमल करो तो एक दूसरे से महब्बत करने लगो । अपने दरमियान सलाम को आम करो ।
( 7 ) हर मुसल्मान को सलाम करना चाहिये ख़्वाह हम उसे जानते हों या न जानते हों । हज़रते अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन अल आस से मरवी है कि एक आदमी ने हुज़ूर ताजदारे मदीना Sallallaho Alay wasallam से अर्ज किया ,
इस्लाम की कौन सी चीज़ सब से बेहतर है ?
तो आप Sallallaho Alay wasallam ने फ़रमाया : येह कि तुम खाना खिलाओ ( मिस्कीनों को ) और सलाम | कहो हर शख़्स को ख़्वाह तुम उस को जानते हो या नहीं ।
हो सके तो जब बस में सुवार हों , किसी अस्पताल में जाना पड़ जाए , किसी होटल में दाखिल हों , जहां लोग फ़ारिग बैठे हों , जहां जहां मुसल्मान इकठ्ठे हों , सलाम कर दिया करें ।
येह दो अल्फ़ाज़ ज़बान पर बहुत ही हलके हैं मगर इन के फवाइदो स मरात बहुत ही जियादा हैं ।
( 8 ) बा ' ज़ सहाबा सिर्फ सलाम की गरज से बाज़ार में जाया करते थे ।
हज़रते तुफ़ैल बिन उबय बिन का'ब से मरवी है कि वोह अब्दुल्लाह बिन उमर के पास जाते तो वोह उन को साथ ले कर बाज़ार की तरफ चल पड़ते । रावी कहते हैं
जब हम चल पड़ते तो हज़रते अब्दुल्लाह जिस रद्दी फ़रोश , दुकान दार या मिस्कीन के पास से गुज़रते तो उस को सलाम कहते । हज़रते तुफैल कहते हैं ,
एक दिन मैं हज़रते अब्दुल्लाह के पास गया तो उन्हों ने मुझे बाज़ार चलने को कहा । मैं ने अर्ज़ किया , बाज़ार जा कर क्या करेंगे ?
वहां आप न तो ख़रीदारी के लिये रुकते हैं , न सामान के मु - तअल्लिक़ पूछते हैं , न भाव करते हैं और न बाज़ार की मजलिस में बैठते हैं , मेरी तो गुज़ारिश येह है कि यहीं हमारे पास तशरीफ़ रखें ।
हम बातें करेंगे । फ़रमाया : " ऐ बड़े पेट वाले ! ( सय्यिदुना तुफैल का पेट बड़ा था ) हम सिर्फ़ सलाम की गरज़ से जाते हैं । हम जिस से मिलते हैं उस को सलाम कहते हैं ।
( 9 ) बातचीत शुरू करने से पहले ही सलाम करने की आदत बनानी चाहिये ।
नबिय्ये करीम Sallallaho Alay wasallam ने फ़रमाया : सलाम बातचीत से पहले है ।
नज़रो में आए हर मोमिन को Assalamu Alaikum सलाम करने पर मालूमात
( 10 ) छोटा बड़े को , चलने वाला बैठे हुए को , थोड़े ज़ियादा को और सुवार पैदल को सलाम करने में पहल करें । सरकारे मदीना Sallallaho Alay wasallam का फ़रमाने फरमान है ,
सुवार पैदल को सलाम करे , चलने वाला बैठे हुए को , और थोड़े लोग ज़ियादा को और छोटा बड़े को सलाम करे ।
( 11 ) पीछे से आने वाला आगे वाले को सलाम करे ।
( 12 ) जब कोई किसी का सलाम लाए तो इस तरह जवाब दें " या'नी " तुझ पर भी और उस पर भी सलाम हो । " हज़रते गालिब फ़रमाते हैं कि हम हुसन बसरी के दरवाजे पर बैठे हुए थे ,
एक आदमी ने बताया कि मेरे वालिदे माजिद ने मुझे रसूलुल्लाह Sallallaho Alay wasallam के पास भेजा और फ़रमाया , आपको मेरा सलाम अर्ज़ कर उस ने कहा ,
मैं आप ( हुज़ूर Sallallaho Alay wasallam) की खिदमते बा ब र कत में हाज़िर हो गया और मैं ने अर्ज की , सरकार Sallallaho Alay wasallam मेरे वालिद साहिब आप Sallallaho Alay wasallam को सलाम अर्ज करते हैं ।
हुज़ूर सय्यिदे दो आलम Sallallaho Alay wasallam ने फ़रमाया तुझ पर और तेरे बाप पर सलाम हो ।
( 13 ) सलाम में पहल करने वाला अल्लाह का मुक़र्रब है । हज़रते अबू उमामा सदी बिन इजलान अल बाहिली से मरवी है कि हुज़ूर ताजदारे मदीना Sallallaho Alay wasallam ने फ़रमाया : “ लोगों में अल्लाह तआला के जियादा क़रीब वोही शख़्स है जो उन्हें पहले सलाम करे । "
हज़रते अबू उमामा से रिवायत है , अर्ज़ किया गया , या रसूलल्लाह Sallallaho Alay wasallam दो आदमी आपस में मिलें तो कौन पहले सलाम करे ?
फ़रमाया : “ जो उन में अल्लाह तआला के ज़ियादा करीब हो ।
( 14 ) सलाम में पहल करने वाला तकब्बुर से बरी है । हज़रते अब्दुल्लाह नबिय्ये करीम से रिवायत करते हैं , फ़रमाया : " पहले सलाम कहने वाला तकब्बुर से बरी है ।
( 15 ) जब घर में दाखिल हों तो घर वालों को सलाम किया करें इस से घर में ब र कत होती है । और अगर खाली घर में दाखिल हों तो अस्सलामु अलैका अय्युहन नबी कहें या'नी, ऐ नबी Sallallaho Alay wasallam आप पर सलाम हो ।
" हज़रते मुल्ला अली कारीफ़रमाते हैं : हर मोमिन के घर में सरकारे मदीना Sallallaho Alay wasallam की रूहे मुबारक तशरीफ़ फ़रमा रहती है ।
हज़रते अनस से रिवायत है कि रसूलुल्लाह Sallallaho Alay wasallam ने फ़रमाया : " ऐ बेटे ! जब तुम अपने घर में दाखिल हो तो सलाम कहो , येह तुम्हारे लिये और तुम्हारे घर वालों के लिये ब र कत का बाइस होगा ।
घर में जब दाखिल हों उस वक्त भी सलाम करें और जब रुख़्सत होने लगें , उस वक़्त भी सलाम करें । हज़रते कृतादा से रिवायत है कि नबिय्ये करीम Sallallaho Alay wasallam ने फ़रमाया : ने " जिस वक्त तुम घर में दाखिल हो अपने घर के लोगों को सलाम कहो ।
जब अपने घर वालों से निकलो तो सलाम के साथ रुख़सत हो । "
( 16 ) आज कल अगर कोई किसी महफ़िल , इज्तिमाअ या मजलिस वगैरा में आ कर सलाम कर भी देता है तो जाते हुए “ मैं चलता हूं " , " खुदा हाफ़िज़ ” , “ अच्छा " , " बाय बाय " , वगैरा कलिमात कहता है लिहाज़ा मजलिस के इख़्तिताम पर इन सब अल्फ़ाज़ के बजाए सलाम किया करें ।
हज़रते अबू हुरैरा हुज़ूर नबिय्ये करीम Sallallaho Alay wasallam से रिवायत करते हैं : " जिस वक्त तुम में से कोई किसी मजलिस की तरफ पहुंचे , सलाम कहे । अगर ज़रूरत महसूस करे , वहां बैठ जाए । फिर जब खड़ा हो सलाम कहे इस लिये कि पहला सलाम दूसरे से ज़ियादा बेहतर नहीं है । "
( 17 ) अगर कुछ लोग जम्भु हैं एक ने आ कर कहा । तो किसी एक का जवाब दे देना काफ़ी है । अगर एक ने भी न दिया तो सब गुनहगार होंगे ।
अगर सलाम करने वाले ने किसी एक का नाम ले कर सलाम किया या किसी को मुखातब कर के सलाम किया तो अब उसी को जवाब देना होगा । दूसरे का जवाब काफ़ी न होगा ।
( माखूज़ अज बहारे शरीअत , सलाम का बयान , हिस्सा : 16 , स . 89 )
हज़रते मौला अली से रिवायत है ‘ ‘ जब कोई शख़्स गुज़रते हुए सलाम कह दे और बैठने वालों में से एक शख़्स जवाब दे तो सब लोगों की तरफ से किफ़ायत कर जाता है । "
( 18 ) Assalamu Alaikum कहने से दस नेकियां , Assalamu Alaikum Wa Rahmatullahi कहने से बीस नेकियां जब कि, Assalamu Alaikum Wa Rahmatullahi Wa Barakatuh कहने से तीस नेकियां मिलती से रिवायत है
हज़रते इमरान बिन हसीन से रिवायत है आप कि एक आदमी हुज़ूर ताजदारे मदीना Sallallaho Alay wasallam की ख़िदमत में हाज़िर हुवा , और उस ने अर्ज़ किया Assalamu Alaikum ,
आप Sallallaho Alay wasallam ने फ़रमाया , दस नेकियां लिखी गई हैं । फिर दूसरा हाज़िर हुवा उस ने अर्ज़ किया Assalamu Alaikum Wa Rahmatullahi। आप Sallallaho Alay wasallam ने उस को जवाब दिया , वोह भी बैठ गया , आप Sallallaho Alay wasallam ने फ़रमाया : बीस नेकियां लिखी गई हैं । फिर एक और आदमी हाज़िरे ख़िदमत हुवा , उस ने अर्ज़ किया : Assalamu Alaikum Wa Rahmatullahi Wa Barakatuh आप Sallallaho Alay wasallam जवाब दिया और फ़रमाया , तीस नेकियां हैं ।
( 19 ) आ'ला हज़रत , इमामे अहले सुन्नत , मौलाना शाह फ़्तावा र इमाम अहमद रज़ा खान ज़विय्या जिल्द 22 सफ़हा 409 पर फ़रमाते हैं :
कम अज़ कम इस से बेहतर Assalamu Alaikum और इस से बेहतर Wa Rahmatullahi मिलाना और सब से बेहतर Wa Barakatuh शामिल करना और इस पर ज़ियादत नहीं ।
फिर सलाम करने वाले ने जितने अल्फ़ाज़ में सलाम किया है जवाब में उतने का इआदा तो ज़रूर है
और अफ़ज़ल येह है कि जवाब में ज़ियादा कहे | उस ने Assalamu Alaikum कहा तो येह Walekum Assalam Wa Rahmatullahi Wa Barakatuh कहे । और अगर उस ने Assalamu Alaikum Wa Rahmatullahi कहा तो येह Walekum Assalam Wa Rahmatullahi Wa Barakatuh, कहे और अगर उस ने बरकातूह , तक कहा तो येह भी इतना ही कहे कि इस से ज़ियादत नहीं ।
( 20 ) जो सो रहे हों उन को सलाम न किया जाए बल्कि सिर्फ़ जागने वालों को सलाम करें, हज़रते मिक्दाद से मरवी है कि
आप صلى الله عليه وسلم रात को तशरीफ़ लाते तो सलाम कहते । आप صلى الله عليه وسلم सोने वालों को न जगाते और जो जाग रहे होते उन को आप صلى الله عليه وسلم सलाम इर्शाद फ़रमाते ।
पस एक दिन हुजूर صلى الله عليه وسلم तशरीफ़ लाए और इसी तरह सलाम फ़रमाया जिस तरह फ़रमाया करते थे ।
( 21 ) ज़बान से सलाम करने के बजाए सिर्फ़ उंग्लियों या हथेली के इशारे से सलाम न किया जाए ।
हज़रते अम्र बिन शुऐब ब वासिता वालिद अपने दादा से रिवायत करते हैं , नबिय्ये करीम صلى الله عليه وسلم ने फ़रमाया : “ हमारे गैर से मुशा बहत पैदा करने वाला हम में से नहीं , यहूदो नसारा के मुशाबेह न बनो , यहूदियों
का सलाम उंग्लियों के इशारे से है और ईसाइयों का सलाम हथेलियों के इशारे से । अगर किसी ने ज़बान से सलाम के अल्फ़ाज़ कहे और साथ ही हाथ भी उठा दिया तो फिर मुज़ा - यका नहीं ।
( अहकामे शरीअत , स .60 )
( 22 ) सलाम इतनी ऊंची आवाज़ से करें कि जिस को किया हो वोह सुन ले |
( बहारे शरीअत , Salam का बयान , हिस्सा : 16 , स . 90 )
( 23 ) सलाम का फ़ौरन जवाब देना वाजिब है । अगर बिला उज़्र ताखीर की तो गुनाहगार होगा और सिर्फ़ जवाब देने से गुनाह मुआफ़ नहीं होगा , तौबा भी करना होगी ।
( 24 ) जवाब इतनी आवाज़ से देना वाजिब है कि सलाम करने वाला सुन ले |
( बहारे शरीअत , सलाम का बयान , हिस्सा : 16 , स . 92 )
( 25 ) ग़ैर मुस्लिम को सलाम न करें वोह अगर सलाम करे तो उस का जवाब वाजिब नहीं , जवाब में फ़क़त Walekum कह दें |
( बहारे शरीअत , सलाम का बयान , हिस्सा : 16 , स .90 )
( 26 ) सलाम करते वक्त हृद्दे रुकूअ तक ( इतना झुकना | कि हाथ बढ़ाए तो घुटनों तक पहुंच जाएं ) झुक जाना हराम है अगर इस से कम झुके तो मक्रूह |बद क़िस्मती से आज कल आम तौर पर सलाम करते वक़्त लोग झुक जाते हैं ।
अलबत्ता किसी बुजुर्ग के हाथ चूमने में हुरज नहीं बल्कि सवाब है और येह बिगैर झुके मुम्किन नहीं यहां ज़रूरत है । जब कि सलाम के वक़्त झुकने की हाजत नहीं ।
( बहारे शरीअत , सलाम का बयान , हिस्सा : 16 , स . 92 )
( 27 ) बुढ़िया का जवाब आवाज़ से दें और जवान औरत के सलाम का जवाब इतना आहिस्ता दें कि वोह न सुने । अलबत्ता इतनी आवाज़ लाज़िमी है कि जवाब देने वाला खुद सुन ले ।
( बहारे शरीअत , Salam का बयान , हिस्सा : 16 , स .90 )
( 28 ) जब दो इस्लामी भाई मुलाकात करें तो सलाम करें और अगर दोनों के बीच में कोई सुतून , कोई दरख़्त या दीवार वगैरा दरमियान में हाइल हो जाए फिर जैसे ही मिलें दोबारा सलाम करें ।
हज़रते अबू हुरैरा 33 से मरवी है कि हुज़ूर ताजदारे मदीना صلى الله عليه وسلم ने फ़रमाया : " जब तुम में से कोई शख़्स अपने इस्लामी भाई को मिले तो उस को सलाम करे,
और अगर इन के दरमियान दरख़्त , दीवार या पथ्थर वगैरा हाइल हो जाए और वोह फिर उस से मिले तो दोबारा उस को सलाम करे ।
( 29 ) ख़त में सलाम लिखा होता है उस का भी जवाब | देना वाजिब है इस की दो सूरतें हैं , एक तो येह कि ज़बान से जवाब दे और दूसरा येह कि सलाम का जवाब लिख कर भेज दे लेकिन चूंकि जवाबे सलाम फ़ौरन देना वाजिब है
और ख़त का जवाब देने कुछ न कुछ ताख़ीर हो ही जाती है लिहाज़ा फ़ौरन ज़बान से सलाम का जवाब दे दे । आ’ला हज़रत जब ख़त पढ़ा करते तो ख़त में जो “ Assalamu Alaikum ” लिखा होता ,
उस का जवाब ज़बान से दे कर बा'द का मज़मून पढ़ते ।
( माखूज अज बहारे शरीअत हिस्सा : 16 , स . 92 )
( 30 ) अगर किसी ने आप को कहा , “ फुलां को मेरा सलाम कहना " तो आप खुद उसी वक्त जवाब न दे दें । आप का जवाब देना कोई मा ' नी नहीं रखता बल्कि जिस के बारे में कहा उस से कहे कि फुलां ने आप को सलाम कहा है ।
( 31 ) अगर किसी ने आप से कहां कि फुलां ने आप को सलाम कहा है । अगर सलाम लाने वाला और भेजने वाला दोनों मर्द हों तो यूं कहें : Alaika wa alaihissalam ,
अगर दोनों औरतें हों तो कहें Alaiki wa alaihissalam अगर पहुंचाने वाला मर्द और भेजने वाली औरत हो Alaiki wa alaihissalam, अगर पहुंचाने वाली औरत हो,
और भेजने वाला मर्द हो Alaika wa alaihissalam ( इन सब का तजरमा येही है " तुझ पर भी सलाम हो और उस पर भी " )
( 32 ) जब आप मस्जिद में दाखिल हों और इस्लामी भाई तिलावते कुरआन , ज़िक्रो दुरूद में मश्गूल हों या इन्तिज़ारे नमाज़ में बैठे हों उन को सलाम न करें ।
येह सलाम का मौक़अ नहीं न उन पर जवाब वाजिब है ।
इमामे अहले सुन्नत , मुजद्दिदे दीनो मिल्लत शाह मौलाना अहमद रज़ा खान फतावा र ज़विय्या जिल्द 23 सफ़हा 399 पर लिखते हैं : ज़ाकिर पर Salam करना मुत्लकन मन्अ है और अगर कोई करे तो ज़ाकिर को इख़्तियार है
कि जवाब दे या न दे | हां अगर किसी के सलाम या जाइज़ कलाम का जवाब न देना उस की दिल शिकनी का मूजिब ( सबब ) हो तो जवाब दे कि मुसल्मान की दिलदारी वज़ीफ़े में बात न करने से अहम व आ'ज़म है ।
( 33 ) कोई इस्लामी भाई दर्सो तदरीस या इल्मी गुफ़्तगू या सबक़ की तक्रार में है उस को सलाम न करें ।
( बहारे शरीअत , सलाम का बयान , हिस्सा : 16 , स . 91 )
( 34 ) इज्तिमाअ में बयान हो रहा है , इस्लामी भाई सुन रहे हैं आने वाला Salam न करे ।
( 35 ) जो पेशाब , पाख़ाना कर रहा है , या पेशाब करने के बा'द ढेला लिये जा - ए पेशाब सुखाने के लिये टहल रहा है , गुस्ल खाने में बरह्ना नहा रहा है , गाना गा रहा है , कबूतर उड़ा रहा है या खाना खा रहा है इन सब को सलाम न करें ।
( बहारे शरीअत , सलाम का बयान , हिस्सा : 16 स . 91 )
( 36 ) जिन सूरतों में सलाम करना मन्अ है अगर किसी ने कर भी दिया तो इन पर जवाब वाजिब नहीं ।
( बहारे शरीअत , सलाम का बयान , हिस्सा : 16 स . 91 )
( 37 ) खाना खाने वाले को सलाम कर दिया तो मुंह में उस वक्त लुक्मा नहीं तो जवाब दे दे |
( 38 ) साइल ( भिकारी ) के Salam (Assalamu Alaikum) का जवाब वाजिब नहीं ( जब कि भीक मांगने की गरज़ से आया हो ) ।
( बहारे शरीअत , सलाम का बयान , हिस्सा : 16 , स . 90 )
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