क्या जिब्रील Jibril अहले सल्लम को अहले बैत Ahle Bait का खादिम कह सकते हैं? इसे फरिश्तो को तौहिन होती है।
हज जिब्रील को Ahle bait अहले बैत का खादिम कहना कैसे
क्या जिब्रील Jibril अहले सल्लम को अहले बैत Ahle Bait का खादिम कह सकते हैं? इसे फरिश्तो को तौहिन होती है।
सावल :-
क्या फरमाते हैं उलमा-ए-किराम वा मुफ्तियां ए इजाम क्या मस्ले के बारे में की हजरत जिब्रील अलैहिस्सलाम को अहले बैत Ahle Bait का खादिम कहना कैसा है और दलील ये देना की "इंके घर बे इजाजत जिब्रील Hazrat Jibril आते नहीं है? नीज़ क्या फरिश्तों की तौहीन करना कुफ्र है या नहीं?
जवाब :-
हज़रत जिब्रील Hazrat Jibril अलैहिस सलाम रसूल ए मलाइका है इन्हे अहले बैत ए अतर रदी अल्लाहु ता, आला अन्हुम Ahle Bait का खादिम कहना इनकी तौहीन है जो के खालिस कुफ़्र है.
लिहाज़ा ऐसा कहने वाला तौबा, ताजदीद ए ईमान करे और अगर शादी शुदा हैं तो दुबारा निका करे और ये दलील देना की
"इंके घर बे-इजाजत जिब्रील Hazrat Jibril आते नहीं"
इस्से हरगिज सबित नहीं होता के वो अहले बैत ए अतर रदी अल्लाहू ताआला अन्हुम Ahle Bait के खादिम हैं, हो सकता है के अल्लाह अज्ज्वजल ने इनहे लज्जत लेने का हुकम दिया हो।
और ये जरूरी नहीं है के इजाजत लेने वाला खादिम ही हो। ये भी हो सकता है के इजाजत लेने वाला साहिब ए खाना से बहुत अफजल हो। यहां तक के खुद हुज़ूर ए अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का साहाबा के घर तशरीफ लेजाने पर इजाजत लेना सबित है,
और हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने लोगो को इजाजत लेने की तालीम भी फरमाई, लिहाज़ा अफजल के घर में अगर इजाजत ले, तो हरगिज़ ये नहीं सबित होता के आने वाला खादिम ही है।
"तम्हिद" ली अबी शकूर सालीमी में है
तारजुमा :- जिस किसी फरिश्ते को गली दी या उनसे बुगज़ रखा तो वो काफिर होगा जैसा के अंबिया के बारे में है या जिस अंबिया या फरिश्तों का ज़िक्र हिकारत के साथ किया तो वो भी काफिर होगा।
(अल ताम्हिद लि अबी शकूर सलीमी, पृष्ठ १२२)
फतवा आलमगिरी में है
Ahle_bait |
तारजुमा :- अगर किसी ने कहा की मैं फुलां की गवाही नहीं सुनूंगा, अगर चे वो जिब्रील Hazrat Jibril या मिकाइल हो तो वो काफिर होगा।
नीज आगे फार्मते हैं
Ahle_bait |
तारजुमा :- किसी ने फरिश्तों में से किसी फरिश्ते पर ऐब लगा तो वो काफिर होगा।
नीज़ आगे फार्मते हैं
Ahle_bait |
तारजुमा :- अबू जर ने कहा फरिश्तों की तौहीन करना कुफ्र है।
(फतवा आलमगिरी किताब अल सैर बाब तासी फि अहकामिल मिर्ताद्दीन, सफा नंबर 266)
अला हजरत इमामत सय्यद इमाम अहमद रज़ा क़ुद्दास सिर्राहुल अज़ीज़ फरमाते हैं
हज़रत मलकुल मौत अलैहिस सलातू वससलम की निस्बत बंदर काटने का लफ़्ज़ मलक ए मुक़र्रबे रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के तौहीन है, कुफ़्र ए मुबीन है
(फतवा रजाविया जिल्ड १५ पेज २६०)
दसरे मक़म पर आला हज़रत रदी अल्लाहू तआला अन्हु से इस वक़िये से मुतालिक सावल हुआ की हज़रत की ख़िदमत में हाज़िर हुआ या हज़रत से अरज़ किया के मेरे वालिद का इंतकाल हो गाया,
इसपर लडका ज़्यादा रोया पिता या अढ़ गया तो आप को रहम आया आपने वादा फरमाया या लड़के की तस्कीन की, बदाहु हज़रत इज़रायल अलैहिस असलम को मुराक़िब होकर रोका जब हज़रात इज़रायल अलैहि सलाम रुके आपने दरयाफ्त किया के हमारे मुरीद की रूह तुमने कब्ज़ की है?
जवाब दिया की हां, आपने फरमाया रूह हमरे मुरीद की छोड़ दो, इजरायल अलैहिस सलाम ने कहा की मैने बहुकम ए रब्बल आलमीन रूह कब्ज़ की है बगैर उसके हुकुम नहीं छोड़ सकता।
इसपर झगड़ा हुआ आपने थप्पड़ मारा हज़रत के थप्पड़ से इज़रायल अलैहिस सालसम की एक आँख निकल पड़ी या अपने उनसे जनबील छीन कर उस रोज़ जी तमाम रूहे जो के कब्ज़ की थी छोड़ दी।
इस्पर हज़रत इज़रायल अलैहिस सलाम ने रब्बल आलमीन से अरज़ किया, वाहा से हुकुम हुआ हमारे महबूब ने एक रूह छोड़ने को कहा तुमने क्यों नहीं छोडी हमको इनकी ख़तीर मंज़ूर है,
अगर उन्होने तमाम रूहे छोड़ दी तो कुछ मुज़ैका नहीं। शरण क्या रिवायत का बयान करना मजलिस ए मौलूद में या वगैरह में दुरस्त है या नहीं?
Ahle_bait |
इस्के जवाब में आप फरमाते हैं
(ये) रिवायत इबलीस की गड़ी हुई है या इस्का पढ़ना, और सुनना दोनो हराम ने ये, अहमक़ जाहिल बे अदब ने ये जाना की वो इस्मे हुज़ूर सैयदुना गौस ए आज़म रदी अल्लाहु अन्हु की तज़ीम करता है हलंकी वो हुज़ूर की तख्त तौहीन कर रहा है।
किसी आलिम मुसल्मान की इसे ज़्यादा तौहीन क्या होगी में मा'अज़अल्लाह कुफ़्र की तराफ़ निस्बत किया जाए ना की महबूबने इलाही, सैयदुना इज़रायल अलैहिस सलाम मुर्सलीन ए मलाइका में से हैं और मर्सीलीन ऐ मलाइका बिल इज्मा तमाम गैर अम्बिया से अफ़ज़ल हैं
किसी रसूल के साथ ऐसी हरकत करना तौहीन इ रसूल के सबब मअज़ल्लाह उसके लिए बैस इ कुफ्र हैं अल्लाह टाला जिहालत ओ ज़लालत से पनाह दे.
(फतवा रज़विया शरीफ़ जिल्द 12, पेज 199)
तीसरे मक़ाम पर रसूल ए मलाइका के मक़म ओ मरर्तबा या उनकी तौहीन के सिलसिला में फार्मते हैं
उनके उलोव ए शान ओ रिफ़त मकान (शोकत ओ अज़मत या आली मार्तबत) को भी कोई वाली नहीं पहोंचता (ख्वा कितना ही मुकररब बरगाह ए अहदियत हो) या उनकी जनाब में गुस्ताखी का बी ऐनीही वही हकम (जो अंबिया मुर्सिलीन की) रिफत पनाह बरगाहों में गुस्ताखी का है के कुफ्र ए कताई है।
(फतवा रज़ाईया शरीफ जिल्द 29. पेज 335 )
और चौथे मक़ाम पर हज़रात जिब्रील अलैहिस सलाम के खादिम होने से मुताल्लिक़ फरमाते हैं।
फरिश्तों में सब से ऊंचा उनका मर्तबा ओ मक़ाम और क़ुर्बे क़ुबूल पर फैज़ुल मुराम वो साहिब इ इज़्ज़त ओ एहतेराम के बाबी इ करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के सिवा दूसरे के खादिम नहीं और तमाम मुअख्लूक़ात में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के इलावा कोई और उनका मखदूम ओ मुता नहीं।
(फतवा रजविया शरीफ जिल्द 29 पेज 254)
हज़रात सदरूशशरिया अलैहिर्रहमा फरमाते हैं किसी फ़रिश्ते के साथ अदना गुस्ताखी कुफ्र है.
(बहरे शरीअत जिल्द 1 सफा नो 92)
और फाकिह ए असर शारेह बुखारी अलैहिर्रेहमा फरमाते हैं
जिब्रील ए अमीन रसूल ए मलाइका में से हैं तो ये कहना के हजरत सिद्दीक ए अकबर जिब्रील ए अमीन से अफजल है कुफ्र हुआ इस्लिये के जरुरियत ए दीन का इनकार कुफ्र है।
(फतवा शारेह बुखारी, जिल्ड 1 , पेज 661)
लिहाजा इन तमम दलाइल से ये बात रोज ए रोशन की तरह अया (एन) है के किसी फरिश्ते की शान में अदना गुस्ताखी कुफ्र है लिहाजा जिस ने Ahle Bait अहले बैत अतहर रदीअल्लाहु अन्हुम को हजरत जिब्रील अलैहिस सलाम से अफजल बताया,
और हज़रत जिब्रील अलैहि सलाम Hazrat Jibril को Ahle Bait अहले बैत का खादिम कहा वो अपने इस कौल (बात) से रुजू करे और तौबा ओ ताजदीदे ईमान करे और अगर शादी शुदा है तो दोबारा निकाह करे।